वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
मित्रो ! मेरा यह नया सूत्र संसार में नित्य हो रहे नए शोध और आविष्कारों से आपको निरंतर अवगत कराएगा ! समाचार की दुनिया में लगभग रोज ही ऎसी ख़बरें आती रहती हैं, अतः मेरा प्रयास रहेगा कि यह सूत्र प्रतिदिन अपडेट हो ! आप सभी मित्र भी इस सूत्र में योगदान के लिए स्वतंत्र हैं ! जहां कहीं नए शोध अथवा आविष्कार के विषय में नई जानकारी नज़र आए, आप उसे इस सूत्र में पोस्ट कर सकते हैं ! ... और आखिर में इस सूत्र का शीर्षक यह इसलिए कि ज्यादातर शोध अथवा आविष्कार स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े ही होते हैं ! आइए, शुरू करते हैं यह ज्ञान-यात्रा !
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ज्यादातर मर्द मानते हैं कि मर्द औरतों से ज्यादा मजाकिया होते हैं
कैलिफोर्निया। यह कोई मजाक नहीं है, बल्कि सच्चाई है कि मर्द मानते हैं कि वो औरतों से ज्यादा मजाकिया होते हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में भी मर्दों को औरतों से ज्यादा मजाकिया पाया गया। इस अध्ययन के अंतर्गत कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय ने पत्रिका के कार्टूनों के लिए अनुशीर्षक लिखने की परीक्षा ली। ‘न्यूयार्कर’ पत्रिका में छपे 20 कार्टूनों के लिए 16 पुरूषों और 16 महिलाओं से हास्य अनुशीर्षक लिखने के लिए कहा गया था। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि इसमें पुरूष पाठकों को महिला पाठकों की तुलना में अधिक अंक आए। शोधकर्ताओं ने पाया कि महिला अनुशीर्षक लेखकों की तुलना में पुरूष अनुशीर्षक लेखक अपशब्दों और वयस्क मजाकों का अकसर प्रयोग करते हैं। हालांकि पुरूषों और महिलाओं के बीच अंकों का अंतर बहुत ही कम था। दोनों के बीच केवल 0.11 अंकों का अंतर था। दोनों के अंकों का निर्धारण एक से पांच के अधिकतक स्तर पर किया गया था। मुख्य लेखक लौरा मिक्स ने कहा कि यह अंतर बहुत ही कम था, इसके कारण किसी तरह की धारणा नहीं बन सकती। बाद में इस संबंध में प्रश्न पूछने पर इनमें से लगभग 90 प्रतिशत लोगों ने माना कि वो इस प्रचलित धारणा का मानते हें कि मर्द औरतों से ज्यादा मजाकिया होते हैं। सहलेखिका प्रोफेसर निकोलस क्रिस्टीनफेल्ड ने कहा कि हमारे शोध से उन मर्दों को निराशा होगी जो मानते है कि वो अपने मजाकों से महिलाओं का प्रभावित कर सकते हैं, असल में वो दूसरे मर्दों को प्रभावित कर सकते हैं जिन्हें लगता है कि पुरूष ज्यादा मजाकिया होते हैं। यह अध्ययन ‘साइकोनॉमिक बुलेटिन एंड रिव्यू’ में प्रकाशित किया गया है। |
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खराब कोलेस्ट्रोल को कम करने का उपचारात्मक लक्ष्य चिह्न्ति
वाशिंगटन ! वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने पहली बार खराब ट्राइग्लिसराइड घटाने और अच्छे कोलेस्ट्रोल स्तर को बढाने के लिए एक अनूठे उपचारात्मक लक्ष्य की शिनाख्त कर ली है। न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक दल ने दिखाया कि रासायनिक रूप से रूपांतरित माइक्रोआर-निरोधी ओलिगोन्यूक्लियोटाइड से माइक्रोआरएनए-33ए और माइक्रोआरएनए-३३ बी दोनों का निरोध खासी हद तक ट्राइग्लिसराइड को दबा सकता है और उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रोल के अनवरत इजाफे को अंजाम दे सकता है। लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रोल को अच्छा कोलेस्ट्रोल कहा जाता है। वैज्ञानिकों के दल का नेतृत्व करने वाली कैथरीन मूर ने कहा, ‘‘पिछले दशक में माइक्रोआरएनए की खोज की गई थी, जिसने जीन पाथवे के इन प्रभावी नियामकों पर लक्षित उपचारों के विकास के नए अवसर पर नई दृष्टि दी।’’ कैथरीन ने कहा कि यह अध्ययन अपने आप में पहला है जिसमें दिखाया गया कि माइक्रोआरएनए-33ए और साथ ही माइक्रोआरएनए-33बी का निरोध प्लाज्मा ट्राइग्लिसराइड स्तरों को को दबा सकता है और एचडीएल-सी के परिचालन स्तर को बढा सकता है। |
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भ्रूण के प्रारंभिक विकास की प्रमुख प्रणाली का पता लगा
न्यूयार्क ! जीव विज्ञानियों ने दावा किया है कि उन्होंने भ्रूण के प्रारंभिक विकास को नियंत्रित करने वाली एक महत्वपूर्ण प्रणाली का पता लगाया है जो मनुष्यों में बांह और पांवों जैसे अंगों के सही स्थान और सही समय पर विकसित होने का निर्धारण करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। न्यूयार्क विश्वविद्यालय और आयोवा विश्वविद्यालय के एक दल ने उन नियामक नेटवर्क पर अपना ध्यान केन्द्रित किया जो भ्रूण की प्रारंभिक विकास प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। उन्होंने हालांकि गौर किया कि इस बात पर कम ही ध्यान दिया गया है कि इस प्रकार के नेटवर्क किस प्रकार एकदम सटीक तौर पर समय के साथ एक दूसरे का समन्वय करते हैं। ‘पीएलओएस जेनेटिक्स’ पत्रिका के अनुसार, जीव विज्ञानियों ने पाया कि जेल्डा नाम का एक प्रोटीन एकदम सटीक तौर पर समन्वय के साथ विकास से जुड़े गुणसूत्रों के समूहों को सक्रिय करता है। दल की नेता और न्यूयार्क विश्वविद्यालय से संबद्ध क्रिस रूश्लोव ने कहा, ‘‘जेल्दा गुणसूत्रों के नेटवर्क को शुरू करने से कहीं आगे का काम करता है। यह उनकी गतिविधियों का समन्वय करता है ताकि भ्रूण के विकास की प्रक्रिया सही समय पर सही क्रम में पूरी हो।’’ आयोवा विश्वविद्यालय के दल के सदस्य जॉन मानक ने कहा, ‘‘हमारे नतीजे प्रारंभिक विकास के दौरान एक काल प्रणाली के महत्व का प्रदर्शन करते हैं।’’ |
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अब बन्धु सिकंदर के लिए एक खुश खबर !!! :cheers:
स्वाद कलिकाएं तय करती हैं, दोस्ती की मिठास न्यूयार्क ! अगर आपको अच्छे दोस्तों की तलाश है, तो मीठा पसंद करने वाले लोगों से नजदीकियां बढाएं। मिठाइयों के शौकीन लोग न सिर्फ बेहतर दोस्त साबित होते हैं, बल्कि औरों की तुलना में ज्यादा मददगार भी होते हैं। अमेरिका के जर्नल आफ पर्सनैलिटी सोशल साइकोलाजी में प्रकाशित ताजा शोध के मुताबिक जो लोग मिठाइयां और अन्य मीठे व्यंजन पसंद करते हैं. वह अच्छे दोस्त और मददगार साबित होते हैं। हालांकि मुश्किल यह है कि इस तरह के लोग अंतर्मुखी होते हैं लिहाजा उनसे दोस्ती करने के लिये दूसरे लोगों को आगे आना पडता है लेकिन अगर एक बार ये आपसे जुड जाएं तो आपके पुराने दोस्तों की तुलना में ज्यादा भरोसेमंद साबित होते हैं। पेनिसिलवेनिया स्थित गेट्टीसबर्ग कालेज के मनोविज्ञान के प्रोफेसर ब्रायन मीएर्स कहते हैं ..आप जो कुछ खाना पसंद करते हैं उसका सीधा असर आपके व्यक्तित्व और व्यवहार पर पडता है। यही कारण है कि मीठा पसंद करने वाले लोगों का व्यवहार भी मिठास भरा होता है। वैज्ञानिकों ने 500 से अधिक लोगों का सर्वेक्षण करके पता लगाया कि मनुष्य की पांच इंद्रियों में से एक जीभ की पसंद का व्यक्ति के स्वभाव पर कितना असर पडता है। गेट्टीसबर्ग कालेज, शिकागो की सेंट जेवियर यूनिवर्सिटी और नार्थ डाकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 500 से अधिक लोगों के समूह में से कुछ लोगों को चाकलेट का एक टुकडा खिलाकर उनके व्यवहार का अध्ययन किया। कुछ समय बाद जिन लोगों को चाकलेट खिलायी गयी थी उनका व्यवहार चाकलेट नहीं खाने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा दोस्ताना नजर आया और उन्होंने जरूरतमंदों की मदद के लिये स्वेच्छा से हाथ बढाया। एक अन्य अध्ययन से पता चला कि मीठा पसंद करने वाले लोग मीठे से दूर रहने वाले लोगों की तुलना में आम तौर पर ज्यादा खुश रहते हैं जिसका असर न सिर्फ उनके व्यवहार पर बल्कि उनकी भाव-भंगिमा पर भी पडता है। मिठाइयों के शौकीन लोग अपने दोस्तों की बात से झट सहमत भी हो जाते हैं। हालांकि अध्ययन में यह नहीं बताया गया है कि तीखा या मसालेदार खाना पसंद करने वाले लोगों का व्यवहार कैसा होता है। |
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सच मे ये एक खास ताजा खबर है और मै भी मीठे खाने का आदी हूँ |
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आई पैड को किताबों से तीन गुना तेजी से पढ पाते हैं बुजुर्ग
लंदन ! कई लोगों के लिए यह आश्चर्य का विषय हो सकता है लेकिन पारंपरिक किताबों की बजाय आई पैड का इस्तेमाल करने पर बुजुर्ग तीन गुना तेजी से पढते हैं। जर्मनी के शोधकर्ताओं ने पाया कि विभिन्न आयुवर्ग के लोग आई पैड को उतनी ही अच्छी तरह पढ सकते हैं जैसे किताबों को...बल्कि बुजुर्गों के लिए आई पैड को पढना किताबों से ज्यादा आसान होता है। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक आई पैड की स्क्रीन को पेज पर जानकारी प्राप्त करने में मददगार पाया गया, यहां तक लंबे समय तक इस्तेमाल के कारण टेबलेट की एलईडी स्क्रीन की पाठकों की आंखों को नुकसान पहुंचाने के मद्देनजर आलोचना की गई है। जोहान्स गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी मेंज के शोधकर्ताओं का कहना है कि किताबें आखों के लिए आरामदायक हैं। शोध जोहान्स गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी मेंज के शोधकर्ताओं द्वारा प्रोफेसर स्टीफन फुसेल के नेतृत्व में किया गया। इसमें भाग लेने वाले लोगों से किंडले, आई पैड और पारंपरिक किताबों से संबंधित सवाल पूछे गए। आंखों की हलचल और इलेक्ट्रो फिजिकल मस्तिष्क गतिविधियों से उनकी पढने की आदतों का मूल्यांकन किया गया। |
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छोटे ग्रह पर पानी निर्मित बर्फ और संभवत: वायुमंडल की उपस्थिति है
वाशिंगटन ! खगोलविदों ने एक संदिग्ध बौने ग्रह की खोज की है। उनका मानना है कि वह बर्फ से ढका हुआ है और शायद उसका वायुमंडल भी है। ‘स्नो व्हाइट’ उपनाम वाले इस उपग्रह नेप्चयून के बाहर स्थित है और वह क्यूपर बेल्ट के हिस्से के तौर पर सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। क्यूपर बेल्ट बर्फ से बना है और वह नेप्चयून से बाहर सूर्य की परिक्रमा करता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक आधिकारिक तौर पर 2007 ओआर10 नाम वाला यह ग्रह वास्तविक रूप में लाल है और इसका आधे सतह पर पानी निर्मित बर्फ फैला हुआ है। माना जा रहा है कि यह बौना ग्रह मीथेन की पतली परत की वजह से लालीपन लिए हुए है। स्पेस डाट काम ने कैलिफोर्निया इंस्टिच्यूट आफ टेक्नोलॉजी के अग्रणी वैज्ञानिक माइक ब्राउन के हवाले से लिखा है, ‘‘जो आप यह मनमोहक तस्वीर देख रहे हैं वहां पर एक समय छोटी दुनिया थी। वहां पर पानी, ज्वालामुखी और वायुमंडल मौजूद था। अब यह जमा, मृत ग्रह है और इसका वायुमंडल धीरे-धीरे विलुप्त् हो रहा है।’’ 2007 में जब इस ग्रह को खोजा गया था तब ब्राउन ने अनुमान लगाया था कि स्नो व्हाइट एक अन्य बौने ग्रह ‘हौमिया’ के टूटने से बना है। ‘हौमिया’ फुटबॉल की तरह और पानी निर्मित बर्फ से आच्छादित था। इसीलिए इसका नाम स्नो व्हाइट रखा गया है। हालांकि बाद में किए गए अध्ययन से पता चला कि प्लूटो के करीब आधे आकार वाला स्नो व्हाइट वास्तव में क्यूपर बेल्ट की अन्य वस्तुओं की तरह लाल है। |
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मस्तिष्क ट्यूमर के लिए जिम्मेदार जैव रासायनिक प्रक्रिया की पहचान
वाशिंगटन ! वैज्ञानिकों ने एक ऐसी जैव रासायनिक प्रक्रिया और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न उत्पाद की पहचान करने का दावा किया है, जिसके बारे में उनका कहना है कि मस्तिष्क ट्यूमर के उत्पन्न होने और उसके विकास के लिए यह प्रक्रिया जिम्मेदार है। बेहद खतरनाक माने जाने वाले कुछ ट्यूमर के इलाज में इस खोज से मदद मिलने की उम्मीद है। यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल आफ हीडलबर्ग के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल के मुताबिक, उन्होंने कायनुरेनाइन नाम के एक उत्पाद की ट्यूमर वृद्धि में भूमिका की पहचान कर ली है । वैज्ञानिकों ने बताया कि अमीनो अम्ल पर प्रतिक्रिया होने से पैदा होने वाला यह उत्पाद ट्यूमर निरोधक प्रतिरोधक तंत्र की प्रतिक्रिया को भी कमतर करता है । शोधकर्ताओं ने बताया कि इस नई खोज से मस्तिष्क ट्यूमर के सबसे आम और आक्रामक प्रकार ग्लियोमास के इलाज में नई आशा पैदा हुई है। ‘नेचर’ जरनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा इस जैव रसायन की अन्य प्रकार के मस्तिष्क कैंसर में भी भूमिका होती है । वैज्ञानिकों का दावा है कि इस ऐतिहासिक खोज से अल्जाइमर्स, मोटर न्यूरॉन डिसीज और पर्किंसंस डिसीज के इलाज में भी अहम सफलता मिल सकती है। |
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चीनी वैज्ञानिकों ने दावा किया कुष्ठरोग के इलाज में सफलता का
बीजिंग ! चीन में वैज्ञानिकों ने कुष्ठरोग के इलाज में एक बड़ी कामयाबी का दावा किया है जिससे इस रोग की पहचान शुरूआती चरण में हो सकेगी। वैज्ञानिक पत्रिका नेचर जेनेटिक्स के आनलाइन में छपी रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी चीन में शानदांग प्रोविन्शियल इंस्टीट्यूट आफ डेकेटोलाजी एण्ड वेनेरेओलाजी में वैज्ञानिकों के एक दल ने इस बीमारी के लिये जिम्मेदार दो जीन आईएल23आर तथा आरएबी32 के पास दो नये जोखिम वाले स्थानों का पता लगाने का दावा किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस खोज के बाद अब कुष्ठरोग को शुरूआत में ही पहचान पाना आासान हो जायेगा और नये तरीके से इलाज का मार्ग भी प्रशस्त होगा। अनुसंधान दल के नेता झांग फुरेन के अनुसार एक जेनेटिक डेटाबेस बनाया जायेगा जिससे उन लोगों की पहचान आसान होगी जिन्हें कुष्ठरोग होने की संभावना है। शिन्ह्वा संवाद समिति के अनुसार अध्ययन के लिये कुष्ठरोग से पीडित और स्वस्थ्य लोगों के 10000 से अधिक नमूने लिये गये और उनका विश्लेषण किया गया। उल्लेखनीय है कि चीन में दुनिया में कुष्ठरोग के पीड़ितों का दसवां हिस्सा रहता है । |
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कैंसर की वजहों का पता लगाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन
लंदन ! ब्रिटेन का आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और भारत के 12 अग्रणी कैंसर केंद्र एक साथ मिलकर भारत में कैंसर की वजहों को पता लगाने के लिए अनुसंधान करने जा रहे हैं। विश्वविद्यालय ने आज कहा कि भारत के लिहाज से अबतक के सबसे बड़े इस अध्ययन में इस बात का पता लगाया जाएगा कि भारतीय जीवनशैली में क्या कोई ऐसे सामान्य कारक हैं, जिनकी वजहों से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। आशंका है कि भारत में अगले दो दशक में कैंसर के मामलों में दो तिहाई की वृद्धि होगी और प्रति वर्ष कैंसर के 17 लाख नए मामले आएंगे। इंडोक्स कैंसर अनुसंधान नेटवर्क के तहत होने वाले इस अनुसंधान में पूरे भारत के 12 केंद्रों पर 30,000 लोगो को शामिल किया जाएगा। |
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पुरूषों में मूत्राशय कैंसर के खतरे को कम करने में मददगार हो सकता है पानी
लंदन ! पानी पीने के असंख्य फायदों में एक फायदा और जुड़ गया है । एक नए शोध में दावा किया गया है कि पानी पीने से पुरूषों में मूत्राशय के कैंसर का खतरा कम हो सकता है । ब्राउन यूनिवर्सिटी के लगभग 48,000 लोगों पर किए गए इस शोध में कहा गया है कि जो पुरूष एक दिन में कम से कम 2,531 मिली पानी पीते हैं, उनमें मूत्राशय कैंसर का खतरा 24 फीसदी तक कम हो जाता है । शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऐसा संभवत: इसलिए होता है क्योंकि पानी मूत्राशय में कैंसर पैदा करने वाले किसी भी तत्व को बाहर निकाल देता है । ‘द डेली टेलीग्राफ’ की खबर के मुताबिक, इस शोध में यह भी कहा गया है कि पुरूषों की उम्र बढ़ने के साथ उनके पानी पीने की प्रवृत्ति कम होती जाती है । इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पानी का सेवन अधिकाधिक किया जाए । |
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पुरूषों ने भी माना, कई काम एक साथ करने में बेहतर होती हैं महिलाएं
लंदन ! पुरुषों ने आखिरकार मान ही लिया है कि महिलाएं कई काम एक साथ करने (मल्टी टास्किंग) में उनसे कई गुना बेहतर होती हैं । एक नए शोध में इस बारे में दावा किया गया है । सर्वेक्षण आधारित इस शोध में शामिल तीन चौथाई पुरूषों ने कहा कि महिलाएं एक समय में चार से भी ज्यादा काम कर सकती हैं, जबकि वे ज्यादा से ज्यादा दो ही काम एक साथ कर सकते हैं । सर्वेक्षण के मुताबिक, हर चार में से एक पुरूष ने इस बात को स्वीकार किया कि जब वे एक समय में एक से ज्यादा काम करने की कोशिश करते हैं, तब उनमें से किसी एक को ही ठीक से कर पाते हैं । यह सर्वेक्षण बर्तन साफ करने वाले उपकरण बनाने वाली कंपनी कार्चर ने कराया है । सर्वेक्षण में शामिल केवल 16 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे पुरूषों से अपने काम में मदद के लिए कहती हैं । |
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नासा ने हल किया 2000 साल पुराने सुपरनोवा का रहस्य
वाशिंगटन ! नासा की दूरबीनों से किये गये नये अवरक्त प्रेक्षणों ने खुलासा किया है कि पहली बार दर्ज किया गया सुपरनोवा कैसे पैदा हुआ था और किस प्रकार इसके अवशेष ब्रह्मांड में दूर दूर तक फैल गये थे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कल कहा कि उसके स्पित्जर अंतरिक्ष दूरबीन और व्यापक अवरक्त सर्वे अन्वेषक (डब्ल्यूआईएसई) ने 2000 साल पुराने रहस्य को हल ढूंढ निकाला है जब चीनी खगोलविज्ञानियों ने सितारे में विस्फोट को होते हुए देखा। इन नतीजों ने दिखाया कि सितारे में विस्फोट की घटना एक गहरी गुफानुमा जगह पर हुई थी जिसके कारण सितारे से निकलने वाले अवशेष सामान्य से कहीं ज्यादा तेजी से और काफी दूर तक बिखर गये। उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के खगोलविज्ञानी और एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के आनलाइन संस्करण में दूरबीन की खोज का विवरण देने वाले नये अध्ययन के प्रमुख लेखक ब्रायन विलियम्स ने कहा, ‘‘यह सुपरनोवा अवशेष काफी बड़ा, काफी तेज था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘2000 साल पहले हुआ यह सुपरनोवा सामान्य सुपरनोवा से दो से तीन गुना बड़ा था। अब हम इसके कारण को सटीक तौर पर जान गये हैं।’’ 185 ईस्वी में चीन के खगोलविदों ने आसमान में एक ‘मेहमान सितारे’ का विवरण दर्ज किया है जो रहस्यमयी तरीके से दिखाई दिया और लगभग आठ माह तक दिखता रहा। 1960 तक वैज्ञानिकों ने यह निर्धारण कर लिया था कि यह रहस्यमयी पिंड पहली बार दर्ज किया गया सुपरनोवा था। बाद में उन्होंने इस पिंड की पहचान 8000 प्रकाश वर्ष दूर सुपरनोवा के अवशेष के तौर पर की लेकिन यह एक पहेली ही थी कि सितारे के गोलाकार अवशेष उम्मीद से कहीं बड़े क्यों थे। वैज्ञानिकों ने इस पिंड का नाम आरसीडब्ल्यू 86 रखा था। वाशिंगटन स्थित नासा के मुख्यालय में स्पित्जर और डब्ल्यूआईएसई कार्यक्रम के वैज्ञानिक बिल डांची ने कहा, ‘‘अंतरिक्ष में हमारी पहुंच को बढा देने वाली अनेक वेधशालाओं की मौजूदगी के चलते हम इस सितारे की मौत के बारे में आज पूरी तरह सटीक तरीके से जानकारी दे सकते हैं हालांकि हम पुराने खगोलविदों की तरह ब्रह्मांड में हो रही इन घटनाओं से आश्चर्यचकित हैं।’’ |
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इन्सोम्निया से हृदयाघात का खतरा अधिक
वाशिंगटन ! निश्चित रूप से यह एक ऐसी खबर है जो आपकी नींद उड़ा देगी, लेकिन सावधान हो जाइये, करवटें बदलते हुए रात गुजारने वाले लोगों को दिल का दौरा पड़ने का खतरा 27 से 45 फीसदी तक होता है। इन्सोम्निया यानी अनिद्रा पर यह अध्ययन नार्वे के ट्रोदीम स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के जन स्वास्थ्य विभाग ने किया है। अध्ययन के नतीजे ‘अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। नतीजों में कहा गया है कि एक तिहाई लोग अनिद्रा से पीड़ित हैं और उन्हें डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए। संस्थान के प्रमुख अनुसंधानकर्ता लार्स एरिक लौग्सैंड ने कहा ‘‘नींद की समस्या एक आम बीमारी है और इसका इलाज हो सकता है। लेकिन ध्यान न देने पर यह गंभीर परिणाम दे सकती है।’’ अध्ययन के लिए 1995 - 97 में एक राष्ट्रीय सर्वे किया गया और 52,610 वयस्कों से सवाल पूछे गए। अस्पतालों के रिकॉर्ड और नार्वे के नेशनल कॉज आॅफ डेथ रजिस्ट्री के अनुसार, सर्वे के बाद 11 साल में अनुसंधानकर्ताओं ने 2,368 लोगों की पहचान की जिन्हें दिल का पहला दौरा पड़ा था। नींद न आने के कारणों के तौर पर अनुसंधानकर्ताओं ने उम्र, लिंग, वैवाहिक दर्जे, शिक्षा, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, वजन, व्यायाम, शिफ्ट ड्यूटी, अवसाद और चिंता आदि की पहचान की । |
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अल्झाइमर के खतरे का संकेत देने वाली प्रक्रिया का पता चला
लंदन ! वैज्ञानिकों ने जीनों की ऐसी प्रक्रिया का पता लगाने का दावा किया है जिससे लोगों को अल्झाइमर की बीमारी होने के खतरे का पता चल सकता है। मैसाचुसेट्स इन्स्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि उनकी खोज मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली बीमारी का शीघ्र पता लगाने में मददगार हो सकती है। साथ ही इससे डिमेन्श्यिा के एक आम प्रकार का इलाज भी खोजा जा सकता है। अल्झाइमर का अब तक कोई प्रभावी इलाज नहीं है और वर्तमान दवाओं से लोगों को इलाज में मामूली मदद ही मिलती है। अनुसंधानकर्ताओं ने खमीर की मदद से पता लगाया कि अल्झामर के खतरे के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले जीन मस्तिष्क में कोशिकाओं पर कैसे काम करते हैं। उन्होंने पहली बार बताया कि ये जीन एमाइलाइड नामक एक प्रोटीन को प्रभावित करते हैं। उन्होंने पाया कि एमाइलाइड ने खमीर में एंडोसाइटोसिस नामक एक अहम प्रक्रिया को बाधित कर दिया जो कि महत्वपूर्ण अणुओं को मस्तिष्क कोशिकाओं तक ले जाती थी। यह भी पाया गया कि पाइकैम सहित कई जीन एंडोसाइटोसिस को बाधित करने की एमाइलाइड की क्षमता पर असर डाल सकते हैं। इस प्रयोग से जीन और एमाइलाइड प्रोटीन में संबंध का पता चला जो अब तक अज्ञात था। |
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मां को चाहिए, बच्चे को तीन साल की उम्र तक अपने साथ सुलाए
लंदन ! एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जब तक बच्चा कम से कम तीन साल का नहीं हो जाता, मां को चाहिए कि उसे वह अपने साथ सुलाए। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन विश्वविद्यालय के डॉ नील्स बर्गमेन की अगुवाई में अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि अगर बच्चों को अलग सोने दिया जाए तो उनका दिल अत्यंत तनावग्रस्त हो जाता है। लेकिन मां की छाती से लग कर सोने में उन्हें बहुत आराम मिलता है। डेली मेल में प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि बच्चे को अलग सुलाने के कारण मां और बच्चे के बीच लगाव मुश्किल से स्थापित होता है। साथ ही बच्चे के मस्तिष्क को क्षति भी पहुंच सकती है जिसके कारण बच्चे को आगे जा कर व्यवहारगत समस्याएं भी हो सकती हैं। |
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जीवन की असल शुरूआत होती है 38 साल की उम्र में ...
लंदन ! जीवन की शुरूआत 38 वर्ष की आयु में होती है ... चौंक गए । जनाब, यही वह उम्र है जब आप खुद के होने को सबसे बेहतर ढंग से महसूस करते हैं और सबसे ज्यादा संतोष का अहसास भी इसी वक्त होता है । जी हां, एक नये शोध में 2000 वयस्कों का अध्ययन किया गया और पाया गया कि जीवन के तीसरे दशक में यौन विश्वास, काम और जीवन का अच्छा संतुलन और सामाजिक स्थितियों में सुविधा सबसे ज्यादा होती है । जीवनशैली से जुड़े इस अध्ययन में खुलासा हुआ कि ज्यादातर लोगों का कहना था कि धन उनके लिए दोस्ती से ज्यादा कीमती है जबकि कई लोगों ने कहा कि वे अपने दोस्तों की जिंदगी के साथ अपनी जिंदगी की अदला बदली नहीं करना चाहेंगे । हर पांच में से दो व्यक्तियों को बूढे होने का गम सताता है जबकि चार में एक से ज्यादा व्यक्तियों ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि जिंदगी उनके नियंत्रण में है । विवाहित या जीवनसाथी वाले व्यक्तियों ने कहा कि 42 की उम्र में उन्होंने सबसे ज्यादा संतोष का अनुभव किया जबकि अविवाहित लोग का कहना था कि 27 की उम्र में उन्होंने सबसे ज्यादा संतोष महसूस किया । अध्ययन में खुलासा हुआ कि महिलाएं अपने बदन को लेकर सबसे ज्यादा सुविधा 31 साल की उम्र में महसूस करती हैं जबकि पुरूष 30 साल की आयु में । |
Re: एकदम ताज़ा ख़बरें
सपनों को ‘पढने’ वाला ब्रेन स्कैनर
लंदन ! सपनों के रहस्यमय संसार का भेद जल्द ही खुल जाएगा । लोग जल्द ही कम्प्यूटर के इस्तेमाल से जान सकेंगे कि उन्होंने क्या सपना देखा और हां, वे उन सपनों को अगले दिन देख पाने के लिए रिकॉर्ड भी कर सकेंगे । है न हैरानी भरी बात ... लेकिन म्यूनिख के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के एक दल का मानना है कि ऐसा जल्द ही हो सकेगा । ‘न्यू साइंटिस्ट’ की खबर में बताया गया कि वैज्ञानिकों का कहना है कि बे्रन स्कैनर की सहायता से उन लोगों के सपनों को देखा जा सकता है जो अपने सपनों पर नियंत्रण कर सकते हैं । जागते वक्त विचारों को पढ पाने की तरह ही क्या सपनों को भी पढा जा सकता है , यह जानने के लिए वैज्ञानिकों ने इन खास लोगों का दिमाग निगरानी तकनीक से परीक्षण किया। उन्होंने सपनों पर नियंत्रण का दावा कने वाले छह व्यक्तियों के दिमागी क्रियाकलापों का अध्ययन किया । |
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गांवों में बच्चों की योग्यता का स्तर कम : अध्ययन
नई दिल्ली ! आज जारी एक अध्ययन के परिणामों के अनुसार ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक कक्षाओं के अधिकतर बच्चे गणित और भाषाई ज्ञान दोनों में ही कुशलता के जरूरी स्तर से कम से कम दो ग्रेड नीचे हैं। अध्ययन कहता है कि बच्चों द्वारा अपने स्तर पर सही तरीके से वाक्य रचना करने की क्षमता जहां तेजी से कम हो रही है वहीं कक्षा चार में पढने वाले बच्चों का बड़ा हिस्सा बुनियादी गुणा भाग में भी समस्या का सामना कर रहा है। ‘ग्रामीण भारत में अध्यापन और शिक्षण’ के बारे में जारी वार्षिक शिक्षा स्तर की रिपोर्ट (एएसईआर) में आंध्र प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और राजस्थान के करीब 30 हजार बच्चों को शामिल किया गया है और बच्चों की क्षमताओं का आकलन किया गया है। छात्रों की धीमी प्रगति को उजागर करती रिपोर्ट कहती है कि जहां पहली कक्षा में पढने वाले बच्चों से सामान्य शब्दों को पढने की उम्मीद की जाती है लेकिन उन्हें कक्षा..2 में पढने वाले 30 प्रतिशत से कम तथा कक्षा..3 में पढने वाले महज 40 प्रतिशत बच्चे ही पढ सके। इसी तरह गणित के बारे में बच्चों की समझ को बयां करती रिपोर्ट कहती है कि अध्ययन में शामिल बच्चों में से 75 प्रतिशत बच्चे एक अंक के जोड़ने के सवालों को हल कर सके, जो कि कक्षा..1 के बच्चों से उम्मीद की जाती है। रिपोर्ट में बच्चों के लिए प्राथमिक विद्यालयों की कक्षाओं में सुविधाएं नहीं होने की ओर भी इशारा किया गया है। |
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बहुत ज्यादा शराब पी रहे हैं ब्रिटेन के बच्चे :drunk-man:
लंदन ! ब्रिटेन के सरकारी विभागों के आंकड़ों के मुताबिक यहां के बच्चे बहुत ज्यादा शराब पीने लगे हैं, वजन घटाने के लिए खाना छोड़ रहे हैं और ठीक से सो नहीं पा रहे हैं जिस कारण वह सुबह स्कूल में तरो-ताजा नहीं होते हैं। ब्रिटेन के ‘स्कूल्स हेल्थ एजुकेशन यूनिट’ की ओर से कराए गए तीन अलग-अलग शोध में यह बात सामने आयी है। पहले शोध में यह बात सामने आयी कि 12 वर्ष तक के बच्चे भी सप्ताह में औसतन 12 ग्लास वाइन पी जाते हैं। सर्वे में शामिल किए गए बच्चों में से चार प्रतिशत ने पिछले सप्ताह में 28 या उससे ज्यादा यूनिट वाइन पी थी । एक युनिट वाइन का मतलब है दस मिलीलीटर वाइन । सामान्य तौर पर निर्धारित मानक के अनुसार एक सप्ताह में पुरूष तीन से चार और महिला दो से तीन यूनिट वाइन ही ले सकते हैं। दूसरे शोध में यह बात सामने आयी कि 10 से 11 वर्ष उम्र सीमा की एक तिहाई से भी ज्यादा लड़कियां वजन कम करना चाहती हैं। संडे एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार तीसरे शोध के मुताबिक स्कूल प्रशासन द्वारा किए गए सवालोंं के जवाब में करीब आधी किशोर लड़कियों ने बताया कि वह ठीक से सो नहीं पाती हैं और स्कूल में उन्हें तरो-ताजा रहने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ती है। स्वास्थ्य विभाग के के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शराब को हाथ भी नहीं लगानी चाहिए।’’ |
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दुश्वारियों का सामना करने में मददगार है आध्यात्मिकता
वाशिंगटन ! संत और धार्मिक गुरू इन बातों को सदियों से कहते आ रहे हैं लेकिन अब एक अध्ययन ने भी इसी बात को दोहराया है कि आध्यात्मिकता गंभीर और पुरानी बीमारियो का सामना कर रहे लोगों के स्वास्थ्य नतीजों को बेहतर बनाने में मददगार साबित होती है। अमेरिका में मिसौरी विश्वविद्यालय के अनुसंधानियों ने पाया कि धार्मिक या आध्यात्मिक गतिविधियो में शामिल होने से महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है जबकि पुरूषों को बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का अनुभव होता है। अध्ययन के लेखक स्टीफनी रीड आर्न्डट के हवाले से लाइव साइंस ने कहा, ‘‘नये अध्ययनों ने इस विचार को बल दिया है कि अध्यात्म या धर्म स्वास्थ्य संबंधी पुराने रोगों के नकारात्मक प्रभावों का मुकाबला करने में मददगार साबित होता है।’’ |
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नपुंसकता से पीड़ितों को लाभ पहुंचाएगी शॉक थिरेपी
वाशिंगटन ! नपुसंकता से पीड़ित लोगों के लिए एक अच्छी खबर : वैज्ञानिकों ने एक शॉक थिरेपी विकसित की है जिसके बारे में उनका दावा है कि परंपरागत चिकित्सा से लाभ हासिल नहीं कर पाने वाले लोगों को इससे काफी फायदा हो सकता है। हाइफा स्थित रामबम हेल्थकेयर कैंपस ने इस रोग से प्रभावित 29 पुरूषों पर शॉक थिरेपी का इस्तेमाल किया और पाया कि इस तकनीक से उनके यौन क्रियाकलाप बेहतर हो गये हैं। लाइवसाइंस के अनुसार, इलाज के दो माह बीत जाने के बावजूद रोगियों को इलाज का फायदा मिलता रहा और उनमें से 30 प्रतिशत लोगों का यौन जीवन सामान्य हो गया और उन्हें दवाओं की जरूरत नहीं रही। |
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फेफड़ों की मरम्मत में तेजी लाएंगे स्टेम सेल
लंदन ! वैज्ञानिकों ने ऐसी स्टेम कोशिकाओं का पता लगाया है जो फेफड़ों के सूक्ष्म हवा की थैलियों अल्वियोलाई का तेजी से पुनर्निर्माण करती हैं। वैज्ञानिको का कहना है कि यह एक बड़ा कदम होगा और इससे जल्द ही क्षतिग्रस्त फेफड़ों के रोगियों के नये इलाज का रास्ता खुलेगा। जीनोम इंस्टीट्यूट आफ सिंगापुर के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल ने कहा है कि इस खोज से जमकर धूम्रपान करने वाले रोगियों और अस्थमा से प्रभावित लोगों के इलाज की नयी उम्मीद जागी है। |
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आपके सपनों को समझने में मददगार हो सकते हैं ब्रेन स्कैन
वाशिंगटन ! क्या आपको याद नहीं कि आपने पिछली रात सपने में क्या देखा था? अगर ऐसा है तो जल्द ही आप ऐसा कर पाएंगे क्योंकि वैज्ञानिकों ने एक नयी तकनीक विकसित कर ली है जिससे वे इस बात को सटीक तौर पर जान सकते हैं कि आपने क्या सपना देखा था। जर्मनी के मनोविज्ञान के मैक्स प्लांक विश्वविद्यालय के एक दल ने ब्रेन इमेजिंग का इस्तेमाल कर कहा कि वे इसके माध्यम से मस्तिष्क की गतिविधियोें के बारे में जानकारी हासिल कर सकते थे। अपने अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने नियंत्रित सपने देखने वाले छह लोगों को एक फंक्शनल मैगनेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) मशीन में सुलाया जो मस्तिष्क को जाने वाले रक्त बहाव का माप करती है। रक्त के बहाव में बढोतरी से मालूम चलता है कि मस्तिष्क का वह विशेष हिस्सा सक्रिय है और काम कर रहा है। इस तकनीक की मदद से वैज्ञानिकों ने अब तक दो सपनों के बारे में जानकारी हासिल की है हालांकि इस प्रयोग को कर पाना फिलहाल काफी कठिन है। |
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मस्तिष्क की डीएनए संरचना में आता रहता है बदलाव
लंदन ! शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि मस्तिष्क की कोशिकाओं की आनुवांशिक संरचना में धीरे धीरे बदलाव आता रहता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक महत्वपूर्ण खोज है क्योंकि इससे मस्तिष्क की बीमारियों के बारे में जानकारी मिल पाएगी। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल ने रिट्रोट्रांसपोसंन नामक गुणसूत्रों की पहचान की है जो मस्तिष्क की कोशिकाओं के डीएनए में हजारों सूक्ष्म बदलावों के लिए जिम्मेदार हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह गुणसूत्र विशेषतौर पर कोशिकाओं की पुनर्रचना से जुड़े मस्तिष्क के क्षेत्रों में सक्रिय होते हैं। |
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दो साल में मोबाइल हैंडसेट बदल लेते हैं ज्यादातर लोग : रिपोर्ट
नयी दिल्ली ! मोबाइल फोन अब सिर्फ संचार उपकरण नहीं रह गए हैं। नए एप्लिकेशंस के लिए अब ज्यादा से ज्यादा लोग दो साल के अंदर मोबाइल हैंडसेट बदल लेते हैं। उद्योग मंडल एसोचैम के एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है। देश के छह प्रमुख शहरों-दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूर और हैदराबाद में किए गए इस सर्वेक्षण में 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे नए एप्लिकेशंस के लिए दो साल से कम समय में नया हैंडसेट खरीदते हैं। सर्वेक्षण में 20 से 30 साल के 1,370 लोगों को शामिल किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक तरह जहां हैंडसेट के दाम नीचे आ रहे हैं, वहीं लोगों की खर्च योग्य आमदनी बढ रही है। इस वजह से भी अब लोग जल्दी-जल्दी हैंडसेट बदल रहे हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि पहली बार हैंडसेट खरीदने वालों के लिए ब्रांड ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। 39 फीसद ने इस बात से सहमति जताई। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे तेजी से बढता हैंडसेट बाजार है। शहरी क्षेत्र में मोबाइल धारकों की संख्या 5.91 करोड़ है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 3.01 करोड़ लोगों के पास मोबाइल फोन है। दूसरी बार हैंडसेट खरीदने वाला व्यक्ति गुणवत्ता पर ध्यान देता है। 15 प्रतिशत लोगों ने यह राय जताई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि ज्यादातर लोग मोबाइल हैंडसेट खरीदने के लिए दोस्तों से सलाह लेते हैं। एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा, ‘‘दूरसंचार उद्योग को नाम के महत्व को जानना चाहिए। विनिर्माताओं को खुद को विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों से जोड़ना चाहिए, जिससे उनके ब्रांड की पहचान बनेगी।’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि कई तरह के फीचर्स मसलन एप्लिकेशंस, ब्लूटूथ, जीपीआरएस, कैमरा, एफएम रेडियो और एमपी 3 प्लेयर हैंडसेट खरीदने के इच्छुक युवा को प्रभावित करते हैं। |
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असम में लुप्त होने के कगार पर सारस
उत्तरी गुवाहाटी ! पूर्वोत्तर राज्य असम को सामान्य तौर पर वनस्पतियों और जीवों से भरा पूरा माना जाता है। लेकिन पर्यावरणविदों ने सारस जिसे यहां आम बोलचाल की भाषा में ‘हरगिल्ला’ कहा जाता है, के लुप्त होने की आशंका जाहिर की है। इस पक्षी के लुप्त होने की आशंका की वजह मानवीय हस्तक्षेप और इस पक्षी के बारे में लोगों में जागरूकता का अभाव है। इस पक्षी के बारे में अनुसंधान कर रहे गैर-सरकारी संगठन ‘अर्ली बर्ड्स’ के मोली बरूआ हरगिल्ला को ‘लुप्त पक्षी’ बताते हैं। उन्होंने कहा कि इस पक्षी का सबसे बड़ा शत्रु मानव है। लोग धड़ले से पेड़ों को काट रहे हैं जहां हरगिल्ला अपना बसेरा बनाते है। बरूआ ने कहा कि इस पक्षी के बसेरे वाले क्षेत्र से दुर्गंध आने के कारण इस क्षेत्र के निकट बसे हुए लोग पेड़ों को काट रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह पक्षी सामान्य तौर पर सिमुलु के पेड़ों में अपना बसेरा बनाते है। ये पेड़ ज्यादातर ब्रम्हपुत्र नदी के दोनों ओर उत्तरी गुवाहाटी में पाए जाते हैं।’’ हाल ही में नगर और उसके आस पास किए गए गणना के मुताबिक केवल 127 हरगिल्ला बचे हैं। 2002 में इनकी संख्या 288 थी। इनकी संख्या 2003 में 203, 2004 में 233, 2005 में 247, 2006 में 167, 2007 में 118, 2008 में 147, 2009 में 147 और 2010 में 113 थी। |
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ऐसा भी होता है ! :tomato:
महारानी के निधन की घोषणा करने का प्रशिक्षण दे रहा है बीबीसी : रिपोर्ट लंदन ! बीबीसी इन दिनों अपने सभी समाचार प्रस्तोताओं को ब्रिटेन की महारानी का निधन होने की सूरत में उनकी मृत्यु की घोषणा किस प्रकार की जाए, इसका प्रशिक्षण दे रहा है । वर्ष 2002 में राजमाता के निधन की घोषणा के तौर तरीकों को लेकर बीबीसी को काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा था। वरिष्ठ समाचार वाचक पीटर सिसोन स्लेटी रंग के सूट और मैरून रंग की टाई लगाकर स्क्रीन पर राजमाता के निधन की घोषणा करने चले गए थे । इस बार भी इसी प्रकार की फजीहत से बचने के लिए समाचार प्रस्तोताओं को महारानी ऐलिजाबेथ द्वितीय के निधन की घोषणा करने के संबंध में प्रशिक्षित किया जा रहा है । दी संडे टाइम्स समाचारपत्र ने यह जानकारी दी है । बीबीसी के कालेज आफ जर्नलिज्म में समाचार वाचकों को एक छद्म वीडियो दिखाया जा रहा है जिसमें ह्यू एडवर्ड महारानी ऐलिजाबेथ द्वितीय के निधन की घोषणा कर रहे हैं । दैनिक ने एक बीबीसी सूत्र के हवाले से बताया, ‘‘ सभी समाचार संगठनों की तरह बीबीसी भी योजना बनाकर काम करता है । हम कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं कि उनसे क्या उम्मीद की जाती है ।’’दैनिक ने लिखा है कि अलमारी में सादगीपूर्ण कपड़ों का सेट रखा रहता है ताकि इस प्रकार की घोषणा करने के लिए समाचार प्रस्तोता उन्हें तुरंत पहन सकें । |
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जीन संवर्धित मच्छर निपटेंगे डेंगू बुखार से
लंदन ! जीन संवर्धित मच्छर डेंगू बुखार और अन्य कीट-जन्य रोगों का मुकाबला करने में प्रभावी साबित हो सकते हैं। डेंगू एडीज एजिप्टाई मच्छर के काटने पर एक विषाणु के संचरित होने से पैदा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि हर साल डेंगू के पांच करोड़ मामले सामने आते हैं और यह संख्या हर साल बढती जा रही है। अब तक इस रोग का मुकाबला करने के लिए कोई टीका विकसित नहीं किया जा सका है। बीबीसी के अनुसार, ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक दल ने केमेन द्वीपों के डेंगू प्रभावित हिस्सोें के बारे में दावा किया है कि यहां के जीन संवर्धित नर मच्छरों ने सफलतापूर्वक जंगली मादा मच्छरों के साथ समागम किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे पहले जंगली स्थिति में ऐसा समागम नहीं देखा गया था और इससे रोग के वाहक मच्छरों की संख्या को रोका जा सकता है। |
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क्या महज दिमागी बहकावे की उपज है ‘सूक्ष्म शरीर का अनुभव?’
लंदन ! शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में कहा है कि सूक्ष्म शरीर का अनुभव जैसी घटना कुछ और नहीं बल्कि हमारे दिमाग के बहकावे का नतीजा है। एडिनबर्ग और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का दावा है कि अस्पताल के बिस्तर से उपर उठने और किसी प्रकाश पुंज की तरफ आकर्षित होकर चलने जैसी घटनाओं का वर्णन इंसानी दिमाग के आधार पर किया जा सकता है जो हमें मृत्यु की प्रक्रिया का अहसास कराती हैं। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने दिमागी परिवर्तनों से संबंधित उन अध्ययनों की समीक्षा की जो मौत के नजदीक वाली स्थिति के अनुभव के लिए जिम्मेदार होती हैं। अखबार डेली मेल ने प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर कैरोलिन वाट के हवाले से कहा कि मौत के बाद वाली स्थिति की तरफ आकर्षित करने वाले प्रकाश पुंज देखने जैसी घटना, उन कोशिकाओं के मृत होने से घटित होती हैं जो हमारे आंखों पर पड़ने वाले प्रकाश को चित्रों में परिवर्तित करती है। उन्होंने कहा, ‘‘इसका सबसे बढिया स्पष्टीकरण यह है कि आप अध्यात्म में विचरण नहीं करते हैं बल्कि यह आपका दिमाग है जो अनोखे अनुभवों का अहसास कराता है।’’ |
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विश्व में 20 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं :आईएलओ
जिनीवा ! मौजूदा वैश्विक आर्थिक हालात के कारण रोजगार के अवसर में कमी आ रही है जिससे हाल में सुधार में देरी हो सकती और कई देशों में सामाजिक अशांति पैदा हो सकती है। यह चेतावनी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने जी-20 सम्मेलन से पहले जारी रपट में दी। रपट में संकेत दिया गया है कि अगले दो साल में आठ करोड़ रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे ताकि संकट पूर्व रोजगार के स्तर पर वापस आया जा सके । उक्त आठ करोड़ में से 2.7 करोड़ रोजगार के अवसर विकसित अर्थव्यवस्थाओं में और शेष अवसर उभरती और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में पैदा होने चाहिए। हालांकि वृद्धि में हाल में हुई कमी से संकेत मिलता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था जरूरत के मुकाबले सिर्फ आधी मात्रा में रोजगार पैदा कर सकती है। आईएलओ ने कहा कि जहां तक मौजूदा रूझान का संबंध है विकसित अर्थव्यवस्थाओं को रोजगार के मामले में पुन: संकट पूर्व के स्तर पर आने में कम से कम पांच साल लगेंगे। वैश्विक रोजगार दृष्टिकोण भयानक है क्योंकि विश्व भर में 20 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं। रपट के मुताबिक करीब दो तिहाई विकसित देशों और आधी उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में रोजगार में कमी फिर से दिखने लगी है। जी-20 के नेता तीन और चार नवंबर को फ्रांस के कान शहर में बैठक कर रहे हैं और वे यूरो क्षेत्र के रिण संकट समेत वैश्विक समस्या से निपटने के लिए तरीके खोजने की कोशिश करेंगे। |
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अब पहले चल सकेगा हार्टअटैक का पता
वाराणसी । काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के कुलपति और डीएनए फिंगर प्रिंट के जनक डा. लालजी सिंह ने आज दावा किया कि बायोसीन वाईडिंग प्रोटीन सी थ्री नामक जीन की जांच के जरिये अब यह पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा किसी को हार्टअटैक कब होगा। सिंह ने यहां पत्रकारों से कहा कि हार्ट अटैक का पता लगाने वाली दवा की खोज चल रही है जिससे रोगी का उपचार समय पर किया जा सकेगा । उन्होंने कहा कि मानव शरीर में तीस हजार जीन पाये जाते हैं। प्रत्येक जीन मां व पिता से आते हैं।अगर किसी बच्चे के शरीर में माता पिता के माध्यम से मायोसीन वाइंडिंग प्रोटीन सी थ्री नामक एक एक जीन आ ज़ुए और दोनों जीन खराब हो तो बच्चा या तो जन्म लेने के तत्काल बाद मर जायेगा या एक दो साल तक जीवित रह सकेगा । उन्होंने कहा कि यदि माता पिता के मायोसीन वाइंडिंग प्रोटीन सी थ्री नामक जीन में कोई एक जीन खराब होगा तो वह 50 साल तक जिंदा रह सकेगा । |
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छात्रा को मिला कैंसर रोधी दवाओं पर शोध पेटेंट :bravo:
हिसार । हरियाणा के हिसार की एक छात्रा ने कैंसर रोधी दवाओं में इस्तेमाल होने वाले रसायन का पेटेंट हासिल किया है। किसी छात्र के शोध को पेटेंट प्राप्त होने का यह विश्व में पहला वाकया है। हिसार के गुरूजम्भेश्वर विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाली मीनाक्षी पाल ने अरनीबिया पौधे से पूरे वर्ष शिकोनिन प्राप्त करने में सफलता हासिल की है। इससे पहले यह पौधा केवल तीन महीने ही शिकोनिन देता था। शिकोनिन ज्यादा मात्रा में मिलने से कैंसर व अन्य रोगों के इलाज में काम आने वाली दवाइयां सस्ती प्राप्त हो सकेगी। डा. मीनाक्षी पाल ने टीशू कल्चर व जेनेटिक ट्रांसफरमेशन तकनीकी के माध्यम से प्रयोगशाला में अरनिबिया पौधे से साल भर शिकोनिन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। इस शोध को बाकायदा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट भी प्राप्त हो गया है। पिछले दिनों विश्वविद्यालय ने डा. मीनाक्षी पाल को प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया था। उनके शोध को भारत सरकार और पूरे यूरोप ने पेटेंट प्रदान कर दिया है और इसके साथ ही यह शोध अब फार्मेसी में दवाइयां बनाने के काम आ सकेगा। अरनीबिया एक ऐसा औषधीय पौधा है, जिससे निकलने वाले केमिकल शिकोनिन का एंटी कैंसर, एंटी नियो प्लास्टिक, एंटी फंगल दवा बनाने के लिए औषधि निर्माण क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है। फूड इंडस्ट्री व फैशन इंडस्ट्री में भी इस केमिकल की खासी मांग है। डा. मीनाक्षी अरनिबिया पौधे के अलावा जेटरोफा पौधे से बायो डीजल प्राप्त करने के लिए भी शोध कर रही है। |
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दुकानों के अंदर तक ले जायेगा गूगल मैप
सैन फ्रान्सिस्को ! गूगल की नि:शुल्क सेवा ‘गूगल मैप्स’ अब आपको दुकानों, रेस्तरां, जिम आदि के भीतर की तस्वीर भी दिखाने जा रहा है। पिछले साल अप्रैल में एक परीक्षण के दौरान ही दुकानों के भीतर ली गई विभिन्न तस्वीरों को श्रंखलाबद्ध तरीके से दिखाया गया था। गूगल की प्रवक्ता डियेना यिक ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में ऐसी अंदरूनी तस्वीरों को लेकर लोगों का रुझान बढ रहा है। जापान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका जैसे देशों में कई छोटे दुकानदार भी अपने प्रतिष्ठानों के भीतर की तस्वीरें लेने के लिये छायाकारों को बुला रहे हैं। इन तस्वीरों को गूगल मैप पर डाला जायेगा। इन तस्वीरों के माध्यम से साइट पर जानकारी जुटाने वाले लोग खुद को इन प्रतिष्ठानों के भीतर महसूस करेंगे। हालांकि लोगों की गोपनीयता के मसले को लेकर इन तस्वीरों में गूगल ने पास खड़े लोगों के चेहरों को धुंधला कर दिया है। |
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अब छिपकली की तरह दीवारों पर रेंगने वाला रोबोट
पेरिस ! छिपकली की शारीरिक रचना से प्रेरित होकर वैज्ञानिकों ने एक टैंक के आकार का बिना चेहरे और बिना हाथों वाला रोबोट विकसित किया है जो बिना किसी गोंद या चिपचिपे तरल पदार्थ के दीवारों पर चल और रेंग सकता है। 249 ग्राम के इस रोबोट से 240 ट्रैक जुड़े हैं जिन्हें सूखे माइक्रोफाइबर्स से ढका गया है । इसकी मदद से यह रोबोट आसानी से खिड़कियों और दीवारों से चिपककर चल सकता है। छिपकली दीवार पर सेटाई नाम के बालों की मदद से चलती है जिससे दीवार पर आणविक आकर्षण उत्पन्न होता है। इस आणविक बल को वान डर वाल्स बल कहते हैं। ब्रिटेन की शोध पत्रिका ‘स्मार्ट मैटेरियल्स एंड स्ट्रक्चर’ में प्रकाशित खबर के अनुसार इस रोबोट की पट्टियां मशरूम के आकार की पॉलीमर माइक्रोफैब्रिक्स टोपियों से जुड़ी हैं। ये टोपियां 0.017 मिलीमीटर चौड़ी और 0.01 मिलीमीटर उंची हैं। इसकी तुलना में इंसान के बाल का आकार लगभग 0.1 मिलीमीटर घना होता है। कनाडा के सिमोन फ्रेजर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता जेफ क्रान ने कहा, ‘‘वान डर वाल्स बल के अपेक्षाकृत कमजोर होने पर पॉलीमर टोपियां रोबोट और सतह के बीच संपर्क को अधिकतम स्तर तक बढा देती है जिससे यह रोबोट आसानी से दीवारों पर चढ और रेंग सकता है।’’ |
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एक अरब साल पुराने जीवाणु का ‘सृजन’
वाशिंगटन ! वैज्ञानिकों ने एक अरब साल पुराने जीवाणु एन्जाइम बनाने का दावा किया है। साथ ही इस दल ने इस जीव के एक अरब साल पहले से वर्तमान समय तक विकास बताने वाले एन्जाइम का निर्माण किया है। जर्नल आॅफ मोलेक्यूलर बायोलॉजी एंड एवोल्यूशन के मुताबिक वैकाटो विश्वविद्यालय ने नए अभिकलन तकनीक के जरिये एक प्राचीन जीवाणु के आकार, रूप और संयोजन की सही भविष्यवाणी की है। इसके बाद वैज्ञानिकों ने एक अरब साल पुराने बैसिलस जीवाणु एन्जाइम बनाकर आधुनिक जीवाणु के जरिये प्राचीन प्रोटीन का निर्माण किया। वैज्ञानिकों के दल के सदस्य जो हॉब्बस ने कहा, ‘‘हमलोगों ने एक अरब साल पुराने प्रोटीन एन्जाइम बनाने में सफलता प्राप्त की है जो कि प्रयोगशाला में भी काम करता है।’’ इसके साथ ही इस दल ने इस जीव के एक अरब साल पहले से वर्तमान समय तक विकास बताने वाले एन्जाइम का निर्माण किया है। |
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