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-   -   हुस्न है अखबार-सा (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3507)

Dr. Rakesh Srivastava 09-10-2011 11:09 PM

हुस्न है अखबार-सा
 
आईने की तरह से हर एक को खुश कर दिया ;
हुस्न है अखबार-सा,जो लिपि को समझा,पढ़ लिया .
दे नहीं पाये किसी सूरत धड़कता एक दिल ;
मेरे जिन सज़दों ने पत्थर को खुदा - सा कद दिया .
फ़िर नए का साथ पाने की जुगत भर है बसंत ;
पेड़ ने पतझड़ बता पत्ता ज़मीं पर ला दिया .
गेसुओं की छाँव तेरी रूठ कर जब से गयी ;
बर्फ की तकदीर जैसा मै पिघलता ही गया .
ऐ सितमगर बाद तेरे आँख में ठहरा न कोई ;
तेरे पहरेदार अश्कों ने अथक पहरा दिया .
पास थी तो चेहरा दिखता था तेरा चाँद - सा ;
दूर रहकर चाँद में चेहरा तेरा देखा किया .
क्या मुकद्दर , जिसने मेरी ज़िन्दगी बेडौल की ,
उम्र भर मैने उसे ग़ज़लों में ही ढाला किया .
जब हमारा दर्द तेरी आँख से बहने लगे ;
तब मै समझूंगा , मैने
नग्मा
कोई पूरा किया .

रचयिता ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ
~~( सितमगर = जुल्मी / अन्यायी )

Sikandar_Khan 10-10-2011 07:17 AM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 110659)
आईने की तरह से हर एक को खुश कर दिया ;
हुस्न है अखबार-सा,जो लिपि को समझा,पढ़ लिया .
दे नहीं पाये किसी सूरत धड़कता एक दिल ;
मेरे जिन सज़दों ने पत्थर को खुदा - सा कद दिया

फ़िर नए का साथ पाने की जुगत भर है बसंत ;
पेड़ ने पतझड़ बता पत्ता ज़मीं पर ला दिया .
गेसुओं की छाँव तेरी रूठ कर जब से गयी ;
बर्फ की तकदीर जैसा मै पिघलता ही गया .
ऐ सितमगर बाद तेरे आँख में ठहरा न कोई ;
तेरे पहरेदार अश्कों ने अथक पहरा दिया .
पास थी तो चेहरा दिखता था तेरा चाँद - सा ;
दूर रहकर चाँद में चेहरा तेरा देखा किया .
क्या मुकद्दर , जिसने मेरी ज़िन्दगी बेडौल की ,
उम्र भर मैने उसे ग़ज़लों में ही ढाला किया .
जब हमारा दर्द तेरी आँख से बहने लगे ;
तब मै समझूंगा , मैने
नग्मा कोई पूरा किया .

रचयिता ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~( सितमगर = जुल्मी / अन्यायी )

आपकी ये लाईने मुझे बहुत ही खूबसूरत लगीँ ,
शुक्रिया तहेदिल से दाद कुबूल करेँ |

abhisays 10-10-2011 07:57 AM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
क्या बात है राकेश जी.. एक ही दिन में दो दो उत्कृष्ट रचनाये. दिल बाग़ बाग़ हो गया.. :fantastic:

Dr. Rakesh Srivastava 10-10-2011 11:38 PM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
सर्वश्री Abhisays जी एवं सिकंदर जी ; आप दोनों
का पढ़ने और पसन्द करने के लिए बहुत -
बहुत धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava 11-10-2011 07:36 AM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
नमन जी ;
आपने पसंद किया ,
आपका शुक्रिया .

ndhebar 12-10-2011 07:41 PM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 110659)
जब हमारा दर्द तेरी आँख से बहने लगे ;
तब मै समझूंगा , मैने नग्मा कोई पूरा किया .

रचयिता ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~( सितमगर = जुल्मी / अन्यायी )


जब हमारा दर्द तेरी आँख से बहने लगे

वाह! क्या बात है

Dr. Rakesh Srivastava 12-10-2011 10:33 PM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
ndhebar जी ;
आपने रचना पसंद की ,
आपका शुक्रिया .

Dark Saint Alaick 16-08-2012 01:04 AM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 110659)
[size=4]दे नहीं पाये किसी सूरत धड़कता एक दिल ;
मेरे जिन सज़दों ने पत्थर को खुदा-सा कद दिया .

डॉ. साहब, आज मैं आपके सामने पूरी अकीदत से अपना सर झुका रहा हूं ! इन पंक्तियों के लिए मेरा सजदा कबूल फरमाएं ! आभार !

sombirnaamdev 16-08-2012 11:19 PM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
गेसुओं की छाँव तेरी रूठ कर जब से गयी ;
बर्फ की तकदीर जैसा मै पिघलता ही गया .


dil ko chu gayee hai sar aapki ye kavita
nice poem , sunder ahsaas ke sath ddhanyavaad sr

Dr. Rakesh Srivastava 22-08-2012 02:35 PM

Re: हुस्न है अखबार-सा
 
शुक्रिया डार्क सेंट अलैक जी एवं सोमवीर जी .


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