दोहावली
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ में ना मूरत में , ना एकांत निवास में ना मंदिर में ना मस्जिद में ,ना काशी कैलास में मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में ना मैं जप में ना मैं तप में ,ना मैं ब्रत उपबास में मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में ना मैं किरिया करम में रहता नहीं जोग सन्यास में मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे ,मैं तो तेरे पास में खोजी हो तो तुरत पा जाये पल भर की तलाश में कहे कबीर सुनो भाई साधो , मैं तो हूँ बिस्वास में =========================== यह एक बूढे तोते की आवाज़ है , यदि कर्कश लगे तो क्षमा करना ! =========================== निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव |
Re: दोहावली
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन ।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन ॥ बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस । महिमा घटी समुन्द्र की, रावन बस्यो परोस ॥ रहिमन कुटिल कुठार ज्यों, कटि डारत द्वै टूक । चतुरन को कसकत रहे, समय चूक की हूक ॥ अच्युत चरन तरंगिनी, शिव सिर मालति माल । हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव भाल ॥ |
Re: दोहावली
अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि ।
रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि ॥ अधम बचन ते को फल्यो, बैठि ताड़ की छाह । रहिमन काम न आइहै, ये नीरस जग मांह ॥ अनुचित बचन न मानिए, जदपि गुराइसु गाढ़ि । है रहीम रघुनाथ ते, सुजस भरत को बाढ़ि ॥ अनुचित उचित रहीम लघु, करहि बड़ेन के जोर । ज्यों ससि के संयोग से, पचवत आगि चकोर ॥ |
Re: दोहावली
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम ।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम ॥ ऊगत जाही किरण सों, अथवत ताही कांति । त्यों रहीम सुख दुख सबै, बढ़त एक ही भांति ॥ आप न काहू काम के, डार पात फल फूल । औरन को रोकत फिरैं, रहिमन पेड़ बबूल ॥ आदर घटे नरेस ढिग, बसे रहे कछु नाहिं । जो रहीम कोटिन मिले, धिक जीवन जग माहिं ॥ आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधे सनेह । जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामें बरै बरेह ॥ |
Re: दोहावली
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ॥ अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय । जिन आंखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय ॥ अंतर दाव लगी रहै, धुआं न प्रगटै सोय । कै जिय जाने आपुनो, जा सिर बीती होय ॥ असमय परे रहीम कहि, मांगि जात तजि लाज । ज्यों लछमन मांगन गए, पारसार के नाज ॥ |
Re: दोहावली
अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिककन पान ।
हस्ती ढकका कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर आन ॥ उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति हथियार । रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न बार ॥ करत निपुनई, गुण बिना, रहिमन निपुन हजीर । मानहु टेरत बिटप चढ़ि, मोहिं समान को कूर ॥ 21 |
Re: दोहावली
ओछो काम बड़ो करैं, तो न बड़ाई होय ।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय ॥ 22 ॥ कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सब कोय । पुरूष पुरातन की बधू, क्यों न चंचला होय ॥ 23 ॥ कमला थिर न रहीम कहि, लखत अधम जे कोय । प्रभु की सो अपनी कहै, क्यों न फजीहत होय ॥ 24 ॥ करमहीन रहिमन लखो, धसो बड़े घर चोर । चिंतत ही बड़ लाभ के, जगत ह्रैगो भोर ॥ 25 ॥ |
Re: दोहावली
कहि रहीम धन बढ़ि घटे, जात धनिन की बात ।
घटै बढ़े उनको कहा, घास बेचि जे खात ॥ ॥ कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत । बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत ॥ ॥ कहि रहीम या जगत तें, प्रीति गई दै टेर । रहि रहीम नर नीच में, स्वारथ स्वारथ टेर ॥ ॥ कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय । माया ममता मोह परि, अन्त चले पछिताय ॥ कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय । तन सनेह कैसे दुरै, दूग दीपक जरु होय ॥ |
Re: दोहावली
कहु रहीम कैसे बनै, अनहोनी ह्रै जाय ।
मिला रहै औ ना मिलै, तासों कहा बसाय ॥ काज परे कछु और है, काज सरे कछु और । रहिमन भंवरी के भए, नदी सिरावत मौर ॥ कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग । वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥ कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुलि जाय । रहिमन यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत बाय ॥ काम न काहू आवई, मोल रहीम न लेई । बाजू टूटे बाज को, साहब चारा देई ॥ |
Re: दोहावली
कैसे निबहैं निबल जन, करि सबलन सों गैर । रहिमन बसि सागर बिषे, करत मगस सों बैर ॥ काह कामरी पागरी, जाड़ गए से काज । रहिमन भूख बुताइए, कैस्यो मिलै अनाज ॥ कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छांह । रहिमन ढाक सुहावनै, जो गल पीतम बांह ॥ ॥ कुटिलत संग रहीम कहि, साधू बचते नांहि । ज्यों नैना सैना करें, उरज उमेठे जाहि ॥ को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय सकुचात । संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै जात ॥ गगन चढ़े फरक्यो फिरै, रहिमन बहरी बाज । फेरि आई बंधन परै, अधम पेट के काज ॥ |
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