Re: अलवर (राजस्थान) पर्यटन
भरथरी (भर्तहरी) गुफा तथा समाधि मंदिर
यहाँ तो लकडी के जंगल भी नहीं है। फ़िर यहाँ के लकडी वाले बेलन इतने मशहूर क्यों है? मन्दिर के आसपास कई जातियों की धर्मशाला बनी हुई है। जिसमें गुर्जर, यादव व सैनी समाज की धर्मशाला प्रमुख है। मेले के दिनों को छोडकर यहाँ ठहरना मुश्किल नहीं है। भृतहरि महाराज को यहाँ के गुर्जर समाज ने काफ़ी सहयोग दिया था जिससे गुर्जर समाज इनकी समाधी पर अपना हक समझता है। अशोक भाई को कोई सीडी चाहिए थी। वे सीढी तलाशने चले गये। तब तक मैंने समाधी मन्दिर व भैरव मन्दिर के दर्शन के साथ फ़ोटो भी ले लिये। बाहर आने के बाद दुकानों के बीच पहुँचकर देखा कि वहाँ नशा करने वाली चिलम बिक्री के लिये उपलब्ध है। अपने एक साथी को चिलम पीते हुए स्टाइल में फ़ोटो के कहा। चिलम खाली थी अन्यथा उसमें से धुआं भी निकलता दिखायी देता। कुछ देर वहाँ रुकने के बाद वापिस लौटने लगे। राजा भृतहरि की कहानी काफ़ी रोमांचक है। उज्जैन के राजा गन्धर्वसेन के दो पुत्र थे। पहली पत्नी से भृतहरि हुए, जबकि दूसरी पत्नी से छोटे पुत्र विक्रम हुए। चन्द्रसेन की मृत्यु के उपरांत भृतहरि राजा बने। भृतहरि की पत्नी का नाम पिंगला था। राजा अपनी पत्नी का पागलपन की हद तक दीवाना था। पत्नी के प्रति इतना प्यार व कवि ह्र्दय होने के कारण राजा विलासपूर्ण जीवन जीने लगा। विक्रम ने इस बात का विरोध किया तो राजा भृतहरि ने विक्रम को राज्य से बाहर निकाल दिया। जिस रानी के प्यार में राजा इतना दीवाना था उसी रानी के कारण राजा का मोह जल्द ही टूटने वाला था। राजा को अपनी पत्नी के कारण वैराग्य हो गया। राजा के लिये कई कहानी बतायी जाती है। |
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पहली कहानी- एक बार एक योगी राजा भृतहरि के दरबार में आये। राजा की आवभगत से योगी काफ़ी प्रसन्न हुए। जाते समय उन्होंने राजा को एक फ़ल दिया और कहा कि इसे खाने के बाद आप चिरकाल तक युवा बन जाओगे। राजा भृतहरि ने फ़ल लेकर अपनी जान से प्यारी पत्नी को दे दिया। राजा ने रानी को उस फ़ल की विशेषता भी बतायी कि इसे खाकर तुम्हारा यौवन हमेशा ऐसा ही बना रहेगा। राजा जिस रानी को अपनी जान से ज्यादा प्यार करता था वह रानी किसी सेनानायक के प्रेम प्रसंग में फ़ंसी थी। रानी ने सोचा कि सेना नायक की जवानी बनी रहेगी तो वह उसे हमेशा खुश रखेगा। रानी ने वह फ़ल उस नायक को दे दिया। सेनानायक भी कम नहीं था। उसने सोचा कि रानी के साथ तो वह धन-दौलत के लिये प्रेम का नाटक करता है। वह रानी के साथ-साथ किसी वैश्या/नृतकी के चक्कर में उलझा हुआ था। वह नृतकी सेनानायक की कोई बात नहीं टालती थी। उसने वह फ़ल, उस वैश्या को यह सोचकर दे दिया कि नृतकी उसके काम बाद में भी आती रहेगी। वैश्या के पास राजा भृतहरि का आना-जाना होता था। वैश्या ने सोचा कि यह अमरफ़ल खाकर यह पापी जीवन लम्बा करने से क्या लाभ? इस फ़ल के असली हकदार तो राजा होंगे जिससे राज्य का भला होगा। जब वह फ़ल पुन: राजा के हाथों में पहुँचा तो राजा भृतहरि की खोपडी खराब हो गयी। राजा के मन में वैराग्य उतपन्न हो गया। राजा ने राज-पाठ छोडकर नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ की शरण में जा पहुँचे। |
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दूसरी कहानी- एक बार राजा भृतहरि अपनी रानी पिंगला के साथ जंगल में शिकार करने गये थे। जब इन्हे कोई शिकार नहीं मिला तो यह वापिस आ रहे थे कि इन्हे हिरणों का एक झुण्ड दिखायी दिया। राजा ने झुन्ड में सबसे आगे चल रहे हिरण को मार डाला। मरने से पहले हिरन ने राजा को कहा, राजन यह तुमने अच्छा नहीं किया। यदि तुमने मेरे सींग श्रृंगी बाबा को, नेत्र चंचल नारी को, खाल साधु संतों को, पैर चोरों को और मेरे शरीर की मिट्टी पापी राजा में बाँट दो तो मेरी आत्मा को शांति मिले। अब राजा परेशान हो गया कि करे तो क्या करे? हिरण को लादकर राजा लौटने लगा तो उसे गुरु गोरखनाथ मिल गये। राजा बोला गुरुदेव आप इस हिरण को दुबारा जीवित कर दे। गोरखनाथ बोले, यदि मैं इसे जीवित कर दू तो तुम्हे मेरा शिष्य बनना पडेगा। राजा के पास गुरु की बात मानने के अलावा कोई मार्ग नहीं बचा था। इस तरह राजा भृतहरि गोरखनाथ का शिष्य बना। |
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भृतहरि की परीक्षा गुरु गोरखनाथ का शिष्य बनने के बाद भृतहरि के बारे में गोरखनाथ ने अपने अन्य शिष्यों से कहा कि यह देखो। राजा होकर भी इसने काम, लोभ, क्रोध व अहंकार पर विजय पा ली है। अन्य शिष्यों को यह बात हजम नहीं हुई। उन्होंने कहा गुरु राजा की परीक्षा लेकर देख लो। राजा के पास 365 रसोइया हुआ करते थे। जो राजपरिवार व अन्य अतिथियों के लिये भोजन बनाते थे। इस तरह देखा जाये तो एक रसोइया साल में केवल एक दिन ही काम कर पाता था। 364 दिन इस इन्तजार में बीतते थे कि कब उसका नम्बर आयेगा और राजा से इनाम पायेगा? गुरु ने परीक्षा लेने के लिये राजा को कहा जाओ, भण्डारे के लिये लकडियाँ ले आओ। राजा नंगे पैर सिर पर लकडियां लेकर आ रहा था। गुरु ने एक शिष्य से कहा, जाओ, उसे धक्का देकर गिरा दो। धक्का देने से राजा व लकडी दोनों गिर गये। राजा ने बिना कुछ कहे, पुन: लकडी उठायी और आश्रम की ओर चल दिये। गुरु बोले, ये देखो, राजा को जरा भी क्रोध नहीं आया। शिष्य बोले गुरुजी और परीक्षा लो। अबकी बार गुरु जी ने अपनी माया से एक महल बना दिया। गुरु ने राजा को वह महल दिखाया। महल में युवतियाँ स्वादिष्ट भोजन के साथ उनका स्वागत करने लगी। राजा पर उस भोजन का व उन युवतियों का कोई प्रभाव दिखायी नहीं दिया। गुरु अपने शिष्यों से बोले, अब बताओ, राजा पास हुआ कि नहीं। |
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भृतहरि की परीक्षा गुरुदेव एक अन्तिम परीक्षा और लेकर देख लो। अबकी बार गुरु ने कहा राजन मेरा शिष्य बनने के लिये एक महीना नंगे पैर मरु भूमि में चलना पडता है। राजा को मरुभूमि में चलते हुए एक सप्ताह बीतने को आया तो गुरु अपने शिष्यों को लेकर वहां पहुँच गये। गुरु ने अपने शिष्यों से कहा, ये देखो मैं यहाँ मरुभूमि में योगबल से वृक्ष खडा कर देता हूँ। राजा पेड की छाया में नहीं बैठेगा। जब राजा का पैर पेड की छाँव में पडा तो राजा उछल पडा, जैसे आग पर पैर पड गया हो। राजा सोचने लगा कि मरुभूमि में छायादार पेड कहाँ से आ गया? राजा कूदकर छाँव से दूर हट गया। गुरु गोरखनाथ राजा से बहुत खुश हुए। गुरु ने कहा, राजन मांगो क्या मांगते हो? राजा भृतहरि बोले गुरुजी आप खुश है। मुझे सब कुछ मिल गया। गुरु बोले - नहीं राजन, मेरा अनादर मत करो। कुछ ना कुछ तो लेना ही पडेगा। राजा को एक सुई दिखायी दी। राजा बोला गुरुजी, इस सूई में धागा पिरो दीजिए। राजा ने गुरु का मान भी रख लिया और अपने लिये कुछ ना माँगा। इस तरह राजा भृतहरि एक महीने की परीक्षा सात दिनों में पास कर गये। राजा भृतहरि की समाधी के पास इनकी गुफ़ा भी है जो शायद उस दिन बन्द थी। हम वहाँ नहीं जा पाये। इस गुफ़ा में एक दीपक के बारे में बताया जाता है जो निरन्तर जलता रहता है। गाडी में बैठकर वापिस चल दिये। अशोक भाई ने बताया था कि रास्ते में अलवर का मशहूर मिल्क केक बनता है। अशोक जी केक खिलाओ या सिर्फ़ दिखाओगे? संदीप जी चिन्ता ना करो, मिल्क के साथ कचौरी भी खिलाऊँगा। यह दुकान एक तिराहे पर है। जिसे देख लगता है कि इसकी प्रतिदिन बिक्री 20-30 हजार के करीब होगी। ** |
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भरथरी (भर्तहरी) गुफा तो हमने उज्जैन में भी देखि थी ....
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जी हाँ, उज्जैन में भी भरथरी गुफा तथा मंदिर है. |
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पहले भी पढ़ी ये कहानी आज रिपीट हो के फिर यद् आ गयी ... धन्यवाद रजनीश जी
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