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Dr.Shree Vijay 17-09-2013 09:55 PM

जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 



जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अपना अपना ही महत्व होता हें.............

आप देख सकते हैं कि दुनिया में ऎसे मनुष्यों की कोई कमी नहीं है जो कि दिन रात मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी उनका सारा जीवन अभावों में ही व्यतीत हो जाता है । अब इसे आप क्या कहेंगें ? उन लोगों नें पुरूषार्थ करने में तो कोई कमी नहीं की फिर उन लोगों को वो सब सुख सुविधाएं क्यों नहीं मिल पाई जो कि आप और हम भोग रहे हैं......................




Dr.Shree Vijay 17-09-2013 09:57 PM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 


“भाग्यं फलति सर्वत्र न विधा न च पौरूषम
शुराग कृ्त विद्याश्च:,वने तिष्ठंति मे सुता: “





Dr.Shree Vijay 17-09-2013 09:58 PM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 



पांडवों की माता कुन्ती श्रीकृ्ष्ण से कहती है कि मेरा पुत्र महापराक्रमी एवं विद्वान है किन्तु हम लोग फिर भी वनों में भटकते हुए जीवन गुजार रहे हैं,क्यों कि भाग्य सर्वत्र फल देता है । भाग्यहीन व्यक्ति की विद्या और उसका पुरूषार्थ निरर्थक है.............




Dr.Shree Vijay 17-09-2013 10:00 PM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 



वैसे देखा जाए तो भाग्य एवं पुरूषार्थ दोनों का ही अपना-अपना महत्व है, लेकिन इतिहास पर दृ्ष्टि डाली जाए तो सामने आएगा कि जीवन में पुरूषार्थ की भूमिका भाग्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है.............




Dr.Shree Vijay 17-09-2013 10:06 PM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 



भाग्य की कुंजी सदैव हमारे कर्म के हाथ में होती है,
अर्थात कर्म करेंगे तो ही भाग्योदय होगा।
जब कि पुरूषार्थ इस विषय में पूर्णत: स्वतंत्र है ।
माना कि पुरूषार्थ सर्वोपरी है किन्तु इतना कहने मात्र से भाग्य की महता तो कम नहीं हो जाती.............




Dr.Shree Vijay 17-09-2013 10:07 PM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 



आप देख सकते हैं कि दुनिया में ऎसे मनुष्यों की कोई कमी नहीं है जो कि दिन रात मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी उनका सारा जीवन अभावों में ही व्यतीत हो जाता है । अब इसे आप क्या कहेंगें ? उन लोगों नें पुरूषार्थ करने में तो कोई कमी नहीं की फिर उन लोगों को वो सब सुख सुविधाएं क्यों नहीं मिल पाई जो कि आप और हम भोग रहे हैं .............




Dr.Shree Vijay 18-09-2013 11:34 AM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 


एक इन्सान इन्जीनियरिंग/डाक्टरी/मैनेजमेन्ट की पढाई करके भी नौकरी के लिए मारा मारा फिर रहा है, लेकिन उसे कोई चपरासी रखने को भी तैयार नहीं, वहीं दूसरी ओर एक कम पढा लिखा इन्सान किसी काम धन्धे में लग कर बडे मजे से अपने परिवार का पेट पाल रहा है । अब इसे आप क्या कहेंगें ?..............




Dr.Shree Vijay 18-09-2013 11:36 AM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 


एक मजदूर जो दिन भर भरी दुपहर में पत्थर तोडने का काम करता है–क्या वो कम पुरूषार्थ कर रहा है ?..............




Dr.Shree Vijay 18-09-2013 11:37 AM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 


अब कुछ लोग कहेंगें कि उसका वातावरण, उसके हालात, उसकी समझबूझ इसके लिए दोषी है ओर या कि उसमें इस तरह की कोई प्रतिभा नहीं है कि वो अपने जीवन स्तर को सुधार सके अथवा उसे जीवन में ऎसा कोई उचित अवसर नहीं मिल पाया कि वो जीवन में आगे बढ सके या फिर उसमें शिक्षा की कमी है आदि आदि…ऎसे सैकंडों प्रकार के तर्क हो सकते हैं..............




Dr.Shree Vijay 18-09-2013 11:38 AM

Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
 


मैं मानता हूँ कि इस के पीछे जरूर उसके हालात, वातावरण, शिक्षा दीक्षा, उसकी प्रतिभा इत्यादि कोई भी कारण हो सकता है लेकिन ये सवाल फिर भी अनुतरित रह जाता है कि क्या ये सब उसके अपने हाथ में था ? यदि नहीं तो फिर कौन सा ऎसा कारण है कि उसने किसी अम्बानी, टाटा-बिरला के घर जन्म न लेकर एक गरीब के घर में जन्म लिया । है किसी तर्कवादी के पास इस बात का उत्तर?..............





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