रोई ना आँख भर गया दिल आँसूओं से...bansi
देखना पड़ा ज़िंदगी को इतने करीब से
रोई ना आँख भर गया दिल आँसूओं से देख कर झुगियाँ तोड़ने की खबर टीवी पे कपड़े लेकर मदद करने पहुँचा मन से मिला हज़ारों की तादाद में बेघर लोगो से देखा कीड़ों की तरह लोग झूझ रहे थे ज़िंदगी से देखने को मिले बच्चे सर्दी में ठिठुरते से दहल गया दिल मेरा कितने ना ज़ोर से पैदा हुए ग़रीबी में अपनी बदक़िस्मती से पहले ही तड़प रहे थे ग़रीबी की मार से तोड़ दी उनकी झुगियाँ सरकार ने बेरहमी से बिना छत बिना कपड़ों के सर्दी को सहते से मुलाकात हो गयी कुच्छ सरफिरे नौजवानो से जो कर रहे थे मदद उनकी निस्वार्थ भाव से नतमस्तक हूँ उन नौजवानो का मैं दिल से मगर हट ता नहीं बच्चों का चेहरा मेरी आँखों से धिकार है उन को जो जीत ते हैं ग़रीब के वोट से बनाते हैं बड़ी बड़ी योजनाएँ जनता के पैसे से खा जाते हैं सारा पैसा मिलकर जालसाज़ी से छीन लेते हैं खाना ग़रीब का उनके मुँह से करता हूँ इलतजा अपने देश के हुकूमरनो से वादे ना करो, जगाओ ज़मीर अपना, करो कुच्छ मन से देखना पड़ा ज़िंदगी को इतने करीब से रोई ना आँख भर गया दिल आँसूओं से बंसी(मधुर) |
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अच्छा लगा
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behad khub surat panktiyan... रोई ना आँख भर गया दिल आँसूओं से
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आपकी रचना पड कर रोई ना आँख भर गया दिल आँसूओं से
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Re: रोई ना आँख भर गया दिल आँसूओं से...bansi
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