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Dr. Rakesh Srivastava 11-07-2011 04:51 PM

इन्तिहा प्यार की...!
 
हमारा चाहने वाला भी बेवफा निकला ;
वक़्त मेरा बुरा आया तो दूर जा निकला .
आसमाँ दूर से , बाहों की हद में दिखता था ;
लाख पीछा किया , पर पहुँच से बाहर निकला .
साथ चल , रौशनी भर , गुम हुआ अँधेरे में ;
हमसफ़र समझा जिसे, वो महज साया निकला .
मै आज भी , उसी मुकाम पर निहारूं उसे ;
जहाँ पे छोड़ कर ,वो मुझसे आगे जा निकला .
है क्या नसीब , उसी ने मुझे ठोकर मारी ;
बेड़ियाँ पाँव की , जिसके मै खोलने निकला .
मैंने जिससे भी , जख्मे जिगर की दवा मांगी ;
वो ला इलाज , खुद ही प्यार में घायल निकला .
मै जिसको पाने की हसरत में ,उमर
भर भटका ;
बड़ा गजब हुआ , वो ही मेरा कातिल निकला .
इन्तिहा प्यार की समझो , या इबादत कह लो ;
खुदा तराशा जब भी , उसकी शक्ल का निकला .


रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ , इंडिया.


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