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rajnish manga 25-03-2013 03:39 PM

इधर-उधर से
 
इधर-उधर से
प्रिय मित्रो, इस नए सूत्र के माध्यम से मैं अपनी डायरी में दर्ज कुछ प्रसंग, कुछ शेरो शायरी, कुछ श्लोक व सूक्तियाँ, कुछ नए-पुराने शब्द और उनके अर्थ, कुछ तकनीकी शब्दावली तथा अन्य विविध रोचक सामग्री आपके साथ बांटना चाहता हूँ. बहुत से विषयों की मिली जुली प्रस्तुति होने के कारण सूत्र का शीर्षक ‘इधर-उधर से’ रखा गया है जिसके लिए हिंदी में एक संज्ञा मिलेगी ‘खिचड़ी’ या अंग्रेजी/ फ्रेंच में ‘pot pourri- पॉओ पोरी’. मूल रूप से इस सब का उद्देश्य यहाँ पर मनोरंजन करना है. कुछ अच्छा लगे तो उसे ग्रहण कर लें, जो अच्छा न लगे छोड़ दे. लेकिन समय समय पर अपनी टिप्पणियाँ दे कर मेरा मार्गदर्शन अवश्य करते रहें. तो शुभारंभ करते है.

rajnish manga 25-03-2013 03:42 PM

Re: इधर-उधर से
 
हर चीज़ नहीं है मरकज़ में
इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर
दुश्मन को न देखो नफ़रत से
शायद वो मुहब्बत कर बैठे

-- रविवार दिनांक 29/06/1997 को ज़ी टी.वी. के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘आपकी अदालत’ में डॉ. कर्ण सिंह ने यह पंक्तियाँ सुनायीं.
*****
दो गीत याद आ रहे है. ये दोनों मेरे दिल के बहुत करीब हैं:

1. हाँ दीवाना हूँ मैं/ हाँ दीवाना हूँ मैं/ ग़म का मारा हुआ इक बेगाना हूँ मैं /
हाँ दीवाना हूँ मैं.

उक्त गीत अभिनेता सुदेश कुमार पर फ़िल्माया गया था. फिल्म की नायिका जयश्री गडकर थीं.
(फिल्म: सारंगा / स्वर: मुकेश / संगीत: सरदार मलिक)

हो सकता है आप में से कई सदस्यों को मालूम न हो कि इस फिल्म के संगीतकार सरदार मलिक हमारे आज के जाने माने संगीतकार और ‘इंडियन आइडल’ कार्यक्रम के जज अन्नू मलिक के पिता हैं.

2. शोख़ नज़र की बिजलियाँ / दिल पर मेरे गिराये जा /
मेरा न कुछ ख़याल कर / तू यूं ही मुस्कुराये जा /
शोख़ नज़र की बिजलियाँ /
(यह गीत साधना और मनोज कुमार पर फ़िल्माया गया था)
(फिल्म : वोह कौन थी / स्वर: आशा भोंसले / संगीत: मदन मोहन )

rajnish manga 25-03-2013 04:33 PM

Re: इधर-उधर से
 
जिन्हें अक्सर मिसाल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है उनमे से निम्नलिखित शे’र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:

1. खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले
ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

2. हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

(शायर: अल्लामा मौ. इक़बाल)

निम्नलिखित संस्कृत सूक्तियों पर भी कृपया दृष्टिपात करें:

1. उत्तापकत्वं हि सर्वकार्येषु सिद्धिनां प्रथमोsन्तराय:
(नीति वाक्यामृतम = 10/134)
भावार्थ: उत्तेजित होना सभी कार्यों की सिद्धि में प्रथम विघ्न है.

2. पापोनृषद्वरो जनः
(ऐतरेय ब्राह्मण = 33/3)
भावार्थ : अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है.

rajnish manga 25-03-2013 04:56 PM

Re: इधर-उधर से
 
शब्द-सामर्थ्य
क्या आप इन शब्दों से परिचित है? = दुर्धर्ष / दुरभिसंधि /कालक्रमानुगत
आइये इनके अर्थ का परिचय भी ले लें:
दुर्धर्ष = जिसे हराया न जा सके
दुरभिसंधि = कुचक्र
कालक्रमानुगत = बाप-दादा के समय से चला आता हुआ
*****
अब कुछ अंग्रेजी शब्दों के बारे में अपनी जानकारी प्राप्त करते हैं?
Medium/ Bearer / Authorized

आइये अब इन अंग्रेजी शब्दों के अर्थ पर विचार करें:
Medium = माध्यम
Bearer = धारक
Authorized = अधिकृत / प्राधिकृत

rajnish manga 25-03-2013 05:48 PM

Re: इधर-उधर से
 
मित्रो, हम में से बहुतों को रागों की कोई जानकारी नहीं होगी लेकिन उसके बावजूद कई गीत हमारे मन-मस्तिष्क पर छा जाते हैं और बरसों बाद भी उन गीतों का आकर्षण ज्यों का त्यों बना रहता है. इन गीतों की लय, ताल, गायकी, ओर्केस्ट्रा, शब्द (और परदे पर अदाकारी) हमें मन्त्र-मुग्ध कर देते हैं. टी.वी. पर बहुत से कार्यक्रम इस बारे में जानकारी प्रदान करते रहे हैं. रागों की जानकारी न होते हुए भी यह जान कर अच्छा लगता है कि कौन सा गीत कौन से राग पर आधारित रचना है. कुछ फ़िल्मी गीत और उनके राग इस प्रकार हैं:

1. वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते–
(राग = अहीर भैरव)
2. ज़िन्दगी भर ग़म जुदाई का हमें तड़पायेगा-
(राग = मालकौंस)
3. जियरा काहे तरसाये-
(राग = कलावती)
4. इतनी शक्ति हमें देना दाता-
(राग = भैरवी)
5. ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है-
(राग =यमन कल्याण)
6. एहसान तेरा होगा मुझ पर-
(राग = यमन)
7. झनक झनक तोरी बाजे पायलिया-
(राग = दरबारी)
(18, 25/11/1996)

rajnish manga 25-03-2013 06:14 PM

Re: इधर-उधर से
 
दो शे'र प्रस्तुत हैं:

फ़लक देता है जिनको ऐश उनको ग़म भी देता है
जहाँ बजते हैं नक्कारे वहां मातम भी होता है

(शायर: दाग़ दहलवी)

कांटों से गुज़रना तो बड़ी बात है लेकिन
फूलों पे भी चलना कोई आसान नहीं है

(शायर: आसी दानापुरी)

*****
नीचे हम कुछ शब्द दे रहे हैं और देखते हैं कि हम उनके अर्थ से कितना परिचित हैं:

अरण्यरोदन / परिप्रेक्ष्य /प्रतिफल /विदीर्ण /मायावी / वितृष्णा

आइये अब अपने सोचे हुए अर्थ का निम्नलिखित से मिलान कर लेते हैं:

अरण्यरोदन = ऐसा रोना जिसे कोई सुनने वाला न हो

परिप्रेक्ष्य = किसी भी दृश्य को ठीक ठीक अनुपात में प्रस्तुत करना

प्रतिफल = परिणाम / नतीजा

विदीर्ण = फाड़ा हुआ (वाक्य: इस दुखद समाचार ने लोगों के हृदय विदीर्ण कर दिए)

मायावी = छलने वाला

वितृष्णा = इच्छा से मुक्ति

(29/11/1996)

Dark Saint Alaick 25-03-2013 10:16 PM

Re: इधर-उधर से
 
आपके इस सूत्र का अवलोकन कर मेरे मन में सबसे पहले जो भाव उत्पन्न हुए, वह यह हैं कि आपने यह बहुरंगी सूत्र शुरू करने के लिए होली के बेहद अनुकूल अवसर का चयन किया, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। मुझे उम्मीद है, होली की तरह ही आपका यह विविध रंगयुक्त सूत्र बेहद मकबूल होगा और अनेक लोगों को मनोरंजन के साथ प्रेरणा भी देगा ! :cheers:

rajnish manga 25-03-2013 11:53 PM

Re: इधर-उधर से
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 246624)
आपके इस सूत्र का अवलोकन कर मेरे मन में सबसे पहले जो भाव उत्पन्न हुए, वह यह हैं कि आपने यह बहुरंगी सूत्र शुरू करने के लिए होली के बेहद अनुकूल अवसर का चयन किया, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। मुझे उम्मीद है, होली की तरह ही आपका यह विविध रंगयुक्त सूत्र बेहद मकबूल होगा और अनेक लोगों को मनोरंजन के साथ प्रेरणा भी देगा ! :cheers:

अलैक जी, सूत्र के विषय में आपकी अमूल्य टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ और आशा करता हूँ कि यह आपके कथनानुसार 'सबरंग' प्रस्तुत करने में कामयाब होगा. देखे होली की तरंग इसे कहाँ लेके जायेगी.

jai_bhardwaj 26-03-2013 12:48 AM

Re: इधर-उधर से
 
इस गागर में सागर जैसे सूत्र के माध्यम से मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक सामग्री के सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुतीकरण के लिए आपका भावसिक्त अभिनन्दन है ..रजनीश जी।

rajnish manga 26-03-2013 11:36 AM

Re: इधर-उधर से
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 246748)
इस गागर में सागर जैसे सूत्र के माध्यम से मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक सामग्री के सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुतीकरण के लिए आपका भावसिक्त अभिनन्दन है ..रजनीश जी।

:hello:आपकी प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए मेरा आभार और धन्यवाद स्वीकार करें, जय जी. आपकी 'गागर में सागर' वाली सूक्ति मेरी प्रेरणा का स्रोत बनी रहे, यही कामना करता हूँ.

rajnish manga 26-03-2013 11:54 PM

Re: इधर-उधर से
 
लघु प्रसंग

1.
एक लोमड़ी ने सुबह के समय अपनी छाया पर दृष्टि डाली और कहा,
"मुझे आज कलेवे के लिए ऊँट मिलना चाहिए."

उसने सुबह का सारा समय ऊंट को ढूँढने में व्यतीत कर दिया, लेकिन जब दोपहर को उसने दूसरी बार अपनी छाया देखी तो कहा,

"मेरे लिए एक चूहा ही काफी होगा."

2.
एक बार जब मैं एक मृतक दास को दफ़न कर रहा था, तो कब्र खोदने वाला मेरे पास आया और बोला,

"जितने भी लोग यहाँ दफ़न करने के लिए आते हैं, उनमे से मैं तुम्हें पसंद करता हूँ."

मैंने कहा,

"यह सुन कर मुझे ख़ुशी हुयी.; लेकिन आखिर तुम मुझे क्यों पसंद करते हो?"

उसने जवाब दिया,

"बात यह है कि और लोग तो यहाँ रोते हुए आते हैं और रोते हुए जाते हैं, मगर तुम हँसते हुए आते हो और हँसते हुए जा रहे हो."

लेखक: खलील जिब्रान

rajnish manga 28-03-2013 11:40 PM

Re: इधर-उधर से
 

दो शे’र और दो सुभाषित प्रस्तुत कर रहा हूँ:

इक और उम्र दे कि तुझे याद कर सकें
यह ज़िंदगी तो नज़रे - खराबात हो गई.
(खराबात = शराबखाना)
(शायर: कुंवर महेंदर सिंह बेदी ‘सहर’)

मुहब्बत को समझना है तो नासेह खुद मुहब्बत कर
किनारे से कभी अन्दाज़ – ए – तूफ़ां नहीं होता.
(नासेह = उपदेशक)
(शायर: शकील बदायूंनी)

विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते.

(भावार्थ: विद्वान् एवं राजा की तुलना कभी नहीं करनी चाहिए. राजा को तो अपने देश में ही सम्मान दिया जाता है जबकि विद्वान् को हर जगह सम्मान प्राप्त होता है- देश हो या विदेश)
मुश्किलें नेस्त कि आसां नशबद
मर्द बायद कि हरासां नशबद.

(भावार्थ: दुनिया में ऐसी कोई बाधा नहीं है जो प्रयत्न के सामने आसां न हो जाए. मर्द को मर्दानगी दिखानी चाहिए, मायूस नहीं होना चाहिए)



rajnish manga 29-03-2013 10:33 PM

Re: इधर-उधर से
 

मित्रो, अंग्रेजी में कुछेक शब्द इस प्रकार के होते हैं जिन्हें हम किसी भी ओर से पढ़ें उनके स्पेलिंग और उच्चारण एक ही होता है. ऐसे शब्द को “palindrome” कहते हैं. उदाहरण के लिए कुछ शब्द इस प्रकार हैं:
rotator
dad
redivider
इस परिभाषा के अनुसार “malayalam” भी एक palindrome है.

हिंदी में भी इसी प्रकार के कुछ शब्द होते हैं. मुझे छुटपन की बात याद आती है. हम बच्चे आपस में हिंदी शब्दों का एक खेल खेलते थे जिसमे एक बच्चा दूसरे बच्चे से वह शब्द बताने का अनुरोध करता था जो शुरू से अंत तक और अंत से शुरू तक एक जैसे अक्षरों और एक से उच्चारण वाला होता था. प्रश्न करने वाला बच्चा पूछता था,
“तीन अक्षर का मेरा नाम,
उल्टा सीधा एक समान,
आता हू खाने के काम.

बोलो क्या?”
उत्तर मिलता था - “डालडा”

इस प्रकार के और भी शब्द हम ढूंढ सकते हैं जो तीन या तीन से अधिक अक्षरों के हैं और जो उलटे-सीधे एक समान पढ़े और उच्चारित किये जाते हैं.

rajnish manga 29-03-2013 11:16 PM

Re: इधर-उधर से
 
मित्रो, अंग्रेजी के महान कवि पी.बी.शैली की जानी मानी दो कविताओं से निम्नलिखित पंक्तियाँ ली गई हैं. इनकी विशेषता यह है कि इन्हें अक्सर मिसाल के तौर पर प्रयुक्त किया जाता है जैसे कई शे’र और दोहों को हम ‘मिसाली’ कहते हैं यानि मिसाल देने योग्य और उन्हें उपयुक्त समय पर इस्तेमाल करते हैं.

We look before and after and pine for what is not,
Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.
(From To A skylark by P.B.Shelley)

हम समय की रेत पर चल, उसे ढूंढते जो है नहीं,
पीड़ा से जो गीत उगा वो सबसे मादक और हसीं.

The trumpet of prophecy, O Wind,
If winter comes, can spring be far behind.
(From Ode to the West Wind by P.B.Shelley)

पछुआ पवन उद्घोषणा करती है सुन, क्या सार है,
शिशिर के आगमन के साथ ही मधुमास भी तैयार है.

rajnish manga 30-03-2013 10:31 PM

Re: इधर-उधर से
 

सबसे पहले दो शेर मुलाहिज़ा कीजिये:-

तुमने किया न याद भी भूल कर हमें
हमने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया.
(शायर: ज्ञात नहीं)

खुदा की कसम उसने खायी जो आज
कसम है खुदा कि मज़ा आ गया.
(शायर: ज्ञात नहीं)

अब संस्कृत की एक सूक्ति पर विचार करें:-

उद्यमेन हि सिध्यन्ति, कर्माणि न मनोरथ:
न हि सुप्तस्य सिंघस्य, प्रविशन्ति मुखे मृग:

(भावार्थ: उद्यम करने से और कर्म करने से ही मनोरथ सिद्ध होते हैं, जिस प्रकार सोये हुए सिंह के मुंह में मृग स्वयं चल कर नहीं आ जाते बल्कि उसके लिए सिंह को भी कर्म करना पड़ता है)


rajnish manga 30-03-2013 10:40 PM

Re: इधर-उधर से
 
शनिवार / 30 नवम्बर 1996 की डायरी का एक अंश:

* आज दूरदर्शन (i) पर हिंदी फीचर फिल्म ‘उमराव जान’ टेलीकास्ट की गई. हम फिल्म का बाद वाला भाग ही देख सके. यह कहा जा सकता है कि फिल्म हर लिहाज़ से अद्वितीय है. इसमें अभिनेत्री रेखा की अदाकारी लाजवाब है – वही भावप्रवण अभिनय, वही कमनीयता और शिष्टता जो पुराने ज़माने की अभिनेत्रियों यथा- मीना कुमारी, नर्गिस और वहीदा रहमान आदि की विशेषता हुआ करती थी.
^^^
* संस्कृत की एक सूक्ति पर नज़र डालते है. क्या आपको यह पढ़ने के बाद कुछ और कहावते नहीं याद आ रहीं?

दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)
^^^
* अब कुछ हिंदी शब्दावली पर विचार करते है:

कालातीत = जिसका समय बीत गया हो
हतभाग्य = भाग्यहीन
साक्षादृश्य = अपनी आँखों से देखा हुआ
मोहभंग = भ्रान्ति निवारण


rajnish manga 30-03-2013 11:08 PM

Re: इधर-उधर से
 
राजा भोज और चार चोर
एक बार रात के समय चार चोर धारा नगरी में चोरी करने निकले. उन दिनों राजा भोज भी कभी कभी भेष बदल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए महल से बाहर निकलते थे. उस रात राजा भोज जब घूम रहा था तो उसकी मुलाक़ात इन चारों चोरों से हो गई. चोरों ने भेष बदले राजा से पूछा कि तू कौन है ? राजा ने कहा जो तुम हो वही मैं भी हूँ. राजा समझ गया कि ये चोर हैं. सो उसने उन चोरों से कहा,”यह भी खूब रही. भगवान् संयोग मिलाता है तो यूं मिलाता है.मैं भी चोर हूँ. आज रात को हम पाँचों मिल कर चोरी करते हैं और जो माल मिलेगा उसे पांच जगह बराबर बराबर बाँट लेंगे. चोरों ने कहा,
”तुममे क्या गुण है ? हम तुम्हें साथ क्यों ले जाएँ और तुम्हें क्यों हिस्सा दें?”

राजा ने कहा, ”पहले तुम बताओ कि तुममे क्या क्या गुण हैं, फिर मैं अपना गुण बताऊंगा?”

उनमें से एक चोर ने कहा,”मैं आँख बंद करके बता सकता हूँ कि धन कहां पड़ा है.”

दूसरे ने कहा, ”मुझे देखते ही सब पहरेदारों को नींद आ जाती है.”

तीसरे ने कहा, ”मैं जिस ताले को देख लेता हूँ वह खुद-ब-खुद खुल जाता है.”

चौथे ने कहा, ”मैं जिस व्यक्ति को एक बार देख लूँ, उसे मैं अँधेरे में भी पहचान सकता हूँ.”

इस पर राजा ने कहा, ”फिर तो हमें धन मिलने मैं कोई अड़चन नहीं होगी.”

चोरों ने कहा, “सो तो ठीक है, लेकिन तुम भी तो अपना गुण बताओ,जिसके बल पर तुम हमसे अपना हिस्सा मांग रहे हो.”

राजा बोला, ”न्यायाधीश के सामने मैं जा कर अगर खड़ा हो जाऊं तो उसकी मति फिर जाती है और वह अपनी सुनाई हुयी फांसी की सजा भी रद्द कर देगा.”

चोरों ने कहा, “तब तो ठीक है, अब पकडे जाने पर सजा का भय भी नहीं रहेगा.”

पाँचों निकले चोरी करने के लिए. पहले चोर ने आँखें बंद कर के बताया कि राजा के तहखाने में फलां जगह माल रखा है.
पहले वहीँ चला जाए.

पाँचों चले राजा के तहखाने में चोरी करने. वहां संगीनों का पहरा था. दूसरा चोर आगे बढ़ा तो पहरेदार अपने आप गहरी निद्रा में चले गए. अब तीसरा चोर आगे बढ़ा, तो जितनी भी तिजोरियां वहाँ रखी थीं, उन सबके ताले अपने आप खुल गए.
चोरों ने खूब धन बटोरा और गठरियों में बाँध कर बाहर निकल आये. दूर जंगल में लाकर सारा धन एक गहरा गड्ढा खोद कर गाड़ दिया और तय किया कि कल इसे आपस में बाँट लेंगे.

चारों चोर अपने अपने घर चले गए. राजा भी अपने महल में आकर सो गया.

प्रातः होते ही हल्ला मच गया कि तहख़ाना टूट गया है और बहुत सा धन चोरी चला गया है.पहरेदारों को बुलाया गया. पूछने पर उन्होंने कहा,
“महाराज, हमें तो कुछ पता नहीं कि यह चोरी कब और कैसे हुई? दोषी हम जरूर हैं और इसके लिए उचट सजा पाने के लिए हम इंकार नहीं करते, लेकिन सही बात तो यह है कि हम सारे लोगों को एक साथ ही ऐसी गहरी निद्रा आ गयी जैसे किसी ने जादू कर दिया हो.”

विशेषज्ञों ने बताया कि ताले इतने मजबूत हैं और इतनी कारीगरी से बनाए गए हैं कि न तो ये सहज ही तोड़े जा सकते हैं, न इन्हें खोलने के लिए दूसरी चाबी ही बनाई जा सकती है. तब सवाल उठता है कि यह काण्ड हो कैसे गया.

राजा ने कहा, “जो हुआ सो हुआ, किन्तु ऐसा लगता है कि कोई दैवी चमत्कार या देवी घटना हुयी है, लेकिन फिर भी इन चोरों का पता लगाने के लिए कोशिश तो होनी ही चाहिए. चारो तरफ आदमी दौड़ाए गए. संयोग की बात कि चारों चोर एक ही जगह पकड़ में आ गए. वे न्यायाधीश के सामने पेश किये गए और न्यायाधीश ने उन्हें सूली पर चढाने का हुक्म दिया.
चोरों को सूली पर लटकाने के लिए जब ले जाया जाने वाला था, तो राजा भोज भी न्यायाधीश के बगल में आ कर बैठ गया. राजा को देखते ही चौथा चोर जोर से चिल्लाया,

“अरे तुम हो! अच्छी बात है – हम चारों आदमीयों ने तो अपने करतब, अपनी कला तुम्हें दिखा दी, अब तुम इस तरह पत्थर की मूरत बने क्या देख रहे हो? तुम भी अपना करतब दिखाओ – फिर किस दिन काम आयेगी दोस्ती तेरी.”

सुन कर राजा हंसा और न्यायाधीश से कह कर उनकी सूली की सजा रद्द करवा दी. चोरों को अपने पास बैठाया और उनसे कहा कि तुम जैसे गुणी आदमियों को चोरी जैसा नीच धंधा कभी नहीं करना चाहिए. बल्कि सुसंस्कृत नागरिक की तरह जीवन बिताना चाहिए. तुम लोग आज से मेरे पास रहो.”

चोरों ने उस दिन से चोरी करना छोड़ दिया और वे राजा के पास सम्मानपूर्वक रहने लगे.
*****

jai_bhardwaj 31-03-2013 12:35 AM

Re: इधर-उधर से
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 248560)
* संस्कृत की एक सूक्ति पर नज़र डालते है. क्या आपको यह पढ़ने के बाद कुछ और कहावते नहीं याद आ रहीं?

दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)
^^^

दूर के ढोल सुहावने होते हैं .
ढोल के भीतर पोल
हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है .

rajnish manga 31-03-2013 10:12 PM

Re: इधर-उधर से
 
दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)


Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 248622)

दूर के ढोल सुहावने होते हैं .
ढोल के भीतर पोल
हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है .



:bravo:

जय जी, सूत्र भ्रमण करने और मूल्य-सामग्री-संवर्धन करने के लिए आपका आभारी हूँ. निश्चय ही, आपके द्वारा सुझाए गए तीनों मुहावरे उपरोक्त सूक्ति के बहुत नज़दीक हैं.

rajnish manga 31-03-2013 11:08 PM

Re: इधर-उधर से
 

देहली दरबार का जल्वा
(शायर / अकबर इलाहाबादी )
-- सन 1911 में दिल्ली दरबार के आयोजन का आँखों देखा हाल --

सर में शौक का सौदा देखा, देहली को हमने भी जा देखा
जो कुछ देखा अच्छा देखा, क्या बतलाएँ क्या क्या देखा

जमना जी के पाट को देखा, अच्छे सुथरे घाट को देखा
सबसे ऊंचे लाट को देखा, हज़रत ड्यूक कनाट को देखा

पलटन और रसाले देखे, गोरे देखे काले देखे
संगीनें और भाले देखे , बैंड बजाने वाले देखे

खेमों का इक जंगल देखा , इस जंगल में मंगल देखा
बढ़िया और दरंगल देखा, इज्ज़त ख्वाहों का दंगल देखा

सड़कें थी हर केम्प से जारी, पानी था हर पम्प से जारी
नूर की मौजें लैम्प से जारी, तेज़ी थी हर जम्प से जारी

डाली में नारंगी देखी, महफ़िल में सारंगी देखी
बेरंगी बारंगी देखी , दहर की रंगा रंगी देखी

अच्छे अच्छों को भटका देखा, भीड़ में खाते झटका देखा
मुंह को अगरचे लटका देखा, दिल दरबार से अटका देखा

हाथी देखे भारी भरकम, उनका चलना कम कम थम थम
ज़र्रीं झूले नूर का आलम,मीलों तक वह छम छम छम छम

पुर था पहलु ए मस्जिदे जा’मा, रोशनियाँ थीं हरसू ला’मा
कोई नहीं था किसी का सा’मा, सब के सब थे दैर के ता’मा

सुर्खी सड़क पर कुटती देखी, सांस भी भीड़ में घुटती देखी
आतिशबाजी छुटती देखी, लुत्फ़ की दौलत लुटती देखी

चौकी इक चौलिक्खी देखी, खूब ही चक्खी पक्खी देखी
हर सू न’आमत रखी देखी, शहद और दूध की मक्खी देखी

एक का हिस्सा मन ओ’ सलवा, एक का हिस्सा थोड़ा हलवा
एक का हिस्सा भीड़ और बलवा, मेरा हिस्सा दूर का जलवा.

ओजब्रिटिश राज का देखा, परतो तख़्त औ’ ताज का देखा
रंगे - ज़माना आज का देखा. रूख कर्ज़न महाराज का देखा

पहुंचे फांद के सात समंदर, तहत में उनके बीसों बंदर(गाह)
हिकमतो दानिश उनके अन्दर, अपनी जगह हर एक सिकंदर

हम तो उनके सैर तलब हैं, हम क्या ऐसे सब के सब हैं
उनके राज के उम्दा ढब हैं, सब सामाने ऐशो तरब हैं

एग्ज़ीबिशन की शान अनोखी, हर शय उम्दा हर शय चौखी
अक्लीदस की नापी जोखी, मन भर सोने की लागत सोखी

जश्ने अज़ीम इस साल हुआ है, शाही फोर्ट में बाल हुआ है
रौशन हर इक हॅाल हुआ है, किस्सा ए माजी हा’ल हुआ है

है मशहूर कूचा ए बरज़न , बाल में नाचें लेडी कर्ज़न
तायरे होश थे सब के परज़न, रश्क से देख रही थी हर ज़न

हॅाल में चमकीं आ के यकायक, ज़र्रीं थीं पौशाक झका झक
महव था उनका ओजे समा तक, चर्ख पे ज़हरा उनकी थी गाहक

गौर कास-ए-ओज फ़लक थी, इसमें कहाँ ये नोक पलक थी
इन्दर की महफ़िल की झलक थी, बज़्मे इशरत सुब्ह तलक थी

की है ये बंदिश ज़हने रसा ने, कोई माने ख्वाह न माने
सुनते हैं हम तो ये फ़साने, जिसने देखा हो वह जाने



rajnish manga 02-04-2013 10:56 PM

Re: इधर-उधर से
 
प्रसंग: निदा फ़ाज़ली

निदा फ़ाज़ली साहब की एक किताब है “तमाशा मेरे आगे”. इसमें उन्होंने बहुत से शो’अरा और अदबी शख्सियात से जुड़े हुए संस्मरण इस प्रकार बयाँ किये हैं कि उनकी बिना पर एक तस्वीर उभारना शुरू हो जाती है. यहाँ कडवाहट भी मिलेगी, पानी की रवानी भी है, कांच की किरचें भी है और फूलों की रूह-अफ्ज़ा खुशबू भी. इसी किताब के कुछ मजेदार प्रसंग पेश हैं:

डॉ. राही मासूम रज़ा के बारे में प्रसंग (सारांश)
* राही मासूम रज़ा अलीगढ़ से प्रोफ़ेसरी छोड़ कर जब बम्बई आये थे, उस समय हिंदी उर्दू साहित्य के जाने पहचाने नाम थे. उनके साथ दोनों भाषाओं में एक दर्जन से जियादा किताबें, एक नयी पत्नि और उनके साथ उनके पहले पति के चार लड़के, एक चांदी की पान की डिबिया, डोरों वाला एक लखनवी बटुआ, दस्तकार हाथों से सिले हुए कुछ मुग़लई अंगरखे, अलीगढ़ कट पाजामे, कुड़ते और शेरवानियाँ थीं.

* गुदाज़ इश्क़ नहीं कम, जो मैं जवान न रहा
वही है आग मगर आग में धुआं न रहा.

जिगर का ये शेर उनके उस दौर का था, जब वो शराब से दूर हो चुके थे. शराब की वजह से पत्नि ने उनसे तलाक ले लिया था. शराब छोड़ने के बाद उसी तलाकशुदा पत्नि नसीम (?) से फिर शादी की- !

(साभार: शेष/ जन.- मार्च 2007 में जनाब मरगूब अली की समीक्षात्मक टिप्पणी पर आधारित)

rajnish manga 02-04-2013 11:01 PM

Re: इधर-उधर से
 
प्रसंग: निदा फ़ाज़ली

* मेरे एक दोस्त सागर भगत ने एक फिल्म बनायी थी. फिल्म का नाम था “बेपनाह” उस मल्टी-स्टार फिल्म में संगीत खैयाम का था और गीत मैंने लिखे थे. निर्देशन जगदीश सिंघानिया का था, जिन्होंने फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर नाकाम होने के बाद फिल्म अभिनेत्री पद्मा खन्ना से शादी कर ली. दोनों एक दुसरे की ज़रुरत बन गए थे. जगदीश से फिल्म असफल होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री मुंह मोड़ रही थी और पद्मा जी का साथ उम्र छोड़ रही थी.
* एक शाम वे (एक शायर), कैफ़ी आज़मी, गुलाम रब्बानी ताबां और राजेंदर सिंह बेदी के साथ एक लेडी इनकम टैक्स कमिश्नर के यहां आमंत्रित थे. साथ में मैं भी गया था. ये सारे सीनियर लोग गटागट जाम चढ़ा रहे थे और हर जाम के साथ अपनी उम्रे घटा रहे थे. थोड़ी देर में मैनें देखा, सरदार जाफरी 75 से 25 के हो गए, बेदी 22 के पायदान पर खड़े हो गए और कैफ़ी 18 से आगे बढ़ने को तैयार नहीं थे. मैं क्योंकि जूनियर था, इसलिए उनकी घटाई हुयी उम्रें मेरे ऊपर सवार हो गयीं. रात जब जियादा हो गई, तो महिला ने उन्हें रुखसत किया और अपने कुत्ते को अन्दर करके दरवाजा बंद कर लिया. ये चारों बुज़ुर्ग बीच चौराहे पर खड़े होकर अपनी नयी जवानियों का प्रदर्शन कर रहे थे और मैं उन्हें 300 साल के बूढ़े की तरह सम्हाल रहा था. इतने में अचानक जाफरी को याद आया, उनकी बत्तीसी उस महिला के घर छूट गई है. मैं भागता हुआ वापस गया. मैनें बेल बजाई. जब वो बाहर आई तो मैंने आने का मक़सद बताया. उन्होंने लाईट जलाई तो देखा, उनका कुत्ता उस बत्तीसी में फंसे गोश्त के रेशों से खेल रहा था. बड़ी मुश्किल से डेंचर छीन कर मुझे दिया. उसका एक दांत टूट गया था. जाफरी ने बताया कि वो डेंचर उन्होंने स्विस में बनवाया था.
(साभार: शेष/ जन.- मार्च 2007 में जनाब मरगूब अली की समीक्षात्मक टिप्पणी पर आधारित)

abhisays 03-04-2013 03:43 AM

Re: इधर-उधर से
 
बहुत ही रोचक और मूड फ्रेश कर देने वाला सूत्र है यह, रजनीश जी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। :bravo:

rajnish manga 03-04-2013 11:50 AM

Re: इधर-उधर से
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 250110)
बहुत ही रोचक और मूड फ्रेश कर देने वाला सूत्र है यह, रजनीश जी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। :bravo:

:gm:

सूत्र विज़िट करने और इसमें दर्ज सामग्री पसंद करने के लिए अतिशय धन्यवाद, अभिषेक जी. आपकी टिप्पणियाँ दिशानिर्देश का काम करती हैं.

rajnish manga 04-04-2013 02:07 PM

Re: इधर-उधर से
 
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार सरदार करतार सिंह दुग्गल की नाट्य कृति “पुरानी बोतलें” में एक नाटक है “कोहकन“ जिसमे एक माली बागीचे में काम करता हुआ अपनी दिलकश आवाज में निम्नलिखित पंक्तियाँ बार बार गाता है. यह गीत फिजाओं में गूंजता प्रतीत होता है. जब 1996 में मैंने यह नाटक और ये पंक्तियाँ पढ़ी तो मुझे इनका अर्थ भी मालूम नहीं था और न ही इसके रचयिता के नाम का पता था. इसके पन्द्रह बरस के बाद यानि रविवार, दिनांक 20 मार्च 2011 को Hindustan Times में सरदार खुशवंत सिंह का कॉलम “With malice towards one and all” पढ़ा तो मैं यह देख कर मैं हैरान रह गया कि यही चार पंक्तियाँ मय अंग्रेजी अनुवाद के वहाँ उद्धृत की गयी थीं. यह कॉलम हज़रत अमीर खुसरो और उनके गुरु महान सूफ़ी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया के बारे में लिखा गया था.

तू मन शुदी, मन तू शुदम
तू जान शुदी मन तन शुदम
ता कस न गोयद बाद अजीं
तू दीगरी मन दीगरम
(हज़रत अमीर खुसरो)

भावार्थ:
मैं तुममें ढल गया हूँ और तुम मुझमे
मेरे तन के अन्दर तुम्हारी रूह बसी है
आज के बाद कोई ये न कह पाएगा कि
तू और मैं दो अलग अलग इन्सान हैं.

I have become you and you have become me,
In my body is your soul.
May none say hereafter, that you and
I are different beings.
(Translation by Sardar khushwant Singh)


rajnish manga 04-04-2013 11:19 PM

Re: इधर-उधर से
 
सदा नहीं रहते
(लेखक: यशपाल जैन)

किसी नगर में एक सेठ रहता था. वह बड़ा ही उदार और परोपकारी था.उसके दरवाजे पर जो भी आता, उसकी वह दिल खोल कर मदद करता.

एक दिन उसके यहाँ एक आदमी आया. उसके हाथ में एक परचा था, जिसे वह बेचना चाहता था.उसके पर्चे पर लिखा था – ‘सदा न रहे’! इस पर्चे को कौन खरीदता. लेकिन सेठ ने उसे तत्काल ले लिया और उसे अपनी पगड़ी के छोर में बाँध लिया.

नगर के कुछ लोग सेठ से ईर्ष्या करते थे. उन्होंने एक दिन राजा के पास जाकर उसकी शिकायत की और राजा ने सेठ को पकड़वा कर जेल में डलवा दिया.

जेल में काफी दिन निकल गए. सेठ बहुत दुखी था. क्या करे, उसकी समझ में कुछ नहीं आता था.

एक दिन सेठ का हाथपगड़ी की गांठ पर पड़ गया. उसने गाँठ को खोल कर परचा निकाला और पढ़ा. पढ़ते ही उसकी आँखें खुल गयीं. उसने मन ही मन कहा, अरे, “तो दुःख किस बात का! जब सुख के दिन सदा न रहे तो दुःख के दिन भी सदा न रहेंगे.”

इस विचार के आते ही वह जोर से हंस पड़ा और देर तक हँसता रहा. चौकीदार ने उसकी हंसी सुनी तो उसे लगा, सेठ मारे दुःख के पागल हो गया है. उसने राजा को खबर दी. राजा आया. सेठ से पूछा, “क्या बात है?” सेठ ने सारी बात बता दी. उसने राजा से कहा, “राजन, आदमी दुखी क्यों हो? सुख-दुःख के दिन तो सदा बदलते रहते हैं.”

सुन कर राजा को बोध हो गया. उसने सेठ को जेल से निकलवा कर उसके घर भिजवा दिया. सेठ आनंद से रहने लगा.

(साभार: जीवन साहित्य / जून 1980)

rajnish manga 04-04-2013 11:28 PM

Re: इधर-उधर से
 
मेहदी अली के कुछ चुनिन्दा शे'र

मीठी लगी जुबां को मगर ज़हर बन गई
ये ज़िन्दगी खुदा की कसम कहर बन गई.

यह शफ़क़ बन के खिले या कफ़े क़ातिल पे जमे
खूने-मेहदी की तो फितरत है नुमायाँ होना.

है कोई इस हयात का जो मर्सिया पढ़े
मुद्दत से हम तलाश में इक नौहख्वां के हैं.

अभी है आखरी हिचकी का मरहला बाकी
खुदा के वास्ते दस्ते दुआ उठाये रखो.

नौहख्वां = स्यापा करने वाला
(शायर: मेहदी अली)


rajnish manga 06-04-2013 08:03 PM

Re: इधर-उधर से
 
गीतांजली से—

चित्त जेथा भयशून्य, उच्च जेथा शिर,
ज्ञान जेथा मुक्त, जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड क्षुद्रकरि
जेथा वाक्य हृदयेर उत समुख हते
उच्छवसिया उठे, तेता निर्वारित स्त्रोते
देशे देशे दिशे दिशे कर्मधारा धाय
अजस्र सहसबिध चरितार्थताय
जेथा तुच्छ आचारेर मरुवालुराशि
विचारेर स्त्रोत पथ फेले नाई ग्रासि,
पौरुषेरे करे नि शतधा-नित्य जेथा
तुम सर्व कर्म चिन्ता आनन्देर नेता
निज हस्ते निर्दय आघात करि पितः,
भारतेर सेइ स्वर्गे करो जागरित.
(नैवेद्य)



rajnish manga 06-04-2013 08:04 PM

Re: इधर-उधर से
 
Where the mind is without fear and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls;
Where the words come out from the depth of truth;
Where tireless striving stretches its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason has not lost its way
Into the dreary desert of dead habit;
Where the mind is led forward by thee into ever-
Widening in thought and action –
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.

From a translation of Gitanjali
By Rabindranath Tagore

rajnish manga 06-04-2013 08:08 PM

Re: इधर-उधर से
 
जहाँ चित्त भय से विमुक्त हो


जहाँ चित्त भय से विमुक्त हो
और जहाँ शिर ऊँचा;
ज्ञान न हो जकड़ा बंधन में;
जहाँ घरों की दीवारें
बना रात-दिन अपने प्रांगण
करें विभाजित नहीं धरा को
खंड खंड में;
जहाँ शब्द आते हों उठकर
अंतरतम की गहराई से;
जहाँ कर्म – धारा अजस्र, अक्लांत प्रवाहित
देश देश में, दिशा दिशा में
प्राप्त पूर्णता को करने को;
जहाँ न होता पथ विवेक का
लुप्त रूढ़ियों के मरु-थल में;
जहाँ रहे पुरुषार्थ निरंतर
प्रकटित नाना-विध रूपों में;
जहाँ चित्त को, परम पिता,
तुम ले जाते हो
मुक्त विचारों और कर्म में,
जगे प्रभो, यह देश हमारा
स्वतंत्रता की स्वर्ग-भूमि में.

(अनुवाद: यशपाल जैन)

rajnish manga 06-04-2013 08:16 PM

Re: इधर-उधर से
 

Fisherman's Prayer
मछेरे की प्रार्थना

Protegez moi, mon seigneur,
Ma barque est si petit,
Et votre me rest si grande.
--- Anonymous: Old Breton

Protect me, O Lord;
My boat is so small,
And your sea is so big.

मुझे सुरक्षित रखना भगवन,
मेरी नाव बहुत छोटी है,
तेरा समुन्दर इतना विस्तृत.


rajnish manga 06-04-2013 08:20 PM

Re: इधर-उधर से
 
घड़ी
(रचना: बालकृष्ण गर्ग)

टिक टिक टिक टिक बोल रही :
मेरी पहली सीख यही-
“समय न बीते व्यर्थ कहीं!”

टिक टिक टिक टिक बोल रही,
मेरी अगली सीख यही-
“काम समय पर करो सही!”

टिक टिक टिक टिक बोल रही,
मेरी अंतिम सीख यही-
“बुरे काम तुम करो नहीं!”

rajnish manga 06-04-2013 08:22 PM

Re: इधर-उधर से
 
आज़ादी क्या आज़ादी
(रचना: यदुकुलनंदन खरे)

यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जिसमे श्रद्धा विश्वास नहीं हो;
कर्मो का अहसास नहीं हो!
निरपराध को राह नहीं हो.
न्याय जहाँ पर लाज बचाने, कहीं दूर जा छिप जाता है,
अन्यायी अपनी ताकत से, विजय पताका फहराता है.
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जिसमे सच्चा न्याय नहीं हो!
मानवता की चाह नहीं हो !
निर्धन हर दम पिस्ता रहता, अपने पथ से हटता रहता,
मात्र पेट की खातिर बंदा, दर दर ठोकर खाता फिरता.
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जिसमे मानव को प्यार नहीं हो!
श्रम की भी प्रवाह नहीं हो!
जन सेवा के बल पर ऊंचे महल जहाँ बनवाये जाते,
बापू नेहरु के सपनो पर, मात्र प्लान बनवाये जाते.
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जहाँ स्वजन का स्नेह नहीं हो!
राष्ट्र-प्रेम का भाव नहीं हो!
थोथे आदर्शों से हम सब, प्रगतिशील क्या बन सकते हैं?
नंगे-भूखे-भिखमंगों का पेट कभी क्या भर सकते हैं?
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जहाँ हाथ को काम नहीं हो!
जन जन का कल्याण नहीं हो!


rajnish manga 07-04-2013 01:10 PM

Re: इधर-उधर से
 
1 Attachment(s)

गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर कृत

गीतांजली से—
(मूल बंगला गीत देवनागरी लिपि में)


चित्त जेथा भयशून्य, उच्च जेथा शिर,
ज्ञान जेथा मुक्त, जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड क्षुद्रकरि
जेथा वाक्य हृदयेर उत समुख हते
उच्छवसिया उठे, तेता निर्वारित स्त्रोते
देशे देशे दिशे दिशे कर्मधारा धाय
अजस्र सहसबिध चरितार्थताय
जेथा तुच्छ आचारेर मरुवालुराशि
विचारेर स्त्रोत पथ फेले नाई ग्रासि,
पौरुषेरे करे नि शतधा-नित्य जेथा
तुम सर्व कर्म चिन्ता आनन्देर नेता
निज हस्ते निर्दय आघात करि पितः,
भारतेर सेइ स्वर्गे करो जागरित.
(नैवेद्य)
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1365322812

rajnish manga 09-04-2013 11:26 PM

Re: इधर-उधर से
 
चलता फिरता फ़रिश्ता
(लेखक: यशपाल जैन)

यह उन दिनों की बात है जब चंपारण में किसानों का आन्दोलन चल रहा था. गांधी जी की उस सेना में सभी प्रकार के सैनिक थे. जिनमे आत्मिक बल ता वे उस लड़ाई में शामिल हो सकते थे, सत्याग्रहियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित एक खेतिहर मजदूर भी था. उसके शरीर में घाव थे. वह उन पर कपड़ा लपेट कर चलता था.

एक दिन शाम को सत्याग्रही अपनी छावनी को लौट रहे थे. पर बिचारे कुष्ठी से चला नहीं जाता था.उसके पैरों पर बंधे कपड़े कहीं गिर गए थे. घावों से खून बह रहा था. सब लोग आश्रम में पहूँच गए. बस, एक वही व्यक्ति रह गया.

प्रार्थना का समय हुआ. गाँधी जी ने निगाह उठा कर अपने चारों ओर बैठे सत्याग्रहियों को देखा, पर उन्हें वह महारोगी दिखाई नहीं दिया. उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि लौटते में वह पिछड़ गया था.

यह सुन कर गाँधी जी तत्काल उठ खड़े हुए और हाथ में बत्ती लेकर उसकी तलाश में निकल पड़े. चलते चलते उन्होंने देखा कि रास्ते में एक पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा है. दूर से ही गाँधी जी को पहचान कर वह चिल्लाया, “बापू!”

उसके पास जा कर गाँधी जी ने बड़ी व्यथा से कहा, “अरे भाई, तुमसे चला नहीं जाता था तो मुझसे क्यों नहीं कहा?”

तभी उनका ध्यान उसके पैरों की ओर गया. वे खून से लथ-पथ थे. गाँधी जी ने झट अपनी चादर को फाड़ कर उसके पेरों पर कपड़ा लपेट दिया और उसे सहारा दे कर धीरे-धीरे आश्रम में ले आये, उसके पैर धोये और फिर प्यार से अपने पास बिठा कर उन्होंने प्रार्थना की.

अपने धर्म ग्रंथों में हम फरिश्तों की काहानियाँ पढ़ते हैं, जो संकट में फंसे लोगों की सहायता के लिए दोड़े चले आते थे. इससे बढ़ कर हमारा सौभाग्य और क्या हो सकता है कि एक चलता फिरता फ़रिश्ता वर्षों तक हमारे बीच रहा.
*****

rajnish manga 09-04-2013 11:30 PM

Re: इधर-उधर से
 
शहर में किस किस से लेते इन्तक़ाम
घर में आके सबसे पहले सो गए.
(निदा फ़ाज़ली)

पराई आग़ पे हाथों को तापते रहिये
नहीं तो सुब्ह तलक यूं ही कांपते रहिये.
(निदा फ़ाज़ली)

मंजिल मिले न मिले इसका ग़म नहीं
मंजिल की जुस्तजू में मेरा कारवां तो है
(संगीतकार नौशाद का एक शे’र)

rajnish manga 09-04-2013 11:34 PM

Re: इधर-उधर से
 
सुभाषितम

शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे i
साधवो न हि सर्वत्रं, चन्दनं न वने वने ii

(भावार्थ: हर पर्वत पर मणियाँ नहीं मिलतीं, हर हाथी के भाल पर मोतियों की सजावट नहीं होती, हर
स्थान पर सच्चे साधू नहीं पाये जाते, और हर जंगल में चन्दन के वृक्ष भी प्राप्त नहीं होते)

गीतों में राग

1. आयो कहाँ से घनश्याम = खमाज
2. लागा चुनरी मैं दाग = भैरवी
3. नदिया किनारे हेराये = पीलू
4. बोले रे पपीहरा = मल्हार

rajnish manga 09-04-2013 11:39 PM

Re: इधर-उधर से
 
कुछ अंग्रेजी शब्द और उनके हिंदी समानार्थक शब्द:
Anomaly = असंगति
Entrust... = सौंपना
Guiltless = निरपराध
Commentators = टीकाकार

अब कुछ हिंदी शब्दावली पर विचार करते है:

मनोदाह = मन की पीड़ा
परिचर्या = सेवा
लोकापवाद = लोकनिंदा
उद्दंड = अक्खड़

rajnish manga 10-04-2013 11:52 PM

Re: इधर-उधर से
 
*सबसे पहले दो शेर आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं:

ऐ तायिरे लाहूती उस रिज़्क से मौत अच्छी
जिस रिज़्क से आती हो परवाज़ में कोताही.
(शायर: इक़बाल)

अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने अक्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
(शायर: इक़बाल)

*
आज़ादी से पहले की बात है, शराब की दुकानों के बाहर महिलाओं द्वारा धरना दिया जाता था. उन्हीं दिनों पंजाब के एक आर्य समाजी कार्यकर्ता लाला चिरंजी लाल ने एक गीत शराब-बंदी के बारे में लिखा था:

“छड शराब भन प्याले नूं,
लाख लानत पीने वाले नूं.”

दूसरी ओर शराबी गाते थे:

“पी शराब फड़ प्याले नूं,
की पता चिरंजी लाले नूं.”

और आखिर शराबियों ने पंडित चिरंजी लाल को शहीद बना कर ही छोड़ा.


rajnish manga 10-04-2013 11:57 PM

Re: इधर-उधर से
 

गीतांजलि से
(गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर)

एवार भासिये दित हबे आमार ....
..... ऐ पारेर ऐ बांशिर सुरे
उठे शिहरि ii

हिंदी भावानुवाद

अब ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी यह नौका किनारे लग जायेगी, जो समय बीत रहा है, वही बीत रहा है. बसंत अपने फूल खिलाने का सब कार्य करके चला गया है. बोलो; मैं इन मुरझाये पुष्पों की डलिया को ले कर क्या करूं? जल में छलछल करती लहरें उठ रही हैं तथा वन में वृक्षों के पत्ते झर रहे हैं.

है शून्य हृदय ! तू किसे देख रहा है? यह सम्पूर्ण विश्व तथा सम्पूर्ण आकाश इस वंशी ध्वनि के कारण ही सिहर रहा है.


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