भूख
मेरा गीत चाँद है न चांदनी है आजकल, ना किसी के प्यार की ये रागिनी है आजकल| मेरा गीत हास्य भी नहीं है माफ़ कीजिये, साहित्य का भाष्य भी नहीं है माफ़ कीजिये| मै गरीब के रुदन के आंसुओ की आग हूँ, भूख के मजार पर जला हुआ चिराग हूँ| मेरा गीत आरती नही है राज पट की, जगमगाती आत्मा है सोये राज घट की| मेरा गीत झोपडी के दर्दो की जुबान है, भुखमरी का आइना है, आंसू का बयान है| भावना का ज्वार भाटा जिये जा रहा हू मै, क्रोध वाले आंसुओ को पिए जा रहा हू मै| मेरा होश खो गया है लहू के उबाल में, कैदी होकर रह गया हू, मै इसी सवाल में| आत्महत्या की चिता पर देख कर किसान को, नींद कैसे आ रही है देश के प्रधान को|| सोच कर ये शोक शर्म से भरा हुआ हू मै, और मेरे काव्य धर्म से डरा हुआ हू मै | मै स्वयं को आज गुनेहगार पाने लगा हू, इसलिए मै भुखमरी के गीत गाने लगा हू| गा रहा हू इसलिए की इन्कलाब ला सकूं | झोपडी के अंधेरों में आफताब ला सकूं| इसीलिए देशी और विदेशी मूल भूलकर, जो अतीत में हुई है भूल, भूल कर| पंचतारा पद्धति का पंथ रोक टोक कर, वैभवी विलासिता को एक साल रोक कर| मुझे मेरा पूरा देश आज क्रुद्ध चाहिए, झोपडी की भूख के विरुद्ध युद्ध चाहिए| मेहरबानों भूख की व्यथा कथा सुनाऊंगा, महज तालियों के लिए गीत नहीं गाऊंगा| चाहे आप सोचते हो ये विषय फिजूल है, किंतु देश का भविष्य ही मेरा उसूल है| आप ऐसा सोचते है तो भी बेकसूर है, क्योकिं आप भुखमरी की त्रासदी से दूर है| आपने देखि नही है भूखे पेट की तड़प , भूखे पेट प्राण देवता से प्राण की झड़प| मैंने ऐसे बचपनो की दास्ताँ कही है, जहाँ माँ की सुखी छातियों में दूध नही है| जहाँ गरीबी की कोई सीमा रेखा ही नही, लाखो बच्चे है जिन्होंने दूध देखा ही नहीं| शर्म से भी शर्मनाक जीवन काटते है वे, कुत्ते जिसे चाट चूके, झुटन चाटते है वे| भूखा बच्चा सों रहा है आसमान ओढ़ कर, माँ रोटी कम रही है, पत्थरों को तोड़ कर| जिनके पाँव नंगे है,और तार तार है, जिनकी सांस सांस साहूकारों की उधार है| जिनके प्राण बिन दवाई मृत्यु के कगार है, आत्महत्या कर रहे है भूख के शिकार है | बेटियाँ जो शर्मो हया होती है जहान की, भूख ने तोडा तो वस्तु हो गई दुकान की| भूख आत्माओ का स्वरूप बेच देती है, निर्धनों की बेटियों का रूप बेच देती है| भूख कभी कभी ऐसे दांव पेंच देती है, सिर्फ 2000 में माँ बेटा बेच देती है| भूख आदमी का स्वाभिमान तोड़ देती है, आन बान शान का गुमान तोड़ देती है| भूख सुदमाओ का अभिमान तोड़ देती है, महाराणा प्रताप की भी आन तोड़ देती है| किसी किसी मौत पर धर्म कर्म भी रोता है,क्योंकि क्रिया क्रम का भी पैसा नहीं होता है| घरवाले गरीब आंसू गम सहेज लेते है, बिना दाह संस्कार मुर्दा बेच देते है| थूक कर धिक्कारता हू , मै ऐसे विकास को, जो कफ़न भी देना पाए गरीबों की लाश को| भूख का निदान झूटे वायदों में नही है, सिर्फ पूंजीवादियो के फायदे में नही है| भूख का निदान कर्णधारों से नही हुआ, गरीबी हटाओ जैसे नारों से नही हुआ| भूख का निदान प्रशाशन का पहला धर्म है, गरीबों की देखभाल सिंहासन का धर्म है| इस धर्म की पलना में जिस किसी से चुक हो, उस के साथ मुजरिमों के जैसा ही सलूक हो| भूख से कोई मरे ये हत्या के समान है, हत्यारों के लिए मृत्युदंड का विधान है| कानूनी किताबो में सुधर होना चाहिए, मौत का किसी को जिम्मेदार होना चाहिए| भूखो के लिए नया कानून मांगता हु मै, समर्थन में जनता का जूनून मांगता हु मै| ख़ुदकुशी या मौत का जब भुखमरी आधार हो, उस जिले का जिलाधीश सीधा जिम्मेदार हो| वह का एम् एल ए , एम् पी भी गुनेहगार है, क्योंकि ये रहनुमा चुना हुआ पहरेदार है| चाहे नेता अफसरों की लॉबी आज क्रुद्ध हो, हत्या का मुकदमा इन्ही तीनो के विरुद्ध हो| अब केवल कानून व्यवस्था को रोक सकता है, भुखमरी से मौत एकदिन में रोक सकता है| आज से ही संविधान में विधान कीजये, एक दो कोल्लेक्टरो को फंसी तंग दीजिये| कवि : हरी ओम पवार |
Re: भूख
bahutttt sundar rachna hai apki,desh bhakti se bharpur .... thanks... for shairing ..
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Re: भूख
:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:
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Re: भूख
भूख-तीन प्रतिक्रिया शहर का एक प्रमुख पार्क।पार्क के बाहर गेट पर बैठा हुआ एक अत्यन्त बूढ़ा भिखारी।बूढ़े की हालत बहुत दयनीय थी।पतला दुबला, फ़टे चीथड़ों में लिपटा हुआ।पिछले चार दिनों से उसके पेट में सिर्फ़ दो सूखी ब्रेड का टुकड़ा और एक कप चाय जा पायी थी।बूढ़ा सड़क पर जाने वाले हर व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करने के लिये हांक लगाता----“खुदा के नाम पर—एक पैसा इस गरीब को—भगवान भला करेगा”।सुबह से उसे अब तक मात्र दो रूपया मिल पाया था,जो कि शाम को पार्क का चौकीदार किराये के रूप में ले लेगा। http://2.bp.blogspot.com/-mVCsi2AHje...600/images.jpg अचानक पार्क के सामने एक रिक्शा रुका।उसमें से बाब कट बालों वाली जीन्स टाप से सजी एक युवती उतरी।युवती कन्धे पर कैमरा बैग भी लटकाये थी।यह शहर की एक उभरती हुयी चित्रकर्त्री थी ।इसे एक पेण्टिंग के लिये अच्छे सब्जेक्ट की तलाश थी।बूढ़े को कुछ आशा जगी और उसने आदतन हांक लगा दी----भगवान के नाम पर----(फ़ोटो--गूगल से साभार) युवती ने घूम कर देखा।बूढ़े पर नजर पड़ते ही उसकी आंखों में चमक सी आ गयी।वह कैमरा निकालती हुयी तेजी से बूढ़े की तरफ़ बढ़ी।बूढ़ा सतर्क होने की कोशिश में थोड़ा सा हिला। “प्लीज बाबा उसी तरह बैठे रहो हिलो डुलो मत’।और वहां कैमरे के शटर की आवाजें गूंज उठी।युवती ने बूढ़े की विभिन्न कोणों से तस्वीरें उतारीं।युवती ने कैमरा बैग में रखा और बूढ़े के कटोरे में एक रूपया फ़ेंक कर रिक्शे की ओर बढ़ गयी। उसी दिन दोपहर के वक्त—तेज धूप में भी बूढ़ा अपनी जगह मुस्तैद था।उसे दूर से आता एक युवक दिख गया ।बूढ़ा एकदम टेपरिकार्डर की तरह चालू हो गया।“अल्लाह के नाम पर-------”। पहनावे से कोई कवि लग रहा युवक बूढ़े के करीब आ गया था।युवक ने बूढ़े को देखा।उसका हृदय करुणा से भर गया।“ओह कितनी खराब हालत है बेचारे की”।सोचता हुआ युवक पार्क के अन्दर चला गया।पार्क के अन्दर वह एक घने पेड़ की छाया में बेंच पर बैठ गया।बूढ़े का चेहरा अभी भी उसकी आंखों के सामने घूम रहा था।उसने अपने थैले से एक पेन और डायरी निकाली और जुट गया एक कविता लिखने में।कविता का शीर्षक उसने भी भूख रखा।फ़िर चल पड़ा उसे किसी दैनिक पत्र में प्रकाशनार्थ देने।भिखारी की नजरें दूर तक युवक का पीछा करती रहीं। जगह वही पार्क का गेट।शाम का समय।पार्क में काफ़ी चहल पहल हो गयी थी ।भिखारी को अब तक मात्र तीन रूपये मिले थे।वह अब भी हर आने जाने वाले के सामने हांक लगा रहा था । अचानक भिखारी ने देखा एक खद्दरधारी अपने पूरे लाव लश्कर के साथ चले आ रहे थे।उसकी आंखो में चमक आ गयी।-----अब लगता है उसके दुख दूर होने वाले हैं।उसने जोर की हांक लगाई।----खुदा के नाम पर -------- हांक सुन कर नेता जी ठिठक गये।बूढ़े की हालत देख कर उनका दिल पसीज गया। ‘ओह कितनी दयनीय दशा है देश की----। उन्होनें तुरन्त अपने सेक्रेट्री को आर्डर दिया----‘कल के अखबार में मेरा एक स्टेट्मेण्ट भेज दो हमने संकल्प लिया है देश से भूख और गरीबी दूर करने का। और हम इसे हर हाल में दूर करके रहेंगे।नेता जी भिखारी के पास गये और उसे अश्वासन दिया ‘बाबा हम जल्द ही तुम्हारी समस्या दूर करने वाले हैं’------उन्होंने बूढ़े भिखारी के साथ कई फ़ोटो भी खिंचवायी।लाव लश्कर के साथ कार में बैठे और चले गये।बूढ़े की निगाहें दूर तक धूल उड़ाती कार का पीछा करती रहीं। अब तक काफ़ी अंधेरा हो चुका था।पार्क में सन्नाटा छा गया था।बूढ़े ने सुबह से अब तक मिले तीन रूपयों में से दो रूपया पार्क के चौकीदार को दिया।फ़िर नलके से पेट भर पानी पीकर बेन्च पर सो गया-----अगली सुबह के इन्तजार में । |
Re: भूख
haale insaniyat bata gaya aapka ye blog rafik ji ... sab sochte rahgayeor mai bhukha so gaya .......
sabne sirf apne liye socha kisi ne us garib ki bhukh ko na samjha na hi sahayta ki....isi ka naam hai dunia .. |
Re: भूख
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Re: भूख
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Re: भूख
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Re: भूख
एक घर के सामने सडक बन रही थी,
गरीब मजदूरिन वहाँ काम कर रही थी. मजदूरिन के घर का सारा बोझ उसी पर पडा था, उसका नन्हा सा बच्चा साथ ही खडा था. उसके घर के सारे बर्तन सूखे थे, दो दिन से उसके बच्चे भूखे थे. बच्चे की निगाह सामने के बँगले पर पडी, देखी, घर की मालकिन, हाथ मे रोटी लिये खडी. बच्चे ने कातर दृष्टि मालकिन की तरफ डाली, लेकिन मालकिन ने रोटी, पालतू कुत्ते की तरफ उछाली. कुत्ते ने सूँघकर रोटी वहीं छोड दी, और अपनी गर्दन दूसरी तरफ मोड दी! कुत्ते का ध्यान, नही रोटी की तरफ जरा था, शायद उसका पेट पूरा भरा था! ये देख कर बच्चा गया माँ के पास, भूखे मन मे रोटी की लिये आस. बोला- माँ! क्या रोटी मै उठा लूँ? तू जो कहे तो वो मै खा लूँ? माँ ने पहले तो बच्चे को मना किया, बाद मे मन मे ये खयाल किया कि- कुत्ता अगर भौंका तो मालिक उसे दूसरी रोटी दे देगा, मगर मेरा बच्चा रोया तो उसकी कौन सुनेगा? माँ के मन मे खूब हुई कशमकश, लेकिन बच्चे की भूख के आगे वो थी बेबस. माँ ने जैसे ही हाँ मे सिर हिलाया, बच्चे ने दरवाजे की जाली मे हाथ घुसाया. बच्चे ने डर से अपनी आँखों को भींचा, और धीरे से रोटी को अपनी तरफ खींचा! कुत्ता ये देखकर बिल्कुल नही चौंका! चुपचाप देखता रहा! जरा भी नही भौंका!! कुछ मनुष्यों ने तो बेची सारी अपनी हया है, लेकिन कुत्ते के मन मे अब भी शेष दया है……. |
Re: भूख
डाइनिंग टेबल पर खाना देखकर बच्चा भड़का,
फिर वही सब्जी,रोटी और दाल में तड़का....? मैंने कहा था न कि मैं पिज्जा खाऊंगा, रोटी को बिलकुल हाथ नहीं लगाउंगा! बच्चे ने थाली उठाई और बाहर गिराई... बाहर थे कुत्ता और आदमी, दोनों रोटी की तरफ लपके.. कुत्ता आदमी पर भोंका, आदमी ने रोटी में खुद को झोंका और हाथों से दबाया.. कुत्ता कुछ भी नहीं समझ पाया उसने भी रोटी के दूसरी तरफ मुहं लगाया.. दोनों भिड़े जानवरों की तरह एक तो था ही जानवर, दूसरा भी बन गया था जानवर.. आदमी ज़मीन पर गिरा, कुत्ता उसके ऊपर चढ़ा कुत्ता गुर्रा रहा था और अब आदमी कुत्ता है या कुत्ता आदमी है कुछ भी नहीं समझ आ रहा था... नीचे पड़े आदमी का हाथ लहराया, हाथ में एक पत्थर आया कुत्ता कांय-कांय करता भागा.. आदमी अब जैसे नींद से जागा हुआ खड़ा और लड़खड़ाते कदमों से चल पड़ा.... वह कराह रहा था रह-रह कर हाथों से खून टपक रहा था बह-बह कर आदमी एक झोंपड़ी पर पहुंचा.. झोंपड़ी से एक बच्चा बाहर आया और ख़ुशी से चिल्लाया.. आ जाओ, सब आ जाओ बापू रोटी लाया, देखो बापू रोटी लाया, देखो बापू रोटी लाया.. अधिक से अधिक शेयर करे| |
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