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soni pushpa 31-08-2015 11:04 PM

Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
 
[QUOTE=rajnish manga;554366][size=3]घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर" नामक चर्चामें मंदिर शब्द पर अधिक जोर दिया गया है. जो लोग शहर भर में मौजूद सैंकड़ों मंदिरों के बावजूद अपने घर में एक निजी मंदिर बनाने को आवश्यक समझते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं (और बहुत से लोग ऐसा करते भी हैं). लेकिन देखने वाली बात यह है कि जिस घर में सुख-शांति, परस्पर आदर भाव, स्नेह, [font=&quot]प्रसन्नता तथा घर के हर सदस्य के मन में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव रहता है तो वहाँ भौतिक रूप से मंदिर स्थापित हो या न हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. ऐसे सद्गुणों से परिपूर्ण वातावरण जिस घर में व्याप्त हो, वह घर किसी मंदिर से कम नहीं है. वहाँ ईश्वर का वास रहता है. ऐसे स्थान पर बड़ों के श्रेष्ठ संस्कार बच्चों में भी प्रवाहित होने लगते हैं. मेरे विचार से यदि किसी को इससे सुकून प्राप्त होता है तो घर के किसी भाग में (इष्ट देवता /ओं की तस्वीर या प्रतिमा से युक्त) मंदिर बनाया जा सकता है मगर जब तक उपरोक्त भाव मन में जागृत नहीं होगे तब तक यह मंदिर नहीं बल्कि मंदिर का ढांचा या दिखावा मात्र कहा जायेगा.


बिलकुल सही बात कही है आपने भाई ,, घर में एक मंदिर बनाकर उसमे हजारो देवी देवताओं की तस्वीरे घर में पूजते रहें किन्तु घर में अशांति हो, मन में अशांति हो तो भगवन भी घर में न रहेंगे इसलिए सबसे पहली जरुरत है घर में शांति पूर्ण वतावरण बनाने की ...इस विषय पर आपके अनमोल विचार रखने के लिए ....बहुत बहुत धन्यवाद भाई ..
bi


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