बंदी और कोरोना
बंदी और कोरोना
एक बीमारी जाती नहीं कि दूसरी चढ़ बैठती है। 2020 को हम बुरा कहते थे, 2021 तो उससे भी ज्यादा कष्टदायक साबित होता जा रहा है। मैं जिस क्षेत्र में रहता हूँ, वहाँ लोग बुखार व कोरोना से संबंधित लक्षणों से पीड़ित थे, लेकिन जाँच करवाने व हॉस्पिटल जाने से बचते रहे। मीडिया में प्रसारित चीजों से उनमें एक डर का माहौल था उनकी सोच थी कि गाँव के झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज से हम बच भी जाये लेकिन हॉस्पिटल जाएंगे तो शायद बचना मुश्किल होगा। ऑक्सीजन की कमी, दवाओं की कालाबाजारी, एम्बुलेंस का असीमित किराया व जिम्मेदारों की लापरवाही की चर्चा जनमानस में खूब रही। दूसरी लहर के शुरुआती दिनों में बंगाल व अन्य राज्यों की चुनावी रैलियों ने संक्रमण को तेजी से फैलाया। रही सही कसर उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव ने पूरी कर दी। हजारों कर्मचारी कोरोना की भेंट चढ़ गए। संक्रमित कर्मचारियों के कारण कोरोना गाँव-गाँव, शहर शहर फैलता चला गया। कोरोना के सितम से करोड़ो नागरिक बेरोजगार हो गए, 2020 में बेरोजगार हुए लोगों ने किसी तरह कुछ कमाना-धमाना शुरू किया ही था कि 2021 का लॉक डाउन लग गया। बेरोजगारी ने लोगों की कमर अभी तोड़ी ही थी कि महँगाई भी गले पड़ गयी। इस दौरान शिक्षा की क्या दुर्गति हुई बताने की आवश्यकता नहीं है। विद्यार्थी बिना परीक्षा दिए ही पास हो गए। जो फेल हो सकते थे वे भी पास हो गए। जो अच्छे अंक ला सकते थे उन्हें कम अंकों से संतोष करना पड़ा। प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों की स्थिति दिनों-दिन खराब होती चली गयी। यह विचारणीय है कि हर साल कोई न कोई लहर अवश्य आएगी। क्या हर बार देश को बंद कर देना उचित रहेगा? क्या अपने देश के लोग इस स्थिति में हैं कि बार-बार लॉक डाउन के मार को झेल सकें? यह माना कि कोरोना के कारण लाखों लोग मर गए लेकिन यह बंदी का दौर चलता रहा तो लोग आर्थिक रूप से इतने कमजोर हो जाएंगे कि वे न तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था कर पाएंगे न पौष्टिक भोजन की। वे गरीबी के कारण साधारण बीमारियों का भी इलाज नहीं करा पाएंगे। ऐसे में मौतों का आंकड़ा कोरोना से हुए मौतों से कहीं अधिक होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोना संक्रमित हो चुके लोगों में मजबूत एंटीबॉडी बनती है जो लगभग एक साल तक इस बीमारी से हमारी रक्षा कर सकती है। यह भी सर्वविदित है कि इस बार यह संक्रमण बड़े पैमाने पर हुआ था अतः एंटीबॉडी भी उसी अनुपात में विकसित हुई होगी। मेरा सुझाव है कि वार्षिक टीकाकरण व इलाज की समुचित व्यवस्था करते हुए, सुरक्षात्मक उपायों के साथ सबकुछ हमेशा के लिए खोल दिया जाय। क्योंकि यह बंदी, कोरोना से भी अधिक घातक है। -आकाश महेशपुरी दिनांक- 22/06/2021 |
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