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Dark Saint Alaick 29-05-2012 11:05 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
मेहनत की कमाई

कहते हैं, मेहनत ही इंसान को आगे ले जाती है। बगैर मेहनत अगर कोई यह सोचे कि उसे अपार संपदा मिल जाएगी, तो यह ख्याल ही अपने आप में गलत है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मनुष्य मेहनत तो करता है, लेकिन उसे उसका वांछित प्रतिफल नहीं मिलता। ऐसे में वह अपने उद्देश्य से भटक भी सकता है। वह अपनी मेहनत को ऐसे काम में लगा देता है, जो न तो उचित होता है और न ही उसके लिए हितकारी। ऐसे में बेहतर यही होता है कि हम उचित मार्गदर्शन के साथ अपना काम करें। एक छोटी सी कथा है, ज़रा नज़र करें - किसी शहर में दो चोर रहते थे। वे बेहद चालाक थे। लोग उन्हें पकड़ने की कोशिश करते, पर वे कभी हाथ नहीं आते। उनकी एक विचित्र आदत थी। वे चोरी का माल दो हिस्सों में बांटते थे। एक हिस्सा वे स्वयं रखते और दूसरा भगवान को चढ़ा देते थे। एक रात वे चोरी के लिए निकले। इधर-उधर भटकने पर भी उन्हें चोरी का अवसर नहीं मिला। वे बैठकर बातें कर रहे थे कि तभी एक महात्मा उधर से निकले। महात्मा ने शांत भाव से पूछा - तुम दोनों कौन हो और यहां क्या कर रहे हो? एक चोर ने कहा - महाराज हम लोग चोर हैं। आज हम चोरी न कर पाए, इसलिए सुबह होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस पर महात्मा ने कहा - तुम लोग जो करते हो, वह उचित है या अनुचित, क्या इस पर कभी सोचा भी है? चोर बोले - हम जो करते हैं, वह उचित ही होगा, क्योंकि चोरी करके हम जो भी वस्तु हासिल करते हैं, उसका एक हिस्सा भगवान को चढ़ा देते हैं। भगवान अवश्य ही हमसे प्रसन्न होंगे। यदि वह हमसे नाराज होते, तो हमें अपने कार्य में सफलता क्यों मिलती। यह सुनकर महात्मा ने अपने झोले से एक जीवित मुर्गा निकाला और उन्हें देते हुए कहा - आज तुम चोरी न कर सके। इस कारण तुम निराश लग रहे हो। यह रख लो। इसके दो भाग कर देना। एक भाग स्वयं रख लेना और दूसरा भगवान को चढ़ा देना। चोरों को इसका कोई जवाब न सूझा। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा - हम समझ गए आप क्या कहना चाहते हैं। अब हम मेहनत की कमाई खाएंगे और उसका एक हिस्सा प्रभु के चरणों में अर्पित करेंगे।

Dark Saint Alaick 30-05-2012 02:28 AM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
खुद को पूरी तरह पहचानें

अगर आप नियमों के खिलाड़ी बनने वाले हैं, तो आपको अपने बारे में बिल्कुल निष्पक्ष रहना होगा। बहुत से लोग ऐसा नहीं कर पाते। वे पूरी तरह से खुद पर स्पॉटलाइट नहीं घुमा सकते हैं, जितनी बारीकी से लोग उन्हें देखते हैं। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है कि दूसरे हमें कैसे देखते हैं। मामला यह भी है कि हम खुद को कैसे देखते हैं। हम सभी के दिमाग में अपनी एक छवि होती है। हम कैसे दिखते हैं, हम कैसे बोलते हैं, हमें कौन सी चीज चलाती है, हम कैसे काम करते हैं। किन्तु यह छवि कितनी वास्तविक है? हम सोंचते हैं कि हम रचनात्मक और अजीब तरीके से काम करते हैं, जबकि दूसरे सोचते हैं कि हम अव्यवस्थित हैं। इनमें से कौन सी बात सच है? वास्तविकता क्या है? अपनी शक्तियों और कमजोरियों को समझने के लिए आपको पहले तो अपनी भूमिका समझनी होगी। अगर आपको शक है, तो सूची बना लें। जिन्हें आप अपनी शक्तियां और कमजोरियां मानते हैं, उन्हें कागज़ पर लिख लें। यह सूची किसी करीबी मित्र को दिखाएं, जिसके साथ आप काम नहीं करते हों या जिनके साथ आपके व्यावसायिक सम्बन्ध नहीं हों। उससे निष्पक्ष मूल्यांकन करने को कहें। फिर इसे किसी ऐसे विश्वस्त व्यक्ति को दिखाएं, जिसके साथ आप काम करते हैं। आप सच्चाई के कितने करीब हैं? क्या इस बारे में दोनों के मूल्यांकन में फर्क है? तय मानिए, उनमें काफी फर्क होगा। ऐसा इसलिए कि दोस्ती की आपकी विशेष योग्यताएं कामकाजी रिश्तों की आपकी योग्यताओं से अलग होती है। कई लोग सोचते हैं कि उनकी शक्तियों और कमजोरियों को पहचानने का मतलब है कि उन्हें बुरी चीजों से छुटकारा पाना चाहिए और सिर्फ अच्छी चीजों के साथ ही काम करना चाहिए। यह सच नहीं है। यह इलाज भी नहीं है। यह तो असल दुनिया है। हम सभी में कमजोरियां होती हैं। गोपनीय रहस्य तो उनके साथ काम करना सीखना है। आदर्श बनने की कोशिश क्यों करें? यह तो अयथार्थवादी और गैरजरूरी है। आप अपनी कमजोरियों का बेहतर इस्तेमाल भी तो कर सकते हैं और तब वे शक्तियां बन जाएंगी, है न? तो इस बारे में आज से ही, बल्कि अभी से सोचना शुरू कर दें।

Dark Saint Alaick 30-05-2012 02:32 AM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
एक संत की सीख

एक बार संत तिरुवल्लुवर अपने शिष्यों के साथ कहीं चले जा रहे थे। रास्ते में आने-जाने वाले लोग उनका अभिवादन कर रहे थे। तभी एक शराबी झूमता हुआ उनके सामने आया और तनकर खड़ा हो गया। उसने संत से कहा - आप लोगों से यह क्यों कहते फिरते हैं कि शराब घृणित और खराब चीज है, मत पिया करो। क्या अंगूर खराब होते हैं? क्या चावल बुरी चीज है? अगर ये दोनों चीजें अच्छी हैं, तो इनसे बनने वाली शराब कैसे बुरी हो गई? शराबी के इस सवाल पर लोग उसे हैरत से देखने लगे और सोचने लगे कि संत तिरुवल्लुवर इस पर क्या जवाब देते हैं। संत तिरुवल्लुवर मुस्कराकर बोले - भाई,अगर तुम पर मुट्ठी भर-भरकर कोई मिट्टी फैंके या कटोरा भर कर पानी डाल दे, तो क्या इससे तुम्हें चोट लगेगी? शराबी ने न में सिर हिलाया, तो संत तिरुवल्लुवर ने फिर कहा - लेकिन इस मिट्टी में पानी मिलाकर उसकी ईंट बनाकर तुम पर फेंकी जाए तब...? शराबी ने कहा - उससे तो मैं घायल हो जाऊंगा। मुझे बड़ी चोट लग सकती है। संत तिरुवल्लुवर ने समझाते हुए कहा - इसी प्रकार अंगूर और चावल भी अपने आप में बुरे नहीं हैं, मगर यदि इन्हें मिलाकर शराब बनाकर सेवन किया जाए, तो यह मनुष्य के लिए नुकसानदेह है। यह स्वास्थ्य को खराब करती है। इससे व्यक्ति की सोचने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। इसके कारण तो परिवार नष्ट हो जाते हैं। संत की इस बात का उस शराबी पर गहरा असर पड़ा और उसने उस दिन से शराब से तौबा कर ली। यही नहीं, वह दूसरों को भी शराब छोड़ने की सलाह देने लगा। वह संत तिरुवल्लुवर के सत्संग में नियमित रूप से आने लगा। उसका जीवन बदल गया। इस कथा से तीन बातें स्पष्ट होती हैं - पहली कभी भी इन्सान को कोई भी तर्क देने से पहले हजार बार सोचना चाहिए कि वह जो बात कर रहा है, उसमें अखिर कितना दम है। दूसरा - नशा कोई भी हो, वह बुरा होता है। अपने स्वार्थ की खातिर नशे को अच्छा बताना समाज को ही गलत दिशा दिखाना होता है। और तीसरी - जब भी हमें संत कोई उपदेश दें, तो हमें उस पर गौर अवश्य करना चाहिए।

abhisays 30-05-2012 03:42 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
बहुत ही बढ़िया और ज्ञानवर्धक सूत्र है. इस पाड्शाला में तो रोज़ हाजिरी लगानी पड़ेगी. :bravo:

Kalyan Das 31-05-2012 07:17 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 149380)
[size="5"][color="purple"][b][i] युद्ध में कार्यरत डॉक्टरों का कहना था कि घायल सैनिकों की तो बात ही क्या, जो सैनिक शहीद हो गए थे, उनके चेहरे पर भी विजय की झलक साफ दिखाई दे रही थी।

आपके इन शब्दों से तो मुझमे भी अदम्य साहस जाग उठा है !!

khalid 31-05-2012 08:42 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 150393)
बहुत ही बढ़िया और ज्ञानवर्धक सूत्र है. इस पाड्शाला में तो रोज़ हाजिरी लगानी पड़ेगी. :bravo:

सत्य हैँ
मैँने पहले ध्यान क्योँ नहीँ दिया ;(

Dark Saint Alaick 31-05-2012 10:13 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
खतरे को भांपना सीखें

खतरे हमारी तरफ हर दिशा से, हर वक्त आते रहते हैं। बर्खास्तगी, छंटनी, कम्पनी का अधिग्रहण, प्रतिशोधात्मक सहकर्मी, चिड़चिड़े बॉस, नई प्रौद्योगिकी, नए सिस्टम, नई विधियां। दरअसल ये खतरे इतने बड़े हैं कि इनके बारे में कई पुस्तकें लिखी जा चुकीं हैं। खास तौर से परिवर्तन के खतरे के बारें में। जैसे 'हू मूव्ड माई चीज' और 'हाउ टू हैंडल टफ सिचुएशन एट वर्क'। अगर हम तेजी से सोच सकते हैं, तो लकीर के फकीर बनने से मुक्ति पा सकते हैं। लचीले रहकर तेजी से कदम उठा सकते हैं, जमकर मुक्के बरसा सकते हैं और दूरी को पार कर सकते हैं; तो हम न सिर्फ परिवर्तन के बावजूद बचने में कामयाब हो जाएंगे, बल्कि हम सर्वोच्च कोटि के कलाकार और खिलाड़ी भी बन जाएंगे। जाहिर है, हम यह सब नही कर सकते हैं। कई मौकों पर खतरा हम पर हावी हो जाएगा और हमें कुचल देगा। यह हम सभी के साथ होता है। इस सच्चाई से इनकार करने का कोई मतलब नहीं है कि जिंदगी कई बार पॉइंट ब्लैक रेंज से हम पर गोलियां चलाने लगती है और हमें सिर झुकाने का समय भी नहीं मिल पाता, लेकिन जोखिम हमेशा जोखिम ही रहता है। जब यह वास्तविकता बनता है, तभी हम इससे निपट सकते हैं। जब तक यह जोखिम है, जब तक यह सिर्फ डराता है, लेकिन कोई नुकसान नहीं कर सकता । कौन सा जोखिम, वास्तविक बन जाएगा, यह यह भांपना ही असल योग्यता, प्रतिभा है। असल में जोखिम तो बहुत होते हैं और हम उन सभी पर प्रतिक्रिया नहीं कर सकते। वास्तविक चुनौतियां कम ही होती हैं और हमें उन्हीं पर प्रतिक्रिया देनी होती है। अगर हम जोखिम को जोखिम न मानकर अवसर के रूप में देखें, तो इससे हमें काफी मदद मिल सकती है। जिंदगी में वास्तविक बनने वाले हर जोखिम विकास तथा परिवर्तन करने, अपनी विधियों और प्रबंधन शैली को ढालने और उन्हें दोबारा गढ़ने का मौका देते हैं। अगर हमारा नजरिया सकारात्मक है, तो हम में जोखिमों को नकारात्मक की बजाय सकारात्मक मानने की प्रवृत्ति होती है। वह हमें अपनी काबिलीयत को साबित करने का मौका देती है। अगर हमें कभी चुनौती ही न मिले, तो हम कभी बेहतर नहीं बन पाएंगे।

Dark Saint Alaick 31-05-2012 10:40 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
नेता की पहचान

यह घटना उस समय की है, जब रूस के जन नेता ब्लादिमीर इल्यीच लेनिन पर उनके कुछ शत्रुओं ने हमला कर दिया था। वे उस हमले में घायल हो गए थे और बिस्तर पर थे। डॉक्टरों ने उन्हें आराम की सख्त हिदायत दी हुई थी। वे अभी पूरी तरह स्वस्थ भी नहीं हो पाए थे कि एक दिन उन्हें समाचार मिला कि देश की सबसे प्रमुख रेल लाइन टूटी हुई है। रेल लाइन की शीघ्र मरम्मत आवश्यक थी। सभी देश भक्त लोग समाचार मिलते ही उनके पास जमा होने लगे। एक ने कहा - हम लोग वैतनिक मजदूरों पर निर्भर नहीं रह सकते। वे यह काम पूरा नहीं कर सकेंगे। यह सुन कर वहां उपस्थित अन्य देश भक्त बोले - हां, हम खुद ही इसे पूरा करेंगे। कार्य कठिन था, लेकिन सभी के मन में उत्साह व जोश भरा हुआ था। सभी लेनिन को पसंद करते थे और उनमें राष्ट्रवाद तथा समाज हित की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। सब लोगों के साथ मिलकर काम करने से शीघ्र ही रेल लाइन को ठीक कर दिया गया। कुछ ही देर में वहां पर लोगों की जबर्दस्त भीड़ लग गई। सभी इस बात से बेहद रोमांचित थे कि कुछ देश भक्त लोगों ने एकजुट होकर रेल लाइन को ठीक कर दिया है। अचानक वहां उपस्थित लोगों की नजर मजदूरों के बीच थके- हारे व बीमार लेनिन पर पड़ी। सभी यह जानकर दंग रह गए कि उन्होंने भी घायल होने के बावजूद मजदूरों के साथ मिलकर काम किया था। लेनिन से जब पूछा गया कि वह वहां क्यों आए, तो उन्होंने सहजता से जवाब दिया - अपने साथियों के साथ काम करने। एक प्रतिष्ठित नागरिक बोला - लेकिन साथी भी तो यह काम कर ही सकते थे। दुर्बल शरीर से भारी-भारी लट्ठे ढोने की अपेक्षा जन नेता को स्वास्थ्य की चिंता करते हुए आराम करना चाहिए। इस पर लेनिन मुस्करा कर बोले - जो जनता के बीच में न रहे, जनता के कष्टों को न समझे, अपना आराम पहले देखे, उसे भला कौन जन नेता कहेगा? लेनिन का जवाब सुनते ही वहां खड़े सभी लोग गद्गद हो गए और उन्होंने लेनिन के प्रति आभार तो जताया ही, साथ ही उन्हें इस बात पर बेहद खुशी हुई कि उनके जैसे नेता के कारण ही उनका देश आगे बढ़ रहा है।

sombirnaamdev 31-05-2012 10:57 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
Quote:

Originally Posted by Dark Saint Alaick (Post 149447)
खुद करें अपनी मार्केटिंग

लोग आपको तब तक आदर नहीं देंगे, जब तक आप स्वयं को आदर नहीं देंगे। लोग आपकी कीमत तब तक नहीं समझेंगे, जब तक आप अपनी कीमत नहीं समझेंगे। लोग आपकी प्रतिभा को तब तक नहीं पहचानेंगे, जब तक आप अपनी प्रतिभा नहीं पहचानेंगे। मीडिया के वर्तमान युग में मार्केटिंग सफलता में अहम भूमिका निभाने लगी है। आप स्वयं को और अपनी प्रतिभा को किस तरह से पेश करते हैं, यह आज के दौर में बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। कुछ लोग कहते हैं कि यदि आपके अंदर योग्यता और प्रतिभा है, तो वह एक दिन अवश्य ही पहचानी जाएगी। यह एक श्रेष्ठ विचार है, परन्तु वर्तमान युग में हर किसी की प्रतिभा अपने आप पहचान ली जाए, यह संभव भी नहीं है। लाखों लोग प्रतिभावान हैं, परन्तु चंद लोग ही शिखर पर जगह बना पाते हैं। आपकी प्रतिभा और आपके गुण आपके भीतर ही दबे रह जाते हैं, यदि आप उन्हें पेश नहीं करते हैं, उन्हें प्रदर्शित नहीं करते हैं। हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं, जो चमत्कारिक तेजी से शीर्ष पर पहुंच जाते हैं और अपने समकक्ष लोगों को काफी पीछे छोड़ देते हैं। ऐसे लोग अपने विशिष्ट गुणों के साथ जीत का कॉमनसेंस भी इस्तेमाल करते हैं अर्थात सफलता के लिए जीनियस होने से कहीं ज्यादा है, कॉमनसेंस का होना। यदि आप एक सफल गायक बनना चाहते हैं, तो आपको अपने शानदार बायोडाटा, प्रशंसा पत्र, विशिष्ट फोटोग्राफ और अपने गीतों का आडियो सीडी या कैसेट विभिन्न कंपनियों और निर्देशकों को भेजना होगा। आपको अपनी मार्केटिंग खुद करनी होगी। अपने गुणों को सर्वश्रेष्ठ रूप से प्रस्तुत करना होगा। यदि आप सोच रहे हैं कि बिना मार्केटिंग किए घर बैठे ही एक न एक दिन आपकी प्रतिभा को कोई पहचान लेगा, तो आप गलत सोच रहे हैं। जमाना मार्केटिंग का है और इसमें आपको पारंगत होना ही होगा, तभी आप अपनी प्रतिभा के दम पर वह मुकाम हासिल कर पाएंगे, जिसके सपने आपने देखे या देख रहे हैं। आज से ही यह उपक्रम शुरू कर दें कि आपको अपने दम पर ही कामयाब होना है और आपको अपनी मार्केटिंग खुद ही करनी है। तय मानें, आप जरूर जीत जाएंगे।

ji han agar kisi safl hona hai to khud market ke liye taiyar karna hoga tabhi toaap logo tak pahunch payenge

Dark Saint Alaick 31-05-2012 11:11 PM

Re: डार्क सेंट की पाठशाला
 
अपनी हीनभावना निकाल फेंकें

किसी भी इंसान को दूसरे उतना धोखा नहीं देते, जितना वह खुद को देता है। किसी भी इंसान की अवनति के लिए दूसरे उतने उत्तरदायी नहीं होते, जितना वह खुद होता है। कुछ विफलताओं के बाद व्यक्ति के मन में हीन भाव आ जाता है और वह कायर हो जाता है। वह इस बात पर चिंतन नहीं कर पाता कि जीत और हार तो जीवन का हिस्सा है। वह उन कारणों को नहीं ढूंढ पाता, जिनकी वजह से उसके प्रयास विफल हुए हैं। वह खुद को भाग्यहीन मान लेता है। उसे लगता है कि संसार में उसका कोई मूल्य नहीं है। वह यह मान लेता है कि दूसरे उससे बेहतर हैं और वह आम रहने के लिए पैदा हुआ है। चाहे आपके साथ जो घटा हो, आपने कितना भी बुरा जीवन क्यों न जिया हो, आपके जीवन का अभी अंत नहीं हुआ है। आपका मूल्य खत्म नहीं हुआ है। किसी को भी हक नहीं कि किसी अनुपयोगी वस्तु की तरह आपको कबाड़ में डाल दे। आप फिर खड़े हो सकते हैं। आप फिर मंजिल को पा सकते हैं। महत्व आपके अतीत का नहीं है। महत्व है, तो आपके भविष्य के प्रति आपकी सोच का। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिसमें दुनिया ने किसी शख्स को चुका हुआ मान लिया था, उनका तिरस्कार होने लगा था, लेकिन उनके हौसलों की उड़ान ने उन्हें फिर से खड़ा कर दिया। वे सारे लोग, जो कल तक उनका अपमान करते थे, आज फिर उनके प्रशंसक हैं और जय जयकार कर रहे हैं। रात चाहे कितनी भी गहरी हो, सूर्य को हमेशा के लिए नहीं ढक सकती। सोना चाहे कितना भी धूल से सना हो, सोना ही रहता है। यदि आप अपनी इच्छा से एक खराब और मजबूर जिंदगी चुन रहे हैं, तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता, लेकिन यदि आप बीती विफलताओं की वजह से डरे हुए हैं, तो उठिए। यदि आप किसी कारण से हीनभावना से घिरे हैं, तो अपने मन के अंदर उतरिए। आप पाएंगे कि बहुत से कार्य हैं, जिन्हें आप बहुत अच्छे से कर सकते हैं। आप अपने आसपास देखिए। आपको बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे, जिनमें आपके जैसी योग्यता नहीं है, फिर भी वे खुशहाल हैं। अपनी हीनभावना निकाल फेंकें । यदि दुनिया में दूसरे लोग सुखी रह सकते हैं, तो आप भी रह सकते हैं।


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