Re: कुछ ओर!
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दुनिया ये दुनिया है बेईमानी सी, सो लगती जानीमानी सी । यह पहले तो रुमानी थी, अब भी तो है दिवानी सी! उपर से शोर मचाती है, अंदर भी है तुफानी सी । यहां सबकी एक कहानी है, खुद भी एक कहानी सी ! रंग एसे बदलती रहती है, आदत हो जैसे पुरानी सी । जब हम ही आते-जाते है, क्युं यह लगती है फानी सी ? बेशर्म हुए जब से ईन्सान, यह हो गई पानी-पानी सी ! है कैसी हमें न बतलाओ, हमको है दुनिया ज़ुबानी सी । [31.5.16] |
Re: कुछ ओर!
बहुत सुंदर ... ग़ज़ल खुबसूरत एहसास का एक महकता गुलदस्ता है जिसका हर श'र ज़बरदस्त है. इसे शेयर करने के लिये आपका धन्यवाद, दीप जी.
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Re: कुछ ओर!
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Re: कुछ ओर!
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तकलीफ मत पूछ खैरियत, तकलीफ होती है! बताने में हकीकत तकलीफ होती है! मांग कर तुम्हें खोया, यह जान कर रोया... जता कर जरुरत, तकलीफ होती है! तनहाई की कभी आदत नहीं पड़ती तनहाई की सोहबत, तकलीफ होती है! बीतने दो यादें समय के बहाव में रख कर अहमियत, तकलीफ होती है। (२९.६.१७) |
Re: कुछ ओर!
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Re: कुछ ओर!
तकलीफ
[/B] मांग कर तुम्हें खोया, यह जान कर रोया... जता कर जरुरत, तकलीफ होती है! (२९.६.१७)[/QUOTE] वाह! बहुत उम्दा अभिव्यक्ति....... :bravo: |
Re: कुछ ओर!
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रजनीशजी और पवित्राजी को ढेर सारा धन्यवाद!:hello: |
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