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rajnish manga 09-08-2014 12:00 AM

घूरे के दिन फिर जाते हैं
 
1 Attachment(s)
घूरे के दिन फिर जाते हैं

जैसे के तेरह वर्षों में
घूरे के दिन फिर जाते हैं
थाली के इक बैंगन के
भी पौ बारह हो जाते हैं

कितने गुंडे और मवाली
चुनाव जीत कर आते हैं
किस्मत देवे साथ अगर तो
मंत्री तक बन जाते हैं

कभी काठ के उल्लू भी
मुख्यमंत्री पद पा जाते हैं
जाति और धर्म के मोहरे
यूँ बिसात पर पड़ जाते है
>>>

rajnish manga 09-08-2014 12:20 AM

Re: घूरे के दिन फिर जाते हैं
 
अच्छे खासे जन सेवक भी
अक्सर मुंह की खा जाते हैं
सौ सुनार की एक लुहार की
क्या क्या रंग दिखा जाते हैं

अब हैं ऐसे लोग कहाँ जो
वादे पर मर मिट जाते हैं
मातृभूमि के सच्चे सेवक
इतिहास में पाए जाते हैं

कलयुग के नेताओं को देखो
दीवार पे लिख कर जाते हैं
“अवसर मिलते ही हम तो
मय सात पुश्त तर जाते है”

मगर
ऐसे घटिया नेताओं को
सबक सिखायेगी जनता
बोरी-बिस्तर बाँध कर
इनका निबटा दो टंटा.



rafik 13-08-2014 04:12 PM

Re: घूरे के दिन फिर जाते हैं
 
बहुत खूब

Dr.Shree Vijay 18-08-2014 06:08 PM

Re: घूरे के दिन फिर जाते हैं
 

मस्तीभरी व्यंगात्मक कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद.........



rajnish manga 18-08-2014 10:40 PM

Re: घूरे के दिन फिर जाते हैं
 
Quote:

Originally Posted by rafik (Post 523371)
बहुत खूब

Quote:

Originally Posted by dr.shree vijay (Post 523808)
मस्तीभरी व्यंगात्मक कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद.........


मेरा उत्साहवर्धन करने के लिये आप दोनों महानुभाव का बहुत बहुत धन्यवाद.


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