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Dark Saint Alaick 19-09-2012 03:28 PM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
सिर्फ महादेव पहाड़ी पर ही मिलती है अद्भुत स्वाद वाली मिर्च की एक प्रजाति

इंफाल। मणिपुर की महादेव पहाड़ी के एक नगा बहुल गांव में आठ इंच तक लम्बी मिर्च की एक अनोखी प्रजाति पाई जाती है, हालांकि यह सिर्फ इसी इलाके में उगाई जाती और किसी अन्य स्थान पर नहीं। मिर्च की इस प्रजाति का स्वाद और रंग एकदम अलग तरह का है । यह उखरूल जिले के सिराराखंग में भी उगती है। यह मणिपुर में ‘सिराराखंग मिर्च’ के नाम से मशहूर है और यहां के ग्रामीणों की आय का मुख्य स्रोत है। हालांकि राज्य सरकार ने इसकी खेती के लिए कोई मदद नहीं दी है। कुछ स्थानीय सामाजिक संगठनों से लोगों को कुछ मदद मिली है। गांव के प्रमुख जेड वी बुंगखायप ने कहा कि हम दूसरी तरह की सब्जियां भी उगाते हैं। लेकिन मिर्च हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। गांव में 400 परिवार हैं और प्रत्येक छह महीने में एक परिवार 100 से 300 किलो मिर्च का उत्पादन कर लेता है। सूख जाने पर यह अनोखी मिर्च 200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेची जाती हैं। गांव में सालाना 5000 किलोग्राम सूखी मिर्च तैयार की जाती है। गांव के प्रमुख ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि राज्य का बागवानी विभाग मिर्च उत्पादकों को किसी तरह की मदद देने में विफल रहा है। हालांकि इस बारे में प्रदेश के बागवानी मंत्री एवं वरिष्ठ नगा नेता गाएखांगा ने आश्वासन दिया था। बागवानी विभाग के अधिकारियों ने कहा कि सिराराखांग मिर्च का अधिक मात्रा में उत्पादन करने के लिए विभाग ग्रामीणों को वित्तीय एवं दूसरे प्रकार की मदद देने पर विचार कर रहा है। इसे आप चाहे मिर्च की अद्भुत किस्म कहें या इस क्षेत्र की जलवायु का प्रभाव। यह मिर्च सिर्फ महादेव पहाड़ी के इसी इलाके में उगती है। पड़ोस के अन्य इलाके के लोगों ने इसकी खेती करने का प्रयास किया लेकिन वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो सके। दूसरे स्थानों पर जब सिराराखांग मिर्च उगाई गई तो इसकी लम्बाई काफी कम हो गई और इसका तीखापन भी काफी कम हो गया।

Dark Saint Alaick 19-09-2012 03:29 PM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
दवा मधुमेह की, इलाज अल्झाइमर का भी

लंदन। मधुमेह के रोगियों के लिए तैयार की गई एक दवा अब अल्झाइमर में भी काम आएगी। एक नए अध्ययन मे यह बात सामने आई है। मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली अल्झाइमर बीमारी के रोगियों को वैज्ञानिकों के इस दावे से नई उम्मीद मिली है कि इस दवा से न सिर्फ मस्तिष्क की नष्ट हुई कोशिकाओं को ठीक किया जा सकता है बल्कि उनको दोबारा पैदा भी किया जा सकता है। ‘टाईप टू’ मधुमेह अल्झाइमर का खतरा भी बन सकती है। माना जाता है कि इंसुलिन के कमजोर संकेत मस्तिष्क में कोशिकाओं को हानि पहुंचा सकते हैं और इस बीमारी को जन्म दे सकते हैं। प्रो. किश्चियन होल्शर और उनके दल ने (वैल 8) जीएलपी 1 नाम की दवा को इजाद किया है। यह दवा जीएलपी 1 नामक प्रोटीन को संयमित करती है जिससे शरीर में शर्करा की मात्रा के सम्बंध में मदद मिलती है। वैज्ञानिकों ने एक चूहे पर इस दवा का परीक्षण किया। परीक्षण के अध्ययन में सामने आया कि जीएलपी 1 की भूमिका इंसुलिन के संकेत पहुंचाने में ही नहीं बल्कि मष्तिष्क में नई कोशिकाएं बनाने में भी अहम है। प्रो. होल्शर ने बताया कि इस अध्ययन से पता चलता है कि इस प्रोटीन की भूमिका ‘अल्झाइमर’ और ‘पार्किन्सन्स’ जैसी बीमारियों के इलाज में भी अहम हो सकती है क्योंकि यह बीमारियां कोशिकाओं के नष्ट होने पर होती हैं।

Dark Saint Alaick 19-09-2012 03:29 PM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
जंग खा रही 1928 की मर्सिडीज बिकी 30 लाख पौंड में

लंदन। ब्रिटेन में एक घर के गैराज में 60 सालों से जंग खा रही 1928 मॉडल की मर्सिडीज को यहां करीब 30 लाख पौंड में नीलाम किया गया है। अपनी पीढ़ी की सुपरकार एस टाइप मर्सिडीज बैंज आराम से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने में सक्षम थी और 1952 से बेकार खड़ी यह गाड़ी आज भी दुरूस्त हालत में है जिसे आसानी से ड्राइव किया जा सकता है। 1928 में जब इस मॉडल को लांच किया गया था तो यह दुनिया के सबसे तेज चलने वाले वाहनों में शामिल थी। सुसेक्स में बोन्हैम्स के गुडवुड रिवावाइल सेल में इस कार को हासिल करने के लिए बोली लगाने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। डेली मेल में यह खबर प्रकाशित हुई है। पहली बार खरीदे जाने के बाद से यह कार एक ही परिवार के पास थी और इसे 2801500 पौंड में बेचा गया। इसके खरीददार के नाम का खुलासा नहीं किया गया है। इसके मीटर में आज भी 13, 478 किलोमीटर दर्ज है। अपने समय की दुर्लभ और सबसे आलीशान माने जानी वाली इस मर्सिडीज का बॉडी डिजाइन लंदन स्थित कोच बिल्डर काडोगेन मोटर्स ने हाथ से निर्मित किया था और इसकी खूबसूरत नीले रंग की इंटीरियर डिजाइनिंग आज भी ज्यों की त्यों है।

Dark Saint Alaick 19-09-2012 03:35 PM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
अब जल्द ही इंसानों जैसे होंगे अंतरिक्ष रोबोट

न्यूयार्क। वैज्ञानिक अगली पीढ़ी के अंतरिक्ष रोबोट बनाने में ‘जैव आधारित’ डिजाइन का इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं जिससे ये रोबोट इंसानों की तरह अपने आसपास के माहौल से सीख सकेंगे और इनकी चोटें भी अपने आप ठीक हो सकेंगी। अमेरिकन इंस्टीट्यूट आफ एयरोनोटिक्स एंड एस्ट्रोनोटिक्स के स्पेस 2012 कांफेस एंड एक्सपोजिशन नासा और अमेरिकी सेना के रोबोटिक शोधकर्ताओं ने इस मुद्दे पर विचार विमर्श किया। इस अवसर पर रोबोटों के निर्माण में ऐसी तकनीक के बारे में चर्चा की गई जिसमें जैलीफिश सेल्स और इंसानी बच्चे के दिमाग की तरह तेजी से सीखने का कौशल विकसित करने की संभावनाओं को तलाशा गया। जैवकीय प्राणी अपने आप खुद का उपचार कर सकते हैं और उनमें स्नायु तंत्र होता है जो उन्हें अपने आसपास के वातावरण से सीखने में मदद करता है। इन रोबोटों में यही क्षमता विकसित की जाएगी।

Dark Saint Alaick 19-09-2012 03:36 PM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
परग्रही ने की थी धरती की यात्रा : टीवी शो

वाशिंगटन ! ब्रिटेन के एक टीवी कार्यक्रम में फिर से दावा किया गया है ईस्टरआईलैंड में मौजूद पत्थर के भीमकाय बुत या तो उड़न तश्तरी से आए परग्रहियों ने बनाये या उनसे ही ये प्रेरित हैं। डिस्कवरी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक ‘चैरियोट्स आफ गॉड्स’ के मशहूर लेखक एरिक वोन डेनीकेन का मानना है कि प्राचीन मिस्र के निवासियों के पास गिजा में पिरामीड बनाने के लिए न तो औजार थे न ही इन्हें बनाने का ज्ञान था। इस तरह इन्हें अवश्य ही परग्रहियों ने बनाया होगा। मध्य अमेरिका के माया पिरामीड और पेरू के नाजका मरूस्थल में बनी चित्रकारी के बारे में भी इसी तरह के दावे किए गए हैं। बहरहाल, पुरातत्वविज्ञानी और अन्य वैज्ञानिक लंबे समय से डेनीकेन के सिद्धांतों को मानने से इनकार करते रहे हैं। ‘वाइल्ड पैसिफिक’ कार्यक्रम में कुछ इस तरह कहा गया, ‘‘ईस्टर आईलैंड के पाषाण के बुत दशकों की विशेज्ञता से बने हैं, किसने इन भीमकाय बुतों को बनाया और ये यहां दूर दराज के प्रशांत द्वीप पर कैसे लाए गए।’’ पैसिफिक आईलैंड पर ये बुत कैसे पहुंचे, इस बारे में गुमराह करने वाली कुछ बातें हैं। जैसे कि इन बड़े बुतों को काफी दूर से किसी अज्ञात, रहस्मय उद्देश्य को लेकर लाया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये पत्थर ज्वालामुखी के लावा से बने हैं, जो द्वीप के उत्तरी हिस्से में स्थित सुसुप्त ज्वालामुखी रानो राराकु के हैं। इन्हें रस्सी और लट्ठों की सहायता से लाया गया होगा।

Dark Saint Alaick 20-09-2012 08:30 AM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
चार साल के भीतर आर्कटिक से खत्म हो सकती है बर्फ

लंदन। दुनिया के एक प्रमुख हिम विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि आर्कटिक महासागर का बर्फ चार साल के भीतर पूरी तरह से गायब हो जा सकता है। गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार कैंब्रीज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर वैडहैम्स ने कहा है कि जमने और पिघलने वाला समुद्र का हिस्सा जिस तरह अब तक के न्यूनतम पर सिकुड़ गया है, उत्तरी अक्षांश में ‘वैश्विक अनर्थ’ का प्रादुर्भाव होगा। वैडहैम्स ने आर्कटिक महासागर के नीचे से गुजरने वाली पनडुब्ब्यिों से यात्रा कर बर्फ की परतों की मोटाई के आंकड़े जमा किये हैं। उन्होंने 2007 में महासागरीय बर्फ की परत के टूटने की संभावना जताई थी। तब 41.7 लाख वर्ग किलोमीटर का न्यूनतम क्षेत्र था। इस साल अनपेक्षित रूप से 5,00,000 वर्ग किलोमीटर के सिकुड़ने से यह दायरा 35 लाख वर्ग किलोमीटर ही रह गया है। ‘गार्डियन’ के साथ साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘मैं अनेक साल से (गर्मी के महीनों में सागर में बर्फ के पिघलने को लेकर) पूर्वानुमान लगाता रहा हूं। इसका मुख्य कारण वायुमंडलीय तापमान में इजाफा है। जिस तरह वातावरण गर्म हो रहा है उससे ठंड के मौसम में बर्फ की मात्रा में वृद्धि में भी गिरावट आ रही है और गर्मी में ज्यादा बर्फ पिघल रही है।’ वैडहैम्स का कहना है कि जिस तरह से यह लगातार घटता जा रहा है उससे आर्कटिक में 2015-16 की गर्मियों तक (अगस्त से सितंबर) बर्फ का नामोनिशान मिट जाएगा। उन्होंने कहा कि पहले यह ध्यान में नहीं आ पाया था। लेकिन, इस साल गर्मियों में यह बर्फ की परत तेजी से सिकुड़ी। गर्मियों के अंत में पिघलने की रफ्तार बढ गयी। उन्होंने कहा कि पानी गर्म होने, बर्फ पिघलने और भारी मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभा रहा है। वैडहैम्स ने वैश्विक तापमान घटाने के लिए तुरंत नये विचारों पर अमल किए जाने का आह्वान किया है। कुछ अन्य तरीकों के साथ ही सूर्य की किरणों को वापस अंतरिक्ष में प्रावर्तित करने, बादलों को ज्यादा सफेद बनाने, समुद्र में कार्बन डाय आक्साइड की मात्रा घटाने के उद्देश्य से उसे अवशोषित करने के लिए खणिजों के उपयोग जैसे प्रयासों की भी शुरूआत की जाए।

Dark Saint Alaick 20-09-2012 08:30 AM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
मोबाइल फोन से स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं : विशेषज्ञ

वाशिंगटन। नार्वे के एक अध्ययन में दावा किया गया है कि मोबाइल फोन से लोगों को कोई खतरा नहीं है क्योंकि इस तरह का कोई सबूत नहीं मिला है कि मोबाइल के कारण स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। नार्वे की विशेषज्ञ समिति ने अपने अध्ययन में पाया कि मोबाइल फोन और अन्य ट्रांसमीटरों के करीबी क्षेत्रों में कैंसर का जोखिम नहीं बढता है अथवा पुरूषों की प्रजनन क्षमता पर कोई असर पड़ता है। किसी अन्य खतरे या बीमारी को लेकर भी कोई खतरा नहीं पाया गया। समिति ने पाया कि मोबाइल फोन स्वास्थ्य पर भी बुरा असर नहीं डालता। प्रतिरोधक तंत्र में भी बदलाव का कोई सबूत नहीं मिला। 20 साल तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों में ट्यूमर बढने की रफ्तार का पता लगाया गया। अध्ययन में दोनों चीजों में कोई जुड़ाव देखने को नहीं मिला। अध्ययनकर्ता जान एलेक्जेंडर ने कहा कि माथा और गरदन क्षेत्र में अन्य किस्म के कैंसर को लेकर काफी सीमित आंकड़े हैं और मोबाइल फोन से इसका जोखिम बढने को लेकर भी कोई साक्ष्य नहीं है।

Dark Saint Alaick 20-09-2012 08:31 AM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
फेसबुक के लिए नौकरी की पेशकश ठुकराने को तैयार हैं अनेक लोग

मेलबर्न। तकरीबन 20 फीसदी कर्मचारियों का कहना है कि अगर कार्यस्थल पर फेसबुक जैसी सोशल मीडिया साइट तक उचित पहुंच नहीं दी जाती है तो वे नौकरी की पेशकश ठुकराने ठुकराने को तैयार हैं। नियोक्ता कंपनी हायेस के 870 कर्मचारियों और नियोक्ताओं पर अपने अध्ययन में पाया कि अगर सोशल मीडिया तक पहुंच सीमित की जाती है तो 19.7 फीसदी कर्मचारी नौकरी की पेशकश ठुकरा सकते हैं। एएपी समाचार एजेंसी के मुताबिक, रायशुमारी में हिस्सा लेने वाले करीब आधे लोगों की कार्यस्थल पर सोशल साइटों तक पहुंच है। 13.3 फीसदी इसका रोजना इस्तेमाल करते हैं तो 36.4 फीसदी लोग कभी कभार ही इस पर नजर डालते हैं। नियोक्ताओं में भी अपने कर्मचारियों के सोशल मीडिया साइट पर जाने को लेकर कोई खास एतराज नहीं दिखा। करीब आधे (44.3 फीसदी) नियोक्ताओं का मानना है कि कर्मचारियों को कार्यस्थल पर सोशल मीडिया साइट पर जाने देने की अनुमति से कंपनी में उन्हें बनाए रखने में फायदा ही होता है। करीब एक तिहाई नियोक्ता को इस पर कोई आपत्ति नहीं है। रायशुमारी के अनुसार 23.7 प्रतिशत नियोक्ता सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पांबदी लगाते है और 43.2 फीसदी केवल सीमित रूप से इसकी अनुमति देते हैं।

Dark Saint Alaick 20-09-2012 08:32 AM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
दवा-प्रतिरोधी क्षयरोग से लड़ सकता है ‘प्राकृतिक एंटीबायोटिक’

बर्लिन। स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि मृदा जीवाणुओं से निकलने वाले प्राकृतिक तत्व से दवा-प्रतिरोधी क्षयरोग का इलाज किया जा सकता है । दवा-प्रतिरोधी क्षयरोग के जीवाणु पर बीमारी के लिए विकसित की गई मुख्य दवाओं का कोई प्रभाव नहीं होता है । वैज्ञानिकों ने पाया कि ‘डैक्टिलोसपोरैनजियम फुल्वुम’ जीवाणु से निर्मित प्राकृतिक एंटीबायोटिक पिरिडोमाइसिन क्षयरोग के कारक जीवाणु (ट्यूबरकोलोसिस बैक्टेरियम) के विभिन्न दवा-प्रतिरोधी प्रकारों पर असरकारक है । अध्ययन के मुख्य लेखक स्टेवार्ट कोल का कहना है, ‘‘प्रकृति और क्रमिक विकास ने एक ही प्राकृतिक आवास में रहने वाले कुछ जीवाणुओं को अन्य जीवाणुओं से रक्षा के लिए प्रणाली प्रदान की है ।’’ कोल ने कहा, ‘‘ऐसे प्राणिओं (जीवाणुओं) द्वारा उत्पादित प्राकृतिक उत्पादों की खोज संक्रामक बीमारियों के लिए संभव नयी दवाएं खोजने का सबसे अच्छा माध्यम है ।’’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘इसी का उपयोग करते हुए हमने पाया कि मनुष्यों में क्षयरोग के लिए जिम्मेदार माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकोलोसिस को प्राकृतिक एंटीबायोटिक पिरिडोमाइसिन से मारा जा सकता है । यह क्षयरोग की मुख्य दवाओं जैसे आईसोनिजेड के लिए भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाले जीवाणुओं के खिलाफ भी यह कारगर है।’’

Dark Saint Alaick 20-09-2012 08:32 AM

Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
 
वैज्ञानिकों ने खोजा महिलाओं में मातृत्व की भावना के लिए जिम्मेदार जीन का पता

लंदन। वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन की खोज की है जो महिलाओं में उनके बच्चों के प्रति मातृत्व की भावना के लिए जिम्मेदार हो सकता है । न्यूयॉर्क के रॉकफेलर विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि चूहोंं पर हुए इस अध्ययन में कुछ के भीतर इस जीन के कामकाज को नियंत्रित किया गया था और कुछ में नहीं । सामान्य चूहों के मुकाबले नियंत्रित चूहों ने अपने बच्चों को चाटने, प्यार करने और अन्य लाड़-दुलार में बहुत कम समय बिताया । ‘द टेलीग्राफ’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन के परिणाम के अनुसार महज एक जीन माताओं को अपने बच्चों की रक्षा करने, उन्हें भोजन खिलाने और उनकी परवरिश करने के लिए प्रेरित कर सकता है । इससे पहले हुए अनुसंधानों में कहा गया था कि मस्तिष्क में ‘मेडियल प्रीआप्टिक’ नामक क्षेत्र चूहों में आक्रामकता, यौनिक ग्रहणशीलता और मातृत्व सेवा आदि को नियंत्रित करता है । इस अनुसंधान के परिणाम ‘प्रोसिडिंग्स आफ द नेशनल एकेडमी आॅफ साइंसेज’ में प्रकाशित किए गए हैं ।


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