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-   -   'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=7412)

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:38 PM

'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
शहर से कोसों दूर बढ़ापुर नाम का एक गाँव है, गाँव में चौहान जाति के ठाकुर रहते हैं, पुराने ज़मींदार थे। आज भी किसी-किसी के पास आठ-आठ दस-दस एकड़ ज़मीन है। फसल भी अच्छी हो जाती है हर एक के खेत में टयूबवेल लगा है, कुछ घर ब्राह्मणों के हैं जो खेती नहीं करते हैं खेत भी नहीं है, कुछ और जातियों के घर भी हैं जो इन ज़मींदारों के घर पर काम करते हैं, फसल पर कुछ अनाज मिल जाता है कुछ मजदूरी करते हैं जहाँ भी आसपास काम मिल गया, कुल मिलाकर गाँव खुशहाल है।
इसी गाँव में राजेश नाम का एक किसान रहता है, कोई पैंतीस छत्तीस साल का होगा, सात आठ साल पहले उसकी शादी हुई थी कमलेश के साथ, कमलेश देखने में खूबसूरत थी, उसके पिता जी भी बड़े ज़मींदार थे, राजेश के पिता नहीं थे, वह दस बारह साल पहले किसी दुर्घटना में मारे गए। राजेश ने अपने चाचा चाची के साथ जाकर कमलेश को देखा, देखते ही राजेश शादी को तैयार हो गया, होता भी क्यों नहीं ऐसी सुन्दर लड़की और उसका बाप भी मालदार, शादी बड़े धूमधाम के साथ सम्पन्न हो गई।

कमलेश को पाकर राजेश धन्य हो गया, साल भर बाद उसने एक लड़के को जन्म दिया, जिसका कुलदीपक नाम रखा, दो साल बाद एक लड़की हुई मीनाक्षी।

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:38 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
जब मीनाक्षी पेट में थी तभी से कमलेश बीमार रहने लगी, मीनाक्षी के होते-होते वह काफी कमज़ोर हो चुकी थी, धीरे-धीरे उसने चारपाई पकड़ ली, राजेश ने आसपास के कई छोटे मोटे डाक्टरों को दिखाया तमाम दवाइयाँ भी खिलाई पर कमलेश का रोग किसी से ठीक नहीं हुआ।
किसान हो या व्यापारी चाहे नौकरी पेशा ही क्यों न हो, घर में बीम'ा'री किसी को लग जाए तो घर बरबाद हो जाते हैं। राजेश कमलेश को लेकर शहर गया। घर बूढ़ी माँ के हवाले हो गया, माँ को दो बच्चे देखने, खेतों को देखना, जानवर भी पाले थे, उन्हें कौन देखता, सो एक दिन पास के बाज़ार में भिजवाकर सभी जानवर औने पौने दामों में बेच दिए, उधर शहर में कमलेश के डॉक्टर ने परीक्षण के आधार पर बताया कि इसको शुगर की बीमारी है और वह काफी बढ़ चुकी है, एक गुर्दा तो बिल्कुल खराब हो चुका है, दूसरा भी खराब होने ही वाला है। कमलेश का रोग ठीक हो ही नहीं सकता इसके गुर्दे बदलने पड़ेगे, राजेश की तो हालत खराब, रूवांसा हो गया, कमलेश की उमर ही क्या होगी यही कोई अठाइस तीस साल, गुर्दे बदलने को पाँच लाख रुपए की ज़रूरत पड़ेगी वो भी ठीक होने की कोई गारण्टी नहीं, डाक्टर के कम्पाउन्डर ने सलाह दी कि इसे दिल्ली दिखा दो किसी बड़े अस्पताल में। राजेश कमलेश को लेकर दिल्ली पहुँच गया, जो भी पाई पैसा था वह सब खर्च हो चुका था, वहाँ के डॉक्टरों ने भी वही सलाह दी जो उसके शहर के डॉक्टर ने दी थी, राजेश कमलेश को लेकर घर आ गया, घर आने के एक महीने बाद कमलेश की मृत्यु हो गई। सारी जमा पूँजी इलाज में लगा दी अन्त में मरीज़' से भी हाथ धो बैठा राजेश।

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:39 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
राजेश के घर की हालत खराब हो चुकी थी, बूढ़ी माँ विक्षिप्त हो गई थी, जब देखो तब आँखों से आँसू की धारा, राजेश को जब भी देखें तब रो पड़ती थीं, कलेजे के टुकड़े को परेशानी में देखकर हर माँ का दिन ऐसे ही भर आता है। छोटे बच्चों की भी हालत खराब। कपड़े मैले हो रहे हैं, हफ्ते भर से बच्चों को नहलाया नहीं है, बड़ा स्कूल जाने लायक हो गया हे कौन भेजे सब तितर बितर हो गया है, सारा निजाम ही बिगड़ गया है घर का, माँ बिल्कुल टूट गई है, उसे घर सुधरने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। निराशा से घिरी रहती है रात दिन, एक दिन राजेश के चाचा घर पर आए तो उसकी माँ उनके आगे फफक-फफक कर रो दी, चाचा ने बहुत समझाया बुझाया ये सब विधि का विधान है, वैसे ही आपको भाईसाहब का दुख सालता रहता है, ऊपर से जवान बहू की मौत हो गई रोना तो आएगा ही पर किया क्या जाए, हिम्मत रखो धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।

इतने में ही राजेश कहीं से आया, बड़ा बच्चा राजेश को लिपट गया, छोटी दादी की गोद में बैठी है। पूरा घर ही बेतरतीब हुआ पड़ा है, छत की तरफ़ जाले लगे हैं, दीवारें बच्चों ने खुरच रखी है, कपड़े अस्तव्यस्त हैं, बरतन कोई यहाँ पड़ा है कोई वहाँ, रसोई में मक्खियाँ भिनभिना रहीं हैं। झूठे बर्तनों का ढेर लगा पड़ा है। अब राजेश आ गया है, वह छोटी को पकड़ेगा तो माँ किसी तरह रोटी का प्रबन्ध करेगी, बातों ही बातों में चाचा ने कहा भाभी जी आप राजेश की शादी कर दो, दूसरी औरत आ जाएगी तो घर की हालत सँभाल लेगी, ''कह तो ठीक रहे हो पर कोई नरम दिल की मिले तब ना'' दूसरी तो पहली के बच्चों को मारेगी, जलन करेगी, अगर चाल चलन ठीक नहीं तो घर को नरक बना देगी, उससे तो ऐसे ही काट लेंगे। फिर रूवांसी हो गई। चाचा ने कहा, ''फिकर मत करो देखभाल कर करेंगे। कोई विधवा परित्यक्ता मिल जाएगी तो ज़्यादा ठीक रहेगा। वो ज़्यादा नखरे नहीं करेगी, पर पूछताछ करनी पड़ेगी, समय निकाल कर करना होगा। भाभी आपकी हालत मुझसे देखी नहीं जाती, आपने तो अपने बच्चे की तरह पाला है मुझे, देखना मैं राजेश को सही औरत लाके दूँगा।''

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:39 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
चाचा शादी के लिए औरत देखने में लग गए, जगह-जगह के आदमियों से चर्चा की, कुछ रिश्तेदारियों में संदेशा पहुँचवाया कि कहीं राजेश के लायक कोई औरत हो तो बताना, कुछ दिनों के बाद एक गाँव से खबर आई कि यहाँ एक ऐसी औरत रहती है, बड़े ही गरीब घर की है, बाप के पास कुछ नहीं है, अगर भगवान ने चाहा तो रिश्ता हो जाएगा, चाचा राजेश के साथ उसी गाँव में पहुँच गए जिन्होंने सन्देशा भिजवाया था उन्ही के घर रुके, नमस्कार कुशलक्षेम के बाद चाय पी।

थोड़ी देर बाद घर के मुखिया ने कहना शुरू किया, देखो राजेश बाबू आप ठहरे बड़े किसान कोशिश करोगे तो आपको कुँवारी कन्या मिल जाएगी थोड़ा बहुत दहेज भी मिल जाएगा, अभी आपकी उमर ही क्या है अब तो चालीस छोड़ो पैंतालिस साल के भी शादी कर रहे हैं, पर मैंने जो देखा है उसका जबाब नही, देखने में साँवली ज़रूर है, कद भी छोटा है, पर है बड़ी होशियार, अपने बाप को पाल रही है, हमारे ही बिरादरी के हैं, इसके दादा गलत सोहलत में पड़ गए थे, तमाम बुरे काम 'शराब, जुआ' सब सम्पत्ति बेचकर मरते समय कंगाल हो गए थे, आगे को एक लड़का था उसी का बाप हमारे खेतों में काम करता है। न पढ़ा न लिखा न ज़मीन और करता भी क्या बीबी पहले ही मर चुकी है, हमने रहने के लिए छोटा-सा मकान बनाकर दे दिया था, उसी में रहते हैं, मेरे कहने को टालेंगे नहीं कहो तो मैं लड़की और उसके बाप को बुला देता हूँ, और यह भी सुन लो हमने उसकी शादी भी करवा दी थी एक अच्छे परिवार में पति को पसंद नहीं आई, उसने छोड़ दिया, यहीं रहती है, इन्टर तक का कॉलेज है गाँव में इंटर तक पढ़ी है, अगर शहर में किसी सेठ के यहाँ पैदा हुई होती तो डॉक्टर बैरिस्टर होती। राजेश जी घर बनाने वाली है, सिलाई कढ़ाई करती है गाँव के बच्चों को घर पर पढ़ाती है, बड़ी शालीन है, किसी से कभी ज़ोर से बोली नहीं होगी, मैं अपनी लड़की समझता हूँ उसे। अगर आप राज़ी हो गए तो उस बेचारी की ज़िन्दगी सुधर जाएगी और आपका घर भी बन जाएगा।

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:39 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
राजेश ने गौर से बातें सुनी और औरत और उसके बाप को बुलाने को आग्रह किया, थोड़ी देर में दोनों बाप बेटी सामने बैठे थे। वाकई रंग काला ही था फिर गरीब थी परित्यक्ता थी, फिक्र में जीने वालों का रंग वैसे ही काला पड़ जाता है पच्चीस छब्बीस की होगी, चेहरे से ज़्यादा की लग रही थी, बाप कुछ बोला नहीं गरदन झुकाकर एक तरफ़ को बैठ गया। राजेश ने नाम पूछा तो औरत ने 'रूपा' बता दिया, शादी के लिए पूछने पर कह दिया जैसा ताऊजी कहेंगे।

फिर राजेश के चाचा ने कहना शुरू किया देखो बिटिया ये दो बच्चों का बाप है? घर में बूढ़ी माँ है, घरवाली के इलाज में बहुत बरबाद हो गया है, इसके पास जमा पूँजी कुछ नहीं है, बस एक ट्रैक्टर और खेत में टयूबवैल है। एक हवेली और सात आठ एकड़ ज़मीन है। सारे जानवर बहू की बिमारी के दौरान देखभाल न हो पाने की खातिर बेच दिए हैं, तुम समझ लो बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, भाभी को सम्भालना होगा, बच्चों की देखभाल करनी होगी, तुम यह सब कर लोगी, रूपा ने हाँ में गरदन हिला दी, फिर उस रिश्तेदार जिसके यहाँ रुके थे ने कहना शुरू किया, ''बेटी ये बड़े किसान हैं परेशानी किसे नहीं आती, सब दिन एक समान नहीं होते जमी जमाई गृहस्थी है, मुझे यकीन है तुम ज़रूर सँभाल लोगी, फिर राजेश की तरफ़ मुखातिब होकर बोले राजेश जी आपने इसे देख लिया है आप हाँ कर रहे हो?'' राजेश ने भी हाँ कह दिया।

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:40 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
दूसरे दिन गाँव के ही पंडित ने गाँव के मन्दिर में एक दूसरे के गले में जयमाला डलवा दी। राजेश और उसके चाचा रूपा को लेकर गाँव आ गए। चाचा जी ने अपने घर से खाना पका कर भेज दिया, खाना खा पीकर थोड़ी देर बातचीत कर सब सो गए। दूसरे दिन सूर्योदय से पहले ही जाग की खड़ी हुई रूपा, पूरे मकान की सफाई की छतों के जाले साफ़ किए, आँगन की लिपाई कर दी फ़र्श पर पोंछा लगाया, सभी कपड़ो की तह कर करीने से जगह पर रखे, रसोई की धुलाई कर दी राजेश थोड़ी देर देखता रहा फिर उठकर वह भी रूपा का हाथ बँटाने लगा, पड़ोस से दूध लाया चाय बनाई माँ को जगाया उन्हें चाय पिलाई फिर रूपा ने दोनों बच्चे जगाए, उनको सुबह ही नहला दिया, उनको नए कपड़े पहना दिए, दूध पिलाकर आँगन में खाट बिछाकर बैठा दिए, वे दानों खेलने लगे माँजी को नहला दिया। उनके बालों में थोड़ा तेल चुपड़कर कंघी कर दी, साफ़ धोती पहनने को दी, उनको भी बाहर खाट पर बिठा दिया, अब देखो कल शाम ही रूपा घर में आई थी सुबह उसके काम को देखकर लग रहा था जैसे बरसों से यहीं रह रही हो, हो भी क्यों न सेवा भाव हो तो हाथ पैर काम की तरफ़ अपने आप चलने लगते हैं, रूपा रसोई में गई सभी डिब्बे खोलकर देखा किस डिब्बे में क्या दालें हैं, आटा चावल के बरतन टटोले राजेश खेतों से कुछ सब्ज़ियाँ ले आया, इतने में रूपा ने पराठे सेंक दिए सभी का नाश्ता हो गया।

नाश्ते से निपटकर रूपा ने घर के सभी कपड़े धोए राजेश ने हेंडपंप चलाकर रूपा का सहयोग किया, दोनों ने मिलकर कपड़े फैला दिए, माँ आँगन में खाट पर बैठकर रूपा को काम करते हुए एक टक देखती रही, चन्द घन्टों में ही घर की काया पलट दी रूपा ने। सुबह के सारे कामों से निपट खुद नहाधोकर रूपा ने माँ जी से पूछा दिन में खाने के लिए क्या पकाना है। माँ जी ने उसे अपने साथ थोड़ी देर खाट पर बैठाया, कुलदीपक संशय भरी निगाह से देख रहा था रूपा को, उसने हाथ पकड़कर खींचा अपने सीने से लगाया, उसने उसके गालों को कई बार चूमा, फिर उसे छोड़कर मीनाक्षी को गोद में उठा लिया, उसे लेकर आँगन में ही टहलने लगी। चंद घन्टों में ही बच्चे भी अपना लिए माँ भी खुश।

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:40 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
पड़ोस में नई दुल्हन आई हो और पड़ोसने देखने को न आएँ ऐसा कैसे हो सकता है? लिहाजा दोपहर के समय एक-एक दो-दो करके घर में आने लगीं। रूपा का रंग रूप देखकर सभी माँ जी से फुसफुसाने लगीं, ''अरे लाना ही था तो किसी अच्छी-सी देखने भालने में ठीक-सी लाते। ये क्या लाए हो? इतनी जल्दी भी क्या थी? अभी छ: महीने ही तो हुए हैं कमलेश को मरे। हमसे कहते हमारे मायके में है एक पति से बनी नहीं मायके में ही रह रही है इतनी सुन्दर की पूछो मत। माँ जी उनको सुनती रहीं बोली कुछ नहीं। थोड़ी देर में रूपा चाय बना लेकर आई सबको चाय के कप पकड़वाए। फिर जिस जिसको माँ जी ने बताया उनके पैर छुए सामने बैठ गई। पड़ोसनों का आना जाना दो तीन घन्टे चला आखिर में छाया आई।

छाया इस गाँव की सबसे पढ़ी लिखी बहू है। एम.ए. तक पढ़ी है। लम्बी-सी चोटी माँग में सिन्दूर बड़ी-बड़ी आँखे गदराया हुआ शरीर गोरा चिट्ठा रंग जैसे अंग्रेज़ हो। गाँव भर में इसके रूप रंग के चर्चे होते हैं। पति भी बहुत प्यार करता है। गाँव के जवान लड़के घर पर मंड़राते रहते हैं। बड़े सलीके से रहती है आसपास की औरतें इससे ईर्ष्या रखती हैं। बहुत कम बोलचाल है कुछ घमन्डी टाइप की है। यह नई बहुओं को देखने के लिए इसलिए जाती है कि कहीं आने वाली मुझसे ज़्यादा सुन्दर तो नहीं? बनाव शृंगार में घन्टों लगाती है इसके खर्चे भी बहुत हैं। छाया के पति ने घर में टीवी, फ्रिज, गैस चूल्हा सब रखा है। इन सबके लिए अपना पुराना ट्रैक्टर तक बेच दिया, जो इनकम होती है कुछ फैशन में, कुछ ज़ायके के हवाले हो जाती है। पर है बहुत खुश। बीबी जो अति सुन्दर है। छाया ने भरपूर नज़र रूपा के चेहरे पर डाली पूरा शरीर आँखो से टटोला फिर माँजी की तरफ़ मुस्कुराकर देखा, अपने घर चली आई। रूपा के रूप रंग से गाँव की रूपवतियाँ खुश नहीं थी। एक ने दूसरे से कहा, ''हमें क्या है? जब राजेश को पसन्द है तो ठीक है।''

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:40 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
रूपा को आए पूरा हफ्ता हो चुका है। माँ जी को लग रहा है जैसे रूपा हफ्ता नहीं बरसों से साथ है। सेवा में लगी रहती है, राजेश से कहकर दूध देने वाली भैंस ख़रीद ली। बच्चों को दूध घर का मिलने लगा, कुलदीपक स्कूल जाने लगा है मीनाक्षी अभी डेढ़ साल की है। रूपा कुलदीपक को बड़े प्यार से पढ़ा रही है। बच्चे मम्मी-मम्मी कहने लग गए हैं। राजेश खेतों की देखरेख में लग गया है। माँ जी सुबह शाम घूमने लगीं हैं, माँ जी के सिर में तेल ठोककर पैरों के तलवों की मालिश होने लगी है। पूरा घर घर की तरह हो गया है। गाँव के बाज़ार से कपड़ा लाकर बच्चों को नए कपड़े रूपा ने खुद सीकर पहना दिए, माँ जी का ब्लाउज पेटीकोट सी दिया।

पड़ोसने चुपचाप देखती रहती, रूपा को किसी और से बात करने की फुरसत कहाँ। इन्टर पास है गाँव के कॉलेज से वो भी कृषि विज्ञान से, उसने खेतों में जाना भी शुरू कर दिया। राजेश को खेत की मिट्टी की जाँच कराने को कहा सही बीज खाद का चयन करने को कहा। एक भैंस से घर के ही दूध की भरपाई हो पाती है, अगर हमारे पास आठ दस भैंसे होती तो हमारी इनकम बढ़ जाती बायो गैस प्लान्ट लग जाता घर की रोशनी के लिए सौर ऊर्जा संयत्र लग जाता गोबर के उपले की जगह जैविक खाद बनने लगती। किसी सरकारी बैंक से कर्ज़ लेकर राजेश ने रूपा की मनोकामना पूरी कर दी। भैंसो की देखरेख के लिए एक नौकर रख दिया।

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:41 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
रूपा राजेश के संग पिछले एक डेढ़ साल से रह रही है। माँजी ने कहा, ''रूपा बेटी तुम्हारा भी एक बच्चा होता तो तुम्हारे लिए ही अच्छा होता।'' रूपा ने साफ़ इनकार कर दिया, ''माँ जी भगवान की कृपा से बगैर पैदा किए दो बच्चे मिल गए और मुझे नहीं चाहिए। भगवान इनको लम्बी उमर दे। फिर माँ जी अपना पराया क्या है? क्या अपने बच्चे वाले सुखी हैं।'' राजेश की माली हालत पहले से काफी बेहतर हो गई। एक दिन माँ जी ने गाँव से रूपा के पिता जी को भी अपने घर पर ही बुला लिया। इनसे अब मजदूरी नहीं हो पाती है काफी कमज़ोर और बीमार हो गए थे। रूपा के अलावा इस संसार में इनका कोई नहीं है।

आज राजेश के घर के आगे नई कार खड़ी है। दूध की ब्रिकी से ख़रीदी है। बैंक में पैसा भी है, खेत पहले से दुगनी उपज वाले हो गए हैं। माँजी जवान लगने लग गईं है और बच्चे भी खुशहाल हैं। और क्या चाहिए राजेश को? उधर छाया के पति को उसके खर्चों ने कर्ज़दार बना दिया है। आज छाया रूपा के आगे नतमस्तक होकर खड़ी है उसे एक हज़ार रुपए की सख़्त ज़रूरत है। रूपा ने माँ जी की तरफ़ इशारा कर दिया उनसे ले लो। रूपा से मिलने के बाद और उसके कार्यकुशलता से प्रभावित होकर छाया को अपने रूप रंग पर खुद ही घृणा होने लगी। अब वह रूपा की दिवानी हो चली है। रूपा उसे कृ'षि' एंव पशुपालन की ट्रेनिंग दे रही है। उससे रूपा ने कहा दीदी आप मुर्गी फारम खोल लो बहुत जल्दी कार आ जाएगी।

jai_bhardwaj 14-04-2013 08:41 PM

Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी
 
राजेश के चाचा उसकी मम्मी के सामने बैठे हैं रूपा की चर्चा पूरे गाँव में है बोल, ''भगवान ने मेरी लाज रख दी मैं अपने को धन्य भाग समझता हूँ। भाभी जी जो रूपा जैसी बेमिसाल औरत हमारे गाँव में हैं।'' माँजी की आँखे एक बार फिर छलछलाने लगीं पर ये आँसू खुशी के थे जो रूपा ने माँ जी को दी थी। आज इस बड़ापुर गाँव में रूपा से रूपवान कोई औरत नहीं हैं पर रूपा दूसरी औरत के रूप में आई है काश! कोई रूपा जैसी दुल्हन पहली औरत के रूप में सहर्ष ले आता।


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