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-   -   //////इर्ष्या /////// (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=14836)

soni pushpa 01-05-2015 02:19 AM

//////इर्ष्या ///////
 
ये एक एइसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो तहस नहस करता है ओरो के जीवन में भी खलबली मचाता है .
यदि आप किसी को सुख या ख़ुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरो के सुख और ख़ुशी देखकर जलिए मत यदि आपको खुश नहीं होना है न सही मत होइए खुश किन्तु किसी की खुशियों को आपनी इर्ष्या के कारण बर्बाद न करे .
अक्सर समाज में देखा जाता है की कोई आगे बढ़ रहा है .किसी की उन्नति हो रही है नाम हो रहा है तो अधिकांश लोग आपको एइसे देखने मिलेंगे जो पहले ये ही सोचेंगे की कैसे आगे बढ़ते लोगो की राह का रोड़ा बना जाय .उनको कैसे निचा दिखाए कैसे समाज में उनकी मजाक बने और कैसे उनकी खुशियाँ छीन जाय .
बहुत कम लोग एइसे होते हैं जो किसी को आगे बढ़ता देख किसी की उन्नति होते देख आनंद का अनुभव करते हैं या खुश होते हैं

आपको नहीं लगता की हमे हमारी इर्ष्या जलाती है? बाद में सामने वाले का नुक्सान होता है? क्यूंकि इर्ष्या करते वक़्त हमारे दिमाग के स्नायु सिकुड़ते हैं जिसका प्रभाव हमारे अंतर्मन पर पड़ता है और इसका प्रभाव हमारी दिनचर्या पर पड़ता है हम चिडचिडे हो जाते हैं और घर के लोगो के साथ हमारा व्यवहार गलत ढंग का हो जाता है तब घर का वातावरण कलह पूर्ण हो जाता है और हमारा स्वाभाव झगडालू हो जाता है और आप जानते ही हैं की झगडालू लोग किसी को अछे नहीं लगते ये तो सिर्फ एक नुकसान हुआ इसी तरह के कई नुकसान होते है किसी की इर्ष्या करने से ..
मेरा मानना है की यदि आप किसी की खुशियों से खुश होकर उसे और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देंगे तो इससे दो फायदे होंगे एक तो समाज में आपकी छाप अछि पड़ेगी . दूजे आपको एक अंदरूनी ख़ुशी का एहसास होगा और एक सकारात्मक उर्जा का विकास अपने आप आपके अन्दर होगा ..

इसे इंसानी defect कह लीजिये या कुछ और पर सच ये है की बहुत सारे दुखों का कारण हमारा अपना दुःख ना हो के दूसरे की ख़ुशी होती है . आप इससे ऊपर उठने की कोशिश करिए ,. आपको सिर्फ अपने आप को आगे बढ़ाते रहना है , और व्यर्थ की तुलना के पचड़े में नहीं पड़ना है तुलना नहीं करनी है.

आप इर्ष्या करने के बजाय सामने वाले इंसान के गुणों को अपनाएं और जीवन में उनसे कुछ सीखे और लाभ ले ताकि आपका जीवन भी खुशहाल हो . न की सिर्फ और सिर्फ जलन में आपकी पूरी जिंदगी एइसे ही व्यर्थ चली जाय .

जब जब आपके मन में किसी के लिए इर्ष्या का भाव जागृत हो तब तब आपने विचारों की दिशा को सकारात्मक सोच की और मोड़ दीजिये जब विचारो की दिशा ही बदल जाएगी तब अपने आप नकारात्मकता आपसे दूर होते जाएगी और जब मन में अछि बातें आती है तब हमें वो बातें सुकून ही देती है न की ग्लानी या जलन .
अफ़सोस की बात है आज के समाज की , कि लोग किसी के दुःख को देखकर तो बहुत दुखी होते हैं सहानुभूति जताते हैं किन्तु उससे कई गुना ज्यदा लोग किसी की उन्नति से किसी के गुणों से जलते हैं और दुखी होते हैं और पुरे प्रयास करते हैं की सामने वाले का बुरा हो
एइसे लोगो के लिए भगवान से एक ही प्रार्थना करना चाहूंगी की उन्हें सद बुध्धि दें .

Rajat Vynar 01-05-2015 10:29 AM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
Achcha lekh hai. Kintu mere vicharon men kuchek mahilaon ko chodkar amooman mahilayen hi ek dusre ko dekhkar jalti hain- 'Uski sari merit sari se sundar kyon?'

soni pushpa 01-05-2015 12:21 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
Quote:

Originally Posted by Rajat Vynar (Post 550876)
Achcha lekh hai. Kintu mere vicharon men kuchek mahilaon ko chodkar amooman mahilayen hi ek dusre ko dekhkar jalti hain- 'Uski sari merit sari se sundar kyon?'



rajat ji , eisa nahi ki ek mahila hi ershya ka bhav rakhti hai purush ki ershya to jyda khatrnak hoti hain kyunki wo to marne marne par aa jate hain .
mahilaon ki ershya chhoti or samany hotin hain shayd . kintu purushon ki ershya kisi ki jaan tak le leti hai .jeisa ki hum kai baar t v me dekhte hain ki vyaapaar or sampatti ki vajah se ek bhai ne duje ka khoon kar diya .

Rajat Vynar 01-05-2015 01:00 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
हाँ, आप ठीक ही कहती हैं, ऐसा अक्सर समाचारपत्रों में छ्पता रहता है और शायद प्रापर्टी के लिए ल़डने का कर्म करने की शिक्षा गीता में दी गई है। :lol:

Deep_ 01-05-2015 11:03 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 550875)
ये एक एइसा शब्द ...उन्हें सद बुध्धि दें .

ईर्ष्या मानव मात्र का स्वभाव है। महाभारत और रामायण में भी ईसके कई उदाहरण उपलब्ध है। ईर्ष्या को दुर तो नहीं किया जा सकता लेकिन उस पर काबु किया जा सकता है। उसे अच्छे रास्ते पर मोडा जा सकता है।

मनुष्य के कई गुणों को दुर्गुण ईस लिए माना गया है क्यों की उनका उपयोग सही रीत से नहीं किया गया। ईर्ष्या का सही उपयोग आपके अंदर जीतने की या आगे जाने की शक्ति को बढाता है। लालच का छोटा अंश आपको व्यापार, नौकरी में अच्छा काम करने की प्रेरणा देता है। गुस्सा आपका जुस्सा बनाए रखता है।

ईन सब दुर्गुणो से हम कुछ अच्छा, बडा और समाज को उपयोगी काम करना चाहें तो कर सकतें है! :think:

Deep_ 01-05-2015 11:07 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 550875)
ये एक एइसा शब्द ...उन्हें सद बुध्धि दें .

ईर्ष्या मानव मात्र का स्वभाव है। महाभारत और रामायण में भी ईसके कई उदाहरण उपलब्ध है। ईर्ष्या को दुर तो नहीं किया जा सकता लेकिन उस पर काबु किया जा सकता है। उसे अच्छे रास्ते पर मोडा जा सकता है।

मनुष्य के कई गुणों को दुर्गुण ईस लिए माना गया है क्यों की उनका उपयोग सही रीत से नहीं किया गया। ईर्ष्या का सही उपयोग आपके अंदर जीतने की या आगे जाने की शक्ति को बढाता है। लालच का छोटा अंश आपको व्यापार, नौकरी में अच्छा काम करने की प्रेरणा देता है। गुस्सा आपका जुस्सा बनाए रखता है।

ईन सब दुर्गुणो से हम कुछ अच्छा, बडा और समाज को उपयोगी काम करना चाहें तो कर सकतें है! :think:

soni pushpa 01-05-2015 11:15 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 550883)
ईर्ष्या मानव मात्र का स्वभाव है। महाभारत और रामायण में भी ईसके कई उदाहरण उपलब्ध है। ईर्ष्या को दुर तो नहीं किया जा सकता लेकिन उस पर काबु किया जा सकता है। उसे अच्छे रास्ते पर मोडा जा सकता है।

मनुष्य के कई गुणों को दुर्गुण ईस लिए माना गया है क्यों की उनका उपयोग सही रीत से नहीं किया गया। ईर्ष्या का सही उपयोग आपके अंदर जीतने की या आगे जाने की शक्ति को बढाता है। लालच का छोटा अंश आपको व्यापार, नौकरी में अच्छा काम करने की प्रेरणा देता है। गुस्सा आपका जुस्सा बनाए रखता है।

ईन सब दुर्गुणो से हम कुछ अच्छा, बडा और समाज को उपयोगी काम करना चाहें तो कर सकतें है! :think:

जी दीप जी ... इसलिए ही कहा की जब जब मन में इर्ष्या का विष फ़ैलने लगे तब तब इस मन के भावों को अछि दिशा में मोड़ना चाहिए ताकि उसके परिणाम अछे आयें और इंसान खुद के साथ ओरों का भी भला कर सके ...
इस सूत्र पर टिपण्णी आपने दी ...बहुत बहुत धन्यवाद

Pavitra 03-05-2015 02:35 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
इन्सान व्यर्थ ही दूसरों से ईर्ष्या करता है , और ऐसा वही व्यक्ति करता है जो हीन भावना का शिकार होता है , जिसे खुद पर यकीन ना हो कि वो जीवन में कुछ भी अच्छा कर सकता है । ईर्ष्या करके हमें कुछ भी हासिल नहीं होता सिवाय मानसिक अशान्ति के । इन्सान जितना समय दूसरों से ईर्ष्या करने में बर्बाद करता है अगर उतना समय वह खुद को बेहतर करने में लगाए तो परिणाम ज्यादा सुखद होंगे ।

soni pushpa 05-05-2015 04:33 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
Quote:

Originally Posted by pavitra (Post 550909)
इन्सान व्यर्थ ही दूसरों से ईर्ष्या करता है , और ऐसा वही व्यक्ति करता है जो हीन भावना का शिकार होता है , जिसे खुद पर यकीन ना हो कि वो जीवन में कुछ भी अच्छा कर सकता है । ईर्ष्या करके हमें कुछ भी हासिल नहीं होता सिवाय मानसिक अशान्ति के । इन्सान जितना समय दूसरों से ईर्ष्या करने में बर्बाद करता है अगर उतना समय वह खुद को बेहतर करने में लगाए तो परिणाम ज्यादा सुखद होंगे ।


आपकी आभारी हु पवित्रा जी , जी इस विष से जितना दुर रहा जय ऊतना ही अच्छा है खुद के लिए. इर्ष्या समस्यायें बढातीं हैं . इर्ष्या से कभी किसी का भला नहीं हुआ ... सार्थक टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद पवित्रा जी

kuki 08-05-2015 04:37 PM

Re: //////इर्ष्या ///////
 
ईर्ष्या एक कमज़ोर इंसान के मन की स्वाभाविक भावना है। जब कोई इंसान अपने आप को किसी की तुलना में ,किसी भी रूप में कमतर पाता है तो उसके मन में ईर्ष्या अपने आप आजाती है। अगर कोई इंसान अपने आप से और अपने हालात से संतुष्ट है और वो जैसे भी है उसमें खुश है तो उसे किसी से भी ईर्ष्या नहीं होगी। इसीलिए कहते हैं संतोषी सदा सुखी।


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