आलस
आलस याने की अकर्मण्यता आलस याने कोई कार्य को न करने का भाव या काम को टालने का भाव आलस याने मन से काम करने की चेतना को मार देना . आलस क्यों आता है लोगो को तो पहले देख ले की आलस कई चीजों कार्यो में खास करके इंसान करते हैं एइसे काम जिसे घर के और लोग आपके लिए कर के दे सकते हैं लोग प्रायः उस काम को दूसरो पर छोड़ देते हैं और इस तरह हरेक कार्य में यदि एइसा ही करने लगे की काश ये काम कोई दूसरा कर देता तो कितना अच्छा होता ये काम बाद में कर लेंगे कौन सी जल्दी है अभी, ये सब सोचना और हरेक कार्य में विलम्ब सहना या इस तरह से पहले तन का आराम बाद में काम इसे आलस कहेंगे हम . पर कई बार ये आलस हमारे जीवन के लिए खतरा बन जाता है कई बार हमें बहुत बड़े _बड़े नुकसान का सामना करना पड़ता है तो कई बार सबके सामने हम हंसी के पात्र बन जाते हैं शायद इसलिए ही हमारे पूर्वजो ने इंसान का बहुत बड़ा शत्रु कहा है इस आलस को . आज के गतिमय जीवन में यदि हम आलस को स्थान दे देते हैं तो हम सबसे पीछे रह जायेंगे इसलिए जितना हो सके हरेक इंसान को आलस का त्याग करना जरुरी है
आलस्य का रोग जिस किसी को भी जीवन में पकड़ लेता है तो फिर वह संभल नही पाता. आलस्य से देह और मन, दोनों कमजोर पड़ जाते हैं. आलसी व्यक्ति जीवन भर लक्ष्य से दूर भटकता रहता है. कहा भी गया है कि आलसी को विद्या कहाँ, बिना विद्या वाले को धन कहाँ, बिना धन वाले को मित्र कहाँ और बिना मित्र के सुख कहाँ ? आलस्य को प्रमाद भी कहा जाता है. कुछ काम नही करना ही प्रमाद नही है, बल्कि, अकरणीय, अकर्तव्य यानि नही करने योग्य काम को करना भी प्रमाद है. जो आलसी है वह कभी भी अपनी आत्म-चेतना से जुडाव महसूस नहीं करता कई बार व्यक्ति कुछ करने में समर्थ होता है, फिर भी उस कार्य को टालने लगता है और धीरे-धीरे कई अवसर भी हाथ से निकल जाते हैं. तब पश्चाताप (Remorse) के अलावा और कुछ नही बचता. अब पश्ताये का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत एइसे वक़्त पर ही बनाई गई कहावत है शायद "आज नही कल" आलसी व्यक्तियों का जीवन का सूत्र है. शायद आलसी व्यक्ति यह नही सोचता है कि जंग लगकर नष्ट होने की अपेक्षा श्रम करके, मेहनत करकेर ख़त्म होना कही ज्यादा अच्छा होता है. आज ही एक संकल्प लें - जीवन जाग्रति का, जागरण का.,,,, जागरण का मतलब आँखे खोलना नही, बल्कि अंतसचेतना या अन्तर्चक्षुओं को खोलना है. वेद का उद्घोष है कि उठो, जागो और जो इस जीवन में प्राप्त करने के लिए आये हो उसके लक्ष्य के लिए जुट जाओ. जो जग कर उठता नही है, वह भी आलसी है. जो अविचल भाव ) से लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर कार्य सिद्धि तक जुटा रहता है, वही व्यक्ति सही मायने में जाग्रत कहलाता है. आलसी वही नही जो काम नही करता, बल्कि वह भी है जो अपनी क्षमता से कम काम करता है. आशय यह है कि अपने दायित्व के प्रति इमानदार नही है, जिसे कर्तव्य बोध नही है वह भी आलसी है. क्षमता से कम काम करने पर हमारी शक्ति क्षीण होती जाती है और हम अपनी असीमित उर्जा को सीमा में बांध कर उसका सही उपयोग नही कर पाते है. आलसी व्यक्ति अकर्मण्य होता है. इसलिए उसे दरिद्रता (Poverty) भी जल्दी ही आती है. आलसी व्यक्ति उत्साही नही होने के कारण जीवन में अक्सर असफलता का सामना करते हैं. सफल होने के लिए जरुरी है कि हम आलस्य का त्याग करें और अपनी पूरी क्षमता से काम करें.और अपने शरीर को बिमारियों का घर ना बनने दें . आप अपना काम करोगे किन्तु प्रसंशा आपकी समाज में होगी कर्मण्यता इंसान को उन्नति का पथ देती हैं , समाज में नाम के साथ मान सम्मान के साथ स्वस्थ शरीर देती है इसलिए आज से ही आलस को छोडिये और कर्म को महत्व दें अकर्मण्यता को अपने आस पास फटकने तक न दें फिर देखिये आपका जीवन खुशियों से कैसे भर जाता है और आपके जीवन की आधी समस्याएं अपने आप ही सुलझ जाएँगी .. |
Re: आलस
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Re: आलस
[QUOTE=rajnish manga;557343]इस आलेख के द्वारा आपने आलस्य या प्रमाद के विषय में बड़ा सुंदर विवरण प्रस्तुत किया है. यह मनुष्य का बहुत बड़ा शत्रु है और उसकी सफलता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा भी है. यदि मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति सजग हो ओर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये तत्पर हो कर कार्य करे, तो कोई कारण नहीं कि वह जीवन में धन-संपत्ति और संतोष प्राप्त न कर सके. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी. [/QUO
इस आलेख पर अपने अमूल्य विचार रखने के लिए हार्दिक आभार भाई ... बहुत बहुत धन्यवाद . |
Re: आलस
बहुत ही सुन्दर व्याख्या !आलस इन्सान का शत्रु है तो कर्मठता आलस की शत्रु है !!जीजीविषा कर्मठता का पेट्रोल है !
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Re: आलस
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प्रसंशात्मक टिपण्णी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अरविन्द शाह जी ... |
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