धूप सब पी के सँवर जाओ
धूप सब पी के सँवर जाओ चाँदनी की तरह ;
उम्र बढ़ जायेगी , लम्हे जियो सदियों की तरह . वक्त ज्यादा नहीं है नाप लो ऊँचाई को ; फूट जाओगे किसी रोज बुलबुले की तरह . हार मत मानो , पत्थरों से जूझते ही रहो ; छाप उनपे भी पड़ेगी कभी रस्सी की तरह . अपनी धुन में अकेले ही बढ़ो मंजिल की तरफ ; कोई रोके अगर बन जाओ काफ़िले की तरह . साथ कीचड़ का मिले तब भी कमल बन के रहो ; अँधेरे चीर के बढ़ जाओ रौशनी की तरह . बीन लो मोती समन्दर की तलहटी तक से ; इल्म पाना है तो जुट जाओ तिश्नगी की तरह . तुझ से जर्रे को कोई आँधी आसमाँ देगी ; काम जब जो करो , बस करो इबादत की तरह . फूल खिलते हैं तो मुरझाना ही पड़ता है उन्हें ; मौत से पहले बिखर जाओ तुम ख़ुश्बू की तरह . रचयिता ~~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ . शब्दार्थ ~~(इल्म =ज्ञान , तिश्नगी = प्यास , ज़र्रे = अति सूक्ष्म कण ) |
Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
बहुत बढ़िया..
धुप सब पी का सँवर जाओ. ... बहुत ही प्रेरणादायक कविता है. अँधेरे चीर के बढ़ जाओ रौशनी की तरह . बीन लो मोती समन्दर की तलहटी तक से ; मेरी पसंदीदा लाइन.. |
Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
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बहुत खूबसूरत रचना है आपकी तहेदिल से शुक्रिया .... ये था इस संडे का कॉकटेल | |
Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
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Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
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एक और सुंदर प्रस्तुती के लिए धन्यवाद ! |
Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
सर्वश्री Abhisays जी , मलेथिया जी , मनीष जी ,
सागर जी एवं सिकंदर जी ; आप सभी का पढ़ने और पसन्द करने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद . |
Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
बहुत ही जबदस्त रचना बड़े भाई
आपकी लेखनी जादू सा असर करती है और दिल पर अपना निशान छोड़ जाती है बहुत बहुत बधाई |
Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
ndhebar जी एवं अरविन्द जी ,
आपने रचना पसंद की , आपका शुक्रिया . |
Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
इस उत्तम रचना के रचियेता को नमन. बहुत ही अच्छी कविता है.
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Re: धूप सब पी के सँवर जाओ
Swati जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया एवं स्वागत . |
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