छोटी सी कश्ती
न उलझ जाऊं इस जहाँ के आडम्बरों में जब हो कभी मन की चंचललता
न कर बैठूं कोई अपराध जब मन की हो अधीरता न जाऊं आड़े टेढ़ रास्तों पर मैं ओ मेरी किस्मत के बनाने वाले , बस बिनती तुझसे है इतनी चले आना आके तू सब संभाले न छद्मवेशी इस दुनिया का छद्म एहसास और, न कभी खोना चाहूँ उन छद्म एहसासो की सांसों में न पाए ज़िन्दगी के ये झरोखे किसी ऐसे एहसास को जिनमे न सच का साथ और न कोई विश्वास हो। न घिर जाऊ कभी आकर्षणों के भरम में न जगे प्यास कभी उस चकाचौंध के रमण में न कर बैठूं गुनाह कोई लोभ में न दिल दुखे कीसी का किसी मोह में न चाह हो धन पराया हड़पने की हे ईश्वर गर भटक भी जावूं राहें , मंज़िले मैं अपनी आकर संभाल लेना ये छोटी सी कश्ती मेरी। |
Re: छोटी सी कश्ती
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Re: छोटी सी कश्ती
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कविता को लिए हार्दिक आभार सह धन्यवाद भाई .. जी भाई प्रर्थना इंसान को सदा ही सही राह बतलाती है और ईश्वर का सान्निध्य करवाती है। |
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