Pyar kya hai....
Pyar kya hai....
Pyar sirf dhai akshr ka shabd he. Sadiyo se vo alag alag tarike se pahechana gaya he, fir bhi anjan hi he. Pyar ke saath har waqt ek pagalpan hota he. Pyar kiya nahi jata...vo to bus....ho jata he....Pyar to sahaj he. Saccha pyar kabhi marta nahi he. Pyar me koi bhi shart nahi hoti he or na hi apne pyar ke liye badle ki bhavna hoti he....Pyar jaha bhi hota he vaha sirf pyar hi hota he..or kuch nahi. Pyar to ekdusre ke purak he. Pyar me ekdusre ke saath zindgi bitane ki zankhna he. Alag huye to ekdusre ke liye intezar karne ka aanad he. Ekdusre se door hote huye bhi jab dono ekdusre ka khayal rakhe, ekdusre ke hi baare me soche...vo pyar he. Pyar to do dil ki angat sammti he..jaha pyar hota he vaha dar nahi hota. Jab koi kisise saccha pyar karta he to vo usse darta nahi he. vo harwaqt us rishte ko nibhane ki koshish karta he.. Aisa kya he pyar me..... Dono ekdusre ko dekhe..or dono ki chemistry aisi click ho jaye ki dono ekduje ke bina rahe hi na paye...Dono chahe ekdusre ka saath. Dono ko aisa hi lage ki jaise janmo janam se vo dono ekdusre ko jante he, pahechante he.....unki har khushi usse judi he....uski saanso ki rawani unse he, unki aankho me tasvir unki he......or Vo hi PYAR he........ Shikha sanghvi |
Re: Pyar kya hai - shikha sanghvi
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Re: Pyar kya hai - shikha sanghvi
प्यार जब हो जाए तो चैन नहीं,
ना हो तो बेचैनी, हो गया तो समझना मुश्किल, ना हो तो जीना मुश्किल। समझ जाएं तो कहना मुश्किल, और कह दें तो जवाब का अनजाना डर। आखिर करें तो क्या करें? |
Re: Pyar kya hai - shikha sanghvi
प्यार का अर्थ
प्यार एक अद्भुत अहसास है। प्यार अनेक भावनाओं का, रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है। ये किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है। खुद के प्रति, या किसी जानवर के प्रति, या किसी इनसान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कह सकते हैं। कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती हैं। |
Re: Pyar kya hai - shikha sanghvi
प्राचीन ग्रीकों ने चार तरह के प्यार को पहचाना है: रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम। प्यार को अकसर वासना के साथ तुलना की जाती है और पारस्परिक संबध के तौर पर रोमानी अधिस्वर के साथ तुला जाता है, प्यार दोस्ती यानी पक्की दोस्ती से भी तुला जाता हैं। आम तौर पर प्यार एक एहसास है जो एक इनसान दूसरे इनसान के प्रति महसूस करता है।
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Re: Pyar kya hai - shikha sanghvi
प्यार के रूप
अवैयक्तिक प्यार एक व्यक्ति किसी वस्तु, या तत्व, या लक्ष्य से प्यार कर सकता है जिनसे वो जुडा़ है या जिनकी वो कदर करता है। इनसान किसी वस्तु, जानवर या कार्य से भी प्यार कर सकता हैं जिसके साथ वो निजी जुड़ाव महसूस करता है और खुद को जुडे़ रखना चाहता है। अवैयक्तिक प्यार सामान्य प्यार जैसा नहीं है, ये इनसान के आत्मा का नज़रिया है जिससे दूसरों के प्रति एक शान्ति-पूर्वक मानसिक रवैया उत्पन्न होता है जो दया, संयम, माफी और अनुकंपा आदि भवनाओं से व्यक्त किया जाता है। अगर सामान्य वाक्य में कहा जाए तो अवैयक्तिक प्यार एक व्यक्ति के दूसरों के प्रति व्यवहार को कहा जाता हैं। इसिलिए, अवैयक्तिक प्यार एक वस्तु के प्रति इनसान के सोच के ऊपर आधारित होता है। पारस्पारिक प्यार मनुष्य के बीच के प्यार को पारस्पारिक प्यार कहते हैं। ये सिर्फ एक दूसरे के लिये चाह नहीं है बल्कि एक शक्तिशाली भाव है। जिस प्यार के भावनाओं को विनिमय नही किया जाता उसे अप्रतिदेय प्यार कहते हैं। ऐसा प्यार परिवार के सदस्यों, दोस्तों और प्रेमियों के बीच पाया जाता हैं। पारस्पारिक रिश्ता दो मनुष्य के साथ मज़बूत, गहरा और निकट सहयोग होता है। ये रिश्ता अनुमान, एकजुटता, नियमित व्यापार बातचीत या समाजिक प्रतिबद्धित कारणों से बनता है। ये समाजिक, सांस्कृतिक और अन्य कारक से प्रभावित हैं। ये प्रसंग परिवार, रिश्तेदारी, दोस्ती, शादी, सहकर्मी, काम, पड़ोसी और मन्दिर-मस्जिद के अनुसार बदलता है। इसे कानून के द्वारा या रिवाज़ और आपसी समझौते के द्वारा विनियमित किया जा सकता है। ये समाजिक समूहों और समाज का आधार है। |
Re: Pyar kya hai - shikha sanghvi
Thank you devrajji......
Sahi kaha hai Aapne......pyar ke Kai roop hai or har roop Mai vo anjana hai...pyar ko pahechanna Aasan nahi hai...umar bit jati hai..... |
Re: Pyar kya hai - shikha sanghvi
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dhanywaad rajneesh ji |
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