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-   -   कुछ ओर! (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=14543)

Deep_ 27-01-2015 10:02 PM

कुछ ओर!
 
यह मेरी प्रथम रचना है....फोरम के सभी मित्रो के लिए!

मन हमारा जो भी कहे, मानसीकता कुछ ओर है।
कहेने का सच ओर, वास्तविकता कुछ ओर है।

मीलना भी जब चाहा, एक बहाना तैयार था,
हम भी जानतें थे, यह व्यस्तता कुछ ओर है।

प्रतीक्षा है प्रतिक्षण, एक क्षण तो मीलोगे,
तुम मूर्खता भले मानो, यह मूर्खता कुछ ओर है।

ईस अकेलेपन को यादों से से भर दिया है,
वह सुनापन अलग था, यह रिक्तता कुछ ओर है।

anmolarora 13-02-2015 05:12 PM

Re: कुछ ओर!
 
वाह वाह अति सुंदर

Deep_ 13-02-2015 05:27 PM

Re: कुछ ओर!
 
धन्यवाद अनमोल जी!

rajnish manga 13-02-2015 11:06 PM

Re: कुछ ओर!
 
bahut sundar rachna hai, deep ji. kshama chahta hun pahle visit nahin kar paaya. mera anurodh hai ki aap apni anya rachnaayen bhi hamse sheyar karen.

Deep_ 02-03-2015 05:43 PM

http://www.loverofsadness.net/LOS/im...82c9a10214.jpg

बीती बातें दोहराई जाए,
सूखी आंखे रुलाई जए ।

आती जाती है जो सांस सी,
यादें वो सारी भुलाई जाए ।

अब रोशनी की क्या जरुरत?
उमीद हर एक मिटाई जाए...

फिर कभी भी जल न पाए,
हर लौ...एसे बुझाई जाए।

उसके दिल पे बोझ न पड़े,
कुछ एसी चाल चलाई जाए...

मै ही बेवफा था आखिर,
यह बात उसको मनवाई जाए ।

कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|


(दीप)
२.३.१५

rajnish manga 03-03-2015 04:35 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Deep_ (Post 548872)

....
कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|



(दीप)


:bravo:

ग़ज़ल के अंदाज़ में यह एक सुंदर रचना है. सभी शे'रों में भावों की तीव्र अभिव्यक्ति मिलती है. टाइप की कुछ त्रुटियों (सुखी = सूखी, लो = लौ आदि) के बावजूद रचना अच्छी बन पड़ी है. उक्त दो शे'र विशेष रूप से प्रभावित करते हैं. आपको बहुत बहुत धन्यवाद व शुभकामनाएं, दीप जी.

Deep_ 03-03-2015 07:16 PM

Re: कुछ ओर!
 
बहुत धन्यवाद रजनीश जी। त्रुटीयां ठीक करवाने के लिए भी धन्यवाद!

Pavitra 04-03-2015 10:09 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Deep_ (Post 548872)
http://www.loverofsadness.net/LOS/im...82c9a10214.jpg

बीती बातें दोहराई जाए,
सूखी आंखे रुलाई जए ।

आती जाती है जो सांस सी,
यादें वो सारी भुलाई जाए ।

अब रोशनी की क्या जरुरत?
उमीद हर एक मिटाई जाए...

फिर कभी भी जल न पाए,
हर लौ...एसे बुझाई जाए।

उसके दिल पे बोझ न पड़े,
कुछ एसी चाल चलाई जाए...

मै ही बेवफा था आखिर,
यह बात उसको मनवाई जाए ।

कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|


(दीप)
२.३.१५


दीप जी आपका ये सूत्र देखा तो आपकी पहली कविता "कुछ और" के लिये था जो कि बहुत ही प्रशन्सनीय है , लेकिन आपकी दूसरी रचना पढने के बाद मुझे समझ नहीं आ रहा कि किन शब्दों में आपकी तारीफ करूँ , आपकी ये दूसरी रचना वास्तव में बहुत बहुत ज्यादा अच्छी है ।
:yourock::clappinghands:

Shikha sanghvi 04-03-2015 11:02 PM

Re: कुछ ओर!
 
very very nice deepji

soni pushpa 05-03-2015 02:28 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Deep_ (Post 547619)
यह मेरी प्रथम रचना है....फोरम के सभी मित्रो के लिए!

मन हमारा जो भी कहे, मानसीकता कुछ ओर है।
कहेने का सच ओर, वास्तविकता कुछ ओर है।

मीलना भी जब चाहा, एक बहाना तैयार था,
हम भी जानतें थे, यह व्यस्तता कुछ ओर है।

प्रतीक्षा है प्रतिक्षण, एक क्षण तो मीलोगे,
तुम मूर्खता भले मानो, यह मूर्खता कुछ ओर है।

ईस अकेलेपन को यादों से से भर दिया है,
वह सुनापन अलग था, यह रिक्तता कुछ ओर है।

bahut achche deep ji ....

Arvind Shah 05-03-2015 11:11 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 548872)
http://www.loverofsadness.net/los/im...82c9a10214.jpg

बीती बातें दोहराई जाए,
सूखी आंखे रुलाई जए ।

आती जाती है जो सांस सी,
यादें वो सारी भुलाई जाए ।

अब रोशनी की क्या जरुरत?
उमीद हर एक मिटाई जाए...

फिर कभी भी जल न पाए,
हर लौ...एसे बुझाई जाए।

उसके दिल पे बोझ न पड़े,
कुछ एसी चाल चलाई जाए...

मै ही बेवफा था आखिर,
यह बात उसको मनवाई जाए ।

कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|


(दीप)
२.३.१५

बहुत खुब !!

Deep_ 07-03-2015 01:42 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Pavitra (Post 548999)
दीप जी आपका ये सूत्र देखा तो आपकी पहली कविता "कुछ और" के लिये था जो कि बहुत ही प्रशन्सनीय है , लेकिन आपकी दूसरी रचना पढने के बाद मुझे समझ नहीं आ रहा कि किन शब्दों में आपकी तारीफ करूँ , आपकी ये दूसरी रचना वास्तव में बहुत बहुत ज्यादा अच्छी है ।

Quote:

Originally Posted by Shikha sanghvi (Post 549010)
very very nice deepji

Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 549030)
bahut achche deep ji ....

Quote:

Originally Posted by Arvind Shah (Post 549039)
बहुत खुब !!

सभी मित्रों को धन्यवाद! :hello:

Deep_ 12-03-2015 10:55 PM

Re: कुछ ओर!
 
आदतन
http://howtomanguide.com/wp-content/...10/sad-man.jpg

छेड़ दी वो ही बात आदतन,
रोए फिर सारी रात आदतन,
चैन न जाने कहां सो गया...
जाग उठे जज़्बात आदतन।

रुत बदली, मौसम भी बदले,
बदल गए हालात आदतन...
तुम बदले, दुनिया बदली,
मन क्या चाहे सौगात आदतन?

हुआ वही, होता जो अक्सर,
आंखो से गीरी बरसात आदतन,
उन आंसु में पिघल चले,
जो पुछे थे सवालात आदतन!

आगे क्या करते बात आदतन?
खा ली हमने मात आदतन!
खत्म हुई हर बार की तरहा...
आखरी वो मुलाकात आदतन!


(दीप १२.३.१५)

Pavitra 12-03-2015 11:38 PM

Re: कुछ ओर!
 
बहुत बढिया....बहुत बहुत बढिया......अब जब से आपको भी गजल लिखते देख रही हूँ तो मुझे भी बहुत मन हो रहा है कि कुछ लिखूँ , पर समझ नहीं आता कि आप लोग इतने अच्छे शब्द लेकर कहाँ से आते हैं? मुझे तो कुछ सूझता ही नहीं..... :(

Deep_ 12-03-2015 11:45 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by pavitra (Post 549276)
बहुत बढिया....बहुत बहुत बढिया......अब जब से आपको भी गजल लिखते देख रही हूँ तो मुझे भी बहुत मन हो रहा है कि कुछ लिखूँ , पर समझ नहीं आता कि आप लोग इतने अच्छे शब्द लेकर कहाँ से आते हैं? मुझे तो कुछ सूझता ही नहीं..... :(

एक बार शुरु कर दिजीए बस! आप भी कमाल का अच्छा सोचते और लिखते तो हो ही!

Pavitra 12-03-2015 11:48 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 549277)
एक बार शुरु कर दिजीए बस! आप भी कमाल का अच्छा सोचते और लिखते तो हो ही!

जी कोशिश करूँगी कि मैं भी आप लोगों जैसे लिख सकूँ....... :)

rajnish manga 13-03-2015 11:44 AM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 549274)
आदतन

.....
हुआ वही, होता जो अक्सर,
आंखो से गिरी बरसात आदतन,
उन आंसू में पिघल चले,
जो पूछे थे सवालात आदतन!

(दीप १२.३.१५)

बहुत खूब, बहुत सुंदर. आपकी कविताओं में जज़्बात की अच्छी अभिव्यक्ति नज़र आती है. इसी प्रकार लिखते रहें और हम मित्रों के साथ शेयर करते रहें. एक दिन आप कवियों की अगली पंक्ति में होंगे. धन्यवाद, दीप जी.

Deep_ 13-03-2015 08:44 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 549298)
बहुत खूब, बहुत सुंदर. आपकी कविताओं में जज़्बात की अच्छी अभिव्यक्ति नज़र आती है. इसी प्रकार लिखते रहें और हम मित्रों के साथ शेयर करते रहें. एक दिन आप कवियों की अगली पंक्ति में होंगे. धन्यवाद, दीप जी.

खुब खुब धन्यवाद रजनीश जी! :hello:

Deep_ 13-03-2015 10:22 PM

Re: कुछ ओर!
 
शाम

http://scontent-a.cdninstagram.com/h...47043971_n.jpg

यह दिन ढल रहा है,
पर शाम रुक गई है,
वो पंछी उड़ रहें है,
आवाम रुक गई है।

जो धुप में थी दौडी,
वह बादलों की टोली,
ईस सांझ के किनारे,
सरेआम रुक गई है।

सब रास्ते, चौराहे,
गलीयां तो थक गई है,
चहलपहल भी लेने...
आराम रुक गई है।

बस पोंछ कर पसीना,
मैं आगे बढ रहा हुं,
मेरी जिंदगानी हो कर
बेनाम रुक गई है!

(दीप १३.३.१४)

rajnish manga 13-03-2015 10:55 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 549318)
शाम

....

जो धुप में थी दौडी,
वह बादलों की टोली,
ईस सांझ के किनारे,
सरेआम रुक गई है।

वाह...वाह !! आपकी कविताओं को पढ़ कर यही कह सकते हैं कि 'एक से बढ़ कर एक'. सारी रचना अद्वितीय है, किंतु उपरोक्त पंक्तियाँ आपकी कल्पना की जैसे खूबसूरती बयान करती है. बहुत बहुत धन्यवाद, दीप जी.

Deep_ 01-04-2015 12:08 AM

Re: कुछ ओर!
 
http://s3.favim.com/orig/46/alone-be...com-423257.jpg

मुझे बन जाने दो, या बिखर जाने दो,
या मिट जाने दो, या निखर जाने दो।

होगा एतबार ईस नशेमन पर भी,
एक तुफान यहां से गुज़र जाने दो।

बहुत राह देखी, तब समझा हूं मैं...
नहीं लौटता वक्त, अगर जाने दो!

बेईन्तहा रहा है, बेईन्तहा सहा है,
अगर ईश्क नशा है, उतर जाने दो!

मुझे जाल में ईतना न उलझाओ,
झुल्फें संवारो दो, या बिखर जाने दो।

सपनें दिखा दिखा, पागल किया मुझे,
चोट भी दे दी, अब सुधर जाने दो!

(दीप १.४.१५)

kuki 01-04-2015 04:37 PM

Re: कुछ ओर!
 
बहुत ही शानदार ,दीप जी आप वाकई बहुत ही अच्छा लिखते हैं। आपकी सारी कवितायेँ लाजवाब हैं।

rajnish manga 01-04-2015 08:01 PM

Re: कुछ ओर!
 
आपकी कविताओं में भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति हुयी है. इन्हें पढ़ना एक सुखद अनुभव से गुज़रने के समान है. धन्यवाद, दीप जी.



Deep_ 01-04-2015 09:09 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by kuki (Post 550124)
बहुत ही शानदार ,दीप जी आप वाकई बहुत ही अच्छा लिखते हैं। आपकी सारी कवितायेँ लाजवाब हैं।

रचनाए पसंद करने के लिए धन्यवाद कुकी जी!
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 550221)
आपकी कविताओं में भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति हुयी है. इन्हें पढ़ना एक सुखद अनुभव से गुज़रने के समान है. धन्यवाद, दीप जी.

रजनीश जी, आपकी टिप्पणी हंमेशा प्रेरणादायक रही है। ईसके लिए धन्यवाद!

Deep_ 07-04-2015 01:39 AM

Re: कुछ ओर!
 
https://deadpoet88.files.wordpress.c.../10/tears1.jpg


तु दुर रहे चाहे पास रहे,
मिलने की झुठी आस रहे।

तेरे आने की ना तमन्ना हो,
तेरी राह में हम क्यूं उदास रहे?

तेरा नाम लबों पे आए नहीं,
मुझे ईतना होश-ओ-हवास रहे।

मेरे होने से बढ कर है की,
तेरे होने का एहसास रहे।

वो हंस दे कभी तो क्या होगा?
जिसे ग़म ही हंमेशा रास रहे।

खुशीयों के पल बीतें है मगर...
जितने भी रहे, वो खास रहे।

दीप (७.४.१५)
अभी अभी रात २.०० बजे गज़ल पुरी की है!

Deep_ 04-05-2015 02:58 PM

Re: कुछ ओर!
 
एहसान

http://cache.desktopnexus.com/thumbs...gthumbnail.jpg


बस एक मुलाकात का एहसान हो जाए ।
मुझे भी कुछ होने का गुमान हो जाए ।

सदियों से शायद तुम्हे जानता हुं मैं,
तुम्हे भी मेरी कुछ पहेचान हो जाए ।

जो दुनिया आज मुजे अनदेखा करती है,
तुम्हे देख मेरे साथ, वो भी हैरान हो जाए !

तुम जिसे दो कदम चलना कहती हो,
हो सकता है वह मेरी उडान हो जाए ।

पाना तुम्हें कभी मुमकीन ही नही,
यह समज़ना ओर भी आसान हो जाए।

फिर चाहे बाद में हम अन्जान हो जाएं,
बस एक मुलाकात का एहसान हो जाए ।


दीप
(4.5.15)

Pavitra 04-05-2015 03:16 PM

Re: कुछ ओर!
 
[QUOTE=Deep_;550925]एहसान

बेहतरीन .....बहुत ही बढिया लिखा है आपने दीप जी.......:clappinghands:

Dark Saint Alaick 04-06-2015 09:28 PM

Re: कुछ ओर!
 
वाह दीप बाबू ! आप तो शायरे-आज़म निकले।

Deep_ 13-06-2015 12:53 AM

Re: कुछ ओर!
 
गज़ल

http://www.photocase.com/stock-photo...-mail-mail.jpg


कागज़-कलम उठाए, तो गज़ल बन गई,
फिर कुछ लिख ना पाए, तो गज़ल बन गई!

हमने तुम को मांगा और तुम मुस्कुराए,
कुछ ख्वाब ऍसे आए, तो गज़ल बन गई!

मुलाकातों में अक्सर खामोश ही रहे हम,
तनहा दो पल बिताए, तो गज़ल बन गई!

चिंगारी जैसी यादें सीने में उठ रही थी,
जब शोले लपलपाए, तो गज़ल बन गई!

भेजने से जिनको कोई फर्क भी न पड़ता,
ख़त सारे वो जलाए, तो गज़ल बन गई!

दर्द-ओ-ग़म, ग़म-ए-शाम और शाम-ए-तनहाई,
सीने से जब लगाए, तो गज़ल बन गई!

(दीप ९.६.१५)

'गज़ल' बस ऍसे ही बन गई है, शायद आपको पीछली रचनाओं के मुकाबले थोडी फिकी लगे। शब्दों की त्रुटियां तो खैर रजनीश जी सुधरवा ही देंगे, बाकी टीका-टिप्पणी आवकार्य है!

rajnish manga 13-06-2015 10:32 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 552163)
गज़ल
......
दर्द-ओ-ग़म, ग़म-ए-शाम और शाम-ए-तनहाई,
सीने से जब लगाए, तो गज़ल बन गई!

(दीप ९.६.१५)

'गज़ल' बस ऍसे ही बन गई है, शायद आपको पीछलीरचनाओं के मुकाबले थोडी फिकी लगे। शब्दों की त्रुटियां तो खैर रजनीश जी सुधरवा हीदेंगे, बाकी टीका-टिप्पणी आवकार्य है!

बहुत सुंदर, दीप जी. आदि से अंत तक पूरी ग़ज़ल पर आपकी छाप है, प्रशंसनीय रचना और कमाल की अभिव्यक्ति. हाँ, आपकी इजाज़त से अंतिम शे'र यदि मैं लिखता तो उसकी शक्ल ऐसे होती:

शाम-ए-ग़म सरल थी न आसाँ शब-ए-फ़िराक़
दोनों से ज़ख्म खाये, तो ग़ज़ल बन गई !!

(शब-ए-फ़िराक = विरह की रात)

Deep_ 13-06-2015 10:48 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 552215)
शाम-ए-ग़म सरल थी न आसाँ शब-ए-फ़िराक़
दोनों से ज़ख्म खाये, तो ग़ज़ल बन गई !!

अदभुत् शेर! :thumbup:
प्रेरणादायक टिप्पणी के लिए धन्यवाद रजनीश जी!

Deep_ 09-07-2015 10:12 PM

Re: कुछ ओर!
 
प्रेम नही है बस का!

http://imbbpullzone.laedukreationpvt...t-Hitched2.jpg


प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,
क्युं तुमने मजाक बना के रक्खा है बेबस का?
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,

जिस दिन से डेपो पर देखी, कन्या एक कंवारी
जारि है अपनी भी तब से उसकी बस में सवारी!
कभी तो देखेगी मुड के, आधार है ईस ढाढस का...
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,

नाम पुछै का डर...कितना लागे मै ही जानुं ।
उस बस के नंबर से मै उस लडकी को पहेचानुं,
सबके आगे ईसी डर को नाम दिया आलस का...
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,

सोचता हुं मै की एसा काश हो तो अच्छा
प्रेमीयों लिए, बस का पास हो तो अच्छा,
चार आने हो गए, जो रस्ता था पैसे दस का,
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का।

एक दिन वह लडकी, कोई लडका संग ले आई,
बस हडताल मेरे सारे सपनों को करवाई।
बहुत दिनों के बाद ये जाना...भाई था वो उसका!
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का।

अब जल्दी ही उसको मेरे मन की बात बताउंगा,
पब्लिक पीटे या कंडक्टर, बिलकुल ना घबराउंगा।
बस-रानी वरदान दो मुझको थोडे से साहस का!
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का।

दीप (९-७-१५)

आज फोरम पर कुछ एसा घटा जिसने मुझे हास्यकविता लिखने को प्रेरित किया! मैने यह भी सोचा की पुराने जमाने का काव्य बनाउं। सो प्रस्तुत है पुराने जमाने की ताज़ा हास्य कविता, जो अभी अभी पुरी हुई है और एक्स्परिमेन्टल है!
कविता के काल, अदाकार और अदाकारा का अंदाजा आप तसवीर से लगा सकते हो ।

rajnish manga 10-07-2015 06:08 PM

Re: कुछ ओर!
 
वाह! वाह! यह तो कमाल की कविता है. आपकी इस experimental रचना का जवाब नहीं, दीप जी.




Deep_ 10-07-2015 07:13 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 552955)
वाह! वाह! यह तो कमाल की कविता है. आपकी इस experimental रचना का जवाब नहीं, दीप जी.

धन्यवाद रजनीश जी! कब से आपकी टिप्पणी का ईंतेजार था!

Pavitra 24-07-2015 09:47 AM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Deep_ (Post 552946)
प्रेम नही है बस का!

http://imbbpullzone.laedukreationpvt...t-Hitched2.jpg


प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,
क्युं तुमने मजाक बना के रक्खा है बेबस का?
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,

जिस दिन से डेपो पर देखी, कन्या एक कंवारी
जारि है अपनी भी तब से उसकी बस में सवारी!
कभी तो देखेगी मुड के, आधार है ईस ढाढस का...
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,

नाम पुछै का डर...कितना लागे मै ही जानुं ।
उस बस के नंबर से मै उस लडकी को पहेचानुं,
सबके आगे ईसी डर को नाम दिया आलस का...
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का,

सोचता हुं मै की एसा काश हो तो अच्छा
प्रेमीयों लिए, बस का पास हो तो अच्छा,
चार आने हो गए, जो रस्ता था पैसे दस का,
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का।

एक दिन वह लडकी, कोई लडका संग ले आई,
बस हडताल मेरे सारे सपनों को करवाई।
बहुत दिनों के बाद ये जाना...भाई था वो उसका!
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का।

अब जल्दी ही उसको मेरे मन की बात बताउंगा,
पब्लिक पीटे या कंडक्टर, बिलकुल ना घबराउंगा।
बस-रानी वरदान दो मुझको थोडे से साहस का!
प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का।

दीप (९-७-१५)

आज फोरम पर कुछ एसा घटा जिसने मुझे हास्यकविता लिखने को प्रेरित किया! मैने यह भी सोचा की पुराने जमाने का काव्य बनाउं। सो प्रस्तुत है पुराने जमाने की ताज़ा हास्य कविता, जो अभी अभी पुरी हुई है और एक्स्परिमेन्टल है!
कविता के काल, अदाकार और अदाकारा का अंदाजा आप तसवीर से लगा सकते हो ।


बहुत बढिया दीप जी...... आपने तो वाकई बडी मजेदार कविता लिखी है.......:laughing: :bravo:

Deep_ 01-12-2015 09:54 PM

Re: कुछ ओर!
 
यह गाना थोडा बहुत रेकोर्ड कर के भी देखा है।

Deep_ 03-12-2015 10:41 PM

Re: कुछ ओर!
 
तुम से कुछ ना होगा

https://s-media-cache-ak0.pinimg.com...ca62b3b310.jpg

ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा ।
ना, तुम से कुछ ना होगा ।

राग तुम अपना ही गाओ, रो लो अपना रोना,
बस खुद को ही बडा दिखाओ, कहो औरो को बोना।
अपनी ही जो हांके जाए, बनेगा पंडित पोगा ।
ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा ।

गलती सब की बतलाता है, दंड भी देता जाता,
ऐसा ही हुं में...बोल के किस को क्या समज़ाता?
किसने बनाया तुम को पुरी दुनिया का दरोगा?
ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा ।

छोटे छोटे सुख छोड़ कर, कितना धन है झड़पा?
तेरे मन के कल्पित सुख में तन है कितना तड़पा ?
तन की ईन्द्रियों के वश में मन ने कितना भोगा ?
ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा ।

ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा ।
ना, तुम से कुछ ना होगा ।

दीप (3.12.15)

Deep_ 05-08-2016 11:32 AM

मेरा सुंदर सपना तुट गया
 
http://www.mobilephun.com/wp-content...013/10/kid.jpg

मेरा सुंदर सपना तुट गया, गुब्बारा फुलाया, फुट गया!
मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया! :cry:


जब हाथ चवन्नी आई थी, गोलेवाला आया ही नहीं,
जब आया तो मेरे वाला...रंग 'हरा' लाया ही नहीं! :scratchchin:
जिस दिन मुझे वह रंग मिला, गोला हाथों से छूट गया....
मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया!


मुश्किल तो पतंग उडाना था, मुझे दौड के थक जाना था,
गलती से ही वह पतंग उड़ी, खुशियों का नहीं ठिकाना था...
फिर डोर तुटी मेरे हाथों से, पतंग कोई दुजा लूट गया! :blink:
मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया!


किताबों की अलमारी थी, पढ-पढ दोपहरी गुज़ारी थी,
सोचा कुछ धंधा हो जाए, किताबें दी उधारी थी....
भाड़ा मांगा जो किताबों का, हर दोस्त मुझ से रुठ गया!
मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया! :cry:

rajnish manga 05-08-2016 04:55 PM

Re: कुछ ओर!
 
दीप जी, कई दिन बाद आपका पुनः आने पर स्वागत है, आपकी व्यस्तता को हम समझ सकते हैं. आशा है आप अपनी उपस्थिति जल्दी जल्दी दर्ज कराते रहेंगे.


Deep_ 07-08-2016 07:21 AM

Re: कुछ ओर!
 
अभिवादन के लिए धन्यवाद रजनीश जी । :hello:


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