Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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कभी मंजिल ना मिले तो टूट ना जाना ज़िन्दगी में अगर महसूस हो कमी दोस्त की अभी मैं ज़िंदा हूँ, यह भूल ना जाना....... |
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नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही..... |
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ज़िन्दगी से इस तरह ... रिश्ता कभी टूटा न था ख्वाहिशों की भीड़ में निकला तो ये मुश्किल हुई पास था मेरे सभी कुछ ... इक मेरा चेहरा न था |
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क़फ़स-ए-इल्तिफ़ात-ए-परिंदा इस कद्र, ख़्वाब-ए-रिहाई का निशाँ नहीं !!..... _____________________________________ विदाद = मुहब्बत, क़फ़स = पिंजरा, इल्तिफ़ात = दोस्ती, |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तलाशे-मंजिल है अगर दिल से, तो एक दिन लाजिमी मिलेगी... -हरगोविंद दयाल 'नश्तर' |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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लहू-ए-आदम भिखरा तो है, हर नक्श-ए-क़ायनात तलक !!......... |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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चराग़े-शब वो अंधियारे की सुल्तानी पलट आयी मुहब्बत करने वाले ....जानेमन तनहा नहीं रहते तेरे जाते ही घर में .....देख वीरानी पलट आयी (तुफ़ैल चतुर्वेदी) |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मज़ा तो जब है कि पैरों में कुछ थकन रहे........ राहत इन्दौरी....... |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हमने देखे हैं फसादात में पीले चेहरे कौन देखेगा अश्क माओं के बहनों के नौनिहालों के बुजुर्गों के ये गीले चेहरे (रजनीश मंगा) |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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पांव जख्मी है तो क्या, जौके-सफर रखते हैं........ |
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