My Hindi Forum

My Hindi Forum (http://myhindiforum.com/index.php)
-   Mehfil (http://myhindiforum.com/forumdisplay.php?f=17)
-   -   अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें........... (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=9601)

bindujain 01-11-2014 09:28 AM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 536358)
**
बिंदु जी, यहाँ 'य' से शे'र आरम्भ होना चाहिए था जिसे आपने 'ब' से शुरू किया है. 'य' से शे'र अर्ज़ करता हूँ:


ये भी दौरे हाजिर की हम पे महरबानी है
पहले जैसी चेहरे पर अब हँसी नहीं होती

(असरार नसीमी)


तू छोड़ रहा है ,तो ख़ता इसमें मेरी क्या
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी

anjana 01-11-2014 12:33 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by bindujain (Post 536377)

तू छोड़ रहा है ,तो ख़ता इसमें मेरी क्या
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी

"तस्वीर तेरी हमनें फ़िरदौसे तसव्वुर
में ,
सौ आईने तोड़े हैं तब जाके उतारी है ,
मैं तुम को ज़फ़ाओं का इल्ज़ाम नहीं दूँगा ,
तुमने मेरी आँखों में इक उम्र
गुज़ारी है...!"
(तसनीम फ़ारूक़ी)

rajnish manga 01-11-2014 04:00 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by anjana (Post 536448)
"तस्वीर तेरी हमनें फ़िरदौसे तसव्वुर
में ,
सौ आईने तोड़े हैं तब जाके उतारी है ,
मैं तुम को ज़फ़ाओं का इल्ज़ाम नहीं दूँगा ,
तुमने मेरी आँखों में इक उम्र
गुज़ारी है...!"
(तसनीम फ़ारूक़ी)

हमने पुतले तो जलाये हैं बहुत दुनिया में
मन के रावण को भी इक बार जलाया जाये


(सर्वत परवेज़ सहसवानी)

anjana 01-11-2014 05:21 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 536507)
हमने पुतले तो जलाये हैं बहुत दुनिया में
मन के रावण को भी इक बार जलाया जाये


(सर्वत परवेज़ सहसवानी)

ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने,हम आप की तस्वीर बनाना नहीं भूले,
इक उम्र हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ,तुम अब भी मेरे दिल को दुखना नहीं भूले..

Dr.Shree Vijay 01-11-2014 06:04 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by anjana (Post 536511)
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने,हम आप की तस्वीर बनाना नहीं भूले,
इक उम्र हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ,तुम अब भी मेरे दिल को दुखना नहीं भूले..



लोग हर मंजिल को मुश्किल समझते है,
हम हर मुश्किल को मंजिल समझते है.
बड़ा फर्क है लोगों और हमारे नज़रिए में,
लोग दिल को दर्द और हम दर्द को दिल समझते है .......



rajnish manga 01-11-2014 06:54 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by dr.shree vijay (Post 536523)
लोग हर मंजिल को मुश्किल समझते है,
हम हर मुश्किल को मंजिल समझते है.
बड़ा फर्क है लोगों और हमारे नज़रिए में,
लोग दिल को दर्द और हम दर्द को दिल समझते है .......


हदे-ख़याल में आओ तो मूँद लो आँखें
यहाँ नज़ारे की खातिर नज़र ज़रूरी नहीं

ये तीर उसके बदन में कहीं भी लग जाये
हमें तो ज़ख्म से मतलब है सर ज़रूरी नहीं

(शकील आज़मी)

anjana 01-11-2014 07:13 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 536539)
हदे-ख़याल में आओ तो मूँद लो आँखें
यहाँ नज़ारे की खातिर नज़र ज़रूरी नहीं

ये तीर उसके बदन में कहीं भी लग जाये
हमें तो ज़ख्म से मतलब है सर ज़रूरी नहीं

(शकील आज़मी)

हीरों की बस्ती में हमने कांच ही कांच बटोरे हैं,
कितने लिखे फ़साने, फिर भी सारे कागज़ कोरे है।

rajnish manga 01-11-2014 07:28 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by anjana (Post 536546)
हीरों की बस्ती में हमने कांच ही कांच बटोरे हैं,
कितने लिखे फ़साने, फिर भी सारे कागज़ कोरे है।

हूँ कबका मुल्तजी सुनते नहीं कुछ इल्तिजा, साहब
तुम्हें भी लग गयी शायद ज़माने की हवा, साहब

(स्व. मुंशी देवी प्रसाद 'प्रीतम')

bindujain 01-11-2014 08:48 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 536555)
हूँ कबका मुल्तजी सुनते नहीं कुछ इल्तिजा, साहब
तुम्हें भी लग गयी शायद ज़माने की हवा, साहब

(स्व. मुंशी देवी प्रसाद 'प्रीतम')


बलन्दियों पे नज़र आ रहे हैं कुछ बौने
अजब नहीं कि ये दुनिया तबाह हो जाये

मेराज फैज़ाबादी

rajnish manga 01-11-2014 09:15 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by bindujain (Post 536558)
बलन्दियों पे नज़र आ रहे हैं कुछ बौने
अजब नहीं कि ये दुनिया तबाह हो जाये

मेराज फैज़ाबादी

ये चमनज़ार, ये जमना का किनारा, ये महल
ये मुनक्कश दर-ओ-दीवार, महेराब, ये ताक
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

(साहिर लुधियानवी - उनकी नज़्म 'ताजमहल' से)


All times are GMT +5. The time now is 07:01 PM.

Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.