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-   -   धूप सब पी के सँवर जाओ (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3504)

Dr. Rakesh Srivastava 09-10-2011 02:58 PM

धूप सब पी के सँवर जाओ
 
धूप सब पी के सँवर जाओ चाँदनी की तरह ;
उम्र बढ़ जायेगी , लम्हे जियो सदियों की तरह .
वक्त ज्यादा नहीं है नाप लो ऊँचाई को ;
फूट जाओगे किसी रोज बुलबुले की तरह .
हार मत मानो , पत्थरों से जूझते ही रहो ;
छाप उनपे भी पड़ेगी कभी रस्सी की तरह .
अपनी धुन में अकेले ही बढ़ो मंजिल की तरफ ;
कोई रोके अगर बन जाओ काफ़िले की तरह .
साथ कीचड़ का मिले तब भी कमल बन के रहो ;
अँधेरे चीर के बढ़ जाओ रौशनी की तरह .
बीन लो मोती समन्दर की तलहटी तक से ;
इल्म पाना है तो जुट जाओ तिश्नगी की तरह .
तुझ से जर्रे को कोई आँधी आसमाँ देगी ;
काम जब जो करो , बस करो इबादत की तरह .
फूल खिलते हैं तो मुरझाना ही पड़ता है उन्हें ;
मौत से पहले बिखर जाओ तुम ख़ुश्बू की तरह .


रचयिता ~~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~(इल्म =ज्ञान , तिश्नगी = प्यास , ज़र्रे = अति सूक्ष्म कण )

abhisays 09-10-2011 03:22 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
बहुत बढ़िया..

धुप सब पी का सँवर जाओ.
...

बहुत ही प्रेरणादायक कविता है.

अँधेरे चीर के बढ़ जाओ रौशनी की तरह .
बीन लो मोती समन्दर की तलहटी तक से ;


मेरी पसंदीदा लाइन..

Sikandar_Khan 09-10-2011 08:26 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 110416)
धूप सब पी के सँवर जाओ चाँदनी की तरह ;
उम्र बढ़ जायेगी , लम्हे जियो सदियों की तरह .
वक्त ज्यादा नहीं है नाप लो ऊँचाई को ;
फूट जाओगे किसी रोज बुलबुले की तरह .
हार मत मानो , पत्थरों से जूझते ही रहो ;
छाप उनपे भी पड़ेगी कभी रस्सी की तरह .
अपनी धुन में अकेले ही बढ़ो मंजिल की तरफ ;
कोई रोके अगर बन जाओ काफ़िले की तरह .
साथ कीचड़ का मिले तब भी कमल बन के रहो ;
अँधेरे चीर के बढ़ जाओ रौशनी की तरह .
बीन लो मोती समन्दर की तलहटी तक से ;
इल्म पाना है तो जुट जाओ तिश्नगी की तरह .
तुझ से जर्रे को कोई आँधी आसमाँ देगी ;
काम जब जो करो , बस करो इबादत की तरह .
फूल खिलते हैं तो मुरझाना ही पड़ता है उन्हें ;
मौत से पहले बिखर जाओ तुम ख़ुश्बू की तरह .

रचयिता ~~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~(इल्म =ज्ञान , तिश्नगी = प्यास , ज़र्रे = अति सूक्ष्म कण )

राकेश जी
बहुत खूबसूरत रचना है आपकी तहेदिल से शुक्रिया .... ये था इस संडे का कॉकटेल |

sagar - 09-10-2011 08:31 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
Quote:

Originally Posted by Dr. Rakesh Srivastava (Post 110416)
धूप सब पी के सँवर जाओ चाँदनी की तरह ;
उम्र बढ़ जायेगी , लम्हे जियो सदियों की तरह .
वक्त ज्यादा नहीं है नाप लो ऊँचाई को ;
फूट जाओगे किसी रोज बुलबुले की तरह .
हार मत मानो , पत्थरों से जूझते ही रहो ;
छाप उनपे भी पड़ेगी कभी रस्सी की तरह .
अपनी धुन में अकेले ही बढ़ो मंजिल की तरफ ;
कोई रोके अगर बन जाओ काफ़िले की तरह .
साथ कीचड़ का मिले तब भी कमल बन के रहो ;
अँधेरे चीर के बढ़ जाओ रौशनी की तरह .
बीन लो मोती समन्दर की तलहटी तक से ;
इल्म पाना है तो जुट जाओ तिश्नगी की तरह .
तुझ से जर्रे को कोई आँधी आसमाँ देगी ;
काम जब जो करो , बस करो इबादत की तरह .
फूल खिलते हैं तो मुरझाना ही पड़ता है उन्हें ;
मौत से पहले बिखर जाओ तुम ख़ुश्बू की तरह .

रचयिता ~~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~(इल्म =ज्ञान , तिश्नगी = प्यास , ज़र्रे = अति सूक्ष्म कण )

बहुत ही जबरदस्त हे हमेसा की तरहे :bravo::bravo:

malethia 10-10-2011 02:25 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 110416)
वक्त ज्यादा नहीं है नाप लो ऊँचाई को ;
फूट जाओगे किसी रोज बुलबुले की तरह .



रचयिता ~~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ .
शब्दार्थ ~~(इल्म =ज्ञान , तिश्नगी = प्यास , ज़र्रे = अति सूक्ष्म कण )

बहुत खूब कहा है आपने डॉ.साहेब !
एक और सुंदर प्रस्तुती के लिए धन्यवाद !

Dr. Rakesh Srivastava 10-10-2011 11:19 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
सर्वश्री Abhisays जी , मलेथिया जी , मनीष जी ,
सागर जी एवं सिकंदर जी ; आप सभी का पढ़ने
और पसन्द करने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद .

ndhebar 12-10-2011 03:53 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
बहुत ही जबदस्त रचना बड़े भाई
आपकी लेखनी जादू सा असर करती है और दिल पर अपना निशान छोड़ जाती है
बहुत बहुत बधाई

Dr. Rakesh Srivastava 12-10-2011 10:38 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
ndhebar जी एवं अरविन्द जी ,
आपने रचना पसंद की ,
आपका शुक्रिया .

swati 13-10-2011 12:57 AM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
इस उत्तम रचना के रचियेता को नमन. बहुत ही अच्छी कविता है.

Dr. Rakesh Srivastava 13-10-2011 03:04 PM

Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
 
Swati जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया एवं स्वागत .


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