My Hindi Forum

My Hindi Forum (http://myhindiforum.com/index.php)
-   Religious Forum (http://myhindiforum.com/forumdisplay.php?f=33)
-   -   मानव जीवन का उद्देश्य (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=4904)

Devotional Thoughts 07-10-2012 08:40 PM

मानव जीवन का उद्देश्य
 
लेख सार : मानव जीवन के मूल उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने वाला लेख है | लेख में प्रकाश डाला गया है कि जब मानव शरीर लेकर आये हैं, तो हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए | पूरा लेख नीचे पढ़े -

क्या हमने एकांत में बैठकर कभी यह सोचा है या सोचने का प्रयास भी किया है की मानव जन्म हमें क्यों मिला है | चोरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुए और इस लम्बी यात्रा में जलचर, नभचर, थलचर और वनस्पति बनने के बाद हमें मानव जीवन मिला है | मानव जीवनरूपी यह अदभुत मौका परम कृपालु और परम दयालु परमपिता ने हम पर कृपा और दया करके हमें प्रदान किया है | मानव जीवनरूपी यह मौका इसलिए अदभुत है क्योंकि चोरासी लाख योनियों के चक्रव्यहू से सदा सदा के लिए छुटने का / मुक्त होने का यह एकमात्र साधन है |

पर क्या हमारा प्रयास इस उद्देश्य पूर्ति हेतु हो रहा है या हम व्यर्थ की दुनियादारी में ही उलझे पड़े हैं | हमें समझाना होगा की श्रेष्ठत्तम मार्ग यह है की बहुत साधारण दुनियादारी रखते हुए मानव जीवन के उद्देश्य पूर्ति के लिए प्रयास करना |

अब साधारण दुनियादारी का अर्थ समझाना चाहिये | साधारण दुनियादारी का अर्थ है की सबसे समभाव / सामंजस्य रखते हुए जहाँ जरुरत नहीं हो वहां व्यर्थ के पचड़े में नहीं पड़ना | जहाँ जरूरत हो वहाँ बहुत संक्षिप्त दुनियादारी रखना | क्योंकि यह संक्षिप्त दुनियादारी उस बड़ी दुनियादारी से बहुत अच्छी है जिसे रखने में इतना समय, आयु और श्रम व्यर्थ हो जाता है की हमारे मानव जीवनरुपी उद्देश्य पूर्ति हेतु हमारे पास समय, आयु और श्रमशक्ति बचती ही नहीं और इस तरह हम मानव जीवनरूपी एक सुनहरा अवसर व्यर्थ ही गवा देते हैं |

मानव जीवन की उद्देश्य पूर्ति हेतु सर्वोत्तम साधन प्रभु-भक्ति है | भक्तिमार्ग मानव जीवन को सफल करने का, मानव जीवन की उद्देश्य पूर्ति का, चौरासी लाख योनियों के चक्रव्यहू से छुटने का और परमानन्द ( "सांसारिक सुख" से बहुत ऊंचा "आनंद" और उससे भी बहुत बहुत ऊंचा "परमानन्द" ) पाने का श्रेष्ठत्तम मार्ग है |

पर मानव का दुर्भाग्य देखें की दुनियादारी में पड़ "सांसारिक सुख" को सब कुछ मान उसी में लिप्त रहने में अपना सौभाग्य एवं अपने मानव जीवन की सफलता समझ बैठा है | यहाँ पर दो कहावते बहुत सटीक बैठती हैं |

पहली कहावत - " तालाब के मेंढक " को नदी और महासागर की भव्यता का पता ही नहीं और वह तालाब को ही सबकुछ मान बैठा है | हमने भी दुनियादारी और सांसारिक सुख के तालाब को ही सबकुछ मान लिया है | हम अभी भी "भक्तिरूपी नदी" जिसका विलय "प्रभुरुपी महासागर" में होता है , उससे अनभिज्ञ हैं |

दूसरी कहावत - अगर हमने आम खाया ही नहीं तो हम आम के स्वाद को कभी समझ ही नहीं पायेगे क्योंकि खाने से ही वह स्वाद समझ में आता है | किसी के समझाने से आम की मिठास कभी समझ में नहीं आती अपितु स्वम के अनुभव से ही आती है | ऐसे ही प्रभु भक्ति में गोता लगाने पर " आनंद " का आभास और फिर भक्ति में तीव्रता आने पर " परमानन्द " का परम आभास को स्वयं अनुभव करके ही जाना जा सकता है |

इसलिये हमें दुनियादारी करते हुए और सांसारिक सुख भोगते हुए " तालाब के मेंढक " बनकर नहीं रहना चाहिये अपितु हमें भक्तिमार्ग द्वारा आनंद और परमानन्द की सुखद अनुभूति प्राप्त करने के लिए प्रयासरत होना चाहिये |

यही " प्रभु साक्षात्कार " की और ले जाने वाला मार्ग है | यही चेतन तत्व ( जीव ) का चेतन ( शिव ) में विलय का मार्ग भी है | और सबसे अहम् बात की यही मानव जीवन के उद्देश्य पूर्ति का भी मार्ग है |


All times are GMT +5. The time now is 07:43 PM.

Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.