इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
इस तरह तुमने मेरे साथ मोहब्बत की है ;
जैसे पिछले जनम की कोई अदावत की है . रूह तक ज़ख्म दिये , चाक़ गिरेबां बख्शा ; एक उल्फ़त ने तेरी कितनी इनायत की है . जितना तोड़ोगे दिल को , अक्स अपने पाओगे ; जानेजां मैंने भी आईने - सी फ़ितरत की है . तोड़ भी दोगे तो महसूस करोगे ख़ुश्बू ; मैंने ये सोच के फूलों - सी तबीयत की है . कैसे परवाना लुभा करके जलाया जाता ; ऐ शमा तूने मुझे ख़ूब नसीहत की है . चैन सुख बेच के कुछ ज़ख्म कमाए मैंने ; एक नादान ने घाटे की तिज़ारत की है . मेरा जज़्बा था जो पत्थर से ख़ुदा बन बैठे ; मान एहसान मेरा , मैंने इबादत की है . तेरे ख़िलाफ़ ज़ेहन जब भी मेरा जाता है ; दिले नादान ने तेरी ही हिमायत की है . मेरे जज़्बात तेरे दिल पे सदा देते रहें ; इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है . रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . ( शब्दार्थ ~~ हिमाक़त = दुस्साहस , अदावत = दुश्मनी , रूह = आत्मा , चाक़ = फटा , गिरेबां = कॉलर , बख्शा = सौंपा , उल्फ़त = प्रेम , इनायत = कृपा , अक्स = आकृति , फ़ितरत = स्वभाव , तबीयत = मिजाज़ , परवाना = पतंगा , नसीहत = सीख , तिज़ारत = सौदा , इबादत = पूजा , ज़ेहन = दिमाग , हिमायत = तरफदारी, सदा = {अप्रत्यक्ष व्यक्ति को}आवाज़ ) |
Re: इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
एक और उम्दा रचना के लिए, राकेश जी आपका आभार। :bravo::bravo::bravo:
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Re: इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
अच्छी ग़ज़ल है, कविवर। :thumbup:
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Re: इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
अत्यंत आभार आप सबका सर्वश्री अभिशेष जी , डार्क सेंट अल्लैक जी , रवि शर्मा जी एवं रजनीश मांगा जी . स्वयं के चिन्ह न छोड़ने वाले सभी समस्त अज्ञात पाठकों का भी आभार व्यक्त करता हूँ .
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Re: इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
मेरे जज़्बात तेरे दिल पे सदा देते रहें ;
इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है . kitni narmi se pesh ki gyee hai rachnaa bhaoot khoob dr rakesh srivastan ji / tod mod chahe kuch bhi karle ya kaya teri s ar puran mal tanne najar mehar ki kad ki kad pheri s ye do line ek haryanvi song ki hai jisme samarpan kut kut kar bhara hai , jo aapki kavita ke sandarbh mein bhi ek dum sahi baithta hai / dhanyavaad ek baar phir se nayaab sahitya lekhan ke liye |
Re: इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;182864]इस तरह तुमने मेरे साथ मोहब्बत की है ;
जैसे पिछले जनम की कोई अदावत की है . रूह तक ज़ख्म दिये , चाक़ गिरेबां बख्शा ; एक उल्फ़त ने तेरी कितनी इनायत की है . जितना तोड़ोगे दिल को , अक्स अपने पाओगे ; जानेजां मैंने भी आईने - सी फ़ितरत की है . तोड़ भी दोगे तो महसूस करोगे ख़ुश्बू ; मैंने ये सोच के फूलों - सी तबीयत की है . कैसे परवाना लुभा करके जलाया जाता ; ऐ शमा तूने मुझे ख़ूब नसीहत की है . चैन सुख बेच के कुछ ज़ख्म कमाए मैंने ; एक नादान ने घाटे की तिज़ारत की है . मेरा जज़्बा था जो पत्थर से ख़ुदा बन बैठे ; मान एहसान मेरा , मैंने इबादत की है . तेरे ख़िलाफ़ ज़ेहन जब भी मेरा जाता है ; दिले नादान ने तेरी ही हिमायत की है . मेरे जज़्बात तेरे दिल पे सदा देते रहें ; इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है . रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव shaandaar राकेश जी |
Re: इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
Quote:
बहुत बहुत सुन्दर गजल लिखी है आपने राकेश जी..... हर एक शायरी काबिल-ए-तारीफ है पर ये चार शेर तो लाजवाब हैं .......:bravo::bravo::bravo::bravo: |
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