Lahra lo Tiranga pyara
बात आज की नहीं, न जाने कितने दशक पुरानी है
दुश्मन चीन की फितरत में तो भरी हुई बेईमानी है कहते थे बरसो पहले तुम, हैं हिदी चीनी भाई भाई फिर सीमा पर चुपके चुपके किसने थी आग लगाईं फेंगसुई का बहाना करके क्यों अन्धविश्वास फैलाया नकली और घटिया चीजों का भारत में जाल बिछाया लड़ियाँ, घड़ियाँ और पटाखे, टीवी व ए.सी. दे गए सस्ती चीज़े पकड़ा कर के हमसे वो करोड़ों ले गए न समझ सके तब हम इन पाखंडियों की चाल को जब तक सरहद पर वीरों ने न देखा चीनी जाल को बेनक़ाब दुश्मन है उसका असली चेहरा देख लो पहचानों और अभी रोक दो शत्रु है बहरा देख लो हमें बेच कर चीजें अपनी, पैसा जो हमसे पायेगा हथियार खरीदेगा उससे व हमको आँख दिखायेगा सस्ता नहीं लहू हमारे किसी भी सैनिक भाई का विषधर जैसे दुश्मन ने कब साथ दिया सच्चाई का आदत से मजबूर है जो वो गन्दा खेल ही खेलेगा एक अगर हों जायेंगे हम कब तक हमको झेलेगा आज़ादी का पावन पर्व, पंद्रह अगस्त जब आयेगा दुश्मन की छाती पर मूंग दलता तिरंगा फहरायेगा |
Re: Lahra lo Tiranga pyara
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Re: Lahra lo Tiranga pyara
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Re: Lahra lo Tiranga pyara
[QUOTE=rajnish manga;561509]बहुत बहुत धन्यवाद, बहन. 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) आने वाला है और दूसरी ओर चीन की अजीबो गरीब हरकतें भी सामने आ रही हैं. हमें चाहिए कि वास्तविकता को सामने रखते हुए चीनी सामान को न खरीदें और स्वदेशी उत्पादकों को प्रोत्साहन प्रदान करें. उद्दंड चीन को उचित उत्तर भेजना जरुरी है. हर लिहाज़ से यह एक सुंदर रचना है और देशभक्ति से भरी हुई है. पुनः धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
जी सच कहा आपने भाई यदि हम अपने राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपने देश को सभी तरह से समृद्ध करना होगा वर्ना हमारे ही पैसों से दुश्मन हमें ही सतायेंगे। . कविता पसंद करने के लिए आभारी हूँ बहुत बहुत धन्यवाद भाई। |
Re: Lahra lo Tiranga pyara
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कविता के अंतर्गत कही बात को आपने बख़ूबी समझा। . बहुत बहुत धन्यवाद पवित्रा जी। |
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