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rajnish manga 18-06-2014 10:26 AM

गंगा से कावेरी तक
 
गंगा से कावेरी तक
साभार: शैलेन्द्र चौहान

नौ जुलाई की सुबह। आसमानपर बादल छाए हुए हैं। हल्की हल्की धूप उनमें से छनकर नीचे आ रही है। गंगाकावेरी एक्*सप्रेस अपनी मध्यम रफ्तार से बढ़ी जा रही है चेन्नई की ओर। वहऊपर की बर्थ पर आकर लेट गया। उसका मन हो रहा है कि नीचे खिड़की के पास बैठकरगुजरती हुई चीजों को देखे। पावस की रुपहली आभा, हरे पेड़, पहाड़। परखिड़कियों के पास लोग पहले से ही बैठे हैं।

न जाने क्यों अक्*सर वहक्रम से कुछ सोच ही नहीं पाता। हाँ, सोचना शुरू करता है, तो उसे पर लग जातेहैं। अतीत की किसी घटना को भविष्य की रील पर कस देता है और फिर शुरू होती हैउड़ान, जिसका कोई अंत नहीं, सब कुछ सुखद मनमाफिक, फिर अचानक ब्रेक लग जाताहै। नीरा ने कहा था- बस ज्यादा योजनाएँ मत बनाओ, जब फाइनल पोस्टिंग हो जाएतब सोचना। वह रुक गया था। उसकी आदत है इस तरह सोचना! उसने तर्क दिया सोचनेसे अवचेतन की इच्छाएं संतुष्ट होती हैं। जिंदगी में बहुत कुछ किया नहीं जासकता, बस सोचकर ही थोड़ा खुश हुआ जा सकता है।नीरा चुप हो गई थी। बहुत कमदिनों में ही शायद वह उसकी इस आदत से वाकिफ़ हो चली थी। आठ तारीख को इलाहाबादछोड़ने के बाद उसे कुछ रिलीफ सा मिला था। न जाने क्यों यूँ यात्राओं सेअक्सर उसे डर लगता है। फिर यह तो बहुत लंबी यात्रा थी। इलाहाबाद से चेन्नई ।पर इस बार वह कुछ सामान्य था। ए.सी. स्लीपर में उसे बर्थ मिल गई थी आराम सेचेन्नई पहुँचना था, कंपनी के किराए से।
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rajnish manga 18-06-2014 10:44 AM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
यूँ कंपनी वालों ने 3 तारीख को चेन्नई जाने को कहा था पर वह बीच मेंग्वालियर चला गया था, नीरा के बहन-भाइयों को छोड़ने।

फिर लौटकर, इलाहाबाद से यात्रा तय करना शुरू किया गया था। हालाँकि नीरा मन से नहीं चाहती थी कि वह चेन्नई जाए। पर कंपनी की तरफ से रिलीव होना अच्छा था ताकि बाद में कोई परेशानी न हो। कंपनी में किसी बात का कोई ठिकाना नहीं, कब क्या कहेंगे, करेंगे, कुछ समझ में नहीं आता। वैसे तपन भी डर रहा था पर वह ज्यादा परेशान नहीं था।

रिजर्वेशन न मिलने का बहाना वह कर रहा था और जब नौकरी छोड़ ही रहा है तो डरना किस बात का । हाँ, खर्च का सवाल जरूर था। कंपनी किराया अवश्य देगी पिछले दो वर्षों से वह कंपनी का रुख देखता आया है।

वह ट्रेन के सफर का फायदा उठा लेना चाहता था। वह सोच रहा था कि कुछ लिखे, परपेन ग्वालियर में ही छोड़ आया था। उसने सोचा था, इलाहाबाद से खरीद लेगा परभूल गया। दिन के ग्यारह बजे ट्रेन इलाहाबाद से चली थी। बर्थ का नंबर भी उसेपता नहीं था। जल्दबाजी में चार्ट नहीं देख सका था। अत: वह खिड़की के पासबैठा प्राकृतिक सौंदर्य देखता रहा। पहाड़ अच्छे लग रहे थे, आसमान पर बादलछाए हुए थे, मौसम सुहाना था। एक बजे उसने खाना खाया, नींद की झपकी भी आने लगी थी, वह बर्थ पर लेट गया, उसे ऊपर वाली बर्थ एलॉट की गई थी, कब नींद आ गई, पताही नहीं चला।
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rajnish manga 18-06-2014 12:28 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
तीन बजे चाय लेकर आए वेटर ने जगाया, उसने चाय पी और नीचे खालीसीट पर बैठ गया। सफर में समय पास करना उसके लिए एक दुरूह कृत्य रहा है, खासतौर से रेल के सफर में। अगर सेकेंड-क्लास में सफर कर रहा हो तब तो बहुतबड़ी जलालत का सामना करना पड़ता है। ठसा-ठस भीड़ से भरे डिब्बे में, लोगएक-दूसरे के प्रति बेहद असहिष्णु होते हैं; सफर में। शायद तंग जगह में बैठनेकी मजबूरी उन्हें दिलो-दिमाग से भी तंग बना देती है। और फिर, हमारे देश कीनई पतनशील संस्कृति, अराजकता की स्थिति, और लोगों की अपराध वृत्ति सभी कुछसफर में देखने को मिलते हैं। या यूँ कहिए सेकेंड-क्लास का सफर हिन्दुस्तान का सफर होता है। आज का हिन्दुस्तान वाकई कुछ ऐसा ही है। तपन जिंदगी में शायदकभी असभ्*यता, अभद्रता, और अराजकता से तालमेल नहीं बिठा पाया। इसीलिए उसे सफरएक मानसिक यंत्रणा देता है। लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं और जो पढ़े-लिखे हैं वे भीनिरे व्यक्तिवादी हैं। सामाजिक चेतना किसी में नहीं है। यहाँ लोग एक-दूसरेको तंग करके खुश होते हैं। तपन को न जाने कितने ऐसे वाकयात याद आते हैं। परवह उन कुछ अप्रिय क्षणों को ठेल देता है और सामने की बर्थ पर पड़ी मैगजीन, ‘वीकउठा लेता है। द वीकमें एक आर्टिकल विगत में पंजाब में उग्रवाद औरसाम्यवादी पार्टियों का रुख पढ़ने लगता है।आर्टिकल उसे काफी अच्छा लगता है। वह सोचता है द वीकअगले किसी बड़े स्*टेशन पर खरीद लेगा और अपनीप्रतिक्रिया उक्त आर्टिकल पर जरूर भेजेगा।

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rajnish manga 18-06-2014 12:41 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
दूसरी रिपोर्ट वह कानपुरआई.टी.आई. में राष्ट्रपति के गोल्ड मेडल के लिए की गई एक किशोर की हत्या परपढ़ता है। उसका मन खिन्*न हो जाता है। उसे पूसा कृषि संस्*थान एवंभाभा परमाणु शोध संस्थान से कुछ वैज्ञानिकों की आत्महत्या की घटनाएँयाद आती हैं। यहाँ लोग अपना कैरियर बनाने के लिए सही प्रतिभाओं को मौत के घाटउतार देते हैं। बहुत विचित्र लगता है यह सब। पर यह सब होता है। द वीकवह रखदेता है। शाम छ: बजे गाड़ी जबलपुर पहुँच जाती है। एक डेढ़ वर्ष पहले ही तो वहजबलपुर आया था- एक साहित्यिक कार्यक्रम में।

उसके पास खुले पैसे नहीं हैं। वह स्टेशन पर उतर कर एक बॉलपेन खरीदता है औरबुक स्टाल पर नजर घुमाता है। हंसराज रहबर का एक उपन्*यास हिंद पाकेट बुक्स में उसके हाथ लग जाता है दिशाहीन। उसे वह खरीद लेता है। बीच में रुक-रुक कररात बारह बजे तक वह उपन्यास पढ़ता रहता है। उपन्यास एक ऐसे युवक की कहानीथी जो बंधनों में न बँधना, स्वच्छंद प्रेम और गैर सामाजिक रीति से किए गएविवाह को ही क्रांति मानता है। और अंत में उसका मोह भंग हो जाता है अपनीपत्नी से। लेखक एक अन्य पात्र के मुँह से कहलवाता है कि हमने प्रेम उस उम्रमें किया जब हमें नहीं मालूम था कि प्रेम क्या होता है, और इस स्लोगन केसाथ कि युवा ‘क्रांति-क्रांति’ चिल्लाते हैं पर वह नहीं जानते कि क्रांतिक्या चीज होती है। उपन्यास पढ़ने को तो पूरा पढ़ गया पर लगा कि वह कहीं सेइन्फ्लुएंस नहीं कर पाया। जिस उम्मीद को लेकर उपन्यास खरीद लाया था वहपूरी नहीं हुई। कम-से-कम हंसराज रहबर से उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।
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rajnish manga 18-06-2014 01:09 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
उसेदीप्ति की याद आने लगती है। दीप्ति उसके पड़ोस की एक लड़की जिसे वह पिछलेपाँच-छ: वर्षों से जानता है। उसकी नीरा के साथ जब शादी हुई तो दीप्ति नेबड़ी खुशी-खुशी बधाई दी थी। और न जाने क्यों अचानक उसकी आँखों से आँसू निकलआए थे। तब तपन ने सोचा था कि यह किशोरावस्था का एक आकर्षण था उसके प्रति, एक सपना आज टूटा, दीप्ति अब निखर जाएगी। फिर जिंदगी के पाँच वर्ष यूँ ही बीत गएवह घरेलू परेशानियों में कुछ इतना उलझ गया कि दीप्ति की तरफ उसका ध्यान ही नहीं गया।

नीरा और उसके बीच अहं की एक दीवार खड़ी थी। कौन किसे फतह कर लेता है बस इसी कोशिश में गुजर गए पाँच वर्ष और उसका परिणाम था उसकी दो लड़कियाँ नटखट, चंचल, प्यारी-प्यारी। उन्हीं में उलझ गई थी तपन की जिंदगी। एक तो नौकरी कुछ ऐसी थी कि उसे फुरसत ही नहीं मिलती थी। और जब फुरसत मिली भी तो घर, जरूरतें, समस्याएं और उसका अपना लिखना-पढ़ना, तपन ने तमाम दूसरी चीजों की परवाह करना छोड़ दिया। बस यदा कदा नौकरी और घरेलू संबंधों को लेकर वह परेशान रहता।

दीप्ति बीच में एक-दो बार उसे मिली थी। शायद दीप्ति ने उसे भुला ही दियाथा। शादी के बाद शुरू के दिनों में वह इतना परेशान रहता था कि दीप्ति नेचाहा भी तो उसने ठीक से बात नहीं की। और दीप्ति ने भी कहीं-न-कहीं अपना आहतमन बदला लेने के लिए तैयार कर लिया। पर तपन एक वर्ष बीतते-न-बीतते उस माहौलसे दूर चला गया। उसने दूसरी जगह नौकरी कर ली । उसके बाद चार वर्षों में दीप्ति से कोई बात ही नहीं हुई। दीप्ति को वह अपनी कसौटी पर खरा भी नहीं पाता था। दीप्ति चंचल थी। घर से उसे काफी छूट थी जिसका फायदा वह उठाती थी। नीरा से जिस स्वतंत्रता को लेकर उसके मतभेद स्वतंत्रता थे उसी स्वतंत्रता की पक्षधर दीप्ति भी थी। महज रूमानी और दिखावे की स्वतंत्रता, जिम्मेदारी, कर्तव्य, ईमानदारी सब नदारद।
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rajnish manga 18-06-2014 01:24 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
रात ठीक से नींद नहीं आई वह बिस्तर साथ नहीं लाया था। चद्दर और तकिया तकनहीं, ट्रेन में बेड रोल भी उपलब्ध नहीं था। एयर कंडीशनर ने कंपार्टमेंट ठंडा कर दिया । उसने महसूस किया कि सोते वक़्त ठंड कुछ ज्यादा ही लगती है।सुबह छह बजे वेटर ने आकर जगा दिया, चाय ले आया था। दोपहर खाना खाने के बाद डेढ़ घंटे वह फिर सो लिया। नींद खुली तो विजयवाड़ा आने वाला था। विजयवाड़ा में एक कप काफी पी। वह कंपनी को टेलीग्राम करना चाहता था कि लेट पहुँच रहा है। पर आर.एम.एस. का टेलीग्राफ ऑफिस प्लेटफार्म से बहुत आगे था, सो वह रुक गया।

गाड़ी चल रही थी। डिब्बे से बाहर गैलरी में निकलकर लोग बाग सिगरेट पी रहे थे। बार-बार निकलते हुए आधे यात्रियों से मुस्कराहट एक्सचेंज होने लगी थी। दो विदेशी भी थे। तपन ने पूछा आप कहाँ से हैं ? 'स्विटज़रलैंड'। दोनों भाई लग रहे थे। पर एक के चेहरे पर अजीब सा चिकनापन था। तपन ने गौर से देखा कहीं यह स्त्री तो नहीं पर फिर उसे लगा वह पुरुष ही था। हाँ, स्त्रियों के गुण उसमें विद्यमान थे। तीन विद्­यार्थीनुमा लड़के उसके निकट वाली बर्थों पर थे। लड़के होशियार और गंभीर थे। उत्तर भारत के उन लड़कों से अलग जो गाड़ी में तीन-चार की संख्या में सवार हो जाएँ तो गाड़ी सर पर उठा लें। गुंटूर आने वाला था। दस बजे तक चेन्नै पहुँचेगी गाड़ी । लेट है थोड़ी । वहाँ पहुँच कर होटल तलाशेगा और कल कंपनी के मैनेजर से मिलेगा, फिर दिल्ली । नई नौकरी में कहाँ पोस्टिंग होती है, पता नहीं। कुछ निराशा सी हो रही है। उसकी पूरी सीनियारिटी जाती रही है। वह कैरिअरिस्ट नहीं है पर पीछे छूटने का दुख तो है ही।
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rajnish manga 18-06-2014 01:40 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
गंगा कावेरी एक्सप्रेस न कोई घटना है, न कहानी। बस एक ट्रेन है जो निरंतरचली जा रही है अपने गंतव्य की ओर। पहले यह बीचस्टेशन तक जाती थी। वहाँसे कनेक्टिंग ट्रेन मिल जाती थी आगे कावेरी के किनारे बसे किसी शहर तक।अक्सर इस ट्रेन के लेट हो जाने की वजह से वह ट्रेन छूट जाया करती थी औरयात्रियों को असुविधा होती थी। अत: यह ट्रेन अब सेंट्रल में जाकर खत्म होतीहै। बड़ा स्टेशन है, यात्रियों को सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैं। तपन कोबार-बार मोहन विक्रम सिंह, पूर्व में नेपाल की प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य की पहलमें छपी कविता याद आ रही है गंगा कावेरी एक्सप्रेस। काश पहलवह साथ लाया होता। कविता वह पढ़ना चाहता है पर कोईउपाय नहीं है । वह इलाहाबाद लौटकर पढ़ेगा कविता और फिर तारतम्य बिठाएगा उसकविता से अपनी यात्रा का।

चूँकि यात्रा बहुत बोझिल और त्रासद चीज है उसकेलिए, अत: यात्राओं पर लिखी तमाम कविताएँ, कहानियाँ उसे याद आती हैं। शरदबिल्लोरे की यात्रा पर लिखी कविताएँ और रमेश बक्षी का अठारह सूरज के पौधेउपन्यास । दोनों के साथ कुछ अजीब हादसा होता है। शरद बिल्लोरे की असामयिकमृत्यु लू लगने से कटनी स्टेशन पर, और अठारह सूरज के पौधे पर बनी फिल्म ‘27 डाउन’ की नायिका शोभना की समुद्र में कूद कर आत्महत्या। बड़ा अजीब-सा तालमेलबैठा है, यात्रा और मौत में। तपन को लगता है कि कहीं वह भी मौत का शिकार न होजाए। पर नहीं, वह मौत का शिकार नहीं होगा। न ही मोहन विक्रम सिंह की तरह उदासहोगा। गंगा से कावेरी तक की क्रांति-स्थितियों को उसे समझना होगा। चेखवयुगीन रूसी पोत वाहकों की लिजलिजी यात्राएँ, उनसे उठती शरीर, समुद्र औरअस्वस्थ प्यार की गंध, इन स्थितियों से आगे बढ़ना होगा।
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rajnish manga 18-06-2014 05:57 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
ट्रेन आगे बढ़तीजा रही है। शाम का धुँधलका गहराता जा रहा है। गुंटूर अभी आया नहीं है। चेन्नै पहुँचने से पहले उसे फिर याद आएगी नीरा और दीप्ति। नीरा उसकी पत्नी होने के नाते उसे याद कर रही होगी। वह घर के काम और दो छोटी-छोटी प्यारी बच्चियों में उलझी होगी। और दीप्ति, उसकी याद बिसरा कर अपने घर की स्वतंत्र दुनिया में लीन हो चुकी होगी। हर बार ऐसा ही होता है तपन के साथ। भावनाओं की रौ में बढ़ता तपन पीछे छूट जाता है और दीप्ति आगे बढ़ जाती है।वह सोचता है हंसराज रहबर के नायक की तरह किसी लड़की से शादी कर लेना भर तो क्रांति नहीं हो सकती। न ही भावनात्मक आकर्षण कोई क्रांति कर सकता है।

एक क्षणिक विद्रोह वह अवश्य कर सकता है। शारीरिक आकर्षण खत्म हो जाने के बाद विद्रोह आत्म-विद्रोह का रूप ले लेता है। शादी और तलाक, क्रांति के बीज बस इन्हीं घटनाओं में तो निहित नहीं है। बल्कि क्रांतिके बीज तो सामाजिक स्थितियों के दबाव के कारण, वैज्ञानिक समझ के विकास मेंबद्धमूल होते हैं। प्रेम इन स्थितियों को तेज या मंदा कर सकता है। नीरा इन स्थितियों में तपन की मदद नहीं कर सकती। उसे सामाजिक क्रांति से कोई सरोकार नहीं। और दीप्ति इन कठिन स्थितियों की चुनौती शायद स्वीकार नहीं करेगी। इस बार वह बदली हुई जरूर लगी थी, पर साथ-साथ वह चल पाएगी इसमें तपन को संदेहथा। साथ चलने का मतलब था काँटों पर चलना। दिखावे, चमक और कल्पनाओं की दुनिया से दूर, यथार्थ के साथ साक्षात्कार कर समाज और व्यक्ति की सही भूमिका तय करना, यह सब हर कोई नहीं करना चाहेगा। तपन चाहता था कि जमीन और सही विचारधारा से जुड़ी किसी लड़की से शादी करे । उसे ऐसा मौका नहीं मिल सका, पर कोई बात नहीं यह उतना आवश्यक भी नहीं।
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rajnish manga 18-06-2014 06:09 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
वह देख रहा है कि गंगा सेलेकर कावेरी तक पूरे भू-भाग में चाहे कितनी भी भौगोलिक भिन्नता हो, वेष-भूषा, रंग-रूप, भाषा और बोली चाहे जितनी भी अलग हो सभी मनुष्य कमोबेश एकजैसी ही परिस्थितियों में जी रहे हैं। किसान, मजदूर, मध्यमवर्गीय, नौकरीकरने वाला वर्ग, छात्र, व्यवसायी, राजनीतिज्ञ सभी जगह एक जैसे ही हैं। जिनकेपास पैसा है, साधन हैं, वे गरीब और दुर्बल मनुष्य के श्रम का उपभोग कर रहेहैं। गरीब और दुर्बल मनुष्य अपने शोषण को नियति मान कर सब सह रहे हैं।अन्याय, दमन, शोषण निर्बाध रूप से बलशाली लोगों द्­वारा किया, कराया जा रहाहै। इतना बड़ा देश कुछ लोगों के निहित स्वार्थों के लिए एक अव्यवस्था, असमानता और अनेकों भेदभावों को बरकरार रखे हुए है और इसे जनतंत्र बताया जारहा है। राजनीति, धर्म, अर्थ और बल की कलाबाजियाँ हर जगह मौजूद हैं। उसे लगताहै वह अब तक बहुत छोटी-छोटी बातों और आकांक्षाओं में उलझा रहा है। समय आ गयाहै अब उसे नई राह बनानी ही पड़ेगी।
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rajnish manga 29-07-2017 12:59 PM

Re: गंगा से कावेरी तक
 
आज इस आलेख को दोबारा पढ़ने का अवसर मिला. चारों ओर का परिदृश्य देखने के बाद लगता है कि स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. बल्कि कभी कभी लगता है कि देश की राजनीति पहले से अधिक सक्रिय हो गयी है. कुछ लोग अपना नाम चमकाने में लगे हैं, कुछ देशभक्ति की नई परिभाषा लिख रहे हैं और कुछ नेता देश भक्त होने का सर्टिफिकेट बाँट रहे हैं.


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