.....वही क्यों दिल लुभाता है
ज़फ़ा की ही अदा तुम हुस्न वालों को क्यों आती है ;
किसी का दिल बहलता है , किसी की जान जाती है . उतरता हूँ मैं अपनी छत से जितना मिलने को तुझसे ; अकड़ गर्दन की तेरी उतनी ही क्यों बढ़ती जाती है . तू है आईना , तुझमे अक्स मिटते बनते रहते हैं ; तेरी तस्वीर मेरे दिल से क्यों मिटने न पाती है . तुम्हारे प्यार का सावन कभी का थम चुका लेकिन ; हमारी आँख की बरखा कभी थमने न पाती है . मैं जब ये जानता हूँ , तू मुझे अब मिल नहीं सकती ; तेरे आने की आहट फिर भी क्यों कानों में आती है . उजालों में भले ही तू मुझे हासिल न हो लेकिन ; मेरी हर रात तेरे ख़्वाब का उत्सव मनाती है . जो हासिल हो नहीं सकता , वही क्यों दिल लुभाता है ; पहेली ऐसी है , जिसको न दुनिया बूझ पाती है . फ़िज़ा में ये महक और ये नशा छाया अचानक क्यों ; हवा , क्या बेवफ़ा महबूब की गलियों से आती है ! रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड -2 , गोमती नगर , लखनऊ . (शब्दार्थ ~~ ज़फ़ा = बेवफाई / अन्याय , अक्स = परछाई / छाया , फ़िज़ा = atmosphere / वातावरण ) ------------------------------------------------------------------------------------------- |
Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
बहुत खूब कविवर ! उर्दू की इश्किया रवायत की श्रेष्ठ ग़ज़ल पढ़ कर हृदय आनंदित हो गया !
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Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
अति सुंदर रचना।
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Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
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Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
सुन्दर कविता :banalema:है डॉक्टर साहब :fantastic:
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Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
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आपने पढ़ा व पसंद किया , आपका शुक्रिया . |
Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
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आपने पढ़ा व पसंद किया , आपका बहुत - बहुत शुक्रिया . |
Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
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आपने पढ़ा व पसंद किया , आपका धन्यवाद . |
Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
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आपने पढ़ा व पसंद किया , शुक्रिया महोदय . |
Re: .....वही क्यों दिल लुभाता है
राकेश जी, आपकी इस कलाम ने दिल लुभा दिया... बहुत ही उम्दा है. |
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