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rajnish manga 01-01-2017 03:27 PM

आज का दिन (घटना और व्यक्तित्व)
 
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (1 जनवरी)
मौलाना हसरत मोहानी / Maulana Hasrat Mohani


rajnish manga 01-01-2017 03:31 PM

Re: आज का शायर
 
मौलाना हसरत मोहानी महान स्वतंत्रता सेनानी तथा हमारी संविधान सभा के सदस्य होने के साथ साथ एक प्रख्यात शायर भी थे. आज एक जनवरी उनका जन्मदिन है. इस अवसर पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनकी एक मशहूर ग़ज़ल के चुनिंदा अश'आर पेश करते है:

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है,
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है,


तुझसे मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा,
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है,


खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़्फ़ातन,
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छिपाना याद है,


जानकर सोता तुझे वो क़सा-ए-पाबोसी मेरा,
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है,


तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़राह-ए-लिहाज़,
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है,


ग़ैर की नज़रों से बचकर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़,
वो तेरा चोरीछिपे रातों को आना याद है,


आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़,
वो तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है,


दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये,
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है,


चोरी चोरी हम से तुम आकर मिले थे जिस जगह,
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है,


बेरुख़ी के साथ सुनाना दर्द-ए-दिल की दास्तां,
और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना याद है,


वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये,
वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है,


Deep_ 01-01-2017 05:13 PM

Re: आज का शायर
 


[बहुत खुब । मैने पहली बार पुरी गज़ल पढी । पता नहीं था की सिर्फ चुनिंदा शेर ही फिल्म की गज़ल में है । धन्यवाद रजनीश जी।... Deep]





rajnish manga 01-01-2017 06:43 PM

Re: आज का शायर
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 560107)


[बहुत खुब । मैने पहली बार पुरी गज़ल पढी । पता नहीं था की सिर्फ चुनिंदा शेर ही फिल्म की गज़ल में है । धन्यवाद रजनीश जी।... Deep]


बहुत बहुत धन्यवाद, दीप जी. इस ग़ज़ल में अभी चार पांच शे'र और हैं. कठिन शब्दों की वजह से उन्हें शामिल नहीं किया गया.

rajnish manga 01-01-2017 06:48 PM

Re: आज का शायर
 
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आज का शायर (1 जनवरी)
राहत इन्दोरी / Rahat Indori





rajnish manga 01-01-2017 06:56 PM

Re: आज का शायर
 
आज का शायर (1 जनवरी) राहत इन्दोरी / Rahat Indori

जो आज साहिबे मसनद है कल नहीं होंगे
किरायेदार है जाती मकाथोड़ी है

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
**
ग़ज़ल

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|

डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|

झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया|

यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया

अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया|

अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,
उमरों का देव सारी तवानाई ले गया|

(तवानाई = ऊर्जा / शक्ति)

(डॉ. राहत इंदौरी)


rajnish manga 01-01-2017 08:51 PM

Re: आज का शायर
 
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आज का शायर (1 जनवरी)
मख़मूर जालंधरी / Makhmoor Jalandhari

http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1483289432


जनाब मखमूर जालंधरी जिनका वास्तविक नाम गुरबक्श सिंह था मूलतः उर्दू के उल्लेखनीय शायरों में शुमार किये जाते हैं. उनकी ग़ज़ले और नज्में उर्दू साहित्य में विशेष स्थान रखती हैं. उन्हें आज भी बहुत आदर सहित याद किया जाता है.



rajnish manga 01-01-2017 09:24 PM

Re: आज का शायर
 

आज का शायर (1 जनवरी)
मख़मूर जालंधरी / Makhmoor Jalandhari

हिंदी में जासूसी नॉवेल उपन्यास पढ़ने वालों ने कर्नल रंजीत के लिखे उपन्यास अवश्य देखे और पढ़े होंगे लेकिन आपको शायद यह नहीं पता होगा कि मखमूर जालंधरी ही कर्नल रंजीत के नाम से लिखते थे. मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि मखमूर साहब ने लगभग 60 साल पहले जालंधर रेडियो के लिये करीब 250 रेडियो नाटक भी लिखे थे.



rajnish manga 01-01-2017 09:26 PM

Re: आज का शायर
 
आज का शायर (1 जनवरी)
मख़मूर जालंधरी / Makhmoor Jalandhari
ग़ज़ल
मख़मूरजालंधरी


पाबंद-ए-एहतियात-ए-वफ़ा भी न हो सके
हम क़ैद-ए-ज़ब्त-ए-ग़म से रिहा भी न हो सके

दार-ओ-मदार-ए-इश्क़ वफ़ा पर है हम-नशीं
वो क्या करे कि जिससे वफ़ा भी न हो सके

गो उम्र भर भी मिल न सके आपस में एक बार
हम एक दूसरे से जुदा भी न हो सके

जब जुज़्ब की सिफ़ात में कुल की सिफ़ात है
फिर वो बशर भी क्या जो खुदा भी न हो सके

ये फैज़-ए-इश्क़ था कि हुई हर खता मुआफ़
वो खुश न हो सके तो खफ़ा भी न हो सके

वो आस्तान-ए-दोस्त पे क्या सर झुकाएगा
जिस से बुलंद दस्त-ए-दुआ भी न हो सके

ये एहतिराम था निगह-ए-शौक़ का जो तुम
बेपर्दा हो सके जल्वा-नुमां भी न हो सके

मख़मूरकुछ तो पूछिए मजबूरी-ए-हयात
अच्छी तरह खराब-ए-फ़ना भी न हो सके

शब्दार्थ:
पाबंद-ए-एहतियात-ए-वफ़ा = अच्छाई करने में सावधानी व प्रतिबद्धता / क़ैद-ए-ज़ब्त-ए-ग़म= दुःख को छुपाने का बंधन / दार-ओ-मदार-ए-इश्क़ = प्यार की निर्भरता / वफ़ा = अच्छाई / हम-नशीं = साथी / जुज़्ब की सिफ़ात = एक अंश की विशेषतायें / बशर = व्यक्ति / फैज़-ए-इश्क़ = प्यार की देन / आस्तान-ए-दोस्त = मित्र का घर / दस्त-ए-दुआ = दुआ के लिये उठे हुये हाथ / एहतिराम = आदर सहित / निगह-ए-शौक़ = प्यारभरी दृष्टि / जल्वा-नुमां = सामने प्रगट होना / मजबूरी-ए-हयात = जीवन की विवशतायें / खराब-ए-फ़ना = मृत्यु से विनष्ट होना


soni pushpa 02-01-2017 01:18 PM

Re: आज का शायर
 
[QUOTE=rajnish manga;560105]
मौलाना हसरत मोहानी
महान स्वतंत्रता सेनानी तथा हमारी संविधान सभा के सदस्य होने के साथ साथ एक प्रख्यात शायर भी थे. आज एक जनवरी उनका जन्मदिन है. इस अवसर पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनकी एक मशहूर ग़ज़ल के चुनिंदा अश'आर पेश करते है:

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है,
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है,


खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़्फ़ातन,
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छिपाना याद है,


तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़राह-ए-लिहाज़,
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है,


दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये,
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है,


चोरी चोरी हम से तुम आकर मिले थे जिस जगह,
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है,


बेरुख़ी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्तां,
और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना याद है,


[size=3]वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये,
वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है,


bhai bahut pyari si jazal hai

ek gazalkaar ke liye isase achhi shrdhdhanjali or kya ho sakati hai bhai . bahut khoob

rajnish manga 03-01-2017 04:02 PM

Re: आज का शायर
 
आपने शायर के बारे में पढ़ा और उनका कलाम भी पढ़ कर उसकी भरपूर सराहना की, इसके लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.


rajnish manga 03-01-2017 04:59 PM

Re: आज का शायर
 
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2 जनवरी


rajnish manga 03-01-2017 11:06 PM

Re: आज का शायर
 
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4 जनवरी



rajnish manga 07-01-2017 09:09 PM

Re: आज का शायर
 
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6 जनवरी

rajnish manga 15-01-2017 09:47 AM

Re: आज का शायर
 
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डॉ. वृन्दावनलाल वर्मा (9 जनवरी)



http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1484459124

rajnish manga 15-01-2017 09:51 AM

Re: आज का शायर
 
डॉ. वृन्दावनलाल वर्मा (9 जनवरी)

जिस समय हिंदी में मुंशी प्रेमचंद सामाजिक विषयों पर विपुल कथा-साहित्य की रचना कर रहे थे, उसी समय डॉ वृन्दावन लाल वर्मा ऐतिहासिक कहानियों तथा उपन्यासों के द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के काम में जुटे हुये थे. मुझे उनके अधिकतर उपन्यास पढ़ने का सौभाग्य मिला. यह उनकी लेखन शैली का कमाल था कि हमारे ऐतिहासिक पात्र पाठक के सामने जीवंत हो उठते थे, झांसी की रानी को केंद्र में रख कर उन्होंने ‘मृगनयनी’ उपन्यास की रचना की. उनके कुछ उपन्यास इस प्रकार हैं: मृगनयनी, गढ़कुण्ढार, विराटा की पदमिनी, राखी की लाज, लगान, कुण्डली चक्र आदि. इस लोकप्रिय एवम् महान साहित्यकार का आज जन्मदिन है. उनको हमारा सादर नमन.


rajnish manga 15-01-2017 09:57 AM

Re: आज का शायर
 
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भारत रत्न
स्व. लाल बहादुर शास्त्री (11 जनवरी)


rajnish manga 15-01-2017 10:01 AM

Re: आज का शायर
 
भारत रत्न
स्व. लाल बहादुर शास्त्री (11 जनवरी)

स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के तौर पर स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल यद्यपि बहुत कम (9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक) रहा किंतु इस छोटे कार्यकाल में ही उन्होंने वो काम कर दिखाया जिससे उन्हें सदा याद किया जायेगा. सर्वप्रथम, उनके नेतृत्व में भारत ने भारत-पाक युद्ध में गौरवशाली विजय प्राप्त की. तत्पश्चात, शांति को प्रतिबद्ध भारत ने ताशकंद में पाकिस्तान से समझौता किया. दूसरा, उनका नारा- जय जवान जय किसान आज तक लोगों के दिलो दिमाग़ में कायम है. उन दिनों शास्त्री जी ने देश में खाद्य समस्या के चलते हर सोमवार की शाम को उपवास रखने का आह्वान किया जिसे स्वेच्छा से सारे देशवासियों ने अपनाया. सोमवार शाम को न तो घरों में चूल्हा जलता था और न ही होटल,रेस्त्राँ, या ढाबों पर खाना परोसा जाता था. एक शेर उन्हें बहुत पसंद था:

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं......तो चर्चा नहीं होता

इस महान विभूति को हमारी सादर श्रद्धांजलि.



rajnish manga 15-01-2017 10:04 AM

Re: आज का शायर
 
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अज़ीम शायर इब्न-ए-इंशा (11 जनवरी)


http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1484460223



rajnish manga 15-01-2017 10:24 AM

Re: आज का शायर
 
अज़ीम शायर इब्न-ए-इंशा (11 जनवरी)

इंशा साहब की अनेक ग़ज़लें कई प्रसिद्ध गायक कलाकारों द्वारा गाई गई हैं जिन्हें यू ट्यूब पर तलाश किया जा सकता है व सुना जा सकता है. इनके व्यंग्य लेखों की एक मशहूर पुस्तक 'उर्दू की आख़िरी किताब' हिंदी में भी उपलब्ध है जिसे राजकमल प्रकाशन, दिल्ली ने प्रकाशित किया है. इब्न-ए-इंशा की एक ग़ज़ल श्रद्धांजलि स्वरूप यहाँ प्रस्तुत की जा रही है:


ग़ज़ल (शायर: इब्ने इंशा)
कल चौदहवीं की रात थी, शब-भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा

हम भी वहाँ मौजूद थे, हम से भी सब पूछा किये
हम हँस दिये, हम चुप रहे, मन्ज़ूर था पर्दा तेरा

इस शहर में किससे मिलें, हमसे तो छूटीं मेहफ़िलें
हर शक़्स तेरा नाम ले, हर शक़्स दीवाना तेरा

कूचे को तेरे छोड कर जोगी ही बन जायें मगर
जँगल तेरे, परबत तेरे, बस्ती तेरी सहरा तेरा

हम और रस्म-ए-बन्दग़ी, आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या-क्या तेरा, ऐ हुस्न-ए-बेपरवा तेरा

दो अश्क़ जाने किस लिये, पलकों पे आकर टिक गये
अल्ताफ़ की बारिश तेरी, इकराम का दरया तेरा

ऐ बेदारेग़-ओ-बेअमाँ, हमने कभी की है फ़ुग़ाँ
हमको तेरी वहशत सही, हमको सही सौदा तेरा

तू बेवफ़ा तू मेहरबाँ, हम और तुझसे बदगुमाँ,
हमने तो पूछा था ज़रा, ये वक़्त क्यूँ ठहरा तेरा

हमपर ये सख्ती की नज़र, हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तेरा, दामन कभी थामा तेरा

हाँ-हा तेरी सूरत हसीं, लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इस शख्स के अश'आर से, शोहरा हुआ क्या-क्या तेरा

बेशक़ उसी का दोश है, कहता नहीं, खामोश है
तू आप कर ऐसी दवा, बीमार हो अच्छा तेरा

बेदर्द सुननी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक़ तेरा रुसवा तेरा, शायर तेरा 'इन्शा' तेरा





rajnish manga 15-01-2017 10:33 AM

Re: आज का शायर
 
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अज़ीम उर्दू शायर अहमद फ़राज़ (12 जनवरी)



http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1484461902



rajnish manga 15-01-2017 10:36 AM

Re: आज का शायर
 
अज़ीम उर्दू शायर अहमद फ़राज़ (12 जनवरी)

अहमद फ़राज़ की शायरी की विशेषताओं की बात करें तो जहां एक ओर उनकी रोमानी शायरी लोगों को दीवाना बना देती थी तो दूसरी ओर उनकी बेबाक और प्रगतिशील व क्रांतिकारी अंदाज़ उनके देश के सैनिक तानाशाहों को बैचेन रखता था. यही वजह है कि पाकिस्तान में सरकारी तंत्र में हर हाथ उनके लिये खंजर बन गया था:

शहर वालों की मुहब्बत का मैं कायल हूँ मगर
मैंने जिस हाथ को चूमा वही खंजर निकला

मेरा कलाम तो अमानत है मेरे लोगों की
मेरा कलाम तो अदालत मेरे ज़मीर की है

यही कहा था मेरी आँख देख सकती है
तो मुझ पे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना
(नाबीना = अंधा)

उनकी एक मशहूर ग़ज़ल के चंद अश'आर:

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्मों-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ


शब्दार्थ: पिन्दार-ए-मोहब्बत = प्रेम का गर्व / मरासिम = प्रेम व्यवहार
रस्मों-रहे = सांसारिक शिष्टाचार



rajnish manga 15-01-2017 11:17 AM

Re: आज का शायर
 
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स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी)

http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1484464525



rajnish manga 15-01-2017 11:19 AM

Re: आज का शायर
 
स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी)

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) की जयंती पर उनकी पावन स्मृति को नमन करते हुये हम उनके कुछ विचार यहाँ प्रस्तुत कर रहे है:

1. गंभीरता के साथ बच्चों जैसी सरलता को मिलाओ. सबके साथ मेल से रहो. अहंकार के सब भाव छोड़ दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ. बेकार के विवादों से बचो. याद रखो जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह और गुरु और भगवान् में विश्वास है, तब तक तुम्हें कोई नहीं दबा सकता.

2. कोई शख्स कितना ही महान क्यों न हो, आँखें मूँद कर उसके पीछे पीछे न चलो. अगर भगवान् की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आँख, नाक, कान, मुँह, दिमाग़ आदि क्यों देता?

3. हर काम को तीन अवस्थाओं से गुज़ारना पड़ता है- उपहास, विरोध और स्वीकृति.

4. ऐसी बेकार की बातों और उनकी चर्चा से दूर रहें, जिनकी कोई उपयोगिता ही नहीं है.

5. यही दुनिया है. अगर तुम किसी का भला करो, तो लोग उसको कोई अहमियत नहीं देंगे. लेकिन ज्योंही तुम उस काम को बंद कर दोगे, वे फ़ौरन तुम्हें बदमाश साबित करने पर जुट जायेंगे.


rajnish manga 15-01-2017 11:24 AM

Re: आज का शायर
 
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शमशेर बहादुर सिंह (13 जनवरी)


rajnish manga 15-01-2017 11:27 AM

Re: आज का शायर
 
शमशेर बहादुर सिंह (13 जनवरी)

कवि शमशेर बहादुर सिंह हिंदी साहित्य में प्रगतिशील लहर के कवि रचनाकार थे. उनका सम्पूर्ण साहित्य कई खण्डों में प्रकाशित किया जा रहा है (पूरी ग्रंथावली का मूल्य 5000 रूपए रखा गया है). उनकी कविताओं में आम आदमी का जीवन, उसकी पीड़ा और उसकी तकलीफें देखी जा सकती हैं. उन्होंने नज्में तथा ग़ज़लें भी लिखी हैं. इस महान साहित्य कार को हम आज उनके जन्मदिन पर आदरपूर्वक याद करते हैं और श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं.

rajnish manga 15-01-2017 11:31 AM

Re: आज का शायर
 
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कैफ़ी आज़मी (14 जनवरी)



rajnish manga 15-01-2017 11:34 AM

Re: आज का शायर
 
कैफ़ी आज़मी (14 जनवरी)

कैफ़ी साहब को बचपन से ही शायरी का शौक़ था. गयारह साल की उम्र में उन्होंने अपनी यह ग़ज़ल लिखी थी, ‘‘इतना न जिंदगी में किसी की खलल पड़े, हंसने से हो सुकूं, न रोने से कल पड़े.’’ इस ग़ज़ल को बेग़म अख्तर ने अपनी पुरसोज़ आवाज़ दे कर अमर बना दिया.

कैफ़ी आज़मी एक इंकलाबी शायर थे और उन्होंने कलम की रूह को जिंदा रखने के लिये कभी समझौता नहीं किया। एक फिल्म गीतकार के रूप में भी कैफी ने कभी मूल्यों का दामन नहीं छोड़ा।

उन्होंने लगभग 80 फिल्मों के लिये गीत लिखे. कैफी साहब ने 1951 में पहला गीत ’बुजदिल’ फिल्म के लिए लिखा था. कई फिल्मों की पटकथा तथा डायलाग भी लिखे. फिल्म ‘हीर रांझा’ इस मायने में अनोखी थी कि उसके सभी डायलाग भी शेरो शायरी में थे. फिल्म ‘हीर रांझा’ में उन्होंने बहुत मेहनत की थी. वे रात दिन काम में लगे रहते. इसी के उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ और वे लकवे का शिकार हो गए जिससे वे मृत्युपर्यंत पूरी तरह उबर नहीं पाए. फिल्म ‘अर्थ’ के गीत उन्होंने इसी हालात में लिखे थे.

‘कागज के फूल’ कैफ़ी साहब के कैरियर में मील का पत्थर साबित हुआ उसका मशहूर गाना है वक्त ने किया क्या हंसीं सितम.. यह आज भी संगीत प्रेमियों द्वारा गुनगुनाया जाता है. यहाँ से उनकी सफलता का ग्राफ़ शुरू हुआ.

कैफी साहब के लिखे तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो (अर्थ), कर चले हम फिदा (हकीकत), दो दिन की जिंदगी (सत्यकाम), जरा सी आहट (नौनिहाल), झूम-झूम ढलती रात (कोहरा), ये नयन भरे भरे (अनुपमा) चलते-चलते कोई यूं ही मिल गया था (पाकीजा 1972) आदि गीत सदा याद किये जाते रहेंगे. फिल्म ‘शोला और शबनम’ में भी उनके गाने बहुत मशहूर हुए जैसे- जाने क्या ढूंढती हैं ये आंखें मुझमें और जीत ही लेंगे बाजी हम-तुम आदि गीत भी कभी भुलाए नहीं जा सकते.
कैफ़ी साहब को सर्वश्रेष्ठ गीत के लिये राष्ट्रीय तथा फिल्म फ़ेयर पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया. भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया. उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. इनके अलावा भी उन्हें कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा समय समय पर पुरस्कृत किया गया था. कैफ़ी साहब को हमारा सादर नमन.

>>>

rajnish manga 15-01-2017 11:40 AM

Re: आज का शायर
 
अभिनेता गुरुदत्त की मृत्यु का उन्हें बड़ा सदमा लगा. उन्होंने कहा:


http://dr-narasinha-kamath.sulekha.c...uru%20Dutt.jpg

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

डरता हूँ कहीं ख़ुश्क न हो जाए समुन्दर
राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई

इक बार तो ख़ुद मौत भी घबरा गई होगी
यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई

अर्थी तो उठा लेते हैं सब अश्क बहा के
नाज़-ए-दिल-ए-बेताब उठाता नहीं कोई

rajnish manga 15-01-2017 11:57 AM

और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
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डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर (15 जनवरी)
Dr. Martin Luther King Jn



rajnish manga 16-01-2017 10:27 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (16 जनवरी)
संगीतकार ओ पी नय्यर / O P Nayyar

rajnish manga 16-01-2017 10:31 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
और आज की हमारी शख्सियत हैं (16 जनवरी)
संगीतकार ओ पी नय्यर / O P Nayyar
चार दशक से अधिक समय तक बॉलीवुड में अपने संगीत की कभी धूमिल न पड़ने वाली छाप छोड़ने वाले मस्तमौला संगीतकार ओ पी नय्यर संगीत की अपनी अलग शैली, अपने अक्खड़पन और अपने ज़िद्दी स्वभाव के कारण सदा याद किये जायेंगे. वे अपना अलग मुकाम बनाने में कामयाब रहे. उनकी फिल्मों तथा संगीत में पंजाबी जन जीवन का अल्हड़पन, उमंग तथा उत्साह बहुत खूबसूरती से उभर कर सामने आता है.

उन्होंने सन 1949 में बनी फिल्म ‘कनीज़’ से अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत की लेकिन स्वतंत्र संगीतकार के रूप में 1952 में बनी फिल्म ‘आसमान’ उनकी पहली फिल्म थी. इसके बाद ‘छम छमा छम’ और ‘बाज़’ जैसी कुछ फिल्मे आयीं लेकिन यह सभी फिल्मे बुरी तरह फ्लॉप रहीं. पार्श्वगायिका गीता राय (बाद में गीता दत्त) की सिफ़ारिश पर गुरुदत्त ने अपनी फिल्म ‘आर-पार’ तथा कुछ अन्य फिल्मों में उन्हें बतौर संगीतकार लिया. यहाँ से उनका कैरियर ग्राफ ऊपर की ओर जाना शुरू हो गया. अन्य निर्माता निर्देशकों के साथ भी वे बहुत कामयाब रहे.

उन्होंने गीत की सिचुएशन के हिसाब काफ़ी समय तक आशा भोंसले, शमशाद बेगम और मोहम्मद रफ़ी से पार्श्वगायन करवाया और वे उनके पसंदीदा कलाकार बने रहे. आशा से अनबन होने के बाद उन्होंने कई नई गायिकाओं से पार्श्व गायन करवाया. फिल्म ‘आसमान’ के समय ही उस समय की सर्वाधिक चर्चित गायिका लता मंगेशकर से उनका विवाद हो गया और यह दोनों कभी साथ नहीं आये.

फ़िल्म सी.आई.डी. (1956), नया दौर (1957) और फ़ागुन (1958) को बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त सफलता प्राप्त हुई. इनमे से नय्यर साहब को ‘नया दौर’ के लिये बेस्ट संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड से भी नवाज़ा गया. सी आई डी और फ़ागुन को भी नोमिनेशन मिला. फिल्म ‘सावन की घटा’ तथा ‘प्राण जाये पर वचन न जाये’ में उनके द्वारा संगीतबद्ध गीतों को फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड प्राप्त हुआ. ये दोनों गीत आशा भोंसले द्वारा गए गए थे.

उनकी अन्य प्रमुख फिल्मों में हावड़ा बृज (1958), फिर वही दिल लाया हूँ (1963), कश्मीर की कली (1964), मेरे सनम (1965), सावन की घटा तथा बहारें फिर भी आयेंगी (1966), किस्मत (1968), संबंध (1969), और प्राण जाये पर वचन न जाये (1974) आदि शामिल हैं. नय्यर साहब का अंतिम समय एकाकी बीता. आज उनके जन्मदिन पर हम उन्हें आदर पूर्वक याद करते हैं.


rajnish manga 16-01-2017 10:51 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
और आज की हमारी शख्सियत हैं (16 जनवरी)
संगीतकार ओ पी नय्यर / O P Nayyar

संगीतकार ओ पी नय्यर का अनोखा स्वभाव
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कहते हैं कि प्रतिभा के अपने साइड इफेक्ट होते हैं। ओ पी नैय्यर ने केवल एक ही फ़िल्म में गीतकार प्रदीप से गीत लिखवाए। ये थी एस. मुखर्जी प्रोडक्शन की 1969 में आई फ़िल्मसंबंध। नैय्यर साहब को प्रदीप की शक्ल पसंद नहीं थी। इसलिए वो सिटिंग में प्रदीप को नहीं बुलाते थे। कवि प्रदीप एकदम सरल हृदय सज्जन व्यक्ति। नैय्यर एकदम मुंहफट अक्खड़। संबंधके गाने प्रदीप किसी हरकारे के हाथों भिजवा दिया करते थे और उनकी धुन बना ली जाती थीं।

इसी तरह गीतकार अनजान से नैय्यर ने फ़िल्म बहारें फिर भी आएंगीके गीत लिखवाए थे। अनजान के बेटे समीर ने ख़ुद बताया कि नैय्यर साहब ने अनजान से निवेदन किया था कि अनजान नैय्यर के पास न आया करें। अनजान ने कारण पूछा। नैय्यर ने कहा- यार, तुम बहुत शरीफ़ आदमी हो और मैं गालियां-शालियां देकर बात करता हूं। मुझे अच्छा नहीं लगता।

शरारतऔर रागिनी’- ये दो ऐसी फ़िल्में थीं, जिसमें किशोर कुमार के लिए मोहम्मद रफ़ी ने पार्श्वगायन किया था। 1958 में आई फ़िल्म रागिनीके निर्माता स्वयं अशोक कुमार थे। और किशोर के साथ वह भी इस फ़िल्म में अभिनय कर रहे थे। इस फ़िल्म का गाना मन मोरा बावराशास्त्रीय-संगीत पर आधारित था। इसलिए नैय्यर ने तय किया कि ये गाना वह रफ़ी से गवाएंगे। किशोर कुमार को मंज़ूर नहीं था कि पर्दे पर वह रफ़ी की आवाज़ लें। वह बड़े भैया के पास गए। पर दादामुनि ने दख़लअंदाज़ी से साफ़ इंकार कर दिया।

उनके स्वरबद्ध किये हुये कुछ लोकप्रिय गीत
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ओ लेके पहला पहला प्यार / ये देश है वीर जवानों का / उड़े जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी / रेशमी सलवार कुर्ता जाली का / इक परदेसी मेरा दिल ले गया / दीवाना हुआ बादल / इशारों इशारों में दिल लेने वाले / ये चाँद सा रोशन चेहरा / चल अकेला ....चल अकेला / पुकारता चला हूँ मैं / ये है रेशमी ज़ुल्फ़ों का अंधेरा ना घबराइये / आपके हसीन रूख़ पे आज नया नूर है/ आओ हुज़ूर तुमको बहारों में ले चलूँ / कजरा मोहब्बत वाला अखियों में ऐसा डाला.... आदि आदि.
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Deep_ 17-01-2017 09:43 AM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
फिल्मी हस्तीयों के साथ साथ ओर कई व्यक्तियों से रुबरु करवाने के लिए रजनीश जी को बहुत बहुत धन्यवाद ।

rajnish manga 18-01-2017 10:12 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (17 जनवरी)
मुहम्मद अली / Muhammad Ali


rajnish manga 18-01-2017 10:17 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
और आज की हमारी शख्सियत हैं (17 जनवरी)
मुहम्मद अली / Muhammad Ali

मुहम्मद अली (मूल नाम- कैसियस क्ले) ने सन 1960 में मुक्केबाज़ी का ओलिंपिक स्वर्ण पदक हासिल किया. उसके बाद सन 1964 में वे विश्व हैवी वेट चैंपियन बने. बाद में, सन 70 के दशक में उन्होंने दो बार यह चैंपियनशिप जीती जब उन्होंने जो फ्रेज़ियर और जॉर्ज फ्रीमैन को पराजित किया. 1984 में वे पार्किंसन रोग से ग्रस्त हो गए. लेकिन इस सब के बीच वे समाज की भलाई के कामों से जुड़े रहे और दान दाता के रूप में भी जाने जाते थे. 2005 में उन्हें राष्ट्रपति का स्वतंत्रता पदक भी प्रदान किया. अपनी बिमारी से वे हार गए और 74 वर्ष की आयु में 3 जून 2016 को वे इस संसार को अलविदा कह गए.
उनके कहे हुये शब्द न सिर्फ़ खिलाड़ियों को प्रेरित करते रहेंगे बल्कि सामान्य व्यक्तियों को भी आगे बढ़ने में मदद करते रहेंगे. उनमे आत्मविश्वास का यह हाल था कि वे खुद को ‘I Am The Greatest’ कह कर प्रचारित करते थे. अपने चाहने वालों के दिल में में वे हमेशा ‘महानतम मुक्केबाज’ के रूप में आसीन रहेंगे.

उनके कुछ उल्लेखनीय विचार:

मैं ट्रैनिंग के हर एक मिनट से नफरत करता था, लेकिन मैंने खुद से कहा, हार मत मानो। अभी सह लोगे तो अपनी बाकी की ज़िन्दगी एक चैंपियन की तरह
बिता सकोगे ।

वह जो जोखिम उठाने का साहस नहीं करता वो अपने जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर सकता।

मैं एक साधारण इंसान हूँ जिसने खुद में मौजूद प्रतिभा के विकास में कड़ी मेहनत की मैने खुद पर विश्वास रखा और मैने दूसरों की अच्छाई पर भी विश्वास रखा।

लोगो की सेवा करना, धरती पर आपके कमरे का किराया है।

चेम्पियन किसी जिम में नहीं बनाये जाते है। चेम्पियन तो एक ऐसी चीज से बनाये जाते हैं, जो उनके अंदर होती है एक इच्छा, सपना, विज़न ।बस उनके पास कौशल होना चाहिये।

rajnish manga 18-01-2017 10:44 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (18 जनवरी)
कुंदनलाल सहगल /Kundan Lal Saigal
अभिनेता-गायक / Actor-Singer

rajnish manga 18-01-2017 10:49 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
और आज की हमारी शख्सियत हैं (18 जनवरी)
कुंदनलाल सहगल /Kundan Lal Saigal

11 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवाशहर में जन्मे कुंदनलाल सहगल सहगल ने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन सबसे पहले उन्होंने संगीत के गुर एक सूफी संत सलमान युसूफ से सीखे थे। सहगल की प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी। उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी थी और जीवन यापन के लिए उन्होंने रेलवे में टाईमकीपर की मामूली नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।

वर्ष 1930 में कोलकाता के न्यू थियेटर के बी.एन.सरकार ने उन्हें 200 रूपए मासिक पर अपने यहां काम करने का मौका दिया। यहां उनकी मुलकात संगीतकार आर.सी.बोराल से हुई, जो सहगल की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए। शुरूआती दौर में बतौर अभिनेता वर्ष 1932 में प्रदर्शित एक उर्दू फिल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ में उन्हें काम करने का मौका मिला। वर्ष 1932 में ही बतौर कलाकार उनकी दो और फिल्में ‘सुबह का सितारा’ और ‘जिंदा लाश’ भी प्रदर्शित हुई, लेकिन इन फिल्मों से उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली।

वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म ‘पूरन भगत’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। वर्ष 1933 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘यहूदी की लड़की’, ‘चंडीदास’ और ‘रूपलेखा’ जैसी फिल्मों की कामयाबी से उन्होंने दर्शकों का ध्यान अपनी गायकी और अदाकारी की ओर आकर्षित किया। उन दिनों अभिनेता को अपने गाने स्वयं गाने पड़ते थे. पार्श्वगायन का कांसेप्ट अभी शुरू नहीं हुआ था.

वर्ष 1935 में शरत चंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित पी.सी.बरूआ निर्देशित फिल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक-अभिनेता सहगल शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। कई बंगाली फिल्मों के साथ-साथ न्यू थियेटर के लिए उन्होंने 1937 में ‘प्रेंसिडेंट’, 1938 में ‘साथी’ और ‘स्ट्रीट सिंगर’ तथा वर्ष 1940 में ‘जिंदगी’ जैसी कामयाब फिल्मों को अपनी गायिकी और अदाकारी से सजाया।

वर्ष 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गए। वर्ष 1942 में प्रदर्शित उनकी ‘सूरदास’ और 1943 में ‘तानसेन’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता का नया इतिहास रचा। वर्ष 1944 में उन्होंने न्यू थियेटर की ही निर्मित फिल्म ‘मेरी बहन’ में भी काम किया।

वर्ष 1946 में सहगल ने संगीत सम्राट नौशाद के संगीत निर्देशन में फिल्म ‘शाहजहां’ में ‘गम दिए मुस्तकिल’ और ‘जब दिल ही टूट गया’ जैसे गीत गाकर अपना अलग समां बांधा। सहगल के सिने करियर में उनकी संगीतकार पंकज मलिक के साथ बहुत खूब जमी। सहगल और पंकज मलिक की जोड़ी वाली फिल्मों में ‘यहूदी की लड़की’(1933), ‘धरती माता’ (1938), ‘दुश्मन’ (1938), ‘जिंदगी’ (1940) और ‘मेरी बहन’ (1944) जैसी फिल्में शामिल हैं।

(इसी फोरम पर सागर की पोस्ट से साभार)


rajnish manga 18-01-2017 10:53 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
और आज की हमारी शख्सियत हैं (18 जनवरी)
कुंदनलाल सहगल /Kundan Lal Saigal

अपने समय में सहगल अपनी मधुर आवाज़, गायकी, और अभिनय क्षमता के बल पर हिन्दुस्तानी फिल्म उद्योग पर एकछत्र राज्य किया. सन् 1937 में उनकी पहली बंगला फिल्म ‘दीदी’ रिलीज़ हुई थी जिसके बाद वे बंगाली संभ्रांत वर्ग के भी ह्रदय सम्राट बन गए थे. कहते हैं कि उनका बांग्ला गायन सुन कर गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोरे ने कहा था ‘की शुंदर गला तोमार ... आगे जानले कोतोई ना आनंद पेताम’..”

फिल्म ‘देवदास’ में सहगल के स्वर में एक ठुमरी रेकॉर्ड की गयी ‘पिया बिन नाहीं आवत चैन’ जो पूर्व में उस्ताद करीम खां द्वारा गाई गयी थी. उस्ताद फ़िल्में देखना पसंद नहीं करते थे. किन्तु अपने कलकत्ता प्रवास के दौरान वह जिन नवाब साहब के यहाँ ठहरे थे उनके बहुत इसरार करने पर वह ‘देवदास फिल्म देखने के लिए तैयार हो गए. वह बेमन से गए थे लेकिन फिल्म देखते-देखते उनकी आँखें नम हो गई और जब वह गाना आया ‘पिया बिन नाहीं आवत चैन’ तो सहगल की दर्द भरी आवाज़ में राग झिंझोटी में उक्त ठुमरी सुन कर उनकी आँखों से बेइख्तियार आंसू बहने लगे.

पिक्चर की समाप्ति पर उन्होंने इस नौजवान (सहगल) से मिलने की इच्छा व्यक्त की. नवाब साहब ने सहगल को बुलाने की पेशकश की. उस्ताद ने कहा कि नहीं, मैं खुद उसके पास चल कर जाऊंगा. कदाचित यह गौरव किसी फिल्म कलाकार को न मिला होगा कि इतना बड़ा गवैय्या खुद चल कर उसका गाना सुनने जाए. खां साहब ने मिल कर सहगल का गाना सुनने की अपनी ख्वाहिश बतायी. सहगल यह सुन कर मानो ज़मीन में गड़ गए. बोले कि यह आप क्या फरमा रहे है, मैं नाचीज़ तो आपके सामने गाना तो क्या जुबान भी नहीं खोल सकता. खां साहब ने कहा कि नहीं, यह मेरा हुक्म है.

सहगल इसे कैसे टाल सकते थे. उन्होंने उस्ताद के चरणों में सर झुकाया और हारमोनियम ले कर जैसे ही गाना शुरू किया, खां साहब की आँखों से फिर आंसुओं की धार बहने लगी. गाना ख़त्म हो जाने के बाद उस्ताद ने सहगल को गले लगा लिया और भावुक हो कर बोले कि तुम्हारे गाने में वो जादू है जो किसी भी रूह को बैचेन कर देगा.

उनकी गाई ग़ज़ल ‘ए कातिबे तकदीर मुझे इतना बता दे... ‘ (फिल्म: माई सिस्टर/ बेनर: न्यू थिएटर्स/ गीत: पंडित भूषन/ संगीत: पंकज मलिक) आज भी ग़ज़ल गायकों के लिए मार्ग दर्शक का स्थान रखती है. इसके अलावा सहगल द्वारा गाई गयी ग़ालिब की दो ग़जलें ‘नुक्ताचीं है ग़मे दिल ... ‘ (फिल्म: यहूदी के लडकी) तथा ‘दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गयी’ (फिल्म: कारवाने हयात) को उन्होंने जिस तर्ज़े बयानी और सोज़ में भीगी हुयी आवाज़ में गाया है कि आज भी सुनने वालों पर अपना जादू कायम रखे हुए हैं.

अंत में फिल्म स्ट्रीट सिंगर का सब से महत्वपूर्ण गीत ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए’ एक पारंपरिक ठुमरी है जिसे उस्ताद फैय्याज़ खां तथा अन्य कई उस्ताद गाया करते थे. किन्तु सहगल ने इसे शुद्ध भैरवी में गा कर सब को आश्चर्यचकित कर दिया. सहगल की मृत्यु के 65 साल बाद भी सहगल की आवाज़ का जादू ज्यों का त्यों बरकरार है.

(शरद दत्त जी की पुस्तक ‘के.एल.सहगल की जीवनी’ से प्रेरित).

rajnish manga 18-01-2017 11:01 PM

Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
 
और आज की हमारी शख्सियत हैं (18 जनवरी)
हरिवंशराय बच्चन / Harivansh Rai Bachchan
लेखक कवि और व्याख्याता




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