भारतीय मुद्रा की 1 झलक
हम मे से प्राय; प्रत्येक व्यक्ति को रुपया छूने और खर्च करने का सौभाग्य प्रतिदिन मिलता है, पर हममे से बहुत कम ही लोग रुपए को गौर से देखने की कोशिश करते हैं। उस पर छपे संख्या के अलावे वह हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता है । इसी क्रम मे जब हमने अपनी अज्ञानता निवारण के लिए मुद्रा कोष के अथाह गंगा मे डुबकी लगानी चाही, तो ढेर सारी मनोरंजक बातें हमारे सामने उजागर हुई थी।
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पैसा या रुपया वास्तव मे बहुत बड़ी चीज है। तभी तो राजा भर्तृहरि ने कहा था कि पैसा अगर ईश्वर नहीं तो उसका छोटा भाई अवश्य है। यही व्यक्ति का समाज में, हैसियत भी निर्धारित करता है और उसके सपनों को पंख भी देता है। धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करके लोग अपार संपत्ति के मालिक होना चाहते हैं, निर्धन की स्थिति बहुत ही दयनीय मानी जाती है, इसलिए पैसे या रुपए को लेकर आदि काल से काफी मुहावरे और लोकोक्तियाँ का जनम हुआ। पाई पाई के लिए तरसना, कौड़ी कौड़ी का मुंहताज, कौड़ी के मोल , कानी कौड़ी, दो टके का आदमी, सवा रुपए का प्रसाद, वगैरह वगैरह।
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मुद्रा का चलन भारत मे छठी सदी पूर्व से ही आरंभ हो चला था। पुरातत्व विभाग के उत्खनन से कई सदी पुरानी सिक्के हमे मिले हैं, चन्द्रगुप्त मौर्य, सातवाहन, समुद्रगुप्त, आदि आदि के शासन काल के। अपने अस्तित्व के क्रम मे प्रागैतिहासिक काल से ही, अथवा सृष्टि के विकास के साथ साथ अनेक उतार चढ़ाव देखने के बाद, मुग़ल काल मे एक सही और सार्थक मुद्रा व्यवस्था प्रचलन मे आई। पण ,कौड़ी आदि विभिन्न नामों से अलंकृत होता हुआ ,संस्कृत शब्द से निकले रुपैया पर आकर यह स्थायी नाम ग्रहण कर लिया। ग्रामीण इलाकों मे आज भी लोग इसे रूपा ही कहते हैं।
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शेरशाह सूरी के शासन काल मे सर्वप्रथम रुपए का चलन प्रारम्भ हुआ था। अंगरेजी हुकूमत के दौरान ब्रिटिश मुद्रा भी यहाँ चलती थी। प्रारभ मे रुपया चाँदी के ही होते थे। और एक रुपया का वजन 11.34 ग्राम होता था। कालांतर मे चाँदी की कमी होने के कारण अन्य धातुओं ने इसका वैकल्पिक स्थान ग्रहण किया। 1861 मे गुलाम भारत में 10 रुपए का कागजी नोट प्रयोग मे आया था 1864 में 5 का नोट 1899 में 100 के नोट आए । पहले यह काफी भारी होते थे ,इसलिए एक जगह से दूसरे जगह ले जाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, चोर डाकुओं, लुटेरों का भी काफी खतरा था। कागज का रूप धारण कर यह काफी हल्का और सुगम हो गया।
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स्वाधीनता के बाद नोट या सिक्का पर से ब्रिटिश राजा की तस्वीर हटा ली गई थी। भारत से पृथक होने के बाद कुछ महीनों तक पाकिस्तान ने भारतीय मुद्रा का ही अपनी मोहर लगा कर प्रयोग मे लाया था। भारतीय मुद्रा एडेन, ओमान, दुबई, कुवैत, बहरीन, क़तर, केन्या, टंगनिका, युगांडा, सेचेल्स और माँरीशस मे भी आधिकारिक रूप से मान्य थे। बाद मे मुद्रा का संतुलन बनाए रखने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के माध्यम से 1959 मे गल्फ रूपी या पर्सिअन गल्फ रूपी प्रारम्भ किया गया था। पहले एक आना, दो आना, सोलह आना मे रुपए की गिनती होती थी, एक पाई, दो पाई, जैसी चीजें अस्तित्व मे थी। एक पाई गोल, मिंट की गोली की तरह बीच से खाली होती थी, जिसे महिलाएं अपने छोटे बच्चों को बुरी नजर या जादू टोने से बचाव के लिए कमर मे भी बांध दिया करती थी।
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प्रारम्भ में, 1,2,5,10,25,50, नए पैसे के सिक्के ढ़ाले जाते थे। एक नया पैसा तांबे का था जबकि ,2,5,10 नए पैसे का सिक्का कौपर निकेल का होता था। सन 1964 से ‘नया’ शब्द सभी सिक्कों से हटा दिया गया था। वर्तमान मे भारतीय मुद्रा की सबसे छोटी इकाई 50 पैसे का सिक्का है। सिक्कों पर गेहूं की दो बालियाँ,मुट्ठी ,अंगूठा ऊपर ,गांधी ,नेहरू की तस्वीर ,फूल ,हिलती हुई रेखाएँ चित्रित रही है। महात्मा गांधी के तस्वीर वाले नोट सन 1996 से लागू किया गया है, वर्तमान मे 1,2 ,5 10,20 ,50,100,500,और 1000 के नोट प्रचलन में हैं। सन 2010 मे डी उदय कुमार ने भारतीय रुपया के लिए देवनागरी में नवीन चिन्ह बनाया था। जिसे 2012 मे भारत सरकार ने लागू कर दिया। इस प्रकार डौलर, पाउंड की तरह भारत की मुद्रा को भी प्रतीक चिन्ह से ही पहचान मिल गई है। भारतीय नोट रंगीन होते हैं जिनमें हजार रुपए का रंग हल्का गुलाबी रंगत लिए है, और पाँच रुपए हल्का हरा। पचास रुपए के नोट पर भारतीय संसद का और 500 के नोट पर गांधी जी के दांडी मार्च का तस्वीर है।
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सन 2010 और 2011 मे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के प्लेटिनम जुबली पर 75 रुपए का, रवीन्द्रनाथ के 150 जयंती पर 150 रुपए के और वृहदेश्वर मंदिर के एक हजार वर्ष पर 1000 के सिक्के यादगार के रूप मे ढाले गए थे। इसके अलावे भी कई अन्य अवसरों पर कुछ विशेष सिक्के निकाले जाते रहे हैं। भारतीय मुद्रा छापने का अधिकार केवल भारत सरकार को है, इसके लिए भारत में पाँच मुद्रा छापेखाने हैं ,मुंबई ,अलीपुर {कोलकाता} सैफाबाद{हैदराबाद} चेरलापली{हैदराबाद} और नोएडा{उत्तर प्रदेश}।
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भारतीय मुद्रा को सुरक्षा की दृष्टि से बेहद गोपनीय बनाया जाता है, ताकि इसका नकल नहीं किया जा सके। फिर भी कभी कभी नकली नोट बाज़ार मे आ जाते हैं, जिन्हें रोकने के लिए समय समय पर इसमें फेर बदल भी किया जाता है। इसमें प्रयुक्त होने वाले सियाही, वाटर मार्क, सुरक्षात्मक धागा, गुप्त चिन्ह, फ्लुरोसेंट आदि के माध्यम से इसे मजबूत बनाया जाता है। सन 2005 से इस पर ईसवी भी अंकित किया जाने लगा है।
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इस काम मे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारत सरकार की मदद करती है। इसकी स्थापना 1 अप्रेल 1935 को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 के अनुसार हुई थी। प्रारम्भ मे इसका कार्यालय कोलकाता मे था, जो 1937 मे मुंबई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था, किन्तु 1947मे यह भारत सरकार का एक उपक्रम बन गया। पूरे भारत मे रिजर्व बैंक के कुल 22 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जिनमें अधिकांश राज्यों की राजधानी मे हैं। इसके सर्व प्रथम गवर्नर सर ओसबोर्न स्मिथ थे। स्वतंत्र भारत मे प्रथम गवर्नर सर डीडी देशमुख को होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके वर्तमान गवर्नर श्री रघुराम राजन हैं । रिजर्व बैंक के वेव साईट का नाम है “,पैसा बोलता है” । अब चवन्नी बंद हो जाने से सवा रुपए वाली बात समाप्त हो गई है।
संभार -नवभारत टाइम्स |
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