अपना अपना भाग्य
अपना अपना भाग्य
(इन्टरनेट से) एक राजा के तीन पुत्रियाँ थीं और तीनों बडी ही समझदार थी। वे तीनो राजमहल मे बडे आराम से रहती थी। एक दिन राजा अपनी तीनों पुत्रियों सहित भोजन कर रहे थे, कि अचानक राजा ने बातों ही बातों मे अपनी तीनों पुत्रियो से कहा- एक बात बताओ, तुम तीनो अपने भाग्य से खाते-पीते हो या मेरे भाग्य से? दो बडी पुत्रियो ने कहा कि- पिताजी हम आपके भाग्य से खाते हैं। यदि आप हमारे पिता महाराज न होते, तो हमें इतनी सुख-सुविधा व विभिन्न प्रकार के व्यंजन खाने को नसीब नहीं होते। ये सब आपके द्वारा अर्जित किया गया वैभव है, जिसे हम भोग रहे हैं। पुत्रियों के मुँह से यह सुन कर राजा को अपने आप पर बडा गर्व और खु:शी हो रही थी लेकिन राजा की सबसे छोटी पुत्री ने इसी प्रश्न के उत्तर में कहा कि- पिताजी मैं आपके भाग्य से नहीं बल्कि अपने स्वयं के भाग्य से यह सब वैभव भोग रही हूँ। छोटी पुत्री के मुँख से ये बात सुन राजा के अहंकार को बडी ठेस लगी। उसे गुस्सा भी आया और शोक भी हुआ क्योंकि उसे अपनी सबसे छोटी पुत्री से इस प्रकार के जवाब की आशा नहीं थी। |
Re: भाग्य और पुरुषार्थ
समय बीतता गया, लेकिन राजा अपनी सबसे छोटी पुत्री की वह बात भुला नहीं पाया और समय आने पर राजा ने अपनी दोनो बडी पुत्रियो की विवाह दो राजकुमारो से करवा दिया परन्तु सबसे छोटी पुत्री का विवाह क्रोध के कारण एक गरीब लक्कड़हारे से कर दिया और विदाई देते समय उसे वह बात याद दिलाते हुए कहा कि- यदि तुम अपने भाग्य से राज वैभव का सुख भोग रही थी, तो तुम्हें उस गरीब लकड़हारे के घर भी वही राज वैभव का सुख प्राप्त होगा, अन्यथा तुम्हें भी ये मानना पडे़गा कि तुम्हें आज तक जो राजवैभव का सुख मिला, वह तुम्हारे नहीं बल्कि मेरे भाग्य से मिला।
चूंकि, लक्कड़हारा बहुत ही गरीब था, इसलिए निश्चित ही राजकुमारी को राजवैभव वाला सुख तो प्राप्त नहीं हो रहा था। लक्कड़हारा दिन भर लकडी काटता और उन्हें बेंच कर मुश्किल से ही अपना गुजारा कर पाता था। सो, राजकुमारी के दिन बडे ही कष्टदायी बीत रहे थे लेकिन वह निश्चित थी, क्योंकि राजकुमारी यही सोचती कि यदि उसे मिलने वाले राजवैभव का सुख उसे उसके भाग्य से मिला था, तो निश्चित ही उसे वह सुख गरीब लक्कड़हारे के यहाँ भी मिलेगा। एक दिन राजा ने अपनी सबसे छोटी पुत्री का हाल जानना चाहा तो उसने अपने कुछ सेवको को उसके घर भेजा और सेवको से कहलवाया कि राजकुमारी को किसी भी प्रकार की सहायता चाहिए तो वह अपने पिता को याद कर सकती है क्योंकि यदि उसका भाग्य अच्छा होता, तो वह भी किसी राजकुमार की पत्नि होती। |
Re: भाग्य और पुरुषार्थ
लेकिन राजकुमारी ने किसी भी प्रकार की सहायता लेने से मना कर दिया, जिससे महाराज को और भी ईर्ष्या हुई अपनी पुत्री से। क्रोध के कारण महाराज ने उस जंगल को ही नीलाम करने का फैसला कर लिया जिस पर उस लक्कड़हारे का जीवन चल रहा था।
एक दिन लक्कड़हारा बहुत ही चिंता मे अपने घर आया और अपना सिर पकड़ कर झोपडी के एक कोने मे बैठ गया। राजकुमारी ने अपने पति को चिंता में देखा तो चिंता का कारण पूछा और लक्कड़हारा ने अपनी चिंता बताते हुए कहा कि- जिस जंगल में मैं लकडी काटता हुँ, वह कल नीलाम हो रहा है और जंगल को खरीदने वाले को एक माह में सारा धन राजकोष में जमा करना होगा, पर जंगल के नीलाम हो जाने के बाद मेरे पास कोई काम नही रहेगा, जिससे हम अपना गुजारा कर सके। चूंकि, राजकुमारी बहुत समझदार थी, सो उसने एक तरकीब लगाई और लक्कड़हारे से कहा कि- जब जंगल की बोली लगे, तब तुम एक काम करना, तुम हर बोली मे केवल एक रूपया बोली बढ़ा देना। |
Re: भाग्य और पुरुषार्थ
दूसरे दिन जंगल गया और नीलामी की बोली शुरू हुई और राजकुमारी के समझाए अनुसार जब भी बोली लगती, तो लक्कड़हारा हर बोली पर एक रूपया बढा कर बोली लगा देता। परिणामस्वरूप अंत में लक्कड़हारे की बोली पर वह जंगल बिक गया लेकिन अब लक्कड़हारे को और भी ज्यादा चिंता हुई क्योंकि वह जंगल पांच लाख में लक्कड़हारे के नाम पर छूटा था जबकि लक्कड़हारे के पास रात्रि के भोजन की व्यवस्था हो सके, इतना पैसा भी नही था।
आखिर घोर चिंता में घिरा हुआ वह अपने घर पहुँचा और सारी बात अपनी पत्नि से कही। राजकुमारी ने कहा- चिंता न करें, आप जिस जंगल में लकड़ी काटने जाते है वहाँ मैं भी आई थी एक दिन, जब आप भोजन करने के लिए घर नही आये थे और मैं आपके लिए भोजन लेकर आई थी। तब मैंने वहाँ देखा कि जिन लकड़ियों को आप काट रहे थे, वह तो चन्*दन की थी। आप एक काम करें। आप उन लकड़ियों को दूसरे राज्*य के महाराज को बेंच दें। चुंकि एक माह में जंगल का सारा धन चुकाना है सो हम दोनों मेहनत करके उस जंगल की लकड़ियाँ काटेंगे और साथ में नये पौधे भी लगाते जायेंगे और सारी लकड़ियाँ राजा-महाराजाओ को बेंच दिया करेंगे। लक्कड़हारे ने अपनी पत्नि से पूंछा कि क्या महाराज को नही मालूम होगा कि उनके राज्य के जंगल में चन्दन के पेड़ भी हैं। राजकुमारी ने कहा- मालुम है, परन्तु वह जंगल किस और है, यह नही मालूम है। |
Re: भाग्य और पुरुषार्थ
लक्कड़हारे को अपनी पत्नि की बात समझ में आ गई और दोनो ने कड़ी मेहनत से चन्दन की लकड़ियों को काटा और दूर-दराज के राजाओं को बेंच कर जंगल की सारी रकम एक माह में चुका दी और नये पौधों की खेप भी रूपवा दी ताकि उनका काम आगे भी चलता रहे।
इस बीच पड़ौसी देश का राजा समर्थवर्मन जिसका राज्य राजकुमारी के पिता के राज्य से अधिक शक्तिशाली था, उसने इस राज्य पर अपना अधिकार जमा लिया. राजकुमारी के माता पिता और भाई संबंधी अपनी जान बचाने के लिये महल के गुप्त रास्ते से बाहर निकल गए. काफी समय तक वे अन्य छोटे छोटे राजाओं से मिलते रहे लेकिन समर्थवर्मन से लोहा लेने की किसी में ताकत नहीं थी. इस प्रकार अपना राज्य वापिस प्राप्त करने के उनके सभी प्रयास विफल हो गए. इन कोशिशों में कई वर्ष गुजर गए. जब वे बिलकुल निराश हो गए और पास का धन सम्पत्ति भी खत्म हो गई तो और कोई चारा न पाकर उन्होंने मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करने का मन बना लिया. राजकुमारी के माता पिता और अन्य परिवारजन दिन भर मेहनत मजदूरी करते और रात को अपनी झोंपड़ी में आ जाते. उन्होंने इसे ही अपना भाग्य मान कर स्वीकार कर लिया. इस बीच, कई वर्षों की लगातार मेहनत, लगन व ईमानदारी के फलस्वरूप लक्कड़हारा और राजकुमारी भी धीरे धीरे धनवान हो गए। लक्कड़हारा और राजकुमारी ने अपना महल बनवाने की सोच एक-दूसरे से विचार-विमर्श करके काम शुरू करवाया। लक्कड़हारा दिन भर अपने काम को देखता और राजकुमारी अपने महल के कार्य का ध्यान रखती। एक दिन राजकुमारी अपने महल की छत पर खडी होकर मजदूरो का काम देख रही थी कि अचानक उसे अपने महाराज पिता और अपना पूरा राज परिवार मजदूरो के बीच मजदूरी करता हुआ नजर आता है। राजकुमारी अपने परिवारवालों को देख सेवको को तुरंत आदेश देती है कि वह उन मजदूरो को छत पर ले आये। सेवक राजकुमारी की बात मान कर वैसा ही करते हैं। महाराज अपने परिवार सहित महल की छत पर आ जाते हैं और अपनी पुत्री को महल में देख आश्चर्य से पूछते हैं कि तुम महल में कैसे? राजकुमारी अपने पिता से कहती है कि- महाराज… आपने जिस जंगल को नीलाम करवाया, वह हमने ही खरीदा था क्योंकि वह जंगल चन्दन के पेड़ों का था। और फिर राजकुमारी ने सारी बातें राजा को कह सुनाई। अंत में राजा ने स्वीकार किया कि उसकी पुत्री सही थी। ** |
Re: अपना अपना भाग्य
रजनीश जी आपकी ये कहानी निश्चित ही बेहद प्रेरक है परन्तु एक दुविधा है मन में...... राजकुमारी धनवान बन गयी , वो तो समझ आ गया परन्तु राजा इतना धनहीन कैसे हो गया ?? निश्चित ही भाग्य के कारण परन्तु क्या कोई और भी वजह थी जो मुझे समझ में ना आ सकी हो......
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Re: अपना अपना भाग्य
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Re: अपना अपना भाग्य
पवित्रा जी द्वारा बताये जाने पर कहानी के उस छूटे हुये भाग को सम्पादन के पश्चात पुनर्निर्मित करने की कोशिश की गई है. आशा है स्नेहीजन इसे स्वीकार करेंगे.
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Re: भाग्य और पुरुषार्थ
भाग्य कर्मो से बनता है और कर्म के फलस्वरूप इंसान को अछे और बुरे दिनों का सामना करना पड़ता है . कुछ नसीब और कुछ कर्म का साथ मिलकर इन्सान का प्रारब्ध बनता है ... इस कहानी के माध्यम से आपने बहुत अच्छा सन्देश दिया है भाई .. बहुत बहुत धन्यवाद हमसे शेयर करने के लिए ..
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Re: अपना अपना भाग्य
[QUOTE=rajnish manga;558262]
इस बीच पड़ौसी देश का राजा समर्थवर्मन जिसका राज्य राजकुमारी के पिता के राज्य से अधिक शक्तिशाली था, उसने इस राज्य पर अपना अधिकार जमा लिया. राजकुमारी के माता पिता और भाई संबंधी अपनी जान बचाने के लिये महल के गुप्त रास्ते से बाहर निकल गए. काफी समय तक वे अन्य छोटे छोटे राजाओं से मिलते रहे लेकिन समर्थवर्मन से लोहा लेने की किसी में ताकत नहीं थी. इस प्रकार अपना राज्य वापिस प्राप्त करने के उनके सभी प्रयास विफल हो गए. इन कोशिशों में कई वर्ष गुजर गए. जब वे बिलकुल निराश हो गए और पास का धन सम्पत्ति भी खत्म हो गई तो और कोई चारा न पाकर उन्होंने मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करने का मन बना लिया. राजकुमारी के माता पिता और अन्य परिवारजन दिन भर मेहनत मजदूरी करते और रात को अपनी झोंपड़ी में आ जाते. उन्होंने इसे ही अपना भाग्य मान कर स्वीकार कर लिया. Quote:
:bravo: अब यह प्रसंग और भी रोचक हो गया है , आपके द्वारा किया गया सम्पादन बिल्कुल कहानी के अनुरूप है और कहानी के सौन्दर्य को बढा रहा है । आपका बहुत बहुत आभार कि आपने मेरी जिज्ञासा को शान्त किया और मेरे प्रश्न को इस योग्य समझते हुए कहानी में बदलाव किया । |
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