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-   -   *प्रतिकूलतायें जीवन को प्रखर बनाती हैं* (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=17245)

soni pushpa 18-12-2017 12:38 AM

*प्रतिकूलतायें जीवन को प्रखर बनाती हैं*
 
🔷 *आग के बिना न भोजन पकता है, न सर्दी दूर होती है और न ही धातुओं का गलाना- ढलाना सम्भव हो पाता है।* आदर्शों की परिपक्वता के लिए यह आवश्यक है कि उनके प्रति निष्ठा की गहराई कठिनाइयों की कसौटी पर कमी और खरे- खोटे की यथार्थता समझी जा सके। *बिना तपे सोने को प्रमाणिक कहाँ माना जाता है? उसका उपयुक्त मूल्य कहाँ मिलता है? यह तो प्रारंभिक कसौटी है।*

🔶 *कठिनाइयों के कारण उत्पन्न हुई असुविधाओं को सभी जानते हैं। इसलिए उनसे बचने का प्रयत्न भी करते हैं। इसी प्रयत्न के लिए मनुष्य को दूरदर्शिता अपनानी पड़ती है* और उन उपायों को ढूँढना पड़ता है, जिनके सहारे विपत्ति से बचना सम्भव हो सके। यही है वह बुद्धिमानी जो मनुष्यों को यथार्थवादी और साहसी बनाती है। *जिनने कठिनाईयों में प्रतिकूलता को बदलने के लिए पराक्रम नहीं किया, समझना चाहिए कि उन्हे सुदृढ़ व्यक्तित्व के निर्माण का अवसर नहीं मिला।* कच्ची मिट्टी के बने बर्तन पानी की बूँद पड़ते ही गल जाते हैं। किन्तु *जो देर तक आँवे की आग सहते हैं, उनकी स्थिरता, शोभा कहीं अधिक बढ़ जाती है।*

🔷 *तलवार पर धार रखने के लिए उसे घिसा जाता है। जमीन से सभी धातुऐँ कच्ची ही निकलती हैं। उनका परिशोधन भट्ठी के अतिरिक्त और किसी उपाय से सम्भव नहीं। मनुष्य कितना विवेकवान, सिद्धन्तवादी और चरित्रनिष्ठ है, इसकी परीक्षा विपत्तियों में से गुजरकर इस तप- तितीक्षा में पक कर ही हो पाती है।*

✍🏻 *पं श्रीराम शर्मा आचार्य*

rajnish manga 18-12-2017 05:24 PM

Re: *प्रतिकूलतायें जीवन को प्रखर बनाती हैं*
 
[QUOTE=soni pushpa;562513]

बिना तपे सोने को प्रमाणिक कहाँ माना जाता है? उसका उपयुक्त मूल्य कहाँ मिलता है? यह तो प्रारंभिक कसौटी है।

QUOTE]

आग में तप कर सोना और भी खरा होता है. इस बात को आपने मानव जीवन के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया है. बहुत सुन्दर. धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.


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