My Hindi Forum

My Hindi Forum (http://myhindiforum.com/index.php)
-   Film World (http://myhindiforum.com/forumdisplay.php?f=18)
-   -   बॉलीवुड शख्सियत (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=12977)

rajnish manga 15-05-2014 03:35 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
Story of Mehmood: The Rise & Fall of a Comedian
महमूद की कहानी: एक कामेडियन का उत्थान और पतन
(आलेख आभार: समय ताम्रकर)

अपने समय के सार्वाधिक चंचल और हमेशा नवीनता में विश्वास करने वाले कलाकार- कॉमेडियन महमूद की फिल्मों पर निगाह डालें तो उनकी फिल्मों के बहुत से दृष्य आँखों के सामने आ जाते हैं, जैसे आरज़ू फिल्म में डल लेक का शिकारा चालक ममदू, चित्रलेखा का भ्रमित युवा सन्यासी, हमजोली फिल्म में निर्देशक के रूप में पिता ओम प्रकाश को मुंह से आवाजे निकाल कर एक डरावने सीन के ज़रिये प्रभावित करने का दृष्य, या आपको उनका यह डायलाग तो याद होगा ही - दे दे अल्लाह के नाम पे दे दे! दिनार नहीं, तो डॉलर चलेगा. शर्ट नहीं तो शर्ट का कॉलर चलेगा. इस संवाद के बाद गाना शुरू होता है- तुझको रक्खे राम, तुझको अल्लाह रक्खे. यह सीन है रामानंद सागर की फिल्म आंखे (1968) का. महमूद भिखारी के भेष में अपने साथी धर्मेन्द्र की तलाश में हैं. अपनी फिल्म कुंवारा बाप में एक गरीब रिक्शा चालक द्वारा एक अनाथ पोलियोग्रस्त बच्चे की परवरिश और उसे समाज का एक सक्षम नागरिक बनाने में आने वाली कठिनाइयों को बड़े भावपूर्ण तरीके से दर्शकों के सामने रखा था. फिल्म “पड़ोसन” तो एक क्लासिक फिल्म के रूप में सदा याद रखी जायेगी.

rajnish manga 15-05-2014 03:37 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
ऐसे ही महमूद को तरह-तरह की विचित्र आवाजें निकालने का बेहद शौक था. फिल्म प्यार किए जा में उन्होंने लैंग्वेज से इफेक्ट पैदा किया था- टोइंग-टोइंग.... वाव्व-वाव्व.....कु्रड-कु्रड कच-कच-कच......श्मशान की भयाकनता वह शब्दों के मार्फत बताना चाहते थे. हिन्दी सिनेमा में कॉमेडियन की लंबी परंपरा रही है. लेकिन सबसे अधिक फिल्मों में सबसे अधिक नाना-प्रकार के रोल करना उनके ही खाते में दर्ज है

बचपन बॉम्बे टॉकीज के आंगन में

महमूद का जन्म 29 सितम्बर 1932 को मुंबई के बायुकला इलाके में हुआ था. उनके पिता मुमताज अली बॉम्बे टॉकीज में नर्तक-अभिनेता थे. महमूद का बचपन अपने पिता के साथ स्टूडियो में बीता. स्टूडियो में खेलना-कूदना और मौज-मस्ती करना उन्हें पसंद था, लेकिन फिल्मों में एक्टिंग की रूचि कतई नहीं थी. पतंग उड़ाना, दोस्तों के साथ बगीचों से आम चुराना, काजू खाना उन्हें अच्छा लगता था.

छुटपन में महमूद ने अपने हुड़दंगी साथियों का एक गुट बना रखा था. वह सभी मिलकर अपने से बड़ों का मजाक बनाने और नकल करने में माहिर थे. बॉम्बे टॉकीज की फिल्मों में काम करने वाले कलाकार अक्सर अपनी मोटर-कार भेजकर महमूद को बुलवाते और हंसी-मजाक से अपना मनोरंजन करते थे. महमूद ने कई बार घर से भागने की कोशिश की थी. एक बार पकड़े गए, तो मां ने नाराज होकर कहा- 'ये जो कपड़े पहने हो, तुम्हारे अब्बा के हैं. यहीं उतार कर जाओ.' और सचमुच में महमूद ने अपने बदन से सारे कपड़े उतार दिए और नग्न अवस्था में घर छोड़ दिया.

rajnish manga 15-05-2014 03:39 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
मीना कुमारी की बहन माधुरी से निकाह

घर से भागकर महमूद ने कई छोटे-मोटे काम किए जैसे अण्डे बेचना और मुर्गी के चूजे सप्लाई करना आदि. मीना कुमार को टेबल टेनिस खेलने की ट्रेनिंग भी महमूद ने दी थी. मीना के घर आना-जाना बढ़ा तो उनकी छोटी बहन माधुरी से 1953 में निकाह कर लिया. जब जिंदगी और परिवार के प्रति गंभीर हुए तो फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने लगे. लेकिन किसी निर्माता-निर्देशक को यह पता नहीं चलने दिया कि वह मीना कुमारी के बहनोई हैं.

बॉम्बे टॉकीज की फिल्म किस्मत (1943) में अशोक कुमार के बचपन का रोल महमूद ने किया है. इसके बाद किशोर साहू की फिल्म सिंदूर (1947) में एक भूमिका निभाई. अब तक महमूद की बहन मीनू मुमताज एक प्रसिद्ध अभिनेत्री बन चुकी थी. मगर यहां भी उन्होंने अपनी खुद्दारी कायम रखी और बहन के नाम का इस्तेमाल नहीं किया. ऐसा कहा जाता है कि बीआर चोपड़ा की फिल्म एक ही रास्ता (1953) में उन्हें जो रोल ऑफर हुआ था, उसकी वजह मीना कुमारी थी, जो फिल्म की नायिका थी. महमूद ने अपना रास्ता बदल लिया.

rajnish manga 15-05-2014 04:03 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
अशोक कुमार की सलाह

बॉम्बे टॉकीज के समय से ही महमूद दादा मुनि यानी अशोक कुमार के फेवरेट हो गए थे. उन्होंने अपनी फिल्म बादबान (1954) तथा बंदिश (1955) में महमूद को काम दिया. एक बार उन्होंने महमूद को पास बैठाकर कर कहा कि तुम्हारे ललाट पर त्रिशूल का निशान है. भगवान शिव तुमसे प्रसन्न हैं. इसलिए फिल्मों के किरदार के नाम महेश रख कर काम किया करो. महमूद ने ऐसा ही किया.

महमूद को फिल्में तो मिलती चली गईं मगर ऐसा रोल नहीं मिला, जिससे उनकी पहचान बन सके. जॉनी वाकर ने महमूद की मदद की. गुरुदत्त की फिल्म सीआईडी (1956) में एक हत्यारे का रोल किया. फिल्म प्यासा (1957) में गुरुदत्त के भाई का रोल निभाया, जो गुरुदत्त को घर से बाहर कर देता है. अभिमान तथा हावड़ा ब्रिज फिल्म में भी महमूद ने काम तो किया मगर किस्मत चमक नहीं पाई.

rajnish manga 15-05-2014 04:25 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
सुसराल से बने कॉमेडियन

महमूद को लाइमलाइट में लाने वाली फिल्म थी परवरिश (1958). इसमें वह राज कपूर के हंसोड़ छोटे भाई बने थे. इस फिल्म के बाद उन्हें लंबे और महत्वपूर्ण रोल ऑफर होने लगे. छोटी बहन (1959), कानून (1960) तथा मैं और मेरा भाई (1961).

इसके बाद आई राजेन्द्र कुमार – बी. सरोजा देवी अभिनीत फिल्म ससुराल (1961). इसमें उनका कॉमेडियन का रोल था, जो सीन चुराकर ले गया. शुभा खोटे उनके अपोटिज थी. दोनों की जोड़ी आगे चलकर हिट हुई. महमूद ने इसमें एक यादगार गाना गाया था- अपनी उल्फत पे जमाने का ना पेहरा होता. शुभा खोटे- महमूद की मैजिकल केमिस्ट्री को दर्शकों ने बेहद पसंद किया. इनकी टीम बाद में दिल तेरा दीवाना, गोदान, गृहस्थी, भरोसा, हमराही, बेटी-बेटे, जिद्दी और लव इन टोकियो में लगातार दिखाई दी.

कॉमेडियन की इस जोड़ी ने थर्ड-एंगल के बतौर धुमाल को जोड़ देने से नौटंकी ज्यादा धमाकेदार हो गई.

फिल्म ससुराल का गीत "अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होता .." महमूद और शोभा खोटे पर फिल्माया गया था


फिल्म ससुराल के पोस्टर

Dr.Shree Vijay 15-05-2014 07:29 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 

स्व.श्री महमुद के बारे में इतनी सूक्ष्म जानकारिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद.........

rajnish manga 15-05-2014 10:57 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
Quote:

Originally Posted by dr.shree vijay (Post 502429)

स्व.श्री महमुद के बारे में इतनी सूक्ष्म जानकारिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद.........

बॉलीवुड शख्सियत महमूद अली साहब विषयक इस आलेख को पसंद करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, मित्र. कृपया समय समय पर अपने विचारों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करते रहें.

rajnish manga 15-05-2014 11:16 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
महमूद का अनोखा म्यूजिक सेंस

महमूद के एक व्यक्तित्व में कई व्यक्तित्व समाए हुए थे. उन्हें संगीत की बेहतर समझ थी. उन्होंने जॉनी वाकर को सामने रखकर कई गाने अपनी फिल्मों में गाए हैं. दूसरे पार्श्वगायक मन्ना डे ने जितने नटखट गाने गाए हैं, ज्यादातर का पार्श्वगायन महमूद के लिए हुआ है. मन्ना डे ने अपनी आत्मकथा में महमूद का आभार भी माना है.

जब महमूद फिल्म निर्माता बन गए तो उन्होंने अनेक संगीतकारों को मौका देकर आगे बढ़ाया. मिसाल के बतौर आरडी बर्मन (छोटे नवाब), राजेश रोशन (कुंआरा बाप) तथा बासु-मनोहारी (सबसे बड़ा रुपैय्या) के नाम गिनाए जा सकते हैं.
महमूद का अनोखा म्यूजिक सेंस

महमूद के एक व्यक्तित्व में कई व्यक्तित्व समाए हुए थे. उन्हें संगीत की बेहतर समझ थी. उन्होंने जॉनी वाकर को सामने रखकर कई गाने अपनी फिल्मों में गाए हैं. दूसरे पार्श्वगायक मन्ना डे ने जितने नटखट गाने गाए हैं, ज्यादातर का पार्श्वगायन महमूद के लिए हुआ है. मन्ना डे ने अपनी आत्मकथा में महमूद का आभार भी माना है.

जब महमूद फिल्म निर्माता बन गए तो उन्होंने अनेक संगीतकारों को मौका देकर आगे बढ़ाया. मिसाल के बतौर आरडी बर्मन (छोटे नवाब), राजेश रोशन (कुंआरा बाप) तथा बासु-मनोहारी (सबसे बड़ा रुपैय्या) के नाम गिनाए जा सकते हैं.

^

rajnish manga 15-05-2014 11:21 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
जीरो से हीरो तक

अपने घर से नग्न अवस्था में बाहर आने वाला बालक अपने साथ जीरो लेकर चला था. जब कॉमेडियन के रूप में वह फिल्मों के लिए अनिवार्य हो गए तो छोटे बजट की फिल्मों में उन्हें हीरो के रोल मिलने लगे. इनमें छोटे नवाब (निर्माता-महमूद), फर्स्ट लव, प्यासे पंछी, कहीं प्यार ना हो जाए, शबनम, भूत बंगला, नमस्ते जी जैसी फिल्में प्रमुख हैं. आईएस जौहर के साथ भी महमूद की ट्यूनिंग उम्दा रही. जौहर-महमूद इन गोआ के बाद जौहर-महमूद इन हांगकांग इस जोड़ी की यादगार फिल्में हैं.

साठ के दशक में मध्य से हिन्दी फिल्मों के लिए महमूद का फिल्म में होना उसकी सफलता की गारंटी बन गया था. इस दौर में बड़े बैनर, बड़ी फिल्में और बड़े सितारों के साथ काम करने का मौका मिला. ऐसी फिल्मों का यहां सिर्फ उल्लेख किया जा सकता है- पत्थर के सनम, दो कलियां, नीलकमल, औलाद, प्यार किये जा, हमजोली, पड़ोसन आदि.

फिल्म पड़ोसन महमूद के करियर की ऑल टाइम ग्रेट फिल्म है. यदि पांच कॉमेडी फिल्मों की तालिका बनाई जाए, तो निश्चित रूप से उनमें से एक पड़ोसन रहेगी. शुभा खोटे के बाद कॉमेडी-पार्टनर के रूप में दूसरी लेडी हैं अरुणा ईरानी. महमूद का साथ पाकर अरुणा का करियर इतना आगे बढ़ गया कि महमूद ने अपने प्रोडक्शन हाउस में उनको हीरोइन बनाकर फिल्म बॉम्बे टू गोआ (1972) बनाई.

rajnish manga 15-05-2014 11:25 PM

Re: बॉलीवुड शख्सियत
 
एक ढलता हुआ सूरज

अपने करियर के शिखर पर जाकर महमूद अपने आपको संभाल नहीं पाए. जरूरत से ज्यादा कॉमेडी और इमोशनल रोल करने से वे टाइप्ड हो गए. एक के बाद एक लगातार फिल्में रिलीज होने से भी दर्शक महमूद-मेनिया के शिकार होने लगे.

सत्तर का दशक ढलते-ढलते महमूद के सूरज की गर्मी ठण्डी होने लगी. देव आनंद के केम्प में शरीक होकर उन्होंने डॉर्लिंग-डॉर्लिंग (1977), देस परदेस (1978) और लूटमार (1980) फिल्में की थीं. ये फिल्में देव आनंद के लिए भी कमजोर साबित हुईं. महमूद की इनमें चरित्र भूमिकाएं थीं. अस्सी के दशक में महमूद और निचली पायदान पर चले गए. दादा कोंडके का हाथ पकड़कर उन्होंने अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में और खोल दे मेरी जुबान जैसी स्तरहीन फूहड़ फिल्में की.

महमूद के जीवन के आखिरी दिन अकेले और बीमारी से संघर्ष में बीते. लगातार ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने से फिल्मी दुनिया से दूर होते चले गए. आखिरी समय में भारत भी छूट गया. उन्होंने 24 जुलाई 2004 को पेनसिल्वेनिया (अमेरिका) के अस्पताल में आखिरी सांस ली.


All times are GMT +5. The time now is 10:49 AM.

Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.