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-   -   .....वही क्यों दिल लुभाता है (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3829)

Dr. Rakesh Srivastava 15-01-2012 06:02 PM

.....वही क्यों दिल लुभाता है
 
ज़फ़ा की ही अदा तुम हुस्न वालों को क्यों आती है ;
किसी का दिल बहलता है , किसी की जान जाती है .

उतरता हूँ मैं अपनी छत से जितना मिलने को तुझसे ;
अकड़ गर्दन की तेरी उतनी ही क्यों बढ़ती जाती है .

तू है आईना , तुझमे अक्स मिटते बनते रहते हैं ;
तेरी तस्वीर मेरे दिल से क्यों मिटने न पाती है .

तुम्हारे प्यार का सावन कभी का थम चुका लेकिन ;
हमारी आँख की बरखा कभी थमने न पाती है .

मैं जब ये जानता हूँ , तू मुझे अब मिल नहीं सकती ;
तेरे आने की आहट फिर भी क्यों कानों में आती है .

उजालों में भले ही तू मुझे हासिल न हो लेकिन ;
मेरी हर रात तेरे ख़्वाब का उत्सव मनाती है .

जो हासिल हो नहीं सकता , वही क्यों दिल लुभाता है ;
पहेली ऐसी है , जिसको न दुनिया बूझ पाती है .

फ़िज़ा में ये महक और ये नशा छाया अचानक क्यों ;
हवा , क्या बेवफ़ा महबूब की गलियों से आती है !


रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2 , गोमती नगर , लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ ज़फ़ा = बेवफाई / अन्याय , अक्स = परछाई / छाया , फ़िज़ा = atmosphere / वातावरण )
-------------------------------------------------------------------------------------------

Dark Saint Alaick 16-01-2012 12:17 AM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
बहुत खूब कविवर ! उर्दू की इश्किया रवायत की श्रेष्ठ ग़ज़ल पढ़ कर हृदय आनंदित हो गया !

arvind 16-01-2012 09:22 AM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
अति सुंदर रचना।

aksh 16-01-2012 09:47 PM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
Quote:

Originally Posted by Dr. Rakesh Srivastava (Post 131286)
ज़फ़ा की ही अदा तुम हुस्न वालों को क्यों आती है ;
किसी का दिल बहलता है , किसी की जान जाती है .

उतरता हूँ मैं अपनी छत से जितना मिलने को तुझसे ;
अकड़ गर्दन की तेरी उतनी ही क्यों बढ़ती जाती है .

तू है आईना , तुझमे अक्स मिटते बनते रहते हैं ;
तेरी तस्वीर मेरे दिल से क्यों मिटने न पाती है .

तुम्हारे प्यार का सावन कभी का थम चुका लेकिन ;
हमारी आँख की बरखा कभी थमने न पाती है .

मैं जब ये जानता हूँ , तू मुझे अब मिल नहीं सकती ;
तेरे आने की आहट फिर भी क्यों कानों में आती है .

उजालों में भले ही तू मुझे हासिल न हो लेकिन ;
मेरी हर रात तेरे ख़्वाब का उत्सव मनाती है .

जो हासिल हो नहीं सकता , वही क्यों दिल लुभाता है ;
पहेली ऐसी है , जिसको न दुनिया बूझ पाती है .

फ़िज़ा में ये महक और ये नशा छाया अचानक क्यों ;
हवा , क्या बेवफ़ा महबूब की गलियों से आती है !


रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2 , गोमती नगर , लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ ज़फ़ा = बेवफाई / अन्याय , अक्स = परछाई / छाया , फ़िज़ा = atmosphere / वातावरण )
-------------------------------------------------------------------------------------------

बहुत सुन्दर कविता है डॉक्टर साहब !! अति उत्तम....:fantastic:

sombirnaamdev 16-01-2012 10:04 PM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
सुन्दर कविता :banalema:है डॉक्टर साहब :fantastic:

Dr. Rakesh Srivastava 17-01-2012 03:48 PM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
Quote:

Originally Posted by Dark Saint Alaick (Post 131300)
बहुत खूब कविवर ! उर्दू की इश्किया रवायत की श्रेष्ठ ग़ज़ल पढ़ कर हृदय आनंदित हो गया !

सम्माननीय Dark Saint Alaick जी ;
आपने पढ़ा व पसंद किया , आपका शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava 17-01-2012 03:50 PM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
Quote:

Originally Posted by arvind (Post 131357)
अति सुंदर रचना।

सम्माननीय अरविन्द जी ;
आपने पढ़ा व पसंद किया ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava 17-01-2012 03:52 PM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
Quote:

Originally Posted by aksh (Post 131396)
बहुत सुन्दर कविता है डॉक्टर साहब !! अति उत्तम....:fantastic:

सम्माननीय अक्ष जी ;
आपने पढ़ा व पसंद किया ,
आपका धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava 17-01-2012 03:56 PM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
Quote:

Originally Posted by sombirnaamdev (Post 131401)
सुन्दर कविता :banalema:है डॉक्टर साहब :fantastic:

सम्माननीय Sombirnaamdev जी ;
आपने पढ़ा व पसंद किया ,
शुक्रिया महोदय .

abhisays 17-01-2012 05:29 PM

Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
 
राकेश जी, आपकी इस कलाम ने दिल लुभा दिया... बहुत ही उम्दा है.


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