फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
मित्रो, इस नए सूत्र में मैं फिल्मों -विशेष रूप से हिंदी सिनेमा-के बारे में रोचक तथ्यों, इसके इतिहास,फिल्म निर्माण से जुड़े व्यक्तियों के अनुभव, गीत, संगीत और अन्य जाने-अनजाने विषयों के बारे में आपसे जानकारी शेयर करूंगा. आपसे गुज़ारिश है कि आप भी इस सूत्र में योगदान देते हुए इसे अधिक से अधिक मनोरंजक स्वरुप प्रदानकरेंगे.
|
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
भारत की पहली फीचर फिल्म
क्या आप जानते है कि ‘राजा हरिश्चंद्र’ भारत की पहली कथा फिल्म है. यद्यपि इतिहास की दृष्टि से देखें तो आर.जी.तोरणे की फिल्म ‘भक्त पुंडलिक’ का प्रदर्शन पहले हुआ था. ‘भक्त पुंडलिक’ 18 मई 1912 को दिखाई गई थी जबकि ‘राजा हरिश्चंद्र’ का प्रदर्शन 3 मई 1913 को हुआ था. बाद में दिखाई गई फिल्म को पहली कथा फिल्म क्यों माना जाता है? वास्तव में उन दिनों भारत में विदेशी फ़िल्में ही दिखाई जाती थीं. एक विदेशी फिल्म ‘ए डैड में’स चाइल्ड’ नामक फिल्म के साथ पहली बार एक भारतीय फिल्म ‘भक्त पुंडलिक’ दिखाई गई थी. ‘भक्त पुंडलिक’ वास्तव में एक स्वतंत्र फिल्म नहीं थी. इसमें एक स्टेज नाटक का फिल्मांकन दिखाया गया था. यह फिल्मांकन भी विदेशी कैमरामैन द्वारा किया गया था. जबकि ‘राजा हरिश्चंद्र’ नामक फिल्म सम्पूर्ण रूप से भारतीय फीचर फिल्म थी जिसका कथानक, कलाकार, निर्देशक, तकनीशियन और लोकेशन सभी कुछ भारतीय था. यही कारण है कि ‘राजा हरिश्चंद्र’ को पहली भारतीय फीचर फिल्म कहलाने का हक़ प्राप्त हुआ. |
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
गुड वन कीप ईट अप बंधु :bravo:
|
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
क्या आप जानते हैं कि ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म के निर्माता निर्देशक धुंडीराज गोविंद फालके थे जिन्हें हम आदर से दादा साहेब फालके के नाम से संबोधित करते हैं. दादा साहेब फालके को भारतीय सिनेमा का जनक माना जाता है. इनके सम्मान में भारत सरकार ने सन 1969 में, जो इनके जन्म का शताब्दी वर्ष भी था, दादा साहेब फालके पुरस्कारों की घोषणा की थी. फिल्मों के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए दिया जाने वाला यह भारत का सर्वोच्च पुरस्कार है. हर वर्ष किसी एक विभूति को सिनेमा कला में उनके योगदान के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है. फालके साहब का जन्म 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र में त्रिंबकेश्वर नामक स्थान में हुआ था. उनके पिता दाजी फालके संस्कृत के बड़े विद्वान् थे. अपने जीवन के आरंभिक काल से ही दादा साहेब ने विभिन्न कलाओं का अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया था जैसे – चित्रकारी, फ़ोटोग्राफ़ी, रंगमंच-संचालन व जादू कला इत्यादि. 1890 में उन्होंने अपना पहला कैमरा खरीदा जिससे वह फ़ोटोग्राफ़ी कला में योग्यता प्राप्त करने लगे. फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आने से पहले उन्होंने ड्रामा कम्पनी के इश्तेहार भी बनाए तथा और भी कई काम किये.
|
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
सन 1910 में क्रिसमस के आसपास उन्होंने मुंबई के एक थियेटर में प्रभु यीशु के जीवन पर बनी फिल्म देखी जिससे प्रभावित हो कर उन्होंने भगवान् श्रीकृष्ण के जीवन पर भी उसी प्रकार की फिल्म बनाने का विचार बनाया. उनके परिवार वालों ने उनके इस विचार का विरोध किया किन्तु उनकी पत्नि श्रीमति सरस्वती काकी फ़ालके ने उन्हें प्रोत्साहित किया. कहते हैं कि अपनी बीमा पालिसी को गिरवी रख कर उन्होंने क़र्ज़ लिया और इस विषय में तकनीकी जानकारी प्राप्त करने स्वयं लंदन गए. वहां उनकी मुलाक़ात मशहूर फिल्मकार सेसिल हेपवर्थ से हुयी जिनसे उन्हें अमूल्य गाईडेंस प्राप्त हुई. इस बीच उन्होंने ‘ए.बी.सी. ऑफ़ सिनेमेटोग्राफी’ नामक पुस्तक का अध्ययन किया जिसने उनकी फिल्म निर्माण विषयक जानकारी को और तीक्ष्ण किया.
विदेश से बहुत से उपकरणों तथा बेहतर तकनीकी ज्ञान के साथ फालके साहब वापिस मुंबई आये. एक फाईनेंसर को विश्वास में ले कर और उससे क़र्ज़ ले कर वह फिल्म के निर्माण में अग्रसर हुये. जैसा हमने पहले बताया है वह भगवान् कृष्ण की लीलाओं पर फिल्म बनाना चाहते थे किन्तु अधिक धन की व्यवस्था न होने के कारण उन्होंने ‘राजा हरिश्चंद्र’ नामक विख्यात पौराणिक कथा नायक पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया. |
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
क्या आप जानते हैं कि उस समय पारसी थियेटर का ज़माना था जिसमे नारी पात्रों की भूमिका भी पुरुषों द्वारा निभायी जाती थी. साथ ही नाटकों और फिल्म के नए माध्यम में भले घर की महिलाओं द्वारा काम करने को अच्छा नहीं माना जाता था और इसी वजह से इनको इन माध्यमों में काम करने की इजाज़त नहीं दी जाती थी. अतः 'राजा हरिश्चंद्र' में भी महिला पात्रों की भूमिका पुरुषों ने निभायी. फिल्म में राजा हरिश्चंद्र की भूमिका तो स्वयं फालके साहब ने निभायी और तारामती का किरदार एक रेस्तरां के रसोइये के सहायक सालुंके ने निभाया.
आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि फालके साहब की एक अन्य फिल्म में राम और सीता दोनों की भूमिका सालुंके को ही निभानी पड़ी थी. |
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
क्या आप जानते हैं कि -
इस फिल्म में फालके साहब ने फिल्म निर्माण से जुड़े बहुत से काम स्वयं किये जैसे - सेट लगाने का काम, दृश्य लेखन, फिल्म की डेवलपिंग और एडिटिंग आदि के काम. बनने के बाद फिल्म की कुल लम्बाई 3700 फुट थी और चार रील तैयार हुयीं. इस फिल्म में उपदेशों, मेलोड्रामा तथा ट्रिक फोटोग्राफी का अच्छा सम्मिश्रण किया गया था. फिल्म छः माह में बन कर तैयार हुई. 3 मई 1913 को यह फिल्म मुंबई के कोरोनेशन थियेटर में प्रदर्शित की गई थी. जनता ने फिल्म को हाथों हाथ लिया और फिल्म को आशातीत सफलता प्राप्त हुई. उस थियेटर में यह फिल्म 23 दिनों तक सफलता पूर्वक चली जो उन दिनों के हिसाब से अनोखा ही कहा जाएगा. फिल्म की अपार सफलता से प्रेरित हो कर फालके साहब परिवार सहित नासिक चले आये और वहां उन्होंने एक स्टूडियो की स्थापना की. उनका समूचा परिवार फिल्म निर्माण के काम में जुड़ गया. यहाँ रहते हुए उन्होंने सन 1913 में 'मोहिनी भस्मासुर' और सन 1914 में 'सत्यवान सावित्री' नामक पौराणिक विषयों वाली फिल्मे बनाई. |
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
गाँव में फिल्म का प्रचार
ग्रामीण इलाकों में फिल्म को शुरू में इतनी सफलता नहीं मिली. जब फालके साहब अपनी फिल्म को ले कर एक गाँव में गए तो बहुत कम लोग फिल्म देखने आये. दादा ने मैनेजर से पूछा कि क्या बात है तो उसने उत्तर दिया, “इस गाँव के लोग लम्बे लम्बे नाटक देखने के आदि हैं. दो आने के टिकट में साढ़े छः घंटे अवधि वाला नाटक. आपकी फिल्म तो डेढ़ घंटे में ख़त्म हो जाती है. दूसरे दिन दादा ने गाँव में इस प्रकार प्रचार करवाया – “राजा हरिश्चंद्र में देखिये सत्तावन हजार फोटो. दो मील लम्बी फिल्म सिर्फ तीन आने में.” इस प्रचार का मुनासिब असर हुआ और लोग उत्साहित हो कर सिनेमा स्थल की ओर आने लगे. |
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
प्रमुख फ़िल्में
क्या आप जानते हैं कि दादा साहब फालके ने अपने करियर में कुल 20 फीचर फ़िल्में और 97 लघु फ़िल्में बनायीं. उनकी प्रमुख फीचर फ़िल्में थीं – ‘कालिया मर्दन’ (जिसमे उनकीपुत्री मंदाकिनी ने कृष्ण का रोल किया), ‘लाइफ ऑफ़ श्रीयाल’ (जिसमे उनकी पत्नि काकीफालके ने उनके साथ अभिनय किया), ‘द मैजिक ऑफ़ डॉ. केल्फा’ (जिसमें उन्होंने जादू की अपनी महारत और स्पेशल इफैक्ट्स का अच्छा प्रदर्शन किया था). इस फिल्म का नाम उन्होंने अपना नाम फालके उलट कर केलफा रख दिया था. ‘लंका दहन’ और ‘श्री कृष्ण जन्म’ फिल्मों को अपार सफलता प्राप्त हुई. प्रथम विश्व युद्ध छिड़ जाने से फिल्म उद्योग पर भीबुरा असर पड़ा था. उनकी अंतिम मूक फिल्म थी ‘सेतु बंधन’ जो सन 1931 में अर्देशिर ईरानी द्वारा निर्देशित और प्रदर्शित फिल्म ‘आलम आरा’ जो पहली बोलती फिल्म थी, के बाद यानि 1932 में आई थी जिसे बाद में सवाक फिल्म के रूप में प्रदर्शित करना पड़ा. 64 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने करियर की अंतिम फिल्म ‘गंगावतरण’ मराठी और हिन्दी दोनों में बनाई. निर्देशक के रूप में यही उनके जीवन की आख़िरी फिल्म थी और पहली सवाक फिल्म थी. उनके जीवन के अंतिम वर्ष दादा साहब फालके ने गरीबी और गुमनामी में बिताये. 16 फरवरी, 1944 को नासिक में उनका देहांत हो गया. इस प्रकार भारतीय फिल्म उद्योग का पुरोधा सदा के लिए इतिहास के पन्नों में विलीन हो गया. अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले उन्होंने कहा था – “यदि मुझमे फिल्म निर्माण के लिए कलात्मक और तकनीकी प्रतिभा न होती और मुझमे साहस व कुछ कर दिखाने की लगन न होती तो भारत में 1912 में फिल्म उद्योग की स्थापना न हुई होती.” |
Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
:hello: क्या आप जानते हैं कि भारत में सिनेमा का पहला प्रदर्शन 7 जुलाई, 1896 के दिन मुंबई (उस समय बम्बई या बॉम्बे) के वाटसन होटल में किया गया था और भारत का पहला सिनेमा हाल 'एल्फिन्सटन पिक्चर पैलेस' सन 1907 में जे.ऍफ़.मदान द्वारा कोलकाता (उस समय कलकत्ता) में बनाया गया. |
All times are GMT +5. The time now is 07:34 AM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.