जिस रोज मुझे भगवान मिले
‘ना माया से ना शक्ति से भगवन मिलते हैं भक्ति से’, एक खुबसूरत गीत है और इसको सुनने के बाद लगा कि अगर मिलते होते तो भी प्रभु हमको मिलने से रहते :iloveyou:, क्योंकि माया हमें वैसे ही नहीं आती, शक्ति हममें इतनी है नहीं और भक्ति हम करते नहीं , तो कुल जमा अपना चांस हुआ सिफर। :crazyeyes:लेकिन वो कहते हैं ना कि बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख तो एक दिन बिन बुलाय मेहमान से भगवान हम से टकर ही गये।:bang-head: अब इससे आगे का हाल अति धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत सज्जन और देवियाँ ना पढ़ें, इसको पढ़कर आपके मन के क्षीरसागर में उठने वाले तूफान के हम जिम्मेदार नहीं होंगे और हमें गालियाँ देने को उठने वाले उफान के आप खुद जिम्मेदार होंगे।:cryingbaby:
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
भयानक रात में ट्रैक से लौटते हुए जंगल में जब रास्ता भटक गये तो ऐसी परेशानी में हमेशा की तरह अपने खुदा को सोते से जगाने की गुहार लगायी और तभी एक आदमी हमें दिख गया। साधारण से कपड़े पहने थे उसने, एक दो जगह से हवा आने के लिये कपड़ों में बनायी खिड़कियाँ भी नजर आ रही थीं । मिलते ही हमने कहा, भैय्या हम रास्ता भटक गये हैं सही रास्ते पर कैसे आयें पता हो तो जरा बता दो। वो आदमी बोला ठीक है तुम मेरे पीछे-पीछे चलो तुम्हें रास्ता अपने आप मिल जायेगा। उत्सुकता वश जंगल पार करते - करते टाईम पास करने की गरज से या अंधेरी रात के सन्नाटे से उठने वाले अपने मन के डर को कम करने के लिये हमने पूछ लिया वो कौन है और इस जंगल में रात के वक्त क्या कर रहा है। आदमी बोला, “मैं भगवान हूँ” और यहाँ शांति के साथ आराम करने आया हूँ, हमें तुरंत महाभारत के समय की याद आ गई (याद है मैं समय हूँ) लेकिन हम पूछ ही बैठे, “शांतिजी दिखायीं नहीं दे रहीं”। आदमी यानि कि भगवान थोड़ा सकपकाये फिर बोले, मेरा मतलब मन की शांति से है। हमने भी तू शेर तो मैं सवा शेर की तर्ज पर एक और सवाल पूछ लिया, “तो कौन से भगवान हो?” अगर शिव हो तो ये कपड़े क्यों पहने हैं, ना साँप ना अर्धचन्द्र ना भस्म और तो और गंगा भी नहीं दिखायीं दे रही , और अगर विष्णु तो ये साधारण से वस्त्र क्यों? ना मुकुट ना गहने बगैर शेषनाग कैसे और ब्रहमा हो तो पैदल क्यों? कमल कहाँ है? बोले ये लोग कौन हैं? मैंने कहा, बड़े पहुँचे हुए भगवान हैं, भगवन बोले लेकिन मैं तो एक ही हूँ ये कैसे हो सकता है। ये ही नहीं अपने यहाँ तो सुनते हैं 33 करोड़ देवी देवता हैं जिन्हें हम भगवान कहते हैं, कहने की बारी हमारी थी। हमारी बात सुन भगवान का मुँह खुला का खुला, हमने सोचा हमारी बात दोहरा रहे हों, फिर लगा 33 कहने में मुँह तो नहीं खुलता । इसलिये थोड़ा हिलाया, भगवान जैसे नींद से जागें हों बोले अच्छा गिनाओ। अब चित होने की बारी हमारी थी हमें तो जैसे साँप सूँघ गया।
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
जो बात तो म्हारे दिमाग में बी आवे है, जनसँख्या १२० करोड़ और देवी-देवता ३३ करोड़. उनको पूजेगा कौन?:bang-head::think:
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
अभिमन्यू की तरह चक्रव्यूह में घूस तो गये अब निकलें कैसे ये सूझ नहीं रहा था। 33 करोड़ सुना था, कौन हैं ये तो अपने फरिश्तों को भी शायद ही मालूम हो। द्रोपदी की तरह लाज बचाने वाला कोई नहीं था अपनी इज्जत खुद ही बचानी थी सो हिम्मत कर गिनती शुरू करी। लेकिन 25 से ऊपर जाने के वांदे दिखने लगे (हालत खराब होने लगी) फिर बड़ी कोशिश कर गंगा, जमुना, सरस्वती जैसी नदियाँ और चंद्र, मंगल, सूर्य जैसे ग्रह जोड़ संख्या किसी तरह 40 तक पहुँचायी। फिर सोचा दक्षिण में लोग फिल्मी हिरोईनों के भी मंदिर बना देते हैं क्यों ना उनकी भी गिनती कर ली जाय लेकिन अंदर से हमें लग गया था कि अपने पूर्वजों के साथ-साथ दुनिया की प्रमुख हस्तियाँ भी गिनवायेंगे तो भी शायद ही 33 करोड़ का टच डाउन कर पायें। हम उस घड़ी को कोस रहे थे जब किसी ने हमें 33 करोड़ देवी देवता होने की बात बतायी थी।
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
नेताओं की देखा देखी बात बदलने की गरज से हमने दूसरा मुद्दा छेड़ दिया। हमने पूछा, अच्छा ये बतायें कि खुदा से रोज मुलाकात होती रहती है या आप लोगों का भी वही रिश्ता है जो आप लोगों के बंदों का यानि मैं बड़ा, मैं बड़ा । हमारे खुदा का मतलब विस्तार से समझाने के पश्चात भगवन नाराजगी भरे शब्दों में बोले, “मैने कहा ना मैं एक हूँ”। हमने नहले पर दहला मारते हुए तुरंत कहा, “जरा ठीक से याद कर लीजिये हो सकता है कुंभ के मेले में आप लोग बिछुड़ गये हों”।
ये सुन भगवन की भृकुटी तन गयी, अपनी हालत उस मेमने की तरह हो गयी जिसने अचानक शेर देख लिया हो, बदकिस्मती ऐसी कि अपने भगवान को भी याद नहीं कर सकते थे डर था कि कहीं ये आग में घी का काम ना कर दे। तभी गरजती सी आवाज सुनायी दी जैसे कोई नेता सरकार की पतलून उतारने के लिये या जनता से वोट माँगने के लिये गरजता है, ‘मैं एक ही हूँ, मैं ही हूँ जिसे तुम भगवान या खुदा कह रहे हो, मैं ही प्रारंभ मैं ही अंत। मैं ही नारी मैं ही पुरूष, मेरा कोई रूप नही मैं हूँ निराकार। मैं ही हूँ शक्ति पुंज, अंनत शक्तियों का संगम।” अपनी सिटीपिटी गुम, दिल इतने जोर से धड़कने लगा जैसे सैकड़ों मलिक्का शेरावत सामने आ खड़ी हों लेकिन मन में कहीं अपने अर्जुन होने का एहसास हो रहा था। |
Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
नेताओं की तरह तुरंत पाला बदलते हुए अपना आत्म सम्मान, अपना दिल-दिमाग सब कुछ अपनी जेब में रख हाथ जोड़ के हम बोल पड़े, “बस भगवन बस सब समझ गया। लेकिन शक का इलाज तो किसी वैध के पास है नहीं मन अभी भी शक कर रहा था कि ये भगवान कैसे हो सकते हैं, इतनी देर से हम से बात कर रहे हैं और हमको अभी तक एक बार भी “वत्स” कहकर संबोधित नहीं किया। बातें तो बहुत पूछनी थी लेकिन डर इस बात का था कि कहीं कोई श्राप ना दे दें। वैसे श्राप से ज्यादा इस बात का डर था कि कहीं जंगल में अकेला छोड़ दिया तो जंगली जानवर सूदखोरों की तरह बोटी बोटी नोच डालेंगे।
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Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
अपनी सोच में डूबे हम चुपचाप वैसे ही चल रहे थे जैसे सीता और लक्ष्मण राम के पीछे पीछे वनवास को चल दिये थे। तभी आवाज आयी ‘तुम्हारा नाम क्या है वत्स’? हमारे पैर से जैसे जमीन खिसक गयी हो ऐसा झटका लगा जैसे किसी नेता को कुर्सी छीन जाने पर लगता है। हमें लग गया कि ये जो भी है हमारा दिमाग पढ़ सकता है इसलिये सोचने का काम तो करना ही नहीं है, बस बोलते जाओ अगर सोचने वाली बात इसने पढ़ ली तो हम तो सौ प्रतिशत काम से गये। तुरंत बोले, “निठल्ला“। भगवन ऐसे देख रहे थे जैसे कह रहे हों ये भी कोई नाम हुआ, अच्छा काम क्या करते हो? अगला सवाल था। हमने कहा “चिंतन“, क्या? हमने फिर जोर देकर कहा, “निठल्ला चिंतन“। भगवन किसी नासमझ प्रेमिका जैसे बोले, “वो क्या होता है”? हमने समझाया, “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” ये होता है। जनता की तरह भगवन बोले अच्छा जाने दो जैसे कह रहे हों जब निठल्ला चिंतन समझ में नहीं आया तो भानुमती के कुनबे की बात कैसे समझ में आयेगी।
अब जवाब दो मित्रों वर्ना आगे नहीं लिखूंगा |
Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
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हम तो लगातार पढ़ रहे हैं आपकी हर पोस्ट.:cheers: |
Re: जिस रोज मुझे भगवान मिले
फिर प्यार से बोले, अच्छा अब हमारे भगवान होने पर यकीन आया कि नहीं । हाथ जोड़ अपनी सारी हिम्मत जुटा हम बोलें, “क्षमा प्रभु, लेकिन मन में कई संशय हैं”। जैसे?, रहने दो प्रभु मान लिया आप ही हो पालनहार, हमारी इस जंगल से नैय्या पार लगा दो बस। भगवन किसी प्राइवेट बैंक का लोन लेने के लिये समझाने वाले एजेंट की तरह मिठास घोलते हुए बोले, “कोई संशय लेकर यहाँ से मत जाओ, पूछो क्या पूछना है।” हमने हिम्मत कर कहा, अपना विराट स्वरूप मत दिखाईयेगा मैं कोई अर्जुन नहीं, समझ और झेल नहीं पाऊँगा।
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