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anilkriti 13-10-2012 02:59 PM

मानवता
 

सिसक रही मानवता कैसे

देखो सड़क किनारे बैठ
आगे बढ़ जाते लोग
उसको वितृष्णा से देख

समय नहीं किसी के पास
जाके पूछे उसका हाल
कल तक थी जो हृदय में
पड़ी उपेक्षित आज बेहाल

घूर रहा उसे स्वार्थ
बैठा है लगाये घात
हो गयी मलिन मानवता
सह स्वार्थ के क्रूर आघात

धर दबोचा मानवता को
तभीइर्ष्या ने
गड़ा दिए विषदंत नुकीले
कोमल उसकी ग्रीवा में

बह चली धारा रक्त की
लगी तड़पने मानवता
सोच रही पड़ी असहाय
हाय काल की विषमता....

abhisays 13-10-2012 03:18 PM

Re: मानवता
 
अद्भूत, प्रासंगिक और दिल को छु देने वाली रचना है। :bravo::bravo::bravo:

malethia 13-10-2012 03:37 PM

Re: मानवता
 
बहुत सुंदर रचना ,..........................

rajnish manga 28-10-2012 06:49 PM

Re: मानवता
 
[QUOTE=anilkriti;168415]
सिसक रही मानवता कैसे
देखो सड़क किनारे बैठ
आगे बढ़ जाते लोग
उसको वितृष्णा से देख

:iagree:
बहुत सुन्दर. धन्यवाद और बधाई. मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है. आपकी आगामी रचनाओं का इन्तज़ार रहेगा.


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