अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
दाँतों तले चने चावना
अर्थ :--सख्त मेहनत करना. |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
नाच न जाने आंगन टेढ़ा अर्थः --
किसी काम ठीक न कर पाओ और उसमे कमी निकालना |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
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Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
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रसरी आवत जात ते शील पर पडत निशान, अर्थ:-- बार बार अभ्यास करने पर जर(मंद) बुध्धि वाला मनुष्य में भी बुध्धि का संचार हो जाता है. ठीक उसी तरह जिस तरह पत्थर पर रस्सी के बार बार घिसने पर पत्थर पर रस्सी के निशान पड़ जाते हैं. |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
खिचड़ी कह रही है मुझे दांतों से खाओ
(सरल काम को करने के लिए अधिक मेहनत करना ) |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
कानी के ब्याह में कोतक ही कोतक (कोतुहल)
{किसी काम को लीक से हटकर करने पर रुकावटें} |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौंहीं आंधां रूंड अर्थ :-- हमने देखा ऐसों को, जो मुख को ऊँचा करके जोर-जोर से कीर्तन करते हैं । जानते-समझते तो वे कुछ भी नहीं कि क्या तो सार है और क्या असार । उन्हें अन्धा कहा जाय, या कि बिना सिर का केवल रुण्ड ? |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
डंके की चोट पर
अर्थ : खुले आम सबके सामने |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
नाच ना जाने आँगन टेढ़ा
अर्थात : अपनी गलती को स्वीकार ना करते हुए दूसरो पर दोषारोपण करना |
Re: अन्ताक्षरी(मुहावरे और दोहे)
दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो ।
श्री वल्लभ नख चंद्र छ्टा बिन, सब जग माही अंधेरो ॥ साधन और नही या कलि में, जासों होत निवेरो ॥ सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल को चेरो ॥ |
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