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Dr. Rakesh Srivastava 01-12-2012 06:24 PM

लड़की
 
किसी पे हुस्न की दौलत , किसी पे थोड़ी कड़की है ;
जहां में सबसे उम्दा फिर भी नेमत सिर्फ़ लड़की है .

न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ;
सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है .

जहाँ पहुँचा दे किस्मत , पर नशा सबमें ही होता है ;
शराब आख़िर शराब ही है , दुकां भर छोटी - बड़की है .

कुछ इसकी बेबसी वरना ये काटे कान मर्दों के ;
बस अपने जिस्म के चुगलीपने से सहमी हड़की है .

है गहरी झील सी आँखों में फ़िर भी जादुई पानी ;
जो डूबे इसमें जितना , उसमें उतनी प्यास भड़की है .

मैं छज्जे से जिसे हूँ ताकता , कुछ तो इशारा दे ;
क्या उसके दिल की कुण्डी भी मेरी नज़रों से खड़की है .

मुझे तो लगता , वो भी याद करती मुझको रह - रह के ;
तभी तो आँख अक्सर मेरी ख़ुब जोरों से फड़की है .


रचयिता~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

arvind 01-12-2012 06:27 PM

Re: लड़की
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 188724)

मैं छज्जे से जिसे हूँ ताकता , कुछ तो इशारा दे ;
क्या उसके दिल की कुण्डी भी मेरी नज़रों से खड़की है .



क्या बात है डॉ साहब..... अभी तो सिर्फ यही कह सकते है....

आमीन।

abhisays 01-12-2012 07:37 PM

Re: लड़की
 
एक और उम्दा रचना। :bravo:

Sikandar_Khan 01-12-2012 10:11 PM

Re: लड़की
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 188724)
किसी पे हुस्न की दौलत , किसी पे थोड़ी कड़की है ;
जहां में सबसे उम्दा फिर भी नेमत सिर्फ़ लड़की है .

न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ;
सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है .

जहाँ पहुँचा दे किस्मत , पर नशा सबमें ही होता है ;
शराब आख़िर शराब ही है , दुकां भर छोटी - बड़की है .

कुछ इसकी बेबसी वरना ये काटे कान मर्दों के ;
बस अपने जिस्म के चुगलीपने से सहमी हड़की है .

है गहरी झील सी आँखों में फ़िर भी जादुई पानी ;
जो डूबे इसमें जितना , उसमें उतनी प्यास भड़की है
:fantastic:.

मैं छज्जे से जिसे हूँ ताकता , कुछ तो इशारा दे ;
क्या उसके दिल की कुण्डी भी मेरी नज़रों से खड़की है .

मुझे तो लगता , वो भी याद करती मुझको रह - रह के ;
तभी तो आँख अक्सर मेरी ख़ुब जोरों से फड़की है .


रचयिता~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

डॉक्टर साहब ! बहुत ही खूबसूरत रचना |

jai_bhardwaj 01-12-2012 11:04 PM

Re: लड़की
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 188724)
किसी पे हुस्न की दौलत , किसी पे थोड़ी कड़की है ;
जहां में सबसे उम्दा फिर भी नेमत सिर्फ़ लड़की है .

न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ;
सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है .

जहाँ पहुँचा दे किस्मत , पर नशा सबमें ही होता है ;
शराब आख़िर शराब ही है , दुकां भर छोटी - बड़की है .

कुछ इसकी बेबसी वरना ये काटे कान मर्दों के ;
बस अपने जिस्म के चुगलीपने से सहमी हड़की है .

है गहरी झील सी आँखों में फ़िर भी जादुई पानी ;
जो डूबे इसमें जितना , उसमें उतनी प्यास भड़की है .

मैं छज्जे से जिसे हूँ ताकता , कुछ तो इशारा दे ;
क्या उसके दिल की कुण्डी भी मेरी नज़रों से खड़की है .

मुझे तो लगता , वो भी याद करती मुझको रह - रह के ;
तभी तो आँख अक्सर मेरी ख़ुब जोरों से फड़की है .


रचयिता~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

डाक्टर साहब की इस अद्भुद रचना के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करता हूँ ..............

कभी मिशरी सी लगती है, कभी कडवी सी लगती है
कभी सूखी नदी लगती, या बदली सी बरसती है
कवि की कल्पना सी है, सृष्टि की सृष्टि-रचना है
मेरी आँखों में रहती है, मुझे आँखों में रखती है।

हँसाने पर नहीं हँसती, मगर मुस्कान रहती है
रहे गागर में सागर सी, कदाचित ही छलकती है
शांत तो धूलि पैरों की, कुपित तो है विषम आँधी
कभी लड़ जाए ईश्वर से, कभी अपने से डरती है।

असीम स्नेह देती है, मृदुल ममता से भरती है
सहमती है, सिसकती है, सरसती है, संभलती है
ये माता है, ये बहना है, ये बेटी, पत्नी, साथी 'जय',
कभी चुपचाप रहती है, कभी ये खुल के कहती है।

rajnish manga 01-12-2012 11:39 PM

Re: लड़की
 
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;188724]
न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ;
सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है .

:iagree:
डॉ. राकेश श्रीवास्तव, ऐसी सुन्दर रचना के लिये तारीफ़ के जितने शब्द लिखे जाएँ, नाकाफ़ी हैं. रचना की इन पंक्तियों को लिखने के लिये जो दिल चाहिए और जो भावनाओं की शिद्दत चाहिए वही गज़ल के आरम्भ से ले कर अंत तक हर शब्द में झलकती है. एक अति श्रेष्ठ रचना से रु-ब-रू करवाने के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद.

bindujain 02-12-2012 06:42 AM

Re: लड़की
 
वैसे तो मुझे अधिकतर कवितायें समझ में तो नहीं आती लेकिन फिर भी आपकी कविताओं में काफी नयापन लगता है और वो आकर्षित करती हैं।

Dr. Rakesh Srivastava 02-12-2012 09:49 AM

Re: लड़की
 
अत्यधिक आभार आपका मित्र श्री Arvind जी .

Dr. Rakesh Srivastava 20-12-2012 09:16 PM

Re: लड़की
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 189009)
डाक्टर साहब की इस अद्भुद रचना के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करता हूँ ..............

कभी मिशरी सी लगती है, कभी कडवी सी लगती है
कभी सूखी नदी लगती, या बदली सी बरसती है
कवि की कल्पना सी है, सृष्टि की सृष्टि-रचना है
मेरी आँखों में रहती है, मुझे आँखों में रखती है।

हँसाने पर नहीं हँसती, मगर मुस्कान रहती है
रहे गागर में सागर सी, कदाचित ही छलकती है
शांत तो धूलि पैरों की, कुपित तो है विषम आँधी
कभी लड़ जाए ईश्वर से, कभी अपने से डरती है।

असीम स्नेह देती है, मृदुल ममता से भरती है
सहमती है, सिसकती है, सरसती है, संभलती है
ये माता है, ये बहना है, ये बेटी, पत्नी, साथी 'जय',
कभी चुपचाप रहती है, कभी ये खुल के कहती है।

श्री jai_bhardwaj जी ;आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं फिर आप नियमित क्यों नहीं लिखते . बहरहाल आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava 20-12-2012 09:27 PM

Re: लड़की
 
सर्वश्री अभिषेक जी , डार्क सेंट अलैक जी , कल्याण दास जी , पोस्ट मैन जी ,रजनीश मंगा जी एवं सिकंदर खान जी ; आप सभी का पढ़ने व प्रतिक्रिया देने हेतु विशेष आभार . साथ ही उन सम्मानित पाठकों का भी हार्दिक आभार , जिन्होंने सूत्र के सन्दर्भ में अपने चिन्ह विशेष नहीं छोड़े हैं .


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