हुस्न है अखबार-सा
आईने की तरह से हर एक को खुश कर दिया ;
हुस्न है अखबार-सा,जो लिपि को समझा,पढ़ लिया . दे नहीं पाये किसी सूरत धड़कता एक दिल ; मेरे जिन सज़दों ने पत्थर को खुदा - सा कद दिया . फ़िर नए का साथ पाने की जुगत भर है बसंत ; पेड़ ने पतझड़ बता पत्ता ज़मीं पर ला दिया . गेसुओं की छाँव तेरी रूठ कर जब से गयी ; बर्फ की तकदीर जैसा मै पिघलता ही गया . ऐ सितमगर बाद तेरे आँख में ठहरा न कोई ; तेरे पहरेदार अश्कों ने अथक पहरा दिया . पास थी तो चेहरा दिखता था तेरा चाँद - सा ; दूर रहकर चाँद में चेहरा तेरा देखा किया . क्या मुकद्दर , जिसने मेरी ज़िन्दगी बेडौल की , उम्र भर मैने उसे ग़ज़लों में ही ढाला किया . जब हमारा दर्द तेरी आँख से बहने लगे ; तब मै समझूंगा , मैने नग्मा कोई पूरा किया . रचयिता ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ . शब्दार्थ ~~( सितमगर = जुल्मी / अन्यायी ) |
Re: हुस्न है अखबार-सा
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शुक्रिया तहेदिल से दाद कुबूल करेँ | |
Re: हुस्न है अखबार-सा
क्या बात है राकेश जी.. एक ही दिन में दो दो उत्कृष्ट रचनाये. दिल बाग़ बाग़ हो गया.. :fantastic:
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Re: हुस्न है अखबार-सा
सर्वश्री Abhisays जी एवं सिकंदर जी ; आप दोनों
का पढ़ने और पसन्द करने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद . |
Re: हुस्न है अखबार-सा
नमन जी ;
आपने पसंद किया , आपका शुक्रिया . |
Re: हुस्न है अखबार-सा
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जब हमारा दर्द तेरी आँख से बहने लगे वाह! क्या बात है |
Re: हुस्न है अखबार-सा
ndhebar जी ;
आपने रचना पसंद की , आपका शुक्रिया . |
Re: हुस्न है अखबार-सा
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Re: हुस्न है अखबार-सा
गेसुओं की छाँव तेरी रूठ कर जब से गयी ;
बर्फ की तकदीर जैसा मै पिघलता ही गया . dil ko chu gayee hai sar aapki ye kavita nice poem , sunder ahsaas ke sath ddhanyavaad sr |
Re: हुस्न है अखबार-सा
शुक्रिया डार्क सेंट अलैक जी एवं सोमवीर जी .
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