महायमराज
यमराज के नाम से कौन परिचित नहीं है? बड़ों की तो बात छोड़िए, बच्चे भी यमराज का नाम सुनकर भय से थर-थर काँपने लगते हैं। धरतीलोक में यमराज जितना बदनाम हैं उतना बदनाम कोई अन्य देवी या देवता नहीं। इसीलिए कोई अपने बच्चों का नाम यमराज रखना पसन्द नहीं करता। यमराज का कोई विकल्प नहीं। यमराज का कोई बॉस नहीं। यमराज अकेले थे, अकेले हैं आैर अकेले ही रहेंगे। फिर कहाँ से आ गए महायमराज? क्या देवलोक प्रशासन ने यमराज के कार्य में हेर-फेर, धाँधली और भ्रष्टाचार की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए यमराज के कार्य की निगरानी करने के लिए यमराज से ऊपर एक महायमराज नियुक्त कर दिया है? कहीं ऐसा तो नहीं- जब यमराज प्राण हरने के लिए छाती पर अपना भारी पाँव रख दें तो उस समय प्राण बचाने के लिए महायमराज के पास दया और कृपा करने के निमित्त प्रार्थना-पत्र लगाने का एक विकल्प खुल गया हो! शंका निवारण के लिए आगे पढ़िए-
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Re: महायमराज
श्रीमद्भगवत्गीता में आत्मा को अजर और अमर बताते हुए श्रीकृष्ण ने कहा है- 'नैनं छिदंति शस्त्राणी, नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयां तापो, नैनं शोशयति मारूतः।।' अर्थात्, आत्मा वो है जिसे किसी भी शस्त्र से भेदा नहीं जा सकता, जिसे कोई भी आग जला नहीं सकती, कोई भी दु:ख उसे तपा नहीं सकता और न ही कोई वायु उसे बहा सकती है। जन्म-मरण के चक्र को समझाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- 'वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरो पराणि। शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।' अर्थात्, जिस प्रकार हम जीर्ण वस्त्र को तजकर नए वस्त्र धारण करते हैं, उसी प्रकार जर्जर तन को तजकर आत्मा नया शरीर धारण करती है।
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Re: महायमराज
अब उपर्युक्त बात को कलियुग के कृष्ण के शब्दों में समझते हैं। कलियुग के कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- 'हे अर्जुन, सुनो। अन्तर्जाल में उपस्थित सदस्यों का उपनाम यदि अन्तर्जाल का शरीर है तो उस उपनाम को संचालित करने वाला सदस्य उस उपनाम की आत्मा है और यह आत्मा अजर और अमर है। अन्तर्जाल में रहते हुए इस आत्मा को न ही किसी शस्त्र से भेदा जा सकता है, न ही आग उसे जला सकती है, न ही कोई दु:ख उसे तपा सकता है और न ही वायु उसे बहा सकती है।' अन्तर्जाल में जन्म-मरण के चक्र को समझाते हुए कलियुग के कृष्ण आगे कहते हैं- 'हे अर्जुन, जिस प्रकार हम फटे-पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करते हैं, ठीक उसी प्रकार अन्तर्जाल में पुराने उपनाम (यूज़र आइ०डी०) को त्यागकर यह 'अन्तर्जालीय आत्मा' एक नया उपनाम रूपी शरीर धारण करती है।'
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Re: महायमराज
अर्जुन ने भ्रमित होकर पूछा- 'हे कृष्ण! आपकी बातों से तो मैं और भ्रमित हो गया हूँ। 'अन्तर्जालीय आत्मा' अपना पुराना उपनाम त्यागकर जब नया उपनाम रूपी शरीर धारण करती है तो वह अपने पूर्वजन्म वाले लिंग में होती है या अपना लिंग बदल सकती है?'
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Re: महायमराज
कलियुग के कृष्ण ने कहा- 'जिस प्रकार आत्मा अपने दूसरे जन्म में स्त्री या पुरुष- किसी भी लिंग में पैदा हो सकती है, ठीक उसी प्रकार यह 'अन्तर्जालीय आत्मा' भी किसी भी लिंग में अन्तर्जाल में पैदा हो सकती है। अन्तर सिर्फ इतना है- आत्मा को जन्म लेने के बाद अपने पूर्वजन्मों की याद बिल्कुल नहीं रहती किन्तु 'अन्तर्जालीय आत्मा' को अपने पूर्वजन्मों की सभी बातें अक्षरशः याद रहती हैं।'
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Re: महायमराज
अर्जुन को कलियुगी कृष्ण के उपदेश में अब कुछ-कुछ मज़ा आने लगा था। अतः उत्सुक होकर अर्जुन ने आगे पूछा- 'हे कृष्ण! ये अन्तर्जालीय मनुष्य क्या खाकर जिन्दा रहते हैं?'
कृष्ण ने बताया- 'हे अर्जुन, सुनो। ये अन्तर्जालीय मनुष्य बैण्डविथ खाकर ज़िन्दा रहते हैं। जिस अन्तर्जालीय देश का प्रशासक अपनी प्रजा को कायदे से और तेज़ी के साथ बैण्डविथ नहीं खिला पाता उस देश की अन्तर्जालीय प्रजा शीघ्रता के साथ मर जाती है!' (अभी और है।) |
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