My Hindi Forum

My Hindi Forum (http://myhindiforum.com/index.php)
-   Religious Forum (http://myhindiforum.com/forumdisplay.php?f=33)
-   -   इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प्& (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=4799)

stolen heart 12-08-2012 01:46 PM

इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प्&
 
राम कृष्ण राव की कलम से -
मैंने जब पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में लिखने का इरादा किया तो पहले तो मुझे संकोच हुआ, क्योंकि यह एक ऐसे धर्म के बारे में लिखने का मामला था जिसका मैं अनुयायी नहीं हूँ और यह एक नाज़ूक मामला भी है क्योंकि दूनिया में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग पाए जाते हैं और एक धर्म के अनुयायी भी परस्पर विरोधी मतों (school of thought) और फ़िरक़ों में बंटे रहते हैं।-----(कृष्*णा राव)

stolen heart 12-08-2012 01:48 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
इस्लाम के पैग़म्बरःहज़रत मुहम्मद (सल्ल.)
मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म अरब के रेगिस्तान में मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार 20 अप्रैल 571 ई. में हुआ। ‘मुहम्मद’ का अर्थ होता है ‘जिस की अत्यन्त प्रशंसा की गई हो।’ मेरी नज़र में आप अरब के सपूतों में महाप्रज्ञ और सबसे उच्च बुद्धि के व्यक्ति हैं। क्या आपसे पहले और क्या आप के बाद, इस लाल रकतीले अगम रेगिस्तान में जन्मे सभी कवियों और शासकों की अपेक्षा आप का प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है।जब आप पैदा हूए अरब उपमहीद्वीप केवल एक सूना रेगिस्तान था। मुहम्मद(सल्ल.) की सशक्त आत्मा ने इस सूने रेगिस्तान से एक नए संसार का निर्माण किया, एक नए जीवन का, एक नई संस्कृति और नई सभ्यता का। आपके द्वारा एक ऐसे नये राज्य की स्थापना हुई, जो मराकश से ले कर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों-एशिया, अफ्ऱीक़ा, और यूरोप के विचार और जीवन पर अपना अभूतपूर्व प्रभाव डाला।
उदारता की ज़रूरतमैंने जब पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में लिखने का इरादा किया तो पहले तो मुझे संकोच हुआ, क्योंकि यह एक ऐसे धर्म के बारे में लिखने का मामला था जिसका मैं अनुयायी नहीं हूँ और यह एक नाज़ूक मामला भी है क्योंकि दूनिया में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग पाए जाते हैं और एक धर्म के अनुयायी भी परस्पर विरोधी मतों (school of thought) और फ़िरक़ों में बंटे रहते हैं।हालाँकि कभी-कभी यह दावा किया जाता है कि धर्म पूर्णतः एक व्यक्तिगत मामला है, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि धर्म में पूरे जगत् को अपने घेरे में ले लेने की प्रवृत्ति पाई जाती है, चाहे उसका संबंध प्रत्यक्ष से हो या अप्रत्यक्ष चीज़ों से। वह किसी न किसी तरह और कभी न कभी हमारे हृदय, हमारी आत्माओं और हमारे मन और मस्तिष्क में अपनी राह बना लेता है। चाहे उसका ताल्लुक़ उसके चेतन से हो, अवचेतन या अचेतन से हो या किसी ऐसे हिस्से से हो जिसकी हम कल्पना कर सकते हों। यह समस्या उस समय और ज़्यादा गंभीर और अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि इस बात का गहरा यक़ीन भी हो कि हमारा भूत, वर्तमान और भ्विष्य सब के सब एक अत्यन्त कोमल, नाज़ुक, संवेदनशील रेशमी सूत्रों से बंधे हुए हैं। यदि हम कुछ ज़्यादा ही संवेदनशील हुए तो फिर हमारे सन्तुलन केन्द्र के अत्यन्त तनाव की स्थिति में रहने की संभावना बनी रहती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो दूसरों के धर्म के बारे में जितना कम कुछ कहा जाए उतना ही अच्छा है। हमारे धर्मों को तो बहुत ही छिपा रहना चाहिए। उनका स्थान तो हमारे हृदय के अन्दर होना चाहिए और इस सिलसिले में हमारी ज़ुबान बिल्कुल नहीं खुलनी चाहिए।

stolen heart 12-08-2012 01:48 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
मनुष्य: एक सामाजिक प्राणी
लेकिन समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। मनुष्य समाज में रहता है और हमारा जीवन चाहे-अनचाहे, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे लोगों के जीवन से जुड़ा होता है। हम एक ही धरती का अनाज खाते हैं, एक ही जल-स्रोत का पानी पीते हैं और एक ही वायुमंडल की हवा में सांस लेते हैं। ऐसी दशा में भी, जबकि हम अपने निजी विचारों व धार्मिक धारणाओं पर क़ायम हों, अगर हम थोड़ा-बहुत यह भी जान लें कि हमारा पड़ोसी किस तरह सोचता है, उसके कर्मों के मुख्य प्रेरणा-स्रोत क्या हैं? तो यह जानकारी कम से कम अपने माहौल के साथ तालमेल पैदा करने में सहायक बनेगी। यह बहुत ही पसन्दीदा बात है कि आदमी को संसार मे धर्मों के बारे में उचित भावना के साथ जानने की कोशिश करनी चाहिये, ताकि आपसी जानकारी और मेल-मिलाप को बढ़ावा मिले और हम बेहतर तरीक़े से अपने क़रीब या दूर के पास-पड़ोस के लोगों की क़द्र कर सकें।फिर हमारे विचार वास्तव में उतने बिखरे नहीं हैं जैसा कि वे ऊपर से दिखाई देते हैं। वास्तव में वे कुछ केन्द्रों के गिर्द जमा होकर स्टाफ़िक़ जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें दुनिया के महान धर्मों और जीवन्त आस्थाओं के रूप में देखते हैं। जो धरती में लाखों ज़िन्दगियों का मार्गदर्शन करते और उन्हें प्रेरित करते हैं। अतः अगर हम इस संसार के आदर्श नागरिक बनना चाहते हैं तो यह हमारी जि़म्मेदारी भी है कि उन महान धर्मों और उन दार्शनिक सिद्धान्तों को जानने की अपने बस भर कोशिश करें, जिनका मानव पर शासन रहा है।

stolen heart 12-08-2012 01:49 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
पैग़म्बर : ऐतिहासिक व्यक्तित्व
इन आरम्भिक टिप्पणियों के बावजूद धर्म का क्षेत्र ऐसा है, जहाँ प्रायः बुद्धि और संवेदन के बीच संघर्ष पाया जाता है। यहाँ फिसलने की इतनी सम्भावना रहती है कि आदमी को उन कम समझ लोगों का बराबर ध्यान रखना पड़ता है, जो वहाँ भी घुसने से नहीं चूकते, जहाँ प्रवेश करते हुए फ़रिश्ते भी डरते है। इस पहलू से भी यह अत्यन्त जटिल समस्या है। मेरे लेख का विषय एक विशेष धर्म के सिद्धान्तों से है। वह धर्म ऐतिहासिक है और उसके पैग़म्बर का व्यक्तित्व भी ऐतिहासिक है। यहाँ तक कि सर विलियम म्यूर जैसा इस्लाम विरोधी आलोचक भी कु़रआन के बारे में कहता है, ‘‘शायद संसार में (कु़रआन के अतिक्ति) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो।’’1 मैं इसमें इतना और बढ़ा सकता हूँ कि पैग़म्बर मुहम्मद भी एक ऐसे अकेले ऐतिहासिक महापुरुष हैं, जिनके जीवन की एक-एक घटना को बड़ी सावधनी के साथ बिल्कुल शुद्ध रूप में बारीक से बारीक विवरण के साथ आनेवाली नसलों के लिए सुरक्षित कर लिया गया है। उनका जीवन और उनके कारनामे रहस्य के परदों में छुपे हुए नहीं हैं। उनके बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी को सिर खपाने और भटकने की ज़रूरत नहीं। सत्य रूपी मोती प्राप्त करने के लिए ढेर सारी रास से भूसा उड़ाकर चन्द दाने प्राप्त करने जैसे कठिन परिश्रम की ज़रूरत है।

stolen heart 12-08-2012 01:50 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
पूर्वकालीन भ्रामक चित्रण
मेरा काम इस लिए और आसान हो गया है कि अब वह समय तेज़ी से गुज़र रहा है, जब कुछ राजनैतिक और इसी प्रकार के दूसरे कारणों से कुछ आलोचक इस्लाम का ग़लत और बहुत ही भ्रामक चित्रण किया करते थे।1 प्रोफ़सर बीबान ‘केम्ब्रिज मेडिवल हिस्ट्री (Cambrigd madieval history) में लिखता है-‘‘ इस्लाम और मुहम्मद के संबंध में 19वीं सदी के आरम्भ से पूर्व यूरोप में जो पुस्तकें प्रकाशित हुईं उनकी हैसियत केवल साहित्यिक कौतूहलों की रह गई है’’मेरे लिए पैग़म्बर मुहम्मद के जीवन-चित्र के लिखने की समस्या बहुत ही आसान हो गई है, क्योंकि अब हम इस प्रकार के भ्रामक ऐसिहासिक तथ्यों का सहारा लेने के लिए मजबूर नहीं हैं और इस्लाम के संबंध में भ्रमक निरूपणों के स्पष्ट करने में हमारा समय बर्बाद नहीं होता।मिसाल के तौर पर इस्लामी सिद्धान्त और तलवार की बात किसी उल्लेखनीय क्षेत्र में ज़ोरदार अन्दाज़ में सुनने को नहीं मिलती। इस्लाम का यह सिद्धान्त कि ‘धर्म के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नही’, आज सब पर भली-भाँति विदित है। विश्वविख्यात इतिहासकार गिबन ने कहा है, ‘मुसलमानों के साथ यह ग़लत धारणा जोड़ दी गई है कि उनका यह कर्तव्य है कि वे हर धर्म का तलवार के ज़ोर से उन्मूलन कर दें।’ इस इतिहासकार ने कहा कि यह जाहिलाना इलज़ाम कु़रआन से भी पूरे तौर पर खंडित हो जाता है और मुस्लिम विजेताओं के इतिहास तथा ईसाइयों की पूजा-पाठ के प्रति उनकी ओर से क़ानूनी और सार्वजनिक उदारता का जो प्रदर्शन हुआ है उससे भी यह इलज़ाम तथ्यहीन सिद्ध होता है। पैग़म्बर मुहम्मद के जीवन की सफलता का श्रेय तलवार के बजाय उनके असाधारण नैतिक बल को जाता है।

stolen heart 12-08-2012 01:50 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) : महानतम क्षमादान
आत्मसंयम एवं अनुशासन
‘‘जो अपने क्रोध पर क़ाबू रखते है।’’ (क़ुरआन, 3:134)
एक क़बीले के मेहमान का ऊँट दूसरे क़बीले की चरागाह में ग़लती से चले जाने की छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष तक ऐसे भयानक रूप से लड़ते रहे थे कि दोनों पक्षों के कोई सत्तर हज़ार आदमी मारे गए, और दोनों क़बीलों के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था, उस उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दिया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे।

stolen heart 12-08-2012 01:51 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
प्रतिरक्षात्मक युद्ध
विरोधियों से समझोते और मेल-मिलाप के लिए आपने बार-बार प्रयास किए, लेकिन जब सभी प्रयास बिल्कुल विफल हो गए और हालात ऐसे पैदा हो गए कि आपको केवल अपने बचाव के लिए लड़ाई के मैदान में आना पड़ा तो आपने तणनीति को बिल्कुल ही एक नया रूप दिया। आपके जीवन-काल में जितनी भी लड़ाइयाँ हुईं-यहाँ तक कि पूरा अरब आपके अधिकार-क्षेत्र में आ गया- उन लड़ाइयों में काम आनेवाली इंसानी जानों की संख्या चन्द सौ से अधिक नहीं है।आपने बर्बर अरबों को सर्वशक्तिमान अल्लाह की उपासना यानी नमाज़ की शिक्षा दी, अकेले-अकेले अदा करने की नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से अदा करने की,यहाँ तक कि युद्ध-विभीषिका के दौरान भी। नमाज़ का निश्चित समय आने पर- और यह दिन में पाँच बार आता है- सामूहिक नमाज़ (नमाज़ जमाअत के साथ) का परित्याग करना तो दूर उसे स्थगित भी नहीं किया जा सकता। एक गिरोह अपने ख़ुदा के आगे सिर झुकाने में,जबकि दूसरा शत्रू से जूझने में व्यस्त रहता। तब पहला गिरोह नमाज़ अदा कर चुकता तो वह दूसरे का स्थन ले लेता और दूसरा गिरोह ख़ुदा के सामने झुक जाता।

stolen heart 12-08-2012 01:52 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
युद्ध क्षेत्र में भी मानव-मूल्यों का सम्मान
बर्बता के युग में मानवता का विस्तार रणभूमि तक किया गया। कड़े आदेश दिए गए कि न तो लाशों के अंग-भंग किए जाएँ और न किसी को धोखा दिया जाए और न विश्वासघात किया जाए और न ग़बन किया जाए और न बच्चों, औरतों या बूढ़ों को क़त्ल किया जाए, और न खजूरों और दूसरे फलदार पेड़ों को काटा या जलाया जाए और न संसार-त्यागी सन्तों और उन लोगों को छेड़ा जाए जो इबादत में लगे हों। अपने कट्टर से कट्टर दुश्मनों के साथ ख़ुद पैग़म्बर साहब का व्यवहार आपके अनुयायियों के लिये एक उत्तम आदर्श था। मक्का पर अपनी विजय के समय आप अपनी अधिकार-शक्ति की पराकाष्ठा पर आसीन थे। वह नगर जिसने आपको और आपके साथियों को सताया और तकलीफ़ें दीं, जिसने आपको और आपके साथियों को देश निकाला दिया और जिसने आपको बुरी तरह सताया और बायकाट किया, हालाँकि आप दो सौ मील से अधिक दूरी पर पनाह लिए हुए थे, वह नगर आज आपके क़दमों में पड़ा है। युद्ध के नियमों के अनुसार आप और आपके साथियों के साथ क्रूरता का जो व्यवहार किया उसका बदला लेने का आपको पूरा हक़ हासिल था। लेकिन आपने इस नगरवालों के साथ कैसा व्यवहार किया? हज़रत मुहम्मद का हृदय प्रेम और करूणा से छलक पड़ा। आप ने एलान किया---‘‘ आज तुम पर कोई इलज़ाम नहीं और तुम सब आज़ाद हो।’’

stolen heart 12-08-2012 01:53 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
कट्टर शत्रुओं को भी क्षमादान
आत्म-रक्षा में युद्ध की अनुमति देने के मुख्य लक्ष्यों में से एक यह भी था कि मानव को एकता के सुत्र में पिरोया जाए। अतः अब यह लक्ष्य पूरा हो गया तो बदतरीन दुश्मनों को भी माफ़ कर दिया गया। यहाँ तक कि उन लोगों को भी माफ़ कर दिया गया, जिन्होंने आपके चहेते चचा को क़त्ल करके उनके शव को विकृत किया और पेट चीरकर कलेजा निकालकर चबाया।

stolen heart 12-08-2012 01:53 PM

Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
 
सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देनेवाले ईशदूत
सार्वभौमिक भईचारे का नियम और मानव-समानता का सिद्धान्त, जिसका एलान आपने किया, वह उस महान योगदान का परिचायक है जो हज़रत मुहम्मद ने मानवता के सामाजिक उत्थान के लिए दिया। यों तो सभी बड़े धर्मों ने एक ही सिद्धान्त का प्रचार किया है, लेकिन इस्लाम के पैग़म्बर ने सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देकर पेश किया। इस योगदान का मूल्य शायद उस समय पूरी तरह स्वीकार किया जा सकेगा, जब अंतर्राष्ट्रीय चेतना जाग जाएगी, जातिगत पक्षपात और पूर्वाग्रह पूरी तरह मिट जाएँगे और मानव भाईचारे की एक मज़बूत धारणा वास्तविकता बनकर सामने आएगी।


All times are GMT +5. The time now is 01:06 AM.

Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.