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-   -   छींटे और बौछार (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1019)

rafik 13-10-2014 10:48 AM

Re: छींटे और बौछार
 
मस्जिद तो हुई हासिल हमको, खाली ईमान गंवा बैठे ।
मंदिर को बचाया लढ-भीडकर, खाली भगवान गंवा बैठे ।

धरती को हमने नाप लिया, हम चांद सितारों तक पहुंचे ।
कुल कायनात को जीत लिया, खाली इन्सान गंवा बैठे ।

मजहब के ठेकेदारों ने आज फिर हमे युं भडकाया ।
के काजी और पंडित जिन्दा थे, हम अपनी जान गंवा बैठे ।

सरहद जब जब भी बंटती है, दोनो नुकसान उठाते है ।
हम पाकिस्तान गंवा बैठे, वो हिन्दुस्तान गंवा बैठ ।

soni pushpa 13-10-2014 10:19 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by rafik (Post 533328)
मस्जिद तो हुई हासिल हमको, खाली ईमान गंवा बैठे ।
मंदिर को बचाया लढ-भीडकर, खाली भगवान गंवा बैठे ।

धरती को हमने नाप लिया, हम चांद सितारों तक पहुंचे ।
कुल कायनात को जीत लिया, खाली इन्सान गंवा बैठे ।

मजहब के ठेकेदारों ने आज फिर हमे युं भडकाया ।
के काजी और पंडित जिन्दा थे, हम अपनी जान गंवा बैठे ।

सरहद जब जब भी बंटती है, दोनो नुकसान उठाते है ।
हम पाकिस्तान गंवा बैठे, वो हिन्दुस्तान गंवा बैठ ।

बहुत्त बहुत.... प्यारी कविता है bhai सच छिपा है इस कविता के एक एक शब्द में ... ... काश ये बात सब समझते ..

rafik 27-10-2014 10:47 AM

Re: छींटे और बौछार
 
सियासत में गिरावट का कुछ ऐसा बोलबाला हैं,
यॅूं लगता है सियासत धॉंधली की पाठशाला है।
सियासत की कृपा से उंगलिया गुंडो की है घी में,
मगर, जनता की किस्मत में वही सूखा निवाला है।
कभी दो जून की रोटी को तरसते थे, वे नायक है,
अब उनकी मेज पर व्हिस्की, चिकन है और प्याला है।
सियासत जो कभी जनसेवकों की कर्मशाला थी,
सियासत वो ही अब अपराधियों की धर्मशाला हैं।
सियासत ने चाहा था उज+ाला छीनना मुझसे,
अदालन की वजह से ही मेरे घर में उजाला है।

rajnish manga 27-10-2014 06:42 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by rafik (Post 535417)

सियासत में गिरावट का कुछ ऐसा बोलबाला हैं,
यॅूं लगता है सियासत धॉंधली की पाठशाला है।
***

बहुत खूब, गज़ब की कविता है.

rajnish manga 31-03-2015 03:02 PM

Re: छींटे और बौछार
 
ग़ज़ल
श्री विन्ध्याचल पाण्डेय

सच न कहेंगे, सच न सुनेंगे, इसलिए हम है आज़ाद।
सुरा-सुन्दरी, भ्रष्टाचार........जिन्दाबाद, जिन्दाबाद।

सुविधा-शुल्क और महंगाई, इसीलिए सरकार बनाई,
कौन सुनेगा किसे सुनाएं अब जाकर जनता फरियाद।

सूर, कबीर, निराला, तुलसी, गालिब, मीर मील के पत्थर,
नई फसल के लिए शेष है अब तो केवल वाद-विवाद।

सेण्टीमेण्ट विलुप्त हो रहा, इन्स्ट्रुमेन्टल प्यार हो गया,
झूम रहे हैं, घूम रहे हैं, कौन करे इसका प्रतिवाद।

क्षेत्रवाद, आतंकवाद को भाषा, धर्म से जोड़ा,
सत्ता वाली कुर्सी खातिर, करते नए-नए इजाद।

rajnish manga 01-09-2015 09:51 PM

Re: छींटे और बौछार
 
गीत
ज़फ़र गोरखपुरी

खुदा ने दिल बनाकर क्या अनोखी शय बनाई है
ज़रा सा दिल है, इस दिल में मगर सारी खुदाई है

ये दिल अल्लाह का घर है, ये दिल भगवान का घर है
बदी दिल में समां जाये तो दिल शैतान का घर है
इसी दिल में भलाई है. इसी दिल में बुराई है

ये दिल फुल है, चट्टान है, मौज-ए-समुन्दर है
ये नरम पानी है, यही दिल सख्त पत्थर है
छुपा है दर्द, बेदर्दी भी इसी दिल में समाई है

जो चाहे देख लो इसमें ये आईने से सच्चा है
समझदारी में बुढा है, तो भोलेपन में बच्चा है
खिलौना भी ये बन जाता, आदत ऐसी पाई है

बड़ी मुश्किल है, इसका साथ छोड़ा भी नहीं जाये
अगर एक बार टूटे तो ये जोड़ा भी नहीं जाये
गुलो की आंच से शीशे की फितरत जो पाई है



A.sunil sharma 02-12-2016 06:40 PM

Re: छींटे और बौछार
 
कहना तो बहुत कुछ चाहती है ये निगाहें, लेकिन कुछ कहने से घबराती है ये निगाहें...

http://pravaaah.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

rajnish manga 30-01-2024 01:55 PM

Re: छींटे और बौछार
 
यह सूत्र इस फोरम का सरताज है. धन्यवाद जय भारद्वाज जी.
सभी दोस्तों का शुक्रिया.


:bravo:


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