मंटो की मिनी कहानियाँ
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http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1368211627 मंटो ने कहा था एक परिचय नाम: सआदत हसन मंटो पिता: मौलवी गुलाम हसन मंटो मां: सरदार बेगम (बीबीजान) जन्म: 11 मई, 1912 / समराला / पंजाब शादी: 26 अप्रेल 1939 सफिया के साथ मृत्यु: 18 जनवरी, 1955 / लाहौर में पहली कहानी: तमाशा (1933) बम्बई में फिल्म कथा लेखन: प्रमुख फ़िल्में > मिर्ज़ा ग़ालिब > चल चल रे नौजवान > किसान कन्या आदि. ** |
Re: मंटो ने कहा था
मंटो ने अपनी मौत से चंद माह पहले ही अपनी कब्र पर लिखा जाने वाला कतबा लिख कर तैयार कर लिया था. वह इस प्रकार है:-
786 कत्बा यहाँ सआदत हसन मंटो दफ्न है उसके सीने में फन्ने-अफसानानिगारी के सारे असरारे-रूमूज़ दफ्न हैं- वह अब भी मानो मिट्टी के नीचे सोच रहा है कि वह बड़ा अफसाना निगार है या खुदा सआदत हसन मंटो 18 अगस्त 1954 ** |
Re: मंटो ने कहा था
मंटो: निरंतर संघर्ष का नाम
बंटवारे के बाद मंटो जनवरी 1948 में लाहौर, पाकिस्तान जा कर बस गये. आर्थिक संकटों से जूझते हुए बहुत अधिक शराब का सेवन करने लगे. सेहत भी खराब हो गई. दो बार मानसिक रुग्णालय में भी रहना पड़ा. जीवन के अंतिम वर्षों में टी.बी. का शिकार हुये. इसके अतिरिक्त मंटो की कुछ कहानियों जैसे – बू, ठंडा गोश्त, खोल दो आदि पर अश्लीलता के आरोप लगे और मुकद्दमे चलाये गए. उन्होंने 100 से अधिक रेडियो ड्रामा भी लिखे. लाहौर में मंटो की आर्थिक बदहाली का यह आलम था कि उन्होंने एक बोतल शराब के लिए कहानी बेचना गवारा करना पड़ा. कहते हैं कि इस दौर में उन्होंने 40 दिन में चालीस कहानिया लिख दी थीं. कई बार मंटो किसी के द्वारा कहे हुए जुमले पर या फरमाइश पर कहानी लिख देते थे. उनके कृतित्व में 20 कहानी-संग्रह, ड्रामे, संस्मरण, अनुवाद, मजमुए आदि की कई किताबें शामिल हैं. मंटो ने विभाजन की त्रासदी को बहुत नज़दीक से देखा और महसूस किया था जो उनकी बहुत सी कहानियों और लघु कथाओं में बड़ी जीवंतता से उभरता है. उनकी एक लोकप्रिय कहानी है “टोबा टेक सिंह” जिसमे देश विभाजन की विभीषिका में एक पागलखाने के पागलों के बंटवारे की समस्या के आधार पर उस समय के उन्माद का चित्रण किया गया है. ** |
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एकांकी संकलन “आओ” (मजाहिया ड्रामे) की भूमिका :
“यह ड्रामे रोटी के उस मसले की पैदावार हैं जो हिन्दुस्तान में हर उर्दू अदीब के सामने उस वक्त तक मौजूद रहता है, जब तक वह मुकम्मल तौर पर ज़ेहनी अपाहिज न हो जाये … मैं भूखा था, चुनांचे मैंने यह ड्रामे लिखे. दाद इस बात की चाहता हूँ कि मेरे दिमाग ने मेरे पेट में घुस कर चंद मजाहिया (हास्य) ड्रामे लिखे हैं, जो दूसरों को हंसाते रहे हैं, मगर मेरे होंठों पर एक पतली सी मुस्कराहट भी पैदा नहीं कर सके.” सआदत हसन मंटो कूचा वकीलां अमृतसर 28 दिसंबर 1940 ** |
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मंटो / स्याह हाशिया / खातिर तवज्जो
चलती गाड़ी रोक ली गई. जो दुसरे मज़हब के थे उनको गाड़ी से निकाल कर तलवार और गोलियों से हालाक कर दिया गया. उनसे फारिग हो कर गाड़ी के बाकी मुसाफिरों की हलवे, दूध और फलों से खातिर की गई. गाड़ी चलने से पहले खातिर करने वालों के प्रबंधक ने मुसाफिरों को मुखातिब हो कर कहा, “भाइयो और बहनों, हमें गाड़ी के आने की खबर बड़ी देर से मिली. यही वजह है कि हम जिस तरह से चाहते थे उस तरह आपकी खिदमत न कर सके.” ** |
Re: मंटो ने कहा था
मंटो / स्याह हाशिया / हम-मज़हब दो दोस्तों ने मिल कर कुछ लाडलियों में से एक लड़की चुनी और बयालीस रूपए देकर उसे खरीद लिया. एक दोस्त ने लड़की के साथ रात गुज़ार कर उससे पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” लड़की ने अपना नाम बताया. नाम सुनते ही वह अपने दोस्त के पास गया और बोला, “हमारे साथ धोखा हुआ है. हमारे ही मज़हब की लड़की दे दी हमें. चलो वापिस कर के आयें.” ** |
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मंटो / लहू और लोहे का इतिहास
14 अगस्त 1947 का दिन मेरे सामने बम्बई में मनाया गया. पाकिस्तान और भारत दोनों देश स्वतंत्र घोषित किये गए थे. लोग बहुत प्रसन्न थे, मगर क़त्ल और आग की वारदातें बाकायदा जारी थीं.स्वतंत्र भारत की जय के साथ साथ पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगते थे. काग्रेस के तिरंगे के साथ इस्लामी परचम भी लहराता था.पंडित जवाहर लाल नेहरु और कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना – दोनों के नारे बाजारों में गूंजते थे. समझ में नहीं आता था कि भारत अपनी मातृभूमि है या पाकिस्तान अपना वतन. और वह लहू किसका है, जो हर रोज इतनी बेदर्दी से बहाया जा रहा है. वो हड्डियां कहाँ जलाई जायेंगी या दफ़न की जायेंगी, जिन पर से मज़हब और धर्म का गोश्त चीलें और गिद्ध नोच नोच कर खा गए थे ? हिन्दू और मुसलमान धड़ाधड़ मर रहे थे. कैसे मर रहे थे, क्यों मर रहे थे .. इन प्रश्नों के उत्तर भी भिन्न भिन्न थे .. भारतीय उत्तर, पाकिस्तानी जवाब, अंग्रेजी आंसर हर सवाल का जवाब मौजूद था, मगर इस जवाब में वास्तविकता तलाश करने का सवाल पैदा हो उसका कोई उत्तर न मिलता. कोई कहता इसे ग़दर के खंडहर में ढूंढो, कोई कहता, नहीं, यह ईस्ट इंडिया कम्पनी की हुकूमत में मिलेगा. कोई और पीछे हट कर उसे मुगलिया खानदान के इतिहास में टटोलने के लिए कहता. सब पीछे ही पीछे हटते जाते थे और पेशेवर कातिल और लुटेरे बराबर आगे बढ़ते जा रहे थे और लहू और लोहे का ऐसा इतिहास लिख रहे थे, जिसका उदाहरण विश्व इतिहास में कहीं भी नहीं मिलता. ** |
Re: मंटो ने कहा था
मंटो / स्याह हाशिया / नकली पेट्रोल
“देखो यार ! तुमने ब्लैक मार्कीट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दूकान भी न जली.” ** |
Re: मंटो ने कहा था
मंटो / स्याह हाशिया / अगली वारदात
पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई. फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया. दूसरी वारदात दूसरे ही रोज शाम को स्टोर के सामने हुई. सिपाही को पहली वारदात की जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मुकाम पर तैनात कर दिया गया. तीसरा केस रात के बारह बजे लॅान्ड्री के पास हुआ. जब इंस्पेक्टर ए सिपाही को उस नई जगह पहरा देने का हुक्म दिया, तो उसने कुछ देर गौर करने के बाद कहा, “मुझे वहां खड़ा कीजिये, जहां नई वारदात होने वाली है.” ** |
Re: मंटो ने कहा था
मंटो / स्याह हाशिया / मेरी बेटी को मत मारो
“मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो.” “चलो, इसी की मान लो .... कपड़े उतार कर हांक दो एक तरफ !” ** |
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