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-   -   बाबा रे बाबा , न बाबा न ! (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=4360)

~VIKRAM~ 05-05-2012 02:06 PM

बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
बाबाओं का चक्कर बहुत पुराना है, इनके चक्कर में ज्यादातर पड़ने वाले ज्यादातर लोग जब अपनी परेशनियों का हल कही नही मिलता तो वे ऐसे ठगी बाबाओं और तांत्रिक के चक्कर में फस जाते है और तरह तरह से डरा के और अपने दावा को सही ठहराते है

~VIKRAM~ 05-05-2012 02:08 PM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
पहले कोई और था न्यूज़ में बाबा आज कोई और !

फिर भी लोग नहीं जागते !



ऐसे ही ठगी बाबाओं की आप के आस पास में भी भरमार होगी, उनकी ऐसे ही कुछ ठगी बाबाओं की कहानी आप भी यहाँ दे के और लोगो को जागरूक कर सकते है !

~VIKRAM~ 06-05-2012 10:39 AM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
1 Attachment(s)

ndhebar 06-05-2012 05:16 PM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
एक फकीर ,साधु ,महात्मा ,बाबा ,संत को, सत्ता ,धन ,संपत्ति ,साम राज्य ,सिंघासन ,जय जय कार ,अहंकार ,सेना रखने की क्या जरुरत हे । अपनी शक्ति बताने की क्या जरुरत हे अपनी ताकत बताने की क्या जरुरत हे ,इन सब में एक साधु एक बाबा का कैसा मोह ,कैसी जरुरत । मैंने तो ऐसे ऐसे जैन साधु और बाबाओ को देखा हे । जो इंद्र देव की तरह अपना जीवन बिता रहे थे ,करोडो रुपयों की उनके पास धन दोलत थी सैकड़ो नोकर उनकी सेवा में खड़े रहते थे ,बाहर आने जाने के लिए दस दस कारे उनके बंगले के बाहर हर समय खड़ी रहती थी ,दुनिया के कई देशो में उनका व्यापार था और देश के कई शहरो में व कई देशो में उनके रहने के लिए बंगले थे । ऐसे सुखी जीवन बिताने वालो ने इन सब चीजो को ठोकर मारकर एक साधु का, एक बाबा का जीवन अपना लिया । आज वे पेट के लिए रोटी और तन ढंकने के लिए सफ़ेद सूती सस्ते कपडे भी भिक्षा मांगकर लेते हे और रात को सोने के लिए भी कोई भी बिना पैसो की धर्मशाल ढूंढ़ लेते हे । वो ना तो अपने पास पैसा रखते हे और ना ही किसी से पैसा मांगते हे ,पैसे को वो बाबा पाप की वस्तु मानते हे ,कही दुसरे शहर आने जाने के लिए वे कार मोटर ,रेल ,हवाई जहाज का भी उपयोग नहीं करते हे जहा भी उन्हें जाना हे अपने पैरों से चलकर ही वे जाते हे, वे अपने पैरो में चप्पल भी नहीं पहनते हे सदा नंगे पैर ही चलते हे कितना कठिन होता हे एक साधु धर्म का पालन करना ,फिर भी वे हँसते हुए मुस्कराते हुए साधु और बाबा के धर्म का पालन करते हे । यह हे एक असली साधु और बाबा का रूप । आज कल ऐसे भी साधु और बाबा भी देखे हे जिनके पास बीस साल पहले कुछ नहीं था और साधु और बाबा बनते ही एक रास्ट्रीय बैंक से भी ज्यादा धनवान बन गए हे ,देश के छोटे राज्य से भी अधिक सम्पति के मालिक बन गए हे ,विदेशो में भी बड़े बड़े टापुओ के रूप में भी उनके पास सम्पति हे ,विदेशो में टापुओ के रूप में सम्पति तो शायद भारत सरकार के पास भी नहीं हे । ये बाबा इतने अल्प समय में ही इतने धनी कैसे बन गए हे । कहते हे बड़े बड़े उद्योग पति इनके चेले हे वे ही इन्हें दान में देते हे । मैंने तो बड़े बड़े उद्योग पतियों को भी एक कार खरीदने के लिए भी बैंक से लोन लेते देखा हे उनके सभी उद्योग और पूरा धंधा ही बैंक लोन से ही चलता हे ,अगर उद्योग पतियों के पास इतना अधिक धन होता तो वे अपने रहने के बगले और फेक्टरिया बैंक में लोन के एवज में गिरवी क्यों रखते । अगर साधु बन कार अल्प समय में इतना धन कमाया जाता हे देश के हर नागरिक को साधु बनना चाहिए और मिडिया को भी ऐसे धनी साधु और बाबा को धनी बननेके नुस्के पूछने चाहिए ताकि मिडिया के माध्यम से पूरा देश को धनी बनाया जा सके ।

ndhebar 06-05-2012 05:36 PM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
आजकल एक कथित त्रिकालदर्शी महापुरूष लोगों को दर्शन दे कृपा बरसा रहे हैं, मित्रों ये साहब भी धन्य हैं, इन्होंने हमारे जीवन काल में धरती पर अवतरित हो हमें कृतार्थ अथवा लज्जितकिया है, यह निर्धारण किया जाना अभी शेष है, कहते हैं कि उनके पास वह अलौकिक नेत्र है जो कि महादेव के पास हुआ करती थी, और उसी दिव्य नेत्र के कारण अनेकानेक उत्सुक-जन, भक्त, शंकालु, ईर्ष्यालु और झगडालु लोग इस कृपालु की ओर जाने-अनजाने स्वतः ही आकृष्ट हो रहे हैं,



यहॉं मेरे मन में छोटी सी बात आती है वह यह कि यदि मुझे यह ज्ञात हो जाए कि कल एक रेल दुर्घटना होने वाली है, जिसमें 100 निर्दोष लोग मर जाएंगे, अथवा यह कि कल किसी असहाय व्यक्ति की हत्या हो जाएगी और अमुक जगह अमुक तरीके से होगी, तो देश के एक सजग और जिम्मेदार नागरिक होने के कारण मुझे क्या करना चाहिए ? क्या मुझे इस प्रकार की दुर्घटना को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए !!! और यदि मैं ऐसा नहीं करता हूं तो फिर क्या यह अपराध नही होगा, क्या मेरा जानबूझकर चुप रहना सजा के योग्य कार्य नहीं कहा जाएगा ? इससे भी अलग यह कि यदि मौन ही रहना है ऐसी फिर ऐसी अदृश्य ऑंख का लाभ ही क्या ?? तो इस प्रकार जब राष्ट्र के विरूद्व, जन के विरूद्व होने वाले उस अपराध पर भी मैं चुप रहूं जिसका मुझे पूर्वज्ञान हो, तो मेरी इस चुप्पी को क्या कहा जाना चाहिए ? क्या इसे देशद्रोह की संज्ञा नहीं दी जानी चाहिए !!! इस दशा में भी अदृष्य नेत्र से सुसज्जित ये त्रिकालदर्शी महापुरूष यह अवश्य ही जान लेते होंगे (जैसा की उनका दावा है) कि भविष्य में क्या घटित होने वाला है, फिर क्या उनका धर्म, उनकी नैतिकता, उनका कर्तव्य यह नहीं बनता कि वह राष्ट्र को होने वाले अपराधों के बारे में सचेत करें, पूर्व सूचना दें, होने वाले अपराधों को रोकें, और राष्ट्रहित में अपना योगदान दें, फिर यदि वे ऐसा नहीं करते, तो उनके मौन को राष्ट्रद्रोह क्यों नहीं माना जाना चाहिए ?


दूसरी ओर यदि मेरे पास शून्य में झांकने जैसी अदृश्य शक्ति न हो, परन्तु फिर भी मैं यह दावा करूं कि मेरे पास अदृश्य अलौकिक शक्तियॉं हैं, इसी दावे के आधार पर लोग मुझे धन दें और उसका मैं स्वेच्छापूर्वक उपयोग करूं, तो इसे क्या कहा जाना चाहिए ? क्या आप इसे इसे ठगी नहीं कहेंगे !!!


तो बात स्पष्ट हुई, उक्त अदृश्य आंख को या तो ज्ञान है अथवा नहीं, यदि है और वे राष्ट्र को भविष्य के अपराधों के प्रति सचेत नहीं कर रहे तो उनका मौन राष्ट्रद्रोह होगा, और यदि अदृश्य नेत्र नहीं है और फिर भी वह इसका दावा कर लोगों को मूर्ख बना धन संचय करते हैं तो ठगी,


तो अदृश्य ऑंख का दावा करने वाले महापुरूष के समक्ष दो ही विकल्प मौजूद हैं, या तो वह ठग है या फिर देशद्रोही …….तो क्यों न उन्हीं से यह सीधा प्रश्न किया जाए, बाबा तुम ही कहो ठग हो या देशद्रोही ………..सोचिए तो, बाबा क्या जवाब देंगे इसका ? वैसे आप क्या सोचते हैं इस बारे में …..

~VIKRAM~ 06-05-2012 06:39 PM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
भाई निशांत जी ,सही कहते है आप , जब बाबा या साधू का चोला धारण किया तो रुपए पैसे से मोह कैसा ? जो मोह को छोड़ न पाया तो साधू-संत नहीं व्यापारी ही है,

prashant 06-05-2012 07:16 PM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
मोह माया से कोई नहीं छुटा है.
लेकिन बात मानना चाहिए की कोई भी बाबा लोग कोई चीज बेचते है तो गुणवता के हिसाब से ठीक और सस्ती होती है.
क्या हम उसे नहीं सराह सकते है?

ndhebar 06-05-2012 07:54 PM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
Quote:

Originally Posted by prashant (Post 146234)
मोह माया से कोई नहीं छुटा है.
लेकिन बात मानना चाहिए की कोई भी बाबा लोग कोई चीज बेचते है तो गुणवता के हिसाब से ठीक और सस्ती होती है.
क्या हम उसे नहीं सराह सकते है?

उस कृपा की गुणवत्ता के बारे में आपके क्या विचार है जो पानीपूरी या समोसे खाने से आती है

prashant 07-05-2012 06:23 PM

Re: बाबा रे बाबा , न बाबा न !
 
Quote:

Originally Posted by ndhebar (Post 146241)
उस कृपा की गुणवत्ता के बारे में आपके क्या विचार है जो पानीपूरी या समोसे खाने से आती है

निर्मल बाबा तो स्वाद के साथ कृपा भी बाँट रहे है.....:think:
लेकिन इससे भी एक बिजनस स्ट्रेटेजी बन सकती है...
निर्मल बाबा अपने ब्रांड के समोसे कचोरी चाट बना कर बेच सकते है.....:cheers:
कहना चाहिए की कृपा चाहिए तो हमारे बनाये गए समोसे पानी पूरी खाओ.
इससे उनका मुनाफा और बढ़ जायेगा.
लेकिन एक बात माननी पड़ेगी की निर्मल बाबा के द्वारा बताये गए आसान और स्वादिष्ट तरीको के कारण ही उनकी प्रसिद्धि बढ़ी है.भक्त भी सोचते है की समोसा खाने के काम बन जायेगा.यदि एक दो केश में तुक्का काम कर जाता है तो बाबा की चांदी ही चांदी २००० रूपये सवाल पूछने के मिले वो अलग ऊपर से दसवंत भी....

इस कृपा के गुणवत्ता की बात है तो इनके भक्त ही कुछ कह सकते है.
मैं तो टीवी पर बाबा पर चलते प्रोग्राम को नहीं देखता हूँ.


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