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abhisays 06-11-2011 11:34 AM

तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
तसलीमा नसरीन की कवितायें

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abhisays 06-11-2011 11:34 AM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
पिता, पति, पुत्र

अगर तुम्हारा जन्म नारी के रूप मे हुआ है तो
बचपन में तुम पर
शासन करेंगे पिता
अगर तुम अपना बचपन बिता चुकी हो
नारी के रूप में
तो जवानी में तुम पर
राज करेगा पति
अगर जवानी की दहलीज़
पार कर चुकी होगी
तो बुढ़ापे में
रहोगी पुत्र के अधीन

जीवन-भर तुम पर
राज कर रहे हैं ये पुरुष
अब तुम बनो मनुष्य
क्योंकि वह किसी की नहीं मानता अधीनता -
वह अपने जन्म से ही
करता है अर्जित स्वाधीनता


अनुवाद : शम्पा भट्टाचार्य

abhisays 06-11-2011 11:35 AM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
सतीत्व

काया कोई छुए तो हो जाऊंगी नष्ट

हृदय छूने पर नहीं ?
हृदय देह में बसा रहता है निरंतर

काया के सोपान को पार किए बिना
जो अंतर गेह में करता है प्रवेश
वह कोई और ही होगा
पर जानती हूँ
वो मनुष्य नहीं होगा


अनुवाद : शम्पा भट्टाचार्य

abhisays 06-11-2011 11:36 AM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
तोप दागना

मेरे घर के सामने स्पेशल ब्रांच के लोग
चौबीसों घंटे खड़े रहते हैं
कौन आता है कौन जाता है
कब निकलती हूँ, कब वापस आती हूँ
सब कापी में लिखकर रखते हैं
किसके साथ दोस्ती है
किसकी कमर से लिपटकर हँसती हूँ
किसके साथ फुसफुसाकर बातें करती हूँ... सब कुछ

लेकिन एक चीज़ जिस वे दर्ज़ नहीं कर पाते
वह है - मेरे दिमाग़ में कौन-सी भावनाएँ
उमड़-घुमड़ रही है
मैं अपनी चेतना मे क्या कुछ सँजो रही हूँ

सरकार के पास तोप और कमान हैं
और मुझ जैसी मामूली मच्छर के पास है डंक


अनुवाद : शम्पा भट्टाचार्य

abhisays 06-11-2011 11:36 AM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
भारतवर्ष

भारतवर्ष सिर्फ भारतवर्ष नहीं है।
मेरे जन्म के पहले से ही,
भारतवर्ष मेरा इतिहास।

बगावत और विद्वेष की छुरी से द्विखंडित,
भयावह टूट-फूट अन्तस में संजोये,
दमफूली साँसों की दौड़. अनिश्चित संभावनाओं की ओर, मेरा इतिहास।
रक्ताक्त इतिहास। मौत का इतिहास।

इस भारतवर्ष ने मुझे दी है, भाषा,
समृद्ध किया है संस्कृति से,
शक्तिमान सपनों में।

इन दिनों यही भारतवर्ष अगर चाहे, तो छीन सकता है,
मेरे जीवन से, मेरा इतिहास।
मेरे सपनों का स्वदेश।

लेकिन नि:स्व कर देने की चाह पर,
भला मैं क्यों होने लगी नि:स्व?
भारतवर्ष ने जो जन्म दिया है महात्माओं को।
उन विराट आत्माओं के हाथ
आज, मेरे थके-हारे कन्धे पर,
इस असहाय, अनाथ और अवांछित कन्धे पर।

देश से भी ज्यादा विराट हैं ये हाथ,
देश-काल के पार ये हाथ,
दुनिया भर की निर्ममता से,

मुझे बड़ी ममता से सुरक्षा देते हैं-
मदनजित, महाश्वेता, मुचकुन्द-
इन दिनों मैं उन्हें ही पुकारती हूँ- देश।
आज उनका ही, हृदय-प्रदेश, मेरा सच्चा स्वदेश।


अनुवाद : शम्पा भट्टाचार्य

abhisays 06-11-2011 11:38 AM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
कलकता इस बार…


इस बार कलकता ने मुझे काफ़ी कुछ दिया,
लानत-मलामत; ताने-फिकरे,
छि: छि:, धिक्कार,
निषेधाज्ञा
चूना-कालिख, जूतम्-पैजार

लेकिन कलकत्ते ने दिया है मुझे गुपचुप और भी बहुत कुछ,
जयिता की छलछलायी-पनीली आँखें
रीता-पारमीता की मुग्धता
विराट एक आसमान, सौंपा विराटी ने
2 नम्बर, रवीन्द्र-पथ के घर का खुला बरामदा,
आसमान नहीं तो और क्या है?

कलकत्ते ने भर दी हैं मेरी सुबहें, लाल-सुर्ख गुलाबों से,
मेरी शामों की उन्मुक्त वेणी, छितरा दी हवा में.
हौले से छू लिया मेरी शामों का चिबुक,
इस बार कलकत्ते ने मुझे प्यार किया खूब-खूब.
सबको दिखा-दिखाकर, चार ही दिनों में चुम्बन लिए चार करोड्.

कभी-कभी कलकत्ता बन जाता है, बिल्कुल सगी माँ जैसा,
प्यार करता है, लेकिन नहीं कहता, एक भी बार,
कि वह प्यार करता है.
चूँकि करता है प्यार, शायद इसीलिये रटती रहती हूँ-कलकत्ता! कलकत्ता!

अब अगर न भी करे प्यार, भले दुरदुराकर भगा दे
तब भी कलकत्ता का आँचल थामे, खडी रहूँगी, बेअदब लड्की की तरह!
अगर धकियाकर हटा भी दे, तो भी मेरे कदम नहीं होंगे टस से मस!
क्यों?
प्यार करना क्या अकेले वही जानता है, मैं नही?


अनुवाद : सुशील गुप्ता

abhisays 06-11-2011 11:39 AM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
प्रेरित नारी

हम हैं- प्रकृति की भेजी हुई स्त्रियाँ
प्रकृति स्त्री को पुरुष की पसलियों से नहीं गढ़ती
हम हैं, प्रकृति की प्रेरित नारियाँ
प्रकृति नारी को पुरुष के अधीन नहीं रखती
हम हैं, प्रकृति की भेजी हुई स्त्रियाँ
प्रकृति स्त्री को स्वर्ग में पुरुषों के पैरों तले नहीं रखती।

प्रकृति ने स्त्री को मनुष्य बनाया है
पुरुष द्वारा निर्मित धर्म इसमें बाधा डालता है
प्रकृति ने स्त्री को मनुष्य बताया है-
समाज अंगूठा दिखाकर ठहाके लगाता है
प्रकृति ने स्त्री को मनुष्य कहा है-
पुरुषों ने एकजुट होकर कहा है - 'नहीं'।


अनुवाद : सुशील गुप्ता

Dark Saint Alaick 06-11-2011 11:53 AM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
अद्भुत कवयित्री ... अनुपम कविताएं ! धन्यवाद अभिजी !

GForce 06-11-2011 03:48 PM

Re: तसलीमा नसरीन की कवितायें
 
श्रेष्ठ कविताओं का रसास्वादन कराने के लिए आपका आभार ! तसलीमा नसरीन का गद्य उतना प्रभावशाली नहीं है, जितनी शक्तिशाली भावाभिव्यक्ति उनके पद्य में है ! यह सभी कविताएं इसका सटीक प्रमाण हैं ! :bravo:


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