"आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
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बचपन के दिनों मे मैने लुगदी साहित्य बहूत पढा है। चंपक, चंदामामा, लोटपोट और चाचा चौधरी का दिवाना तो मै था ही...लेकिन फिर नोवेल पढने को बहुत जी चाहने लगा। पापा ने कहा की उपर छज्जे पर शायद कोई नोवेल पड़ी हो। मै उसी दिन नोवेल ढुंढने चडा और एक नोवेल मिली। उसका कवर पेज नहीं था, लेखक का नाम भी गुम था, टाईटल भी पता नहीं चला। लेकिन एक बार बीच वाले पन्नों पर कहीं नीचे नाम छपा था शायद वही उस नोवल का नाम था...कहानी के साथ भी मिल रहा था। वह नाम फिर मै कभी नहीं भुला... "आरोप" वह दिन था और आज का दिन है। मुझे आज भी वह नोवेल बह्त ही ज्यादा पसंद है। मैने संभाल कर रखी है। उसे पढने के बाद मुझे लगा की पहली/एक नोवेल पढने में ही ईतना मझा आया है तो आगे क्या होगा? ईस उम्मीद में मैने कई अच्छी-बुरी नोवेल भाडे से मंगवा कर पढी। लेकिन सालों बितने के बाद एक ही नोवेल एसी लगी जो फिर से दिल को छु गई...उसके लिए दुसरा सुत्र बनाउंगा! |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
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कल रात मैं जागते हुए फिल्में बनाने के सपने देख रहा था। मैने जैसे ही अनुराग कश्यप के ओफिस पहूंचा उन्हों ने मुझे सिर्फ पांच मिनिट दिए। तिग्मांशु धुलिया भी वहां बैठे थे। मैने बिना कुछ कहे अपने मैले थैले से झेरोक्ष कोपी रख दी। "सर, बचपन से यह नोवेल पढ रहा हुं...ईसी कहानी पर फिल्म बनाना चाहता हुं।" अनुराग को कई लोग मिलने आतें होंगे। हीरो-हीरोईन, एकस्ट्रा, डान्सर, आसिस्टन्ट्स डिरेक्टर वगैरह बनने की ख्वाहिश में। कई सो लोग। वह मुझमें दिलचस्पी क्युं लेते फिर? "मेर पास पांच मिनिट है तुम्हारे लिए।" अनुराग ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा था। "मै सिर्फ दो मिनट लुंगा सर। " मैने उनकी दिलचस्पी जीतेने के लिए यह डाईलोग बोल गया। "मुझे जो कहना है मै पहले से ईस नोवल के कवर पर शोर्ट में लिख कर लाया हुं। अगर आप ही ईस पर से एक फिल्म बना लेंगे तो मज़ा आ जाएआ। " ईस मजा शब्द पर अनुराग शायद भडका। "मैं मज़े करने के लिए फिल्में नहीं बनाता हुं दीप...या जो भी नाम है। " "मै अपने मज़े की बात नहीं कर रहा था सर" मै धीमे से फुसफुसाया। "क्या?" अनुराग फिर भडका। "मै एक क्रिएटर के मज़े की बात कर रहा था। क्रिएटर जैसे सैसे अपनी रचना...." "ठीक है ठीक है...तुम्हारे दो मिनिट खत्म हुए?" तिग्मांशु। उसे बाहर बैठे और भी लोग निपटाने थे। "एक मिनट ही बाकी है।" मैने नजर अपनी कलाई घडी पर जमा दी। "मेरे पास यह कहानी है। जैसे आप कोई मास्टर पीस बनाना चाहते हो, मै भी एक मास्टर पीस बनाना चाहता हुं। मुझे कोई अनुभव तो नहीं लेकिन अगर एक अच्छा कैमेरामेन और एक लाईटमैन दे दें....तो.....तो मैं ईस कुर्सी से भी एक्टींग करवा सकता हुं। " "आगे बोलो। " अनुराग बोले, "खत्म करो अब।" " देखिए यह कहानी मैं यहां छोड कर जाउंगा। ईस के कवर पर मैने लिखा है की अगर आपने यह नोवेल के पंद्रह-बीस पन्ने भी पढ लिए तो आप ईसे पुरी करने पर मजबुर हो जाएंगे। आप ढाई-तीन घंटे पढ कर पुरा के बाद आप सोचेंगे की ईस पर से फिल्म तो बननी ही चाहिए।" मेरी नजर अभी भी घडी पर थी। "मेरे सिर्फ तीस सेकंड्स बाकी है...आपके वह तीन घंटे मै बचा सकता हुं, सिर्फ दस मिनिट ओर ले कर। मै शोर्ट में आपको कहानी सुना देता हुं" मैं घडी देख बोले जा रहा था।"" "दस, नौ, आठ..सात...जल्दी किजिए सर!!!" मै जाने के लिए थैला समेटने लगा। "अच्छा सुना दो भई! कहानी सुना दो...दस मिनिट ओर सही। " अनुराग ने कह तो दिया लेकिन तिग्मांशु खफा सा नज़र आने लगा। "ग्रेट!" मै जेब से एक चॉक निकाल कर टेबल बांई और एक सिक्के सा गोल बनाया.....यह है सत्यप्रकाश... वे दोनो मेरी कहानी सुनने लगे। मेरे पास सिर्फ दस मिनिट थे। (तो यह था मेरा दिवास्वप्न...आगे सच मैं मै आरोप की कहानी संक्षेप मैं बता रहा हुं!) |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
सत्यप्रकाश बहुत खुश है क्युं की उनका बेटा नवीन पुरे राज्य में टॉप आया है। वह उसे उसी साबुन की कंपनी में लगाना चाहतें है जहां वे खुद सालों से काम करतें है। बहुत ही बडी कंपनी है। सत्यप्रकाश के पास गाडी है, अच्छा घर है। नवीन के अलावा उसके एक बहन मोहीनी भी है, जिसकी शादी आजकल में ही तय हुई है। उनकी पत्नी यशोदा भी बहुत खुश लग रहीं थी।
वे नवीन को ले कर के अपनी कंपनी में गए। जिसे अब बडे मालिक का बेटा राजपाल चला रहा था। वह बडे सलिके से उन्हें मना कर देता है, यह कह कर की सिफारीश से नौकरी देना उसके उसुलों के खिलाफ है। वें चाहे तो डाक अप्लाय करें। योग्य उमीदवार को जरुर जोब मिलेगी। ईस पर निराश नवीन अपने पिता के साथ गाडी में घर लोट रहा था। रास्ते में कुछ काम होने के कारण वह गाडी से उतर गया। सत्यप्रकाश आगे निकल गए। नवीन युं ही जब चलता जा रहा था उसे एक खुबसुरत लडकी ने रोक लिया। किसी वहां दुर खडी एक गरीब औरत की मदद करने को कहा जिसे पैसों की जरुरत थी। कुछ ओर सहेलींया भी सब से मदद मांग रही थी। नवीन पांच रुपये दे कर चल पडता है । तभी कुछ लोगों ने उसे रास्ते में घेर लिया, थोडा मारा पीटा और गाडी में डाल कर ले जाने लगे। यह देख एक पुलिस जीप पीछे पडे। ईस पर नवीन खुद बुला के बडी मुश्केल से लिफ्ट मिली है! यह सब मेरे मित्र ही है और मेरे फर्स्ट आने की पार्टी मांग रहे थे, मै ईन दिनों गायब रहा ईस लिए मुझेमार रहे थे! वे सभी सिनेमाघर पहुंचे। सभी मित्रों ने पी रखी थी सो नवीन टिकट लेने गया। वहां क्यू में वही लडकी जो पैसे जमा कर रही थी...खडी थी। वे सभी लडकीयां फिल्म देखने आई थी। उनकी बातों पर से नवीन जान जाता है की वे सब नाटक कर रहीं थी। वह जब उन पर गुस्सा होता है तो वह लडकी उल्टा नवीन को ही फंसा देती है। पब्लिक नवीन को मारने लगती है, नवीन भाग निकलता है। दुसरी सुबह जब वह उठता है बाथरुम में नहा रहा होता है उसे वही आवाज सुनाई देती है। ईस बार वह अनाथआश्रम के नाम पर चंदा मांग रही थी। जब तक नवीन निलके वह जा चूकी थी। नवीन का गुस्सा ओर भी बढ जाता है। http://oi66.tinypic.com/qy8wgp.jpg |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
राजपाल विदेश में पढ लिख कर आया है। उसको उसके पिता समजाते है की कैसे सत्यप्रकाश पहेले से कंपनी से जुडे हुए है। कैसे सिर्फ दो लोगो ने ही साबुन की फैक्टरी लगाई और बिझनस बढाया।
------ नवीन को वह लडकी एक दुकान में मिल गई। जहां वह साडी खरीद रही थी लेकिन थोडे पैसे कम पड रहे थे। वह लडकी अपनी कडकी दुकानदार से छुपाना चाहती थी । नवीन ने एसे बात की के जैसे उसका पति हो और अपने पचास-सो रुपये जोड कर वस साडी खरीद ली। और खुद ही वह पैकेट उठा कर चलने लगा। वह लडकी मजबुरन पीछे चल पडी। रोड पर आने तक वह शांत रही। फिर उसने नवीन को चिल्लाने की धमकी दी। नवीन ने कहा की वह द्कानवाला जानता है की हम पतिपत्नी है। तुम भी वहं पत्नी जैसी बातें कर रही थी। चिल्लाओ तुम, कोई फर्क नहीं पडेगा। ईस तरफ फंसे जाने पर लडकी ने हार मान ली। सोरी कह दिया। नवीन ने उसे चाय पीने की शर्त पर साडी लौटाने का वादा किया। दोनो रेस्टोरंट में बैठे थे। लडकीने अपना नाम बताया...कमलेश। (पहली और आखरी बार यह नाम नारी जाति के लिए पढा!) वह चाप भी नहीं पी रही थी और उदास भी थी। नवीन के पुछने पर बताया की कैसे उसके घर में प्रोब्लेम्स चल रहें है। सौतेली मां पैसे नहीं दे रही। फिल्म और खाने जैसे छोटी ईच्छाएं पुरी करने के लिए अगर वह यह सब कर ले तो कोन सी मुसीबत आ सकती है? नवीन उसके आंसु देख कर पिघल जाता है। साडी लौटा देता है। फिर से मिलने को पुछने पर कमलेश मान जाती है। --------- राजपाल के पिता अपनी तबियत को ले कर कंपनी में नहीं आ रहें है। क्युं की उसके सत्यप्रकाश के रहेते वह कंपनी में मनमानी नहीं कर सकता, वह किसी तरह सत्यप्रकाश को निकलवाना चाहता है। ईस के लिए वह अपने मेनेजर कौशिक की मदद् लेता है। कुछ पांच हजार (नोवेल १९८० से पुरानी है।) वह सत्यप्रकाश के लिए निकालता है। --------- मेनेजर कौशिक के घर राजपाल बैठा होता है। वह उसकी बेटी कमलेश से अत्यंत प्रभावित होता है। कौशिक ने शादी की लालच दे कर किसी तरह राजपाल का एक बंगलो अपनी बेटी के नाम करवा लेता है। फिर सभी उस बंगलो रहने के लिए जातें है। रास्ते में कुछ ज्वेलरी भी खरीदी जाती है। कमलेश भी बडी होशियारी से राजपाल को उल्लु बना रही होती है। ------- उसी दिन बीच पर नवीन कमलेश की राह देख रहा होता है और कमलेश राजपाल के साथ वहां से निकलती है। नवीन को देख वह ठीठकती है लेकिन संभल कर निकल जाती है। नवीन को बुरा लगता है लेकिन क्या करे?! ------- |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
कुछ अरसे बाद मोहीनी की शादी का अवसर आता है। शादी के दौरान पुलीस आ धमकती है । तलाशी में घर से वह पांच हजार पाए जातें है। जिसे शायद कौशिक ने रखें होंगे। ईस पर सत्यप्रकाश के समधी भडक उठतें है। वे शादी तोडना चाहतें है। ईस सीन बहुत अच्छी तरह लिखा गया है।
मोहीनी के फेरे तो पुरी हो ही चुके थे, सो उसका पति मोहीनी का पक्ष लेता है। सत्यप्रकाश के समधी के पास अब कोई ओर मोका नहीं है। वे मजबुरन दुल्हन ले तो जातें है लेकिन यह कह कर के वह अब वापस अपने पिता के घर कभी नहीं लौटेगी! फिर सत्यप्रकाश को पुलिस ले जाती है, उसकी पत्नी यशोदा बेहोश हो कर गीर जाती है। नवीन उनको संभालता है। यकायक पुरा हंसता खेलता परिवार जैसे की निराधार हो जाता है। -------------- मां के सरकारी अस्पताल में भर्ती है। पिता पर कोर्ट में केस चल रहा है। नवीन अकेला पड़ जाता है। उसके पक्के यार दोस्त कोई भी साथ नहीं होता। सत्यप्रकाश को छह महिने की जेल हो जाती है। नवीन तुट जाता है। सत्यप्रकाश को बचाने के लिए, मां के अस्पताल के खर्चे निकालने के लिए वह अपना घर वगैरह बेच चुका होता है। दो दिन जैसे तैसे बित जातें है । तीसरे दीन सत्यप्रकाश से जेल में मिलने पर वह बताते है की नौकरी की आस छोड कर बिझनस करना चाहिए। वह अपने साबुन का पुराना फौर्मुला नवीन को देतें है। नवीन के पास अब कुछ भी नहीं था। छत तक नहीं थी। भुखाप्यासा वह दोस्तों से मदद मांगने जाता है। उसे सिर्फ उस बिझनस में बहुत छोटा दस-पंद्रह हजार का ईन्वेस्टमेन्ट चाहिए। लेकिन सभी उसे मना कर देतें है, या बहाना बना देतें है। नल का पानी पी कर नवीन बीच पर बैठा होता है। निराशाओं में लिपटा हुआ। वहां अचानक कमलेश से उसका सामना है। वह उससे नजर बचा कर निकलना तो चाह्ता है लेकिन कमलेश उसे पहचान लेती है। नवीन को कमलेश से नफरत तो हो ही चूकी होती है। वह मुंह फेर के चलना चाहता है लेकिन चक्कर खा कर बेहोश हो जाता है। यह मानो कहानी का ईन्टरवल है। अब तक जो चला आ रहा है वह निराशा का भंवर जलद ही खत्म होगा! (मेरी कहानी कहने की स्पीड थोडी कम है। अनुराग और तिग्मांशु ईस दौरान दो बार दस दस मिनट का टाईम बढ चुके है। उन्हे कहानी भा गई है!) |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
कहानी बहुत रोचक है. आप स्पीड की चिंता बिलकुल न करें, दीप जी. मेरी reading speed भी इससे मिलती जुलती है. आप इत्मीनान से अपनी कहानी सुनायें. हमने अनुराग और तिग्मांशु की कुर्सी की सीट पर फेविकोल लगा दिया है. कोई दिक्कत नहीं है.
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Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
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जब नवीन को होश आता है, वह एक बड़े से बंगले में एक सोफे पर बंधा हुआ होता है। सामने की दिवार पर राजपाल की तसवीर देख कर नवीन को मालुम होता है की वह राजपाल का ही बंगला है। कमलेश यह जान कर की राजपाल नवीन का दुश्मन है, नवीन को धमकाती है की वह पुरी कहानी बताए वरना वह नवीन को पुलिस को सोंप देगी या राजपाल को बुला लेगी। नवीन मजबुर अपनी सारी कहानी बताता है। कमलेश भी उसे अपनी सच्चाई बताती है की कैसे वह और उसके घरवालों ने राजपाल को झांसे में डाल कर यह बंगला हडप कर लिया है। वह यह भी बताती है की अगर नवीन भी चालाक होता तो वह भी एसे ही किसी बंगले का मालिक होता। जिस हालात में अभी वह है वह हालात कभी न आते। उस ने कहा की जब उसकी मां अस्पताल से छूटेगी तो उसे वह कहां ले जाएगा? उसके पिता के बारे में क्या बताएगा? उसकी बहन को वापस न मिल पाएगी तो क्या होगा? उसका निजी भविष्य क्या होगा? ईन सब सवालों का नवीन के पास कोई जवाब न था। वह असमंजस मै गिर गया। यहां कमलेश उसके सामने एक प्रस्ताव रखती है.... |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
कमलेश नवीन को उसके मां-बाप की सौगंध दे कर (सौगंध? यह शायद उस दौर पर फिल्मी प्रभाव होगा!) मनाती है की वह अब भागेगा नहीं और उसकी बात मानेगा तो वह अपना खोया हुआ सबकुछ वापस पा सकेगा!
नवीन को आश्चर्य हुआ लेकिन उसके सामने ओर कोई चारा न था। कमलेश ने उसे अपने पिता के कपडे दिए, नहाने को शेव करने को कहा। फिर उसको कुछ चाय-नाश्ता बना कर खिलाया। फिर नवीन को उसने सौ रुपये दिए। उसने कहा की ईसी रुपयों से तुम अपना सब कुछ वापस पा सकोगे! बस उसे कमलेश का कहना मानना था। कमलेश ने अपने पुराने फ्लेट की चाबी नवीन को दे दी जो फर्निश्ड था और वहां उसके पिता के कई कपडे भी हुआ करते थे। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
चाल १
http://www.hotels-mumbaibombay.com/i...acecourse1.jpg दुसरे दिन नवीन उस रेस के मैदान में पहुंचा जहां उसके वैभवी मित्र रेस खेलने के लिए आते थे। वे नवीन को देख कर हक्का बक्का रह गए। किसी ने उसे परसों ही फटेहाल बीच पर देखा था...और आज यह रंगत? नवीन एसे दिखाने लगा की वह उन मित्रों को पहेचानता ही नही। उसने दरअसल हर एक घोडे पर दस दस रुपये* का दांव लगाया था। रेस खत्म होने पर वह पैसे कलेक्ट करने एसे गया मानो बहुत बडी रकम जीता हो। http://www.sahistory.org.za/sites/de...l_passbook.jpg ईस पर नवीन के दोस्त भौंचक्के रह गए। रात को नवीन फ्लेट पर आया, कमलेश ने उसे किसी बैंक में पांच रुपए* से एकाउण्ट खोलने को कहा था। नवीन ने पासबुक दिखाई तो उस पर कमलेश ने थोडी सी प्रेक्टिस कर के पांच के पचास हजार लिख दिए। ईस से कोई फ्रोड नहीं करना था बल्के नवीन के दोस्तों को चकमा देना था। नवीन का उस दीन सुट ले कर वह दुसरा सुट भी दे गई। (* कहानी पुरानी है!) |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
चाल २
http://r-ec.bstatic.com/images/hotel...02/5024077.jpg दुसरे दिन नवीन फाईव स्टार होटल में ब्रिफकेस लिए आराम से खाना खा रहा था। उसका सुदर्शन नाम का दोस्त वहां होता है। वह उसके असमंजस में आप आप....करके बात करने की शुरुआत करता है। नवीन उसे झाड देता है...यह आप आप क्या लगा रखी है? क्या मैं तेरा बाप लगता हुं? ईस पर सुदर्शन हैरान हो जाता है। दो तीन-दिन पहले की गरीबी और अब यह कायापलट कैसे हो सकती है? नवीन उसे बताता है वह जब बीच पर था, उसे कुछ स्मग्लर्स मिल गए जिसने उससे हीरों की हेरफेर करवाई। बदले में दस हजार रुपए दिए। एसे ही वह तीन चार दिन काम कर के पचीस हजार रकम कमा गया। कल घोडे की रेस में वह ओर पचीस हजार जीत गया। ईस प्रकार उसके पास कुल पचास हजार रकम आ गई। यह कह कर अपनी पासबुक दिखाई। पैसो के लालची सुदर्शन को यकीन हो गया की नवीन अब जल्द ही लखपति बननेवाला है। उसने हीरों मे ईन्वेस्ट करने की पैरवी की । नवीन ने पहले झुठमुठ नाटक किया फिर बाद में सुदर्शन से पचास हजार रुपए ले लिए! शाम को फिर कमलेश आई वह नवीन के पास पचास हजार देख कर बहुत खुश हुई। फिर वह नवीन का उस दीन सुट ले कर दुसरा सुट दे कर गई। http://oi63.tinypic.com/2wqtzx0.jpg |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
चाल ३
http://i.ytimg.com/vi/AMOCbvgjGUM/hqdefault.jpg नवीन के पास अब सच में पचास हजार थे जो उसको सुदर्शन से मिले थे। उन पैसों से वह एक पुरानी बस्ती में किसी नाले के पास भाडे से एक शेड लेता है। उस में सांचा, कढाव, पीप, तेल, कच्चा सामान, चुल्हा वगैरह तैयार करता है। उस के पास अपने बाबुजी की दी गई डायरी तो थी ही जिस में साबुन का फोर्मुला लिखा था। नवीन पहले तो खुद ही साबुन बनाता है, पैक करता है । फिर साईकिल पर रख कर एक शहर के दुकानदारों के पास ले जाता है। पहले दुकानदार ने साफ मना कर दिया। नवीन ने बडे ईत्मीनान से कहा की आप पैसे मत दें, अगर ग्राहक फिर से माल लेने आए तो ही पैसे दिजीएगा। एसे ही नवीन ने कई दुकानदारों को फ्री एक एक दर्जन साबुन थमाए। वे सभी आनाकानी कर रहे थे लेकिन अपनी मीठी वाणी और दलीलों से नवीन ने अपना पहले दिन का स्टोक खत्म कर ही दिया। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
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वैसे में बताना भुल गया की साबुन का नाम उसके पिता सत्यप्रकाश के नाम पर से 'प्रकाश डिटर्जन्ट सोप' रखा गया था। दुसरे दिन जैसे ही वह साईकिल स्टेन्ड पर रखता है, उसको देख दुकानवाला खुद ही कहता है की तीन दर्जन साबुन अभी दे दो। पीछले एक दर्जन के पैसे और कुछ एडवान्स भी वह नवीन को थमा देता है। (अनुराग कश्यप के मुंह पर एक्साईटमेन्ट बढता दिखाई दे रहा था! वह होंठ दबाए मुस्कुरा रहा था) दुसरी दुकान का दुकानकार उसे कहता है की तुम्हारा साबुन बहुत अच्छा है, आज ही कुछ ग्राहक यही साबुन मांगने आए थे। उसको पांच दर्जन साबुन दे कर जब आगे की दुकान में गया तो वहां भी यही हाल था! उस दुकानदार ने तो सारे साबुन मांग लिए! नवीन ने कहा की उसे आगे भी देने है, तो वह कहता है की उन्हें ओर ला के दे दो! जब नवीन खाली थैला लिए दुकान से नीकला तो तुरंत बाजुवाले दुकानदार ने कहा के मेरा माल कहां है? (ईस डाईलोग पर तिग्मांशु खुशी से खडे हो जाते है। अनुराग भी उसे ताली देते हुए हंसने लगता है। ) नवीन ने थोडी देर में आने का वादा कर के पसीना पोंछने लगा!!! (अपने ड्रोअर से नोट का एक बंडल मेरे सामन रखते हुए अनुराग कहता है...यह लो टोकन। यह कहानी हमारे प्रोडक्शन की हुई। तुम चाहो तो एक टेस्ट देने के बाद खुद यह फिल्म डाईरेक्ट कर सकते हो। मैं मानो सपना देख रहा था....वैसे हां...मैं सपना ही तो देख रहा था!) http://oi64.tinypic.com/4tsojo.jpg |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
(मेरा यह खयालीपुलाव पक चूका था। लेकिन नींद कोसो दुर जा चुकी थी। यह नोवेल मैने पीछले चार-पांच सालों से पढी नहीं है। लेकिन हर एक बात मुझे अब तक स्टेप-बाय-स्टेप याद आ रही थी! तो मैं अपनी याददाश्त चेक करने के लिए आगे याद करता गया...)
राजपाल अपने साबुन के बिझनस में अधिक फायदा कमाने क्वोलिटी में फेरबदल करता है। सत्यप्रकाश के न होते वह अब बेझिझक यह सब कुछ करने लगता है। मेनेजर कौशिक के समजाने पर वह कहता है की कंपनी अपनी गुडवील पर चलती है। http://media-images.mio.to/images/ad...Kapoor/200.jpg (भरत कपुर को ही मैने राजपाल के रुप में हंमेशा देखा था!) राजपाल के घर में एक नौकरानी थी जिस पर राजपाल की नियत खराब थी। वैसे राजपाल को लडकीयों की कमी नहीं थी लेकिन कमलेश से शादी करने के चक्कर में वह फंस गया था। एकबार राजपाल ने अपनी नौकरानी को झुठ बोल कर नींद की गोलींया खिला दी थी और अवैध संबंध बांध लिए थे। फिर नौकरानी को शादी की लालच दे कर बार बार फायदा उठाता रहा। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
पांच दीन के बाद ही एक बडे दुकानदार ने नवीन के पास से पुरे गुजरात की एजेन्सी मांग ली। अब नवीन को कुछ लोग रखने पड़े। अपनी मार्केटींग स्ट्रेटेजी अपनाते हुए वह एक महीने में बहुत आगे निकल आया।
वह सामने से सुदर्शन को जा टकराया। सुदर्शन अपने पचास हजार के ईन्वेस्टमेन्त को ले कर परेशान था। नवीन उसको कहा की पुलीस की रेड पडी थी और सारा माल पकडा गया। बहुत से पैसे दे कर पुरा झमेला सुलझाना पडा, जिसकी वजह से वह ईन दिनों दिखाई नहीं दिया। सुदर्शन का मुंह बिगड गया। लेकन अपनी जेब से सत्तर हजार रुपये निकाल कर देते हुए नवीन ने कहा की यह तेरे पैसे और उसका सुत। ईस पर सुदर्शन बहुत खुश हो गया। आगे पुछने पर नवीन ने बताया की बाकी पैसों से उसने बिझनस स्टार्ट कर दिया है। जब सुदर्शन ने प्रकाश सोप सुना....तो वह चिल्लाया, "प्रकाश सोप? जिसके जींगल रात दीन रेडियो पर बजते रहते है, जिसके कई सेल्समेन पुरा दिन माल सप्लाय करते दिखाई देतें है, जिसने पुरे शहर में धुम मचा कर रखी है वह प्रकाश सोप तेरा है?" उसी मुलाकात में सुदर्शनने एक लाख रुपए और निकाल कर कर्णाटक, पंजाब की एजेन्सी ले ली। उसने उस सत्तर हजार को छुआ भी नहीं! |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
कमलेश नवीन को लगातार साथ देती रही। दो महीने पुरे होने से पहले ही नवीन ने एक अच्छा घर खरीद लिया। (नवीन जैसा किस्सा शायद एसा फिल्मों में ही होता होगा...लेकिन कई बार ईससे भी बडी सफलता रीयल लाईफ में देखने को मिलती है!) होस्पिटल में ठीक होने के बाद अपनी मां को नवीन नए घर में ले आया। अभी तक उसने मां से नहीं कहा था की बाबुजी को जेल हो गई है। बल्की यही बताया था की मुकदमा चल रहा है।
ईस दौरान कहानी मे नवीन के बहन मोहीनी की खराब हालत भी बयां की गई है। लेकिन उसका पति उसे पुरा साथ देता है। वह खुद ही मोहीनी को सबसे मिलवाना चाहता है, लेकिन एसे छुप कर अपने परिवार से मिलना भी किसको गंवारा होता? सत्यप्रकाश को अच्छे वर्तने के कारण एक महीना जल्दी ही रिहाई मिल गई। नवीन सबसे पहले तो उस गराज में जाता है जहां बाबुजी की गाडी गीरवी रखनी पडी थी। वहां उसे पुरी नई जैसी करवा कर ही नवीन जेल में बाबुजी को लेने आता है। https://dustedoff.files.wordpress.co.../11/pic141.png एक्टर सुब्बीराज को ही सत्यप्रकाश के रोल में मैने हंमेशा ईमेजीन किया है। सत्यप्रकाश का केरेक्टर एकदम संतोषी और गंभीर दिखाया गया है। कई बार लिखा गया है की...सत्यप्रकाश ने बडे संतोष से जवाब दिया, उनके मुख पर शांत मुस्कुराहट थी...वगैरह। http://3.imimg.com/data3/PK/MI/MY-11...ng-250x250.jpg वह बाहर निकल कर अपनी कार को पहचान लेतें है। रास्तें में नवीन ने अपने नए बिझनस के बारे में थोडा बहुत बताया। एक बडे से होर्डिंग को दिखा कर नवीन कहता है...देखिये बाबुजी यह आपका ही फोर्मुला है! सत्यप्रकाश गर्व से अपने बेटे को फिर उस होर्डिंग को देखने लगे। (यह सीन बहुत अच्छा लिखा गया है। जब जब में ईस सीन को पढता हुं, रोंगटे खुशी से खडे हो जातें है! यह सीन मुझे क्लाईमेक्स जैसी ही फील देता है। अब सब कुछ ठीक हो गया लगता है । शायद अनुराग भी यही सोचते। लेकिन फिर से मैं दिवास्पन में जा कर उन्हें बताता हुं....सर फिल्म अभी बाकी है! अभी कुछ ओर मोड आने वाले है!) http://oi65.tinypic.com/ct76a.jpg |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
ईस दौरान राजपाल की कंपनी डुब रही थी। रही सही एजेन्सीस भी अपना पल्लु झाड रही थी। राजपाल ने अब साबुन की क्वालिटी संभालने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा न हुआ। मेनेजर कौशिक के साथ भी राजपाल की बहस हो गई। कौशिक ने साफसाफ कह दिया की प्रकाश सोप की क्वालिटी सचमुच ही बढिया है, यहां तक की मेरे घर पर भी अब यही साबुन ईस्तमाल किया जाता है।
http://blog.smartbear.com/wp-content...terviewing.jpg नोंकझोंक के बाद कौशिक ईस्तफा दे देता है। उसे नौकरी की जरुरत तो होती ही है सो वह नवीन के यहां पहूंच जाता है। अबतक किसी को यह पता नहीं होता की प्रकाश सोप किसका है। जैसे ही कौशिक वहां नवीन को देखता है तो डर जाता है, क्युं की कौशिक ने ही शादीवाले दिन सत्यप्रकाश को फंसवाया था। लेकिन नवीन उसे नौकरी देता है और कहता है की बाबुजी की सजा भी कट चूकी है, सो कोई फायदा नहीं वापस गड़े मुर्दे उखाड ने से। लेकिन नवीन कौशिक को अपनी बहन मोहीनी के घर जरुर भेजता है जहां कौशिक सारे ससुरालवालों को सच्चाई बताता है, की सत्यप्रकाश निर्दोष है। ईस पर सभी को मोहीनी के प्रति किया गया दुरव्यहार पर ग्लानि होती है। पुरा परिवार फिर से मिलता झुलता है। नवीन भी सबको कमलेश से मिलवाता है। कमलेश को सब स्वीकार कर लेतें है। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
कमलेश के घर पता नहीं था की वह नवीन को जानती भी है। वह राजपाल को मिलने के बहाने से घर से निकलती है लेकिन कौशिक उसे रोक देता है। कहता है की अब राजपाल से मिलने की कोई जरुरते नहीं।
ईक्तेफाक से राजपाल उस वक्त दरवाजे पर ही खडा होता है । वह सारी बाते सुन आगबबूला हो जाता है, क्यों की यह बंगला भी उसी का था और कमलेश को पाने की लालच में कौशिक के नाम कर चुका था। कौशिक ओर राजपाल के बीच झपाझपी होती है और राजपाल धमकी दे कर से चला जाता है। तभी फोन बजता है। खबर आई थी की नवीन को पुलिस पकड कर ले गई है। कौशिक और कमलेश दोनों को धक्का लगता है। पता चलता है की किसी तरफ गलती से वह पासबुक जिसमें कमलेश ने ५ रुपये की जगह ५०००० कर दिए थे...बेंके के पास चली गई है। बेंकवालों ने नवीन पर केस कर दिया और नवीन को कस्टडी में जाना पडा। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
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अदालत में नवीन पर मुकद्दमा चल रहा था। नवीन के सब दोस्त, रिश्तेदार भी आए थे। सिर्फ कमलेश को कौशिक ले कर नहीं आया था। नवीन के वकील ने दलील की थी के कभी चेक से पैसे उठाने का, वगैरह जुर्म नहीं हुआ है। एसे सफल आदमी के कई दुश्मन भी होतें है, या एसे ही किसी ने यह काम कर दिया गया है। ईससे पहले की अदालत फैंसला सुनाए, नवीन कुछ कहने की ईजाजत मांगता है। जहां वह कुबुल करता है की यह फ्रोड काम उसी ने किया था। जब उसे पैसे की जरुरत थी और सर पर छत भी नहीं थी, तब उसे किसी ने मदद नहीं की थी। ईस लिए ईस पासबुक दिखा कर उनकों चकाचौंध करना जरुरी था। यह भी कहा की अच्छे मार्क्स से पास होने और डिग्री होने के बावजुद कई नौजवान एसे ही कारणों से जीवनभर झुझते रहतें है। कोर्ट में ब्रेक हुआ। घंटे भर बाद न्यायाधीश ने कहा की जिस तरह नवीन आगे बढा है वही काबिलेतारीफ है। उनके दोस्तों को शर्म आनी चाहिए की उन्हों ने मदद नहीं की। बैंक ने अपना केस वापस खींचने शिफारिश की थी और साथ में यह भी कहा था की बेंक आगे से एसे नौजवानों के लिए लोन का प्रावधान करेगी जो महेनत से आगे बढना चाहतें है। लेकिन जुर्म आखिर जुर्म होता है। नवीन को अपने फ्रोड की सजा तो मिलनी चाहीए...यह कह कर जज ने सन्नाटा कर दिया। अंत मे उन्हों ने नवीन को कोर्ट की कार्यवाही पुरी होने तक कस्टडी में रखने की सजा दी! सुदर्शन और उसके दोस्त नवीन के पास आ कर माफी मांगते है। सभी लोग बहुत खुश थे। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
कौशिक जैसे ही घर पहुंचता है, घर में कुछ तोडफोड देख कर घबरा जाता है। कमलेश वह रो रही थी और उसके कपडे कहीं कहीं से फटे हुए थे। वह बताती है की राजपाल कुछ देर पहले आया था और उसने उसकी ईज्जत लुट ली।
गुस्से से पागल कौशिक अपनी बंदूक ले कर निकलता है । कमलेश के रोकने पर भी वह रुकता नहीं है। राजपाल के घर में जा धमक कर उसने राजपाल को बंदूक दिखा कर ललकारा। राजपाल के पिता जो फैक्टरी के मालिक भी थे उनको बताया की कैसे राजपाल ने सबको धोका दिया, सत्यप्रकाश को जेल भिजवाया। फिर यह कह कर की उसकी बेटी की ईज्जत भी लुटी है....राजपाल पर फायर कर दिया। http://www.webdesignstuff.co.uk/pg90...1/12/blood.png लेकिन बीच में राजपाल की सगर्भा नौकरानी आ गई। नवीन को शायक कमलेश ने बताया होगा, सो दोनो साथ साथ यहां पहुंच गए। नवीन ने झपट कर बंदुक छीन ली और डोक्टर को फोन कर दिया। तब तक कौशिक अपने किए पर यह कह कर रोता रहा की पैसों की लालच में उसने किस तरफ अपनी बेटी को ईस जानवर के आगे पेश करता रहा। कमलेश तब यह राज़ उजागर करती है की राजपाल के साथ हाथापाई जरुर हुई थी लिकिन वह अपने ईरादों में कामियाब नहीं हो पाया था, और वह भाग निकला था। वह यही जताना चाहती थी के उसके माता-पिताने उसे जिस तरह हंमेशा पैसों के पीछे जाना सिखाया, राजपाल को ठगना सिखाया सब गलत था और परिणाम भयंकर हो सक्ते थे। वहां राजपाल भी शर्मिंदा है की नौकरानी ने उसे बचा लिया। वह सबके सामने नौकरानी से शादी करने को मान जाता है। डोक्टर आ के देखता है की गोली बांह में लगी थी और फिकर करने की कोई जरुरत नहीं। घरेलु सबंध के कारण वह पुलिसकेस भी नहीं करता। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
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वहां से कमलेश और नवीन साथ में एक कार में आगे निकलतें है। नवीन अब भी हैरान है की कमलेश कौशिक की बेटी है...ओर कमलेश ने भी यह बात छुपाई थी! दोनों एकदुसरे में खोए थे और सामने थी जीवन की लंबी राहें! ( अनुराग भी गहन सोच में डुबे हुए है। तिग्मांशु को कुछ काम था तो वह भी चल दिए। मै अपना फोन नंबर छोड कर वहां से निकल आया। मै सोच रहा था कि मुझे ईन फिल्मों की जरुरत नहीं। मै नोवेल. कविता, फोटोग्राफी या बादलों-बारीशों में भी फिल्म देख लुंगा। लेकिन अगर फिल्मों को मेरी जरुरत है....तो वह मुझे जरुर बुलाएगी।) सुत्र लिखने के एक दिन पुर्व ही में "आरोप-मोड" में चला गया था। अभी भी तीन दिनों से लिख ही रहा हुं। सो वहां से वापस लौटने में थोडा वक्त लगेगा। शायद ईस के बाद मेरे दुसरी और आखरी मनपसंद नवलकथा के बारे में बताउंगा। अस्तु। |
Re: "आरोप" मेरी पसंदीदा नवलकथा - १
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