जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल 2015 : 21 जनवरी से साहित
पाल थरु और नायपॉल होंगे जयपुर साहित्य महोत्सव के आकर्षण
राजस्थान के जयपुर में 21 जनवरी से आयोजित 5 दिवसीय साहित्यिक महाकुंभ में साहित्य प्रेमी एलिजाबेथ गिलबर्ट के साथ 'सेल्फी, द आर्ट ऑफ द मेमोयर' अमीश त्रिपाठी व विवेक ओबरॉय के साथ 'द कनफ्लिक्*ट ऑफ धर्मा इन द महाभारत' जैसे सत्रों का आनंद ले सकेगें। इसके साथ ही एक ऐतिहासिक सत्र का भी आयोजन किया जा रहा है जिसमें साहित्य की दुनिया के दिग्गज पॉल थरू और वी एस नायपॉल एक ही मंच पर साथ नजर आएंगे दुनिया के सबसे लोकप्रिय साहित्य मेलों में से एक जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2015 का बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम वेबसाइट पर जारी कर दिया गया है। द राइटर एड द वर्ल्ड सत्र में फारूख ढोंढी के साथ हिस्सा लेंगे जबकि पॉल थरू 'ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' सत्र में हनीफ कुरैशी और अमित चौधरी के साथ हिस्सा लेंगे। 'माई अदर लाइफ, ए नॉवलिस्ट अफेयर विद नॉन फिक्शन' शीर्षक के एकल सत्र में पॉल थरू लेखन शैली बदलने के बारे में बात करेंगे। |
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बहुत सुंदर प्रयास. समाचार पत्रों में तो हम jlf को फॉलो कर रहे हैं, लेकिन फोरम पर इसकी रिपोर्टिंग देख कर बहुत अच्छा लगा. कृपया अपडेट्स देते रहें. आपक बहुत बहुत धन्यवाद, सोनी जी.
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ji rajnish ji koshish rahegi updets dete rahne ki ...
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जयपुर साहित्य उत्सव 2015 में जावेद अख्तर
हिंदी फिल्मों के बेहतरीन गीतकार जावेद अख्तर की जयपुर साहित्य उत्सव में शिरकत बहुत मजेदार रही. उन्होंने हिंदी फिल्मों में गीत व संगीत के गिरते स्तर पर अपनी चिंता प्रगट की. उन्होंने उपस्थित श्रोताओं से कहा कि वे भी इस गिरावट के लिए ज़िम्मेदार हैं. जावेद ने जनता से, विशेष रूप से युवा पीढ़ी के श्रोताओं से, अपील की कि वे अपने-अपने तरीके से बेहतर गीत और संगीत की मांग को उचित माध्यमों और मंचों से उठाते रहें. जयपुर साहित्य उत्सव को एक गीतात्मक शुरुआत देते हुये जाने माने गीतकार व कहानीकार-स्क्रीन-स्क्रिप्ट लेखक जावेद साहब ने ‘गाता जाये बंजारा- उर्दू, हिंदी, हिन्दुस्तानी के गीत’ सत्र में कहा कि हिंदी फिल्मों में शुरुआत से ही गाने फिल्मों का एक अभिन्न अंग रहे हैं. यहाँ तक कि पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ में भी लगभग 50 गीत शामिल थे. यह पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के अंतिम भाग की बात है. फिल्मों से पहले भी लोक मंचों पर रामलीला व कृष्णलीला प्रस्तुत की जाती थी जिसमें गीत संगीत एक प्रमुख अंग होते थे. नाटकों में अन्य नाटकों की तरह ‘हीर रांझा’ नाटक भी इसी शैली का पोषण करता था. पारसी थिएटर के नाटकों में भी गीत संगीत का भरपूर महत्व होता था. |
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जयपुर साहित्य महोत्सव 2015 में जावेद अख्तर
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जयपुर साहित्य महोत्सव 2015 में जावेद अख्तर
इसी के बाद आने वाली फिल्म ‘इन्द्रसभा’ में लगभग 70 गीत रखे गए थे. इस शुरुआती दौर के बाद सिनेमा के रूप व प्रारूप में परिवर्तन आये. गीत और संगीत के स्तर में बदलाव आया और वे लोकप्रियता के मामले में नया इतिहास लिखने लगे. अन्य देशों में बेहतर शायर हो सकते हैं लेकिन गीतों के मामले में हम सर्वश्रेष्ठ हैं. एक रोचक घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार प्रख्यात शायर फैज़ अहमद फैज़ उनके घर किसी कार्यक्रम में आये थे. जब वो अपना कलाम सुना रहे थे तो उनकी आवाज़ में कुछ ढीलापन व सुस्ती थी. एक श्रोता, जिसे मजा न आ रहा था, ऊँची आवाज में कहा, “काश, फैज़ साहब जितना अच्छा लिखते हैं उतना ही अच्छा गा भी सकते.” इस पर फैज़ साहब ने फ़ब्ती कसी, “क्या सभी चीजे मुझे ही करनी पड़ेंगी? भाई, तुम भी तो कुछ करोगे या नहीं?” |
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महोत्सव में जावेद अख्तर, गुलज़ार व प्रसून जोशी
सन 2011 में आयोजित महोत्सव में जावेद अख़्तर और गुलज़ार ने हिंदी फ़िल्मों में गानों के गिरते स्तर पर चिंता जताई. भारत में हिंदी फ़िल्मों के मौजूदा स्तर को लेकर जाने माने गीतकार और कवि संतुष्ट नहीं है. जयपुर में जारी साहित्य उत्सव में जावेद अख़्तर और गुलज़ार गीतों की सूरत को लेकर चिंतित नजर आए. जावेद अख़्तर तो काफ़ी तल्ख़ थे,कहने लगे तमीज़ और तहज़ीब कम हो रही है. गुलज़ार का कहना था कि जैसा समाज है वैसे ही गीत हैं. इस उत्सव में भारी भीड़ उमड़ रही है. अदब के इस मेले में साहित्य तनहा नहीं है. उसके साथ गीत संगीत,कथा वाचन, शेर-ओ-शायरी और बहुत कुछ हैं. उत्सव में शनिवार को देसी विदेशी उपन्यास और कथा कहानियों पर चर्चा हुई तो शायर और गीतकार सिनेमा के पर्दे पर उतरे गीतों पर बहस करते रहे. इन गीतकारों ने सिनेमा के नग़मों के इतिहास, यात्रा और प्रगति पर चर्चा की. जावेद अख़्तर ने कहा कि फ़िल्मो में रोमांस और ग़म के नग़मे कम हुए है.''आप देखे ग़म के गाने हैं ही नहीं,क्या रोमांस और ग़म कम हो गए है. एक कच्चापन आ गया है. जिसकी वजह से कोमल भाव और कोमल गानों की कमी आ गई है, समाज में एक ठहराव आ गया है,ये ठीक नहीं है.'' गुलज़ार कह रहे थे कि कुछ तो तकनीक की वजह से भी हुआ है. क्योंकि फ़िल्मो के लिए अलग अलग 'फोर्मेट' आ गए है. मगर जावेद इससे सहमत नहीं थे,कहने लगे अगर ऐसा है तो फिर 'आइटम सोंग्स' पर ये लागू क्यों नहीं है. |
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महोत्सव में जावेद अख्तर, गुलज़ार व प्रसून जोशी
गीतकार प्रसून जोशी का कहना था कि पहले हम बहुत अलग ढंग से सोचते थे. ''दरसल पहले अभिभावक बच्चों को उन इलाक़ो की तरफ़ जाने नहीं देते जहाँ मुन्नी बदनाम हुई. अब प्रजातांत्रीकरण हो गया है. ये काम बाज़ार ने किया है. बाज़ार ने दरवाज़े खोल दिए हैं.'' जावेद ने बेलाग कहा, ''दरसल तमीज़ कम हो गई है. पहले के गाने कितने अच्छे होते थे. हमारी फ़िल्मों का अपना एक व्याकरण है, इनका अपना एक पारंपरिक ढांचा है, उसे तोड़ा न जाए. ''जावेद ने मंच को निहारा और अपने संग बैठे गुलज़ार और प्रसून को देख कर सभागार में लोगो की जानिब मुख़ातिब हुए और बोले, ''जहां तक हम तीनों की ज़िम्मेदारी है आप बेफ़िक्र रहें, ना जाने हमें कितनी फिल्में छोड़नी पड़ती हैं, ना जाने कितनी जगह झगड़ा होता है, लोग कहते हैं ये बद दिमाग़ है, अहंकारी है,ये ना जाने अपने को क्या समझते हैं, एक शब्द बदलने में इनको ना जाने क्या तकलीफ़ हो रही है.'' तभी बग़ल में बैठे गुलज़ार ने कहा बिलकुल सही कह रहे है. जावेद और आगे बढ़े और कहा,''आप चाहे हम पर कोई इल्ज़ाम लगा दें, मगर ये कोईनहीं कह सकता कि हम तीनों ने कभी अश्लील या द्विअर्थी शब्द इस्तेमाल किये हों. मगर अब हमें आपका भी साथ चाहिए. आप अच्छे गीत संगीत को सराहें, बुरे कोपनाह न दें. थोड़ा आप भी तो हाथ बढ़ाएं, ये लड़ाई हम लड़ ज़रूर रहे हैं, लेकिन आपके बग़ैर जीत नहीं पाएंगे.''समाज का एक बड़ा हिस्सा इन गीतकारों केलिखे नग़मे गुनगुनाता रहा है.पर क्या समाज नग़मो की सुन्दरता बरक़रार रखनेकी इनकी सलाह पर भी उतना ही ग़ौर करेगा. |
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JLF 2015 से कुछ समाचार
भारत में जन्मे ब्रिटिश लेखक फारुख ढोंढी और बीबीसी के पूर्व पत्रकार मार्क टली के एक सत्र में सदारत करते हुए हिंदी फिल्मों के गीतकार तथा स्क्रिप्ट राइटर प्रसून जोशी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी पुस्तक के निगेटिव पहलुओं के बारे में चर्चा करने में कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन उस पुस्तक का सर्कुलेशन रोक देना कहाँ तक उचित होगा? वह पीरामल मुरुगन की पुस्तक के सन्दर्भ में बोल रहे थे. उपरोक्त विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए मार्क टली ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अकाट्य (absolute) नहीं हो सकती. असली साहित्य और किसी व्यक्ति या समूह की धार्मिक, यौनिक तथा सांस्कृतिक मान्यताओं का अपमान करने के अधिकार में बारीक अंतर होता है जिस का ध्यान रखा जाना चाहिए. एक अन्य सत्र में बोलते हुए समारोह के प्रोड्यूसर संजोय र्रॉय ने अनेकत्व (plurality of thought) की जरुरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि लेखक इसलिए नहीं लिखता कि वह किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना चाहता है या किसी को खुश करना चाहता है. वह तो एक बेहतर कल की उम्मीद में अपने विचारों को कागज़ पर उतारता है. एकाधिक मत जरुरत हमारे जैसे देश के लिए अत्यंत अधिक है जहाँ हर जगह असमानता और विषमता दिखाई पड़ती है और जहाँ प्रगति की और जाने का एकमात्र ज़रिया ज्ञान, सुलझे हुआ दृष्टिकोण और शिक्षा का समुचित प्रसार है. पाँच दिन के इस महोत्सव में अलग अलग क्षेत्रों से आये हुए लगभग 300 वक्ता अपनी बात को सामने रखेंगे. उनके विषय लैंगिक से ले कर इतिहास, कला व साहित्य से ले कर सिनेमा तक फैले हुए हैं. |
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मैं इस बात से सहमत हूँ कि आजकल गानों क स्तर बहुत गिर गया है , लेकिन फिर भी इस बात की खुशी है कि आज भी अच्छे गाने लिखे और सुने जा रहे हैं ।ये बहस बहुत दिनों से जारी है कि आजकल अच्छे गाने नहीं लिखे जाते , मैने इसी बहस को देखते हुए फोरम पर एक सूत्र भी शुरु किया था जिसमें सिर्फ नये गानों क सन्कलन है जिनके बोल अर्थपूर्ण हैं - http://myhindiforum.com/showthread.php?t=14105।
ये सच है कि आजकल बहुत कम ऐसे गाने होते हैं जिनके बोल अर्थपूर्ण हों , पर ऐसे गानों का पूर्ण अभाव भी नहीं है । आजकल हर तरह का सन्गीत मौजूद है , अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम क्या सुनना चाहते हैं । पहले के जमाने में भी Item Songs होते थे , और ऐसा भी नहीं था कि सभी गानोंं के बोल अच्छे ही हों , पर ऐसे गानों की संख्या कम थी , आजकल ऐसे गानों की संख्या बढ गयी है । पर फिर भी मेरा मनना है कि आज भी हमारे पास बहुत अच्छे lyricist मौजूद हैं , और बहुत अच्छे गाने भी लिखे जा रहे हैं , बस अब ये हमारी पसन्द पर निर्भर करता है कि हम क्या सुनना चाहते हैं। |
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