Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
जैसे ही क्लिनिक पर पहूंचा कि रीना के पिताजी पर नजर पड़ी, वह रो रहे थे। रीना की मां को देखने के लिए दोनों अन्दर गए। वैसे तो मुझे हिम्मत नहीं होती पर मास्टर साहव साथ थे। वे बेहोशी की हालत में थी और कभी कभी उनकी आंख खुल जाती थी। जैसे ही मैं उनके पास जा कर खड़ा हुआ उनकी आंखों में आंसू छलक गए। मैने उनको आश्वासन देने के लिए उनके हाथ का स्पर्श किया कि तभी उन्होने मेरे हाथ का कस कर पकड़ लिया। मैं बिचलित हो गया। एक मां आज अपनी बेचैनी को जाहिर कर रही थी, शायद यह अपनी बेटी के लिए थी।
रीना घर में सबसे छोटी रहने के कारण नकचढ़ी और बदमाश थी पर घर के सभी लोग उसको खूब चाहते थे पर जब से अपना प्र्रसंग आया है उसके घर में उसके मां को छोड़ सबका स्वभाव उसके प्रति बदल गया है जिस बात का जिक्र रीना ने कई बार किया था। एक बार रीना ने यह भी बताया कि मां से अपनी शादी की बात की थी और उसने बाबूजी को भी बताया था पर बाबूजी बहुत गरम होकर बोले कि:- ‘‘मेरी लाश पर ही यह शादी होगी। ओकर रोजिए की है जे हम अपन बेटी के ओकर संग बियाहबै।’’ शाम में जब कोचिंग से लौट कर मैं अपने डेरा में बैठा तभी उधर से मास्टर साहब आए । वह बहुत उदास थे। ‘‘की होलई मास्टर साहब’’ ‘‘की होतई हो, अर्जून दा के कन्याय गुजर गेलखिन। बेचारी लक्ष्मी हलखिन’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
रीना के मां के मरने की बात ने मुझे हिला दिया। हम दोनों को महज उनके उपर ही भरोसा था और ईश्वर ने उन्हें भी तोड़ दिया। इस घटना को तीन चार दिन हुए होगें, मैं घर लौटा। इस उम्मीद से कि रीना का दर्शन कर पाउंगा और हुआ भी। शाम का वक्त था और वह छत पर उदास बैठी थी। देर शाम मैं उसके घर के आस पास से किसी न किसी बहाने गुजरने लगा पर वह नीचे नहीं आई पर रास्ते से गुजरते हुए एक डिबीया आ कर गिरी जिसे मैंने उठा लिया उसमें प्रेम पत्र था। रीना के मन की बेचैनी और मां के गुजरने का दर्द उकेर दिया था। उसी पत्र में उसने अपनी शादी की बात चलने की बात कही और यह भी की मां के गुजर जाने के बाद अब हम दोनांे के मिलन के रास्ते कितने मुश्किल हो गए।
अहले सुबह लगभग चार बजे चांदनी रात में जब मेरी नींद खुली, रीना अपने छत पर टहल रही थी और मैं उठ कर बैठा तो वह छत से नीचे आई और शौच के लिए घर से बाहर निकलने लगी। यह मुलाकात का अंतिम हथियार था। मैं भी झट से अपने छत से नीचे उतारा और रास्ते पर आकर खड़ा हो गया। वह आई रही थी। वह पीछे पीछे, मैं आगे आगे। फासले से बात भी हो रही थी। ‘‘ बहुत दुख होलउ, पर मांजी के देखेले हमहूं गेलिओ हल।’’ ‘‘हां, घर में चर्चा होबे करो हलई कि बबलुओ अइलई हल देखे ले।’’ ‘‘तब की करमीं, पर जाना तो एक दिन सब के हई।’’ ‘‘ हां ई सब तो ठीके हई पर अब हमर बात सुने बाला कोई नै हई, ऐगो मईये हलै जे मन के बात बिना कहले समझ जा हल।’’ ‘‘तब की करमहीं, भगवान से बढ़ के कुछ हई।’’ ‘‘तब नानी घर कहे ले भेज देल गेलई।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
तब रीना ने बताया कि अपने प्रेम के बारे में जानकर सब घर बालों ने मिल कर मेरी शादी करने की योजना बनाई थी और मैं अकेले सब से लड़ी थी। उसने बताया कि शादी के नियत से ही उसे ननिहाल भेजा गया पर उसकी मर्जी के खिलाफ यह शादी नहीं हो सकती। मां के श्रद्ध कर्म के बाद उसे फिर से नानीहाल भेज दिया जाएगा और जो भी करना हो पर जल्दी ही कुछ करना होगा।
जिंदगी जब दोराहे पर खड़ी होती है और वह भी अल्हड़पन में तो राह चुनना आसान नहीं होता! ऐसा ही कुछ मेरे साथ हो रहा है। मेरा सपना कुछ करने का था पर प्रेमपाश से आजाद हुए बिना यह संभव नहीं था और प्रेमपाश से आजाद होना तो जैसे असंभव ही था। निष्छल, नैतिक और निष्पाप प्रेम अपनी मंजिल तक पहूंच ही जाती है और यही मेरा भरोसा भी है पता नहीं क्यों पर आज कल रेडियो पर यह गाना भी खूब बज रहा है - प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती है, बिजलियां अर्ष से खुद रास्ता दिखाती। मुझे अपने सच्चे प्यार पर भरोसा था पर अभी तक राह नहीं दिख रहा था। मैं जब जाने की तैयारी कर रहा था तभी एक हंगामा बरपा हो गया। गांव में बबाल। सुबह सुबह ही मास्टर साहब मेरे दरबाजे पर आकर गाली गलौज कर रहे है। ‘‘कहां गेलहो सुराज दा देखो सरबेटबा के करतूत हमर बेटिया के चिठठी पत्री लिखो हो, ऐसन में तो खून खराबा हो जइतो।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
फूफा घर से बाहर निकले तो देखा कई और लोग बाहर खड़े थे। जब से प्रेम प्रसंग की चर्चा गांव में चली थी तब से सभी मुझको लेकर चिढे हुए थे और मास्टर साहब की आवाज और चिठठी की बात सुन मैं समझ गया की रीना को लिखी कोई चिठठी हाथ लग गई।
‘‘अरे बबलुआ’’ फूफा ने आवाज दी तो मैं सहमता हुआ बाहर यह सोंच कर आ रहा था कि चलो जो होगा देखा जाएगा। बाहर आया तो उन्होने बताया कि मास्टर साहब की बेटी संगितिया को मैंने प्रेम पत्र लिखा है तो मैं सन्न रह गया। ‘‘साला, इहे सब करो हीं रे, कहों हीं की पटना और बनारस में पढबै।’’ फूफा गरम थे कि तभी मास्टर साहब ने आव देखा न ताव और दो तीन झापड़ मुझको जड़ दिया। ‘‘बाबा बनों हीं साला, काट के फेंक देबै। हम्मर बेटिया के चिठठी लिखों ही।“ मैं थोड़ा सहम गया जिसका एक मुख्य कारण भी था। कारण यह था कि कल दोपहर जब मैं अपनी खिड़की के पास बैठा था तभी मेरे सामने एक क्षण के लिए जो नजारा आया वह विस्मित और विचलित कर देने वाला थी। मेरी खिड़की के सामने मास्टर साहब के घर का दरवाजा आता था और दरवाजे के बगल में ही चापाकल पर संगितिया रोज स्नान करती थी, किशोर मन कभी कभी उधर ताक झांक करने लगता पर मन को संयम कर मैं वहां से हट जाता। संगितिया उस समय दसवीं की छात्रा थी और वह भी किशोरावस्था में कदम रख रही थी। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इसी ताक झांक के उहापोह के बीच अचनाक कल संगितिया नहाने के बाद जब अपने दरवाजे के सामने खड़ी हुई तो उसका पूरा फ्रॉक सामने से खुला हुआ था। एक क्षण को मैं विस्मित सा अवाक रह गया। जब वह देह से पानी साफ करने के लिए झुकी तो उसके खुले बाल उसकी देह पर नागिन की तरह लहरा उठे और फिर मुझसे नजर मिलते ही वह मुस्कुरा दी और मैने आंखें झुका ली, फिर जब देखा तो यह नजारा गायब था। पता नहीं क्यों उस घटना के बाद से संगितिया मुझे देख अक्सर मुस्कुरा देती और मैं झेंप जाता। संगितिया मेरे दोस्त रामू की बहन थी इसलिए मैं लिहाज करता था। मुझे लगा की इसी घटना को लेकर लोग आए होगें हंगामा करने और मैंने मन में ठान लिया की बता दूंगा कि उसने क्या किया पर मामला एक प्रेम पत्र का था जो संगितिया को लिखा गया था मेरे द्वारा।
प्रिय संगितिया आई लव यू.... तुम्हारी याद में यहां मैं आंसू बहाता हूं। तुम्हारी जुल्फ के साये में मैं चैन पाता हूं। ... आदि इत्यादि तुम्हारा लव बबलु >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
मैंने इसका विरोध किया कि मेरे द्वारा यह पत्र नहीं लिखा गया है। बहुत ही रोमांटिक पत्र था जिसमें दो तीन तरह की स्याही का उपयोग किया गया था। मास्टर साहब ने उस पत्र को मुझे दिया और कहा –
‘‘यदि साबित हो गेलै कि तोंही लिखलहीं हें तो समझ लिहें कि तोर गांव से पत्ता तो साफ करइदेबै, हाथा गोरा भी सही सलामत नै रहतै।’’ ले बलैया, यह एक नया चक्कर था जिसमें मैं उल़झता हुआ जा रहा था। मैं पत्र पढ़ा जिसमें कई अश्लील बातें भी लिंखी गई थी जिसे पढ़ कर कोई भी गर्म हो जाता। बबाल हंगामा फूआ भी मुझे गरिया रही है- कोढ़ीया, पढतै लिखतै सढ़े बायस, यहां तो रसलीला करे में रहो है। छोड़ दहो नै रहतै पटना में। पता नहीं यह सब क्या हो रहा था पर जो हो रहा था वह ठीक नहीं हो रहा था। बात धीरे धीरे गांव में फैली और फिर रीना तक भी बात पहूंच गई। संगितिया को लिखा गया पत्र को मेरे मित्र रामू के द्वारा जब रीना को दिखाया गया तो उसने इसे देखते ही उससे कहा- ‘‘अरे हम समझ गेलिए ई केकर करामत है। इ सब हमर भाई दिल्लिया के करामत है। हमरा दुन्नू के अलग करे के ई सब चाल है पर हम एकरा सफल होबे ले नै देबै।’’ फिर उस पत्र का राज रीना ने ही खोला रामू के पास और फिर बेधड़क वह मेरे घर आ गई। रामू भी साथ में ही था। आते ही मुझसे बोली- ‘‘ ई सब चिठठी पत्री से घबराबे के बात नै है, हमरा पता है कि ई सब केकर खेला है।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
फिर रीना ने बताया कि कैसे कुछ दिन पहले उसका भाई दिल्लिया एक प्रेम पत्र को बीच सड़क पर से उठा कर लाया और उसे दिखाते हुए बोला-
‘‘देखी बबलुआ कैसन कैसन चिठठी बीच सड़का पर फेंक देहै।’’ रीना ने उस पत्र के अस्तित्व को सिरे से नाकार दिया। हलंाकि उसने बताया कि वह पत्र मेरे हैंड राइटिंग जैसी ही थी पर उसे पूरा भरोसा था कि उसका प्रेम पत्र यूं ही सड़कों पर फेंका नहीं रह सकता और उसने अपने भाई से कहा था कि बबलुआ ऐसन करिए नै सको है। इतना भरोसा था उसे अपने प्यार पर और आज वहीं चाल दिल्लिया ने संगितिया को पत्र लिख कर एक गोली से तीन शिकार करना चाहा। पहला मुझे बदनाम, दुसरा मास्टर साहब से दुश्मनी और तीसरा रीना से अलगाव, मैं इस बात से अनजान ही अभी था कि रीना ने आकर सभी राज बता दिया। अब मामला पलट गया और मास्टर साहब ने इसे अपनी बेटी को बदनाम करने के लिए की गई साजिश के रूप में देखा और दोनों घरों में जम कर मारपीट हुई। खैर, इससब के बीच मैं पटना के लिए रवाना हो गया। बस पर मेरे गांव का रहने वाला दोस्त मुकेश मिल गया जिसने बताया कि कहरनीया फुलेनमा मर गई। मुझे दुख हुआ और साथ ही मैं कुछ साल पूर्व की यादों में खो गया। कुछ माह पूर्व जब मैं अपने गांव गया था तब इसी मुकेश के साथ एक दिन फुलेना के बागीचे से अमरूद्ध तोड़ने में लगा हुआ था। फुलेना का बगैचा तीन चार एकढ में फैला हुआ था। सारा बगीचा चाहरदिवारी से घिरा था और मैं होशियारी से चाहरदिवारी के बाहर से लंबाई का फायदा उठाते हुए अमरूद्ध तोड़ रहा था कि तभी अचानक पांच छः फिट उंची चाहरदिवारी फांद कर फुलेना कूद कर मेरा कालर पकड़ लिया। वह मुझसे करीब पांच साल बड़ी होगी। छः फिट लंबा शरीर, हठ्ठा कठ्ठा, एक दम गदराल।- >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘साला, अमरूद्धवा तोड़ों हीं, पता हौ कि ऐजा हम रहो हिए।’’
‘‘छोड़, जादे मामा मत बन।’’ फिर क्या था, उसने आव देखा न ताव धड़ाम से मुझे जमीन पर पटक कर मेरे सीने पर सवार हो गयी। बाप रे बाप। लड़की थी-दुर्गा। ‘‘कैसे मर गेलै हो केतना साहसी लड़की हलई।’’ ‘‘पता नै हलउ, उ फन्टुसबा से फंसल हलई। कहारनी होके बाभन से शादी के सपना देखो हलई, अरे यहां तो आम खाके गुठली फेंके के जुगाड़ हलई।’’ तब मुझे याद आया कि गांव में उन दिनों दोनों के फंसे होने की खूब चर्चा थी और एक बार मंदिर के बगल बाले रास्ते में मैंने दोनों को अर्धआलिंगन की अवस्था में देख लिया था। यही हथियार उस दिन काम आया जब फुलेना मेरे सीने पर सवार थी। ‘‘देख जादे मामा नै बन, भुला गेलहीं उ दिन हम तोड़ा औ फन्टुसबा के साथ साथ देखलिओ हल और केकरो नै कहलिऔ।’’ डसने झट हाथ हट लिया और खड़ा हो गई। पर जाते जाते धमकी दे गई कि आगे से इस तरफ दिखना भी नहीं। बहुत ही साहसी लड़की थी पर मर कैसे गई। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
फिर उसके प्रेम प्रसंग की कहानी मेरे आंखों के आगे धूमने लगी। जब मैं अपने गांव में था तभी सुबह सुबह ही हंगामा होने लगा। घर से निकल कर जब बाहर आया तो देखा की फुलेना की बड़ी बहन, भाई, बाबूजी सहित परिवार के अन्य सदस्य फन्टूस के घर पर आकर हल्ला कर रहे थे। छनबिन करने लगा तो मैं स्तब्ध रह गया। राजन सिंह ने बताया घटना के बारे में-
‘‘अरे तों जनबे नै करों हीं, ऐकर बेटिया फन्टूसबा के साथ पेट फुला लेलकै है और उपर से फन्टूसबा सब जेबरो-गाठी, जे तीन चार भरी हलई ले लेलैकै।’’ मामला संगीन था मेरे लिए, पर गांव के लोगों के लिए यह हल्की सी बात थी। मलतीया के माय फुलेना के बाबूजी को समझा रहे थे- ‘‘अब की तों अपन इज्जत अपने उघारे पर लगल हा, अरे इस सब झांप पोंत करे के है की उधार करे के। छोड़ो जे होलो से होलो। बेटिया के धोलैया करा के निख-सुख ‘‘बढ़ीया’’ से शादी ब्याह कर दहो, सब ठीक हो जइतै। बेटी के संभालल तो लेगो नै और आज अइलों हें लड़े ले। बेटा की कोई दोष होबो हई’’ ओह- बेटी के लिए सारी बंदिशें थी और गुनहगार भी वही और सजा भी उसे ही मिलना था। किसी ने फन्टूसबा को इस सब के लिए दोषी नहीं माना, सब यही कह रहे थे कि बेटी जब कब्जे में नहीं ंतो मर्दाना क्या करेगा। पर मुझे इस सबमें बेटी के बाप के गरीब होना ही मूल कारण लग रहा था। फन्टूस से संबंध की बजह से वह पेट से थी और फिर दोनों ने घर से भागने की योजना बनाई थी जिसके तहत फन्टूस को फुलेना ने तीन चार भरी जेबर, कपड़ा-लत्ता और रूपया सब उसने ला कर दे दिया था पर परिणाम उलट गया। फन्ठूस अकेले गांव से भाग गया और जब पन्द्रह दिन एक माहिना हुआ तो फुलेना के गर्भ से होने की बात घरवालों को पता चली तो जैसे पहाड़ टूट गया और उपर से बेटी के ब्याह के लिए रखी गयी सारी सम्पत्ति भी चली गई। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
फुलेना का पेट गिरा दिया गया। गांव के ही नर्स के पास जाकर सफाई कराने की बात फुलेना की मां ने किया था जिसके बाद जांच करने के बाद नर्स मैडम ने बताया था कि चार माह से उपर का पेट है, गिराने से इसकी जान भी जा सकती है। पर जान की परवाह किसे थी इज्जत के आगे। कहा जाता है कि घटना के बाद से गर्जने वाली फुलेना जो चुपी लगा गई सो पेट गिराने की बात पर भी कुछ नहीं बोली। जैसे की वह एक निर्जीव सी कठपुतली हो गई हो।
और इज्जत बचाने की खातिर पेट गिराने में ही फुलेनमा की जान चली गई..... समाज में घटने वाली घटनाओं और जीवन की तल्ख सच्चाई के बीच किशोर मन विरोधाभासों के बीच पेंडुलम बन कर रह गया। हर क्षण मन में कई तरह के विचार आते और बदल जाते। इसी बीच पटना की पढ़ाई में मन रमने लगा और कई महीनों तक धर से संपर्क नहीं हो सका। न कोई चिठठी, न कोई पत्री। पता नहीं क्यों? पर गुस्सा अपने आप से हो गया और सजा भी खुद के लिए निर्धारित कर ली। मझधार में फंसी जीवन की नाव को कहीं कोई लैंप पोस्ट दिखाई नहीं दे रही थी। जाने क्यों बार-बार कोई रास्ते से भटकाने का प्रयास करता और कोई राह पर लाने का। दिन पढ़ाई में गुजरते गये, रात आंखों में कटती गई। कई महीने हो गए कि एक रात मन एकाएक बेचैनी से भर गया। रीना रात में दुल्हन बन कर सपने में आई और दुल्हा कोई और था, शायद। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
सुबह गांव जाने वाली बस पर बैठा मैं घर जा रहा था। गांव पहुंचने पर दो दिनों तक रीना की कोई खबर न लगी। न तो मुझे किसी से पूछने की हिम्मत होती और न ही मुझे कोई कुछ बता रहा था। रह रह कर सपना आ आ कर डरा जाता। आखिर कर तीसरे दिन पता चला की वह कई महीनों से नानीघर में है। फिर क्या था मैंने उसके नानीघर जाने का फैसला कर लिया। कई माह बाद पटना से आने के बाद पैसे का आभाव था, सो जेब मे मात्र बीस रूपये थे। चल दिया शेखपुरा। जानता था कि कुरौनी शेखपुरा के पास ही कहीं है। शेखपुरा उतर कर कुरौनी जाने के रास्ते की तलाश की तो जानकारी मिल गई। यहां से चार पांच कोस दूर होगा। लोगों ने बताया ।
बैशाख महीने का शुरूआती दिन थे आज इस माह के सबसे अधिक गर्म दिन था और लोग बेचैनी से अपने घर के बाहर बैठ गर्मी से निवटने के लिए हाथ पंखा झल रहे थे। बीस रूपये में पांच रूपया बस भाड़ा के रूप में खर्च हो चुके थे। तभी मन में आया कि आज तक रीना को कोई उपहार नहीं दिया सो एक मनीहारी की दुकान में चला गया। क्या पता क्या उपहार हो, सो दुकानदार के इशारे पर ही ही बारह रूपये का हार खरीद लिया। मुझको तो यह बहुत ही खूबसूरत लग रहा है। पन्द्रह में से बारह मैंने खर्च कर दिये। मेरे लिए यह अनमोल है पता नही उसके लिए इसका क्या महत्व होगा। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
पैदल ही चल दिया। एक दो धंटे का रास्ता हे, ऐसा लोगों ने बता दिया था। सूदूर गांव होने की वजह से वहां गाड़ी जाती है पर एक-आध। सुबह गांव से लोगों को लेकर एक जीप बाजार आती है और शाम को वह गांव लौटती है। सो इससे अच्छा तो पैदल ही रहेगा। दस या ग्यारह बज रहे होंगे। सूरज देवत का क्रोध गर्मी के रूप में घरती पर प्रकट हो रही थी। लग रहा था जैसे वे सब कुछ भष्म करना चाह रहे हो, घोर कलयुग जो है।
रास्ता भी पथरीला था। यह पूरा इलाका पहाड़ी है। एक तरफ दूर तक फैला हुआ पहाड़ दिखता तो दूसरी ओर मैदन। खेत। कुछ दूर जाने के बाद ही एहसास होने लगा की मेरा जाने का फैसला गलत है। कारण यह कि रास्ते में एक भी आदमी कहीं नजर नहीं आया और एक आध गांव जो मिले उसमें भी कोई बाहर नहीं था। खैर, दिवानापन जो न कराये। चला जा रहा था। इस बीच दो गांव पार कर चूका था। गर्मी के मारे बुरा हाल था। जोर से प्यास लगी थी पर कहीं चापाकल या कुंआ नजर नहीं आया और संकोच से किसी घर में जाकर पानी पीने का साहस न कर सका। जाने की सोंचता तो मन कहता पता नहीं क्या क्या सवाल करेगें। कहां से आए हो, कहां जाना है। गांव में अभी महानगरों की कुप्रवृति नहीं आई है और जब भी कोई अनजान चेहरा दिखता तो लोग पूछ ही लेते है। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
कहां जइभो बउआ। कहां घर हो। बगैरह बगैरह। खैर गर्मी और थकान से शरीर बेहाल हो गया और अब कहीं सुस्ताना चाहता था पर रास्ते में कहीं पीने का पानी तक नहीं। खैर अगले गांव के मुहाने पर ही एक कुंआ दिख गया। महिलाऐं पानी भर रही थी। मैं साहस करके पानी पीने के लिए चला गया।
तनी पानी पितिए हल। हां बैउआ, ला पिओ। कह कर एक महिला बाल्टी से पानी उड़ेलने लगी और मैं दोनो हथेली को जोड़कर चुड़ुआ बनाया और बाल्टी के नीचे मूंह लगा दिया। भर अछाह पानी पिया और फिर चल दिया। गांव से निकलने ही वाला था कि एक बूढ़ा व्यक्ति दिख गए। कहां जाना है बउआ। जी बाबा, कुरौनी, केतना दूर है। बस अगला गांव उहे हो। राहत हुई। थोड़ी दूर बढ़ा ही था कि टन्न.............. लगा की शरीर में एक करंट सा दौड़ गया। ‘‘माय गे’’ दर्द से चिल्लाते हुए मैं वहीं गिर पड़ा। किसी चीज ने काट लिया । तभी देखा की एक लाल रंग की बिरनी उड़ी। ओह तो इसी ने अपनी करामत दिखाई। दर्द से बेहाल था। बिरनी ने पैर में ही डंक मारा था और जलन से हाल बेहाल हो गया। ओह भोला, क्या यह परीक्षा है। मन ही मन यह सवाल ही पहली बार उठा। पर उस विरान और पराई सी जगह में रोता भी तो क्या होता? फिर भी आंख से आंसू निकल रहे थे। चलो वापस चले। पर कहां, इस दिवानेपन के दर्द से ज्यादा तकलीफदेह बिरनी का दर्द नहीं हो सकता। चल पड़ा मंज़िल की ओर। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
जिंदगी की नाव जब मझधार में फंसती है तो नावीक को पतबार का ही सहारा होता है और पतबार की एक एक धाप उसे मंजिल के करीब ले जाती है। मैं भी चला जा रहा था अपनी मंजील की ओर। दर्द को दबाए हुए। किसी तरह मैं गांव पहूंच गया। फिर किसी तरह रीना का घर पूछते पूछते मैं वहां पहूंचा। आवाज देने के बाद एक बुढ़ी महिला निकली और पूछने लगी।
‘‘की बात है बउआ, केकरा खोजो हो।’’ ‘‘कुछ बात नै है ममा, बस रास्ता भुला गेलिऐ हे] सोंचलिए कोई चिन्हल मिल जाए। रीनमा के नानी घर इहे है।’’ ‘‘हां बउआ। पहचानो हो।’’ हां मामा, पहचानबे करो हिओ। हमरे गांव के है।’’ ‘‘अगे रीनमा............... जोर से आवाज लगाई। इतनी देर में देखा की उसके घर में खुसुरू-फुसुरू शुरू हो गई और हलचल भी बढ़ गई। पर रीना इंतजार हो, तुरंत दौड़ी आई जैसे उसे मेरे आने का उसके चेहरे पर खुशी की परछाई क्षणभर के लिए बैशाख के बादलों की तरह आई और चली गई। ‘‘पहचानों ही रीना।’’ नानी ने पूछा। ‘‘हां नानी, गांव के ही है।’’ ‘‘की नाम है हो।’’ ‘‘प्रमोद।’’ उसने मेरा गलत नाम बताया जिसका कारण मैं तत्काल समझ गया। इतना कहते के साथ ही उसने हाथ जोड़ लिया और उदास चेहरे के साथ मुझे यहां से चले जाने का इशारा करने लगी। ‘‘ यहां कहां अइलहीं हें, पगला गेलहीं हें की। तोरा नै पता हौ की रीनमा की चीज है। घरती इ पटी से उ पटी हो जइतै पर रीनमा नै बदलतै।’’बात चीत के हल्के से फासले के बीच में ही उसने हौले से अपने हौसले का फरमान सुना दिया। साथ ही यहां से चले जाने की बात भी कही। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
तभी दो-तीन लोग वहां आ धमके। उनके चेहरे के भाव बता रहे थे की हालात कुछ ठीक नहीं हैं।
‘‘की बात है। के है रीना।’’ ‘‘कुछ नै मामू गांव के आदमी है, प्रमोदबा। बगल के गांब जा रहलै हल तब इधर आ गेलै।’’ ‘‘ठीक है तों जो अंदर। उन्होनों कुछ कड़े शब्दों में यह आदेश दिया और रीना चली गई। ‘‘कहां जाहीं हो।’’ ‘‘बगल के गांव।’’ ‘‘काहे ले।’’ ‘‘फुआ है।’’ ‘‘यहां काहे ले अइलहीं।’’ मैं थोड़ी देर के लिए चुप रह गया। मेरे पास यहां आने का कोई ठोस कारण नहीं था। फिर क्या था। एक आदमी में झट से मेरा कालर पकड़ लिया और एक झापड़ रख दिया। चटाक। ‘‘साला बाबा बनों हीं, हमरा पता है कि तों कहां अइलहीं हें। बब्लूआ नाम हौ न तोर।’’ ‘‘अरे अरे ई की करो हो।’’ नानी ने तुरंत उसे रोकते हुए कहा और उसने मुझे छोड़ दिया। सभी मुझे गुस्से से देख रहे थे। मैं दृढ़ता से अपना नाम बब्लु नहीं होने पर अड़ गया। फिर भी तीनों ने मुझे तुरंत वहां से चले जाने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि यदि बब्लु होने का पहचान हो गयी तो तुम्हारी लाश ही यहां से जाएगी। उधर देखा की एक खिड़की से रीना हाथ जोड़ कर मुझे यहां से चले जाने का ईशारा कर रही है और कुछ क्षण के बाद वह प्रकट होकर विरोध भी दर्ज कराने लगी। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘काहो मामू काहे मारो हो। ई बब्लुआ नै है नाम गेन्हैबहो की अपन।’’
‘‘तों चुप रह।’’ ‘‘चुप काहे रहबै, गांव में केतना बदनामी होतई।’’ उसके तीखे तेबर के बाद लोग थोड़ा सहमें और मैं वहां से ससर गया। मैं समझ गया कि यहां तक मेरे प्रेम अगन की लौ पहूंच चुकी है। मैं वहां से निकल गया पर गांव के बाहर जैसे ही पहूंचा की देखा वही लोग रास्ते में आगे खड़े है। मैं चुपचाप चला जा रहा था। ‘‘अरे अरे रूक साला।’’ इतना कहते ही एक ने मुझे पकड़ लिया और लात मुक्के से सभी चालू हो गए। मैं बस अरे-अरे की करो हो, की करो हो, कहता रह गया। कुछ देर के बाद वे रूके और फिर से मेरे नाम का सत्यापन करने लगे। पर मैं अड़ गया। नहीं मेरा नाम बब्लु नहीं है। तभी एक ने कहा ‘‘चल हो एकरा नदिया में काट के फेंक दिए।’’ ‘‘हे भोला।’’ जीवन का अन्त नजर आने लगा। दर्द से बेहाल मैंने साहस से काम लिया और बोला- ‘‘तों जे समझ के मार रहलो है उ हम नै हीए। बब्लुआ हमर नाम नै है बब्लुआ तो पटना में है, छोबो महिना से और हमरा तों मार रहलो हैं।’’ ‘‘बाबा बनों हो साला, पता है हमरा तों ही बब्लुआ हीं, पटना से आवे में केतना देर लगो है। औ तों यहां कहां आइलहीं हल बताउ नै तो आज तोर अंत लिखल हो।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
एक नैजवान युवक के चेहरे पर काफी गुस्सा था तभी एक आदमी ने अपने गमछी से मेरा हाथ बांध दिया।
‘‘बाबुजी आ रहलखुन हें उ तोरा पहचानों हखुन, तोर कुल गरमिया ठंढा हो जइतउ।’’ देखा की तीन चार लोग लाठी भाल लेकर चले आ रहे है मेरी तरफ। पता नहीं क्यों इस समय जबकि मेरी मौत मेरे सामने दिख रही थी मुझे डर नहीं लग रहा था। एक अजीब सा शकून और साहस था अंदर कहीं। जो होना हो सो हो। कोई जैसे कह रहा हो, प्रेम को पाने के लिए जान को दांव पर लगाना ही पड़ता है और जान भी चली गई तो क्या? लैला-मजनूं की तरह नाम तो होगा ही। एक अजीब सी कशिश, एक अजीब सा पागलपन जहां मौत भी डरा न सकी हो। शायद इसी को प्यार कहते है या पागलपन...... जिंदगी कभी स्याह फूलों की तरह सामने आती है और आज कुछ ऐसा ही मेरे साथ हो रहा था। दूर, दूसरे गांव में आज पिट रहा था और सामने मौत नजर आ रही थी। खैर, जब दो तीन अन्य लोग सामने आए तो उसमे एक ने सीधा कहा - ‘‘छोड़ दहीं हो, बाबूजी बजार गेल हखीन, आज नै लौटथिन।’’ मेरी जान में जान आई। और मुझे छोड़ दिया गया। दिन भर थका देने वाली यात्रा, बिरनी काटने का दर्द और प्रेमिका के परिजनों से हुई पिटाई, कुल मिलाकर मेरी हालत उस आवारा कुत्ते की तरह हो गई थी जिसे गांव के बच्चों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा हो। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
वहां से निकलते निकलते अंधेरा हो गया था पर मैं चला जा रहा था। रास्ते से गुजरते हुए मिलने वाली दूसरी गांव में एक घर के पास जा कर रूका और पीने के लिए पानी मांगी। सहज ही पानी मिल गई और फिर सवालों की गांव सुलभ सहज प्रवृति की वजह से जबाब भी देना पड़ा। कहां घर हो, कहां जाना हो आदि। वहां से निकलकर चलते चलते आखिर कर शहर की रौशनी दिख गई। जान में जान आई। रात बहुत अधिक हो चुकी थी और इसका अंदाजा सुनसान रास्तों से अथवा जगह जगह भौंकने वाले कुत्तों की झुन्ड से लग जाता। रात अधिक हो चुकी थी और घर वापस जाना संभव नहीं था सो रेलवे स्टेशन पर चला गया और मच्छरों को मारते भगाते रात गुजार दी।
बरबीघा-बरबीघा जीप वालों की आवाज सुन सुबह-सुबह ही आंख लगी थी और वह भी खुल गई। अभी अंधेरा ही था पर जाने के लिए जीप तैयार थी, मैं भी उसमें जाकर बैठ गया। बैठने से पहले मेरे पास तीन-चार रूपये ही है इसकी जानकारी मैंने चालक को दे दी थी और सुबह-सुबह कम भाड़ा मिलने से वह थोड़ अनमना ढंग से पेश भी आया पर चेहरा पहचाना हुआ था दोनों का। वह भी मुझे चेहरे से पहचाना था और मैं भी। चला आया घर।। कई सवाल-कहां गेलहीं हल। कहां हलहीं। पर इस घटना में मुझे गहरा झकझोर दिया था। मुझे लगा की अब निर्णय करना ही होगा। रीना को पाना है या छोड़ना। जिंदगी आसान नहीं होती और कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ेगा। मेरे पास खोने के लिए कुछ था तो वह था मेरा अपना भविष्य, मेरा सपना। इसी द्वंद में डूबा गुमसुम रहने लगा। बेचैन। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
शाम का समय था और मैं अकेले ही कॉलेज की तरफ टहलने के लिए निकल गया था और जब लौटा तो देखा की रीना के घर के आगे भीड़ लगी हुई हैं। मींया साहब भरो हखीन, मींया साहब। रीना की भाभी को मींया साहब भरते थे। मींया साहब, मुसलमान भूत। उत्सुकता बस मैं भी देखने लगा। गब्बे बली के बाल सिनेमाई आंदाज में चेहरे के आगे बिखरे हुए थे और रह रह और वह उसे नचा देती।
ही ही ही................गुडुम... हिस्स.........। अजीब अजीब तरह के आवाज निकालती। कोई उसके चेहरे पर पानी देता तो कोई उसके द्वारा की गई फरमाईस को पूरा करता। गांव में मींया साहब भरने का मतलब है सबसे शक्तिशाली भूत जो किसी का कुछ बिगारता नहीं था बल्कि मनोकामना पूरा करता था। लोग उसकी पूजा अर्चना में लग गए। जिसको जो समझ में आया, उसी तरीके से। हुक्का लाओ हुक्का.... भूत ने फरमाईस की और लोग दौड़ गए, हुक्का जिसे गुड़गुड़ीया भी कहते लाने के लिए। यह तंबाकू पीने का एक ग्रामीण तरीका था। नीचे एक छोटी से टंकी में पानी होती और एक पाइप के सहारे उपर जल रही आग पर तंबाकू। मुस्लमान है देखों हो हुक्का के जादे शौकीन उहे होबो है। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
तभी अचानक जो हुआ वह चौंकाने वाला था। मेहमान, मेहमान कहकर वह चिल्लाने लगी वह भी मुझे देखकर। मैं डर गया।
‘‘मेहमान, हमर मेहमान’’ कहकर वह अचानक उठी और मेरी ओर बढ़कर मेरा कलाई पकड़ लिया। तभी लोग दौडे और उसके कब्जे से मेरा हाथ छुड़ाया, मैं वहां से भाग खड़ा हुआ। मेहमान गांव में दामाद को कहते है और उसने इसी हैसियत से मेरी कलाई पकड़ ली थी। गब्बेबली को भक्तीनी की संज्ञा दे दी गई थी और लोग बाद में भी उससे अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए आया करते। पर आज अचानक उसके मुंह से निकले मेहमान शब्द ने गांव में हंगामा मचा दिया। इसका अंदाजा मुझे तब हुआ जब शाम की बैठकी में चर्चा का विषय मैं ही था। मैं वहीं से गुजर रहा था कि आवाज आई। ‘‘अब, जब मिंया साहब कह देलखिन तो केकरो रोकला से रूकतै।’’ ‘‘बोलो तो, बैसे तो उ हमेशा एकर विरोध में रहो है पर आज अचानक मेहमान कहे लगलै।’’ ‘‘ हां हो, पर अर्जून दा मानथींन तब तो, वहां तो नौकरी के धमड़ है और बब्लुआ निधुरीया।’’ (निधुरिया-जिसके पास जमीन नहीं हो।) ‘‘हां हो तब तो गरीब के दुनिया में बास करे के हक नै है। फेर सुराज दा बाला भी खेता सब ऐकरे होतै और पढ़े मे मन लगैबे करो है, ऐकर पर ध्यान दे देथिन त की होतई।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
बहस चल रही थी, मतलब की कुछ लोग मेरे समर्थन में तो कुछ विरोध में थे। खैर, जिंदगी चलने लगी थी अपने रफ्तार से। पटना जाने का कार्यक्रम स्थागित हो गया था। दो विकल्पों में प्यार या कैरियर को चुनने की जद्दोजहद चल रही थी।
आज गांव मे प्रचार वाहन आया हुआ था। लाउडीस्पीकर पर जोर जोर से आवाज गूंज रही थी-आज ही संध्या चार बाजे, कॉलेज के मैदान में, विश्व हिंदू परिषद के नेता सिंधल जी पधार रहें हैं। अतः आप तमाम लोगों से अनुरोध है कि लाखों लाख की संख्या में जुट कर आबें और उनका भाषण सुन कर लाभ उठावें।’’ बचपन से ही नेताओ का भाषण देखने सुनने का बड़ा शौक था। मन भी उदास था और समय भी काटना था। कुछ साल पूर्व जब होस्पील के मैदान में मजदूरों के नेता जार्ज फर्नाडीस आऐ थे तो उनका भोषण सुनकर बड़ा अच्छा लगा था। गरीब किसान, मजदूर की बात करते थे तो लगता था मेरे हक की बात कह रहें हो। उस सभा में ही लोगो से आर्थिक सहयोग देने की बात कही गई थी तो मेरे जेब मे रखी एक मात्र एक रूपया का सिक्का मैंने निकाल कर दे दिया था और उस दिन से समाजवाद का मतलब जार्ज साहब को जानता था और आज हिन्दु नेता आ रहे है। गांव से एक टोली बना कर सभी निकल गए। कल की घटना ताजी थी और रास्ते में पड़ने वाली मिंया साहब के मजार से होकर ही लोग पैदल गुजरते थे। मिंया साहब का मजार क्या था। एक नीम का पेंड, तीन-चार फिट लंबा और एक फिट चौड़ मिट्टी का एक टीला, उसके उपर लाल रंग की एक चादर और आस पास बिखरे अगरबत्ती। कुल मिलाकर किसी देव स्थल का प्रमाण। गांव के लोग गाहे-बेगाहे यहां आकर मन्नत मांग जाते और पूरा होने पर पुजारी झपसू मिंया के साथ वहां पूजा करने आते, चादर चढ़ाते और पेडों का प्रसाद बंटता। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
गांव में जब भी इस पूजा की खबर लगती दोस्तों के साथ मैं भी चला आता। आज उसी मजार के पास से होकर गुजरते वक्त मन में उनके प्रति एक अजीब सी श्रद्धा जगी। वहां पूजा करते हुए झपसू मिंया को कई बार देखा भी था। ठेहूने के बल पर बैठकर हाथ पसार दिया। फिर सर झुका कर खड़ा हो गया। उसके बाद मन ही मन रीना को पाने की मन्नत मांग ली। जेब में रखी एक रूप्ये का सिक्का भी वहीं चढ़ा दिया और जाते जाते प्रणाम कर लिया। और फिर मजार को पक्का बनाने का बादा भी कर दिया।
सभा में पहूंचा। भाषण चल रही थी। किसी मस्जीद को मंदिर बताया जा रहा था और लोग जयकारा लगा रहे थे। जय श्रीराम। जय श्रीराम। किशोर मन था मेरा पर भाषण देने वाले की भाषा मुझे अच्छी नहीं लग रही थी, उसी तरह जैसे गांव का चुगुलबा मुझे अच्छा नहीं लगता है। चुगुलबा के बारे में प्रचलित है कि वह घर फोरबा है और चुगली कर कर के भाई भाई को लड़ा देता है इसलिए ही उसका नाम चुगुलबा पड़ गया है। मैं सभा स्थल के पीछे चला गया। वहीं दो तीन लोगों की टोली में भाषण पर ही बहस हो रही थी तभी माउर गांव के एक व्यक्ति हमलोगों की टोली में शामिल हो गया और भाषणकर्ता बंधु को जोर जोर से गलियाने लगे। सभा स्थल के पीछे हमलोगो की सभा लग गई। बहस होने लगी और महोदयजी, जी हां, उनका नाम महोदय जी ही था, ने एक कथा हमलोगो को सुनाई जो मेरे जीवन पर गहरा असर छोड़ गया। उन्होंने कहा- >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘देखो बउआ इ जे समाज है वह किसी भी सुरत में सिर्फ निंदा ही करता है और उन्होंने सुनाया कि एक आदमी जब बुढ़ा हो गया तो उसने अपने बेटा को बुला कर कहा कि बेटा अब तुम बड़े हो गए हो अतः चलो तुम्हें दुनियादारी समझा देता हूं और उसने एक घोड़ा लिया तथा उसे पैदल ही लेकर चल पड़ा, बाप बेटा साथ साथ। कुछ दूर जाने के बाद लोगों ने कहना शुरू कर दिया- अरे यह क्या करते हो, घोड़ा के रहते पैदल चलते हो? फिर बाप घोड़ पर बैठ गया और बेटा लगाम पकड़ कर चलने लगा। रास्ते में मिलने वाले लोगों ने फिर निंदा की, सठीया गया है बुढ़ा, बुढापे में धोड़ा चढ़ता है और बेटा को पैदल चला रहा है? फिर बेटा को घोड़ा पर बैठा दिया और खुद लगाम पकड़ कर चलने लगा और तब लोगों ने कहना प्रारंभ कर दिया-अरे घोर कलयुग आ गया। बेटा घोड़ा पर बैठ कर जा रहा है और बाप से लगाम खिंचबा रहा है? अब अंतिम बिकल्प के रूप में दोनों बाप-बेटा घोड़ा पर चढ़ गए तो लोगो ंने फिर कहना प्रारंभ कर दिया। देखो देखो कितने पागल लोग है, एक घोड़ा पर दो-दो आदमी सवार हो गये। जरा भी दया-मया नहीं है।.....
‘‘खाली अपने अपने मस्ती मारमहीं हो, हमरो हिस्सा है।’’ रजनीश सिंह ने मेरी ओर इशारा करके जब यह कहा तो मेरे देह में आग लग गई, फिर क्या था अपने से दुगुनी उम्र के रजनीश सिंह के साथ भिड़ गया। पता नहीं कहां से शक्ति आ गई और उसे पटक भी दिया। रजनीश सिंह नशे में भी था जिससे मुझे बल मिल गया। गुथ्म-गुथ्थी हुई और उसके चेहरे पर दे दना-दन, कई घूंसे धर दिए। यह सब कुछ, कुछ ही क्षण में हो गया और तब तक अलग-बलग के लोग दौड़ कर आए और दोनों को अलग किया। सभी लड़ाई की वजह जानना चाहते थे पर दोनों में से कोई भी वजह नहीं बताना चाहता। फिर रजनीश सिंह बाद में देख लेने की धमकी देकर वहां से चला गया। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
शाम को तन्हा, उदास टहलते हुए अपने को इस स्थिति के लिए तैयार कर रहा था। मन का एक कोना यह कह रहा कि यह सब तो होना ही है। गांव में प्रेम का मतलब ही अलग होता है और दर्जनों किस्से इसको लेकर चलती रहती है। लोगों की नजर में प्रेम, प्रेम नहीं, एक दूसरे से फंसा होना है, बस। शरीर से इतर प्रेम की कोई परिभाषा आज तक नहीं गढ़ी गई थी। कुछ लोगों ने हिमाकत की भी थी पर गांव और समाज से लड़कर वह हार गया। पर अब मेरी हालत मेरे बस में नहीं रह गई थी और लगता था जैसे सबकुछ किसी से प्रेरित होकर हो रहा है।
भले ही मेरा प्रतिरोध बढ़ रहा था पर इस सबसे मेरी प्रतिबद्धता भी बढ़ती जा रही थी। एक जिद्द और जुनून अंदर घर बना चुका था। अब सोंचने समझने की क्षमता जैसे विलुप्त होती जा रही हो और कोई हो जो हाथ पकड़ किसी ओर ले जा रहा हो। ऐसा ही कुछ सोंचता हुआ अर्न्तद्वंद में जा रहा था कि रास्ते में सहपाठी राम मिल गया। कुछ दिन पहले भी उसने मुझे मेरे कैरियर को लेकर बहुत समझाया था और दिल की बात उससे कर भी लेता था। आज फिर वह मिल गया था पर उससे कन्नी काट कर मैं निकलना चाहता था कि उसने टोक दिया। ‘‘काहे, लगो है हमरो से गोसाल हो की, कन्नी काट के निकल रहलो हें।’’ ‘‘नै ऐसन कोई बात नै है भाई, तोरा से कैसन गोस्सा, गोस्सा तो अपन तकदीर से है। साला बनल बनाबल खेल बिगड़ जा हे।’’ ‘‘कौची बन बनाबल, भाई साहब इ दुनिया है, यहां ऐसने चलो है, काहे कि चिंता।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘चिंता तो होगेलई राम भाई, अब दिल काबू में नै है और साला करे ले चाहो हिए कुछ तो कोई न कोई आ के अड़ंगा लगा दे हो।’’
बात चल रही थी और फिर दिल की बात होने लगी तथा राम से कह दिया सारी घटना, कैसे कुरौनी में मेरी पिटाई हुई और फिर रजनीश सिंह से क्यों लड़ाई हुई। ‘‘अब बताहो, हमतो सोंचलिए हल कि पढ़ लिख के कुछ बन जइबै तब शादी ब्याह कंे बारे में सोंचबै, पर लगो है सोचल बात नै होबो है।’’ ‘‘से तो है, मुदा समाज भी तो कुछ होबो हई।’’ रहना तो हमरा यहीं है और इ कभी ऐसन होबे ले नै देतो।’’ ‘‘पर राम बाबू अब रीना के बिना लगो है नै जियल जाइतै।’’ ‘‘सब ठीक बबलू भाई, पर मुर्गी खाइला से मतलब होबे के चाही, पांख काहे ले माथा पर बांधे के फेरा में लग हो।’’ राम ने एक बार फिर से यही तर्क दिया। मैं तिलमिला गया। मुर्गी के खाने और पांख को सर नहीं टांगने का मतलब मैं समझ रहा था। मैं जानता था कि राम क्यों ऐसा कह रहा है। सच तो यह है कि उसके मुर्गी खाने की चर्चा जोरों पर थी। अपने बहनोई कें घर रह कर उसके बहन से उसके चक्कर की चर्चा महिलाओं की बैठकी में होने लगी थी। मैं थोड़ा गुस्से में आ गया-‘‘ राम बाबू मुर्गी खाने के लिए मांसाहारी होबे ले पड़तइ पर सब आदमी मांसाहारी तो नै होबो हई। शकाहारी आदमिया की करतइ। और कुछ कंे बिना मुर्गी खइले पांख टांगे के शौक होबो हई, ओकरा की करभो।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इतना कह कर मैं चला गया। अंदर जोर का संधर्ष हो रहा था। एक मन यह भी कह रहा था कि मेरी पिटाई की चर्चा रीना तो जरूर सुनी होगी फिर क्यों उसने कुछ खास नहीं किया। बगैर बगैर कई ख्याल मन को मथ रहे थे। देर शाम लौटा तो फूआ ने खाने की जिदद की तो मैं झुंझला गया और पेट दर्द होने की बात कह लालटेन लेकर एक किताब उलट दिया। रीना के ख्यालो में खोया, परेशां सा।
अब मन एक बात का निर्णय लेने के लिए द्वंद कर रहा था कि आखिर जब प्रेम पवित्र है तो छुपाना कैसा? क्यों गांव वाले और मित्र लोग भी अन्य फंसने की कहानियों की तरह मुझे भी देखते है? अब इसे जगजाहिर होना ही चाहिए। फिर पता नहीं क्या हुआ! एक लोहे का पेचकस ढूढ़ कर उसे गर्म करने लगा और फिर छन्न से आकर वह मेरे हाथ से सट गया। वांये हाथ पर कलाई से उपर अंग्रेजी में रीना लिखने लगा। धीरे धीरे पेचकस को गर्म करता और फिर उसे हाथ पर सटा देता। असाह्य दर्द और पीड़ा, पर प्रेम की पीड़ा से कम ही। मुंह से उफ तक नहीं निकली। ‘‘ लगो है चमड़ा जरो है रे छौंड़ा, की करो हीं रे।’’ फुआ ने जब यह आवाज दी तो मैंने इसका प्रतिकार कर दिया और फिर उस रात नींद आंखों से रूठ कर रीना के पास चली गई। सुबह देखा तो हाथ पर फफोले निकले हुए थे। जलन असहनीय होने लगी और तब मैंने मिटृटी का एक लेप उसके उपर लगा दिया तथा पूरज्ञ बांह का एक शर्ट पहन कर घर से निकल गया। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
एक अजीब सा उन्माद छा गया। जाकर उसी बूढ़ा बरगद के नीचे बैठ गया जहां रीना को बांहो में लिया था। मन ही मन उससे बातें करने लगा। लगा जैसे वह सबकुछ सुन समझ रहा हो। अब मन ने विद्रोह कर दिया था और सोंच लिया की पढ़ने के लिए पटना नहीं जाना। जो होना होगा, सो होगा।
शाम में यूं ही टहलता हुआ जा रहा था कि रामदुलारी भौजी ने आवाज दी-बबलू बौउआ, कने भटक रहला हें, आबो, बैठो।’’ इससे पहले भी भौजी से बात चित के क्रम में एकाध बार रीना का जिक्र आ गया था तो उन्होंने हौसला ही दिया था, सो आज कदम उनके घर की ओर चला गया। ‘‘बैठो बउआ, काहे ले इ सब करो हो, सुनोहिओ रजनीश सिंह से लड़लहो हें, जानो हो नै, उ निरबंशा कैसन है।’’ ‘‘छोड़ो भौजी बहुत दिन सीघा बनके रहलिए अब परिणाम देख लेलिए, साला कोई जीएले नै देतै।’’ ‘‘हां बउआ से तो है, पर रीना बउआ भी तोरा पर जान दे हखुन, गरीब अमीर तो दुनिया मे होबे करो है। बेटिया के बियाह देला के बाद जब दमदा गरीब हो जा हई तब अदमिया की करो है। नसीबा केकरो हाथ में होबो हई।’’ भौजी मेरे मन की बात कह रही थी। हौसला दे रही थी। बहुत कम लोग थे जो मेरे साथ थे उसमें से भौजी एक थी। भौजी का नैहर रीना के ननीहाल में था सो उनसे मेरा विशेष लगाव था। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘कुरौनी गेलहो हल बउआ, हमरा सब पता हो। रीना तोरा वहां से आइला के बाद से भुखल प्यास हखुन। जिद्द पकड़ले हखुन की घर जइबै। उनकर नानी भी उनकरा के घर भेजे के लिए कह रहो हखीन।’’
तसल्ली हुई। शायद रीना अब अपने गांव वापस आ जाए। मन के किसी कोने में यह आश्वासन मिलने लगा और मैं जानता था कि रीना मेरे लिए किसी हद तक जा सकती है. प्रेम एक महायज्ञ है जिसमें समर्पण की आहुति होती है और अपना सबकुछ समर्पित कर प्रेमी आत्मिक ईश्वर का आह्वान करतें है और जिसका फलाफल कामनाहीन होता है। प्रेम समर्पण का एक अंतहीन सिलसिला है जो जात-परजात, धर्म-अधर्म, मान-सम्मान, कर्म-कुकर्म की परीधि से परे समर्पण के सिद्वांत पर पलता है और अपना सबकुछ समर्पिम कर प्रेमी को वह सुख मिलता है जिससे वह स्वर्ग पाने के प्रलोभन का भी तिरस्कार कर दे। मन के अन्दर उमड़ते-घुमड़ते अर्न्तद्वंद का बादल अब समर्पण की मुसलाधार बारिस की तैयारी में था। रह रह कर एक टीस उठती और प्रेम में आहुति को कोई ललकारता। निसंदेह रीना का प्रेम समर्पण की सारी परीधियों के परे जा सकता था पर मैं दो राहे पर खड़ा था। दोराहा इस मायने में की, अपने घर की आर्थिक विपन्नता और उज्जवल भविष्य की कामना रह रह कर प्रेम डगर पर बढ़े पांव को अंदर की ओर खींच लेता। बाबूजी ने अपना जीवन शराब को समर्पित कर दिया है और घर में खाने का ठौर तक नहीं। छोटे चाचा की अभी एक साल पहले ही शादी हुई है, किसी तरह। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
शादी में सारा परिवार खुश था, खास कर बाबा पर शादी के कुछ माह बाद ही जब दोसूतबली चाची घर आई तो चाचा के पान की दुकान से होने वाली थोड़ी बहुत कमाई का हिस्सा जो घर खर्चे में लगता था वह भी चूकता रहा। चाची ने बाबा से साफ कह दिया कि-‘‘खाय बला सब बड़का बेटबा के हो तो कमाई बला हमर सैंया काहे, हमरा बांट के अलग कर दा।’’ उस रोज सात दशक पार कर चुके, लाठी टेक कर चलने वाले बाबा ने मर्यादा की सारी सीमाओं को पार कर सहारे की लाठी को छीनता देख चाची को लाठी लेकर मारने के लिए दौड़ पड़े। जिन बुढ़ी आंखों में अभी अभी बेटे का घर बसने की खुशी थी उनमें आज आश्रु के धार थे। छोटा भाई, जिसको कभी भी स्कूल जाने का सुअवसर नहीं मिला और पान की दुकान पर बैठना घर खर्चे की जिम्मेवारी में उसकी अपनी भागीदारी थी।
खैर, जब इन सब बातों को याद करता तो कहीं दूर से जैसे कोई आवाज आती कि जिस प्रेम को पाने का तुम आकांक्षी हो उसी प्रेम के दुख का कारक भी क्या तुम्हीं बनोगे? किशोरपन के इस दोराहे पर उपन्यास पढ़ने की लत लग गई थी जिसमें गुलशन नन्दा की लवस्टोरी तथा सुरेन्द्र मोहन पाठक की उपन्यास का मैं दिवाना हो गया था। पाठक जी के उपन्यास का कई डायलॉग जीवन को दोराहे से उबारने वाला साबित होता। उन्हीं में से ‘‘जो तुघ भाये नानका सोई भली तुम कर’’ संवाद के सहारे जीवन की नाव को ईश्वर के हवाले कर दिया। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इन्हीं द्वंदो-प्रतिद्वंदो के बीच दो दिन गुजर गए। इस बीच फुआ से कोचिंग के लिए पटना नहीं जाने को लेकर वाकयुद्ध भी हो गया और मैंने सोचे गए अर्थाभाव का बहाना ही वहां आजमा कर मामले को इतिश्री कर दी। भला इतने कम खर्च पर पटना में पढ़ाई कैसे होगी, खर्च को दुगना करना पड़ेगा। तीसरे दिन दीया-बत्ती के बेला में मैं पोखर पर चहलकदमी कर रहा था की रीना के घर के आगे रिक्सा आकर रूका और दो आदमी के उससे उतरने का आभास भी हो गया। किसी ने जैसे कहा हो की रीना आ गई। चूकती हुई सांस जैसे वापस आ गई हो। धन्य भोला। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया।
अब, जबकि हाथ पर रीना का नाम लिखे जाने का चर्चा गांव में नमक मिर्च के साथ साथ अचार मिलाकर चटखारे के साथ हो रही है तो मुझे सावधान रहकर योजना बनाने की जरूरत है। सो कुछ दिन एक दूसरे से मिलने या आंख मिचौली करने की लालसा को दफन कर दिया ताकि खामोशी रहे। पर यह खामोशी तूफान से पहले की खामोशी थी और तूफान के आने का आभास मुझे था। आठ से दस दिन गुजर गए, रीना घर से नहीं निकली थी और छत पर भी नहीं आ रही थी। शायद यही करार हुआ होगा उसके गांव वापसी का या फिर बाजी पलट गई है। मन ही मन सशंकित मैने पहले वाली शर्त को ही माना और अपनी ओर से भी किसी तरह की हलचल नहीं की। आभासी दुनिया में दो दिलों का मिलन हो रहा था। शायद यह प्रेम के संवेदनाओं की पराकाष्ठा ही थी कि अपने अपने घरों में होने के बाद भी मिलन की तृप्ति से मन प्रफुल्लित हो उठा जैसे कई दिनों से सूखे धान की खेत को भादो के हथिया नक्षत्र ने सूढ़ लटका पर पानी से तर-बतर कर दिया हो। आभासी दुनिया में मिलन के इस नैसर्गिक सुख को सिर्फ जिया जा सकता है, जाना नहीं जा सकता। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
खैर, ग्यारहवें दिन मेरा हौसला चुक गया। अभी तक दोनों ने एक दूसरे को आमने-सामने से नहीं देखा था। फिर भी सावधानीवश मैने प्रेम पत्र का सहारा लेने का निर्णय लिया। रात एक से दो बजे के बीच जाग कर प्रेम पत्र में दिल की कई बातों को रखा जिसमे प्रेम की बातें कम और उपदेश की बातें अधिक थी। उपदेश का अपना तर्क था। जिसमें बचपन की अटखेलियों से निकल कर जीवन की तल्ख सच्चाईयों का सामना करने की बात थी। जिसमें आर्थिक विषमता और पारिवारिक विषमता का मार्मिक चित्रण था। जिसमें प्रेम को सिनेमा के पर्दे से निकल कर जमीन की सच्चाई पर कदम रखने और पत्थरीले रास्ते पर चलने की कठिनाईयों का जिक्र था। कुल मिला कर चार पन्ने का प्रेम पत्र तैयार हुआ तो उसको उस तक पहूंचाने की मुश्किल सामने आ गई। पर अपना पुराना फार्मूला तो था ही। एक खाली डिब्बे में उसे पैक कर लिया। अगली सुबह चार बजे जब वह नित्य कर्म के लिए निकलेगी तो दे दिया जायेगा।
मेरी खिड़की हालांकि अब अमूमन सावधानीवश बंद रहने लगी थी पर आज सुबह के इंतजार में शाम से ही खोल रखी थी और जानता था कि उसे इस बात का आभास तो जरूर होगा कि कई माह से बंद पड़े दिल की बात को सांझा करने का प्रयास हो रहा है। सुबह वह निकली तो सही घर से पर दो अन्य महिलाओं के साथ। श्याम पक्ष का पखवाड़ा था सो सुबह चार बजे के आस पास भी अंधेरा था। फिर भी मैंने हौसला किया और गली के मुहाने पर उसके गुजरने का इंतजार करने लगा। वह सबसे पीछे थी। जब वह थोड़ी दूर गई तो मैंने प्रेमपत्र के डिब्बे को फेंक कर दे मारा। उसने भी क्या स्थान चुना। डिब्बा उसकी कमर के नीचे जाकर लगा। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘अरे साला’’, रीना के मुंह से निकला। वही उसका चिरपरिचित अंदाज। लगा जैसे जान बाकी है। चहकना, फुदकना गलियाना सब कुछ उसका अपना था।
‘‘की होलो रीना।’’ ‘‘कुछ नै, कांटा है।’’ इतना कहते हुए उसने प्रेमपत्र के डिब्बे को उठा लिया। इस घटना के कई दिन बीत गए पर मामले मे किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं आया। मुझे चिंता होने लगी। लगा जैसे कहीं कुछ बात है जो बिगड़ गई है। आज वृहस्पतिवार का दिन है। रीना के उपवास का दिन। आज के दिन वह उपवास करती है और भगवान से मुझे पाने की कामना से। अमूमन गर्मी की वजह से कम लोग ही घर से बाहर गली मे नजर आ रहे थे। रीना के घर के पिछवाडें एक दलान था। दलान में गाय-गोरू के रखने की जगह थी और आगे का एक कमरा अतिथियों के लिए था। मैं यूं ही टहलता हुआ उधर से गुजर रहा था कि उस पर नजर पड़ गई। मुझे देखते ही वह कमरे के अंदर चली गई। मेरा मन बेचैन हो उठा। क्या वह मुझसे गुस्सा है? मैने आव देखा न ताव उसके दलान में प्रवेश कर जिस कमरे में वह गई थी चला गया। महीनों बाद आज वह मेरे सामने थी। दोनों के मुंह से बोल नहीं फूटे। क्षण मात्र भी नहीं बीता होगा की दोनों एक दूसरे की बाहों में थे। रीना आकर मुझसे लिपट गई, जैसे मां से बिछड़ा हुआ बच्चा। मैंने भी उसे अपनी आगोश में ले लिया। लगा जैसे वह मेरे सीने में समा जाना चाहती हो, समग्र। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘काहे ऐसे करो हीं यार, छोड़ के भाग गेलहीं।’’
‘‘की करीए, जे कहीं उ करे ले तैयार हिए। हमरा पर की बितलै से तों नै ने समझमहीं।’’ ‘‘चल कहीं भाग चलिए।’’ ‘‘जब कोई नै सुनतै तब की करबै।’’ और फिर उसके गुलाबी अधरों की पंखुड़ी का एक कोमल स्पर्श मेरे गालों पर हुआ। मन तृप्त हो गया। ‘‘मिलन नै होतै यार।’’ ‘‘हां हो, भगवान जब चाहथिन तब जुदा के करतै।’’ मैने कहा। तभी देखा कि उसका भाई दिल्लिया भैंस को हांकता हुआ उधर ही आ रहा था। क्षण मात्र गंवाए मैं यूं निकला जैसे तार से होकर करंट दौड़ती हो। बगल की गली से होता हुआ मैं घर आ गया। इस छोटी सी मुलाकात मंे रीना ने अपने मन के जिस उद्गार को पन्नों पर उकेरा था, मुझे थमा दिया था। घर आकर सबसे पहला काम उसे पढ़ने का किया। उसने भी मेरे पत्र का उसी अंदाज में जबाब दिया था। और उसमें प्रेम की बातें कम, शादी, परिवार और आगे का भविष्य इसी सब विषय पर ज्यादा चर्चा थी। जलते हुए अंगार को हथेली पर रखने की तरह प्रेम को सीने में रख लिया है। सब एक खलनायक की तरह मुझे देखने लगे। दोस्तों का साथ घीरे घीरे छूटने लगा या कम हो गया। लगा जैसे दूध से मख्खन की तरह मेरे प्रेम को जुदा करने की कोशिश सब ने मिल कर शुरू कर दी हो। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
गांव में कई तरह के लोग है जिसमें से कुछ अति सीधा, जिसे गांव की भाषा में लोग गौ-महादेव कहते तो कई धुर्त-सियार। थाना कचहरी आने जाने वालों की काफी कद्र और लोगों में उसका भय भी। गौ-महादेव की श्रेणी मे मेरे फूफा आते थे और धुर्त-सियार में गोयनका सिंह। गोयनका सिंह की पुलिस और हकीम से जान पहचान थी और किसी प्रकार का मुकदमा अथवा बैंक से ऋण बगैरह की बात हो तो लोग उसी के पास जाते। गोयनका, रीना का चचेरा भाई। अहले सुबह फूफा को गोयनका सिंह का बोलहटा आ गया। गोयनका बोला रहलखुन हें। फूआ के कान खड़े हो गए। फूआ कड़क मिजाज थी सो किसी तरह की धुर्तई करने वाले लोग उससे दूर ही रहते थे। खैर फूफा गए तो वहां उनके चचेरे भाई भी मौजूद थे। शराब का दौर चल रहा था। दोनो ने इनको बैठाया और फिर एक धुर्तई की कहानी सुनाई।
‘‘सुनलहो सुराज दा, इ साला चौकीदरबा बड़ी बाबा बनो हो, साला पर मुकदमा कर देलिओ हो, तोरा गबाह बना देलिओ हें, साथ देना है।’’गोयनाका ने कहा। ‘‘तब, पहले पुछबो नै कइलहो, हमरा तो पुलिस से बड़ी डर लगो हो।’’ ‘‘इ मे डरे के की बात है, हम सब हिए ने।’’ यह आश्वासन उनके भाई ने दिया था। अपने भाई की वे बहुत कद्र करते थे, सो ज्यादा विरोध न कर सके। बास्तव में पुलिस से वे भारी डरते थे और गांव में कहीं पुलिस आ जाए तो वह वहां से खिसक लेते थे। ‘‘अच्छा केसाबा की कलहों हे।’’ >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘इहे की चौकीदराब अपने भौजाई से फंस हलै औ जब भेद खुल गेलई तो ओकरा जहर देके मार देलकै।’’
सुन कर वे अबाक रह गए-‘‘मर्दे इ सब की कहों ही तों, इस सब हमरा से नै होतई, इ सब तो झूठ है।’’ ‘‘हां, झूठ त हइए है, पर साला चौकीदरबा के ठंढा करेके के चाही ने सुराज दा, देखो हो केतना उड़ो हो।’’ ‘‘पर बेचारी मरलका के कहे ले घसीटों हीं हो, हमरा से यह सब नै होतो।’’ कह कर फूफा घर आ गए। फूआ जब सब बात जानी तो कोहराम मचा दिया।-‘‘तोरा बुरबक जान के सब फंसाबे ले चाहो हो। होशियार रहीहा।’’ कई दिनों तक इस पर बहस होती रही। फूफा अपने बड़े भाई से बहुत लिहाज करते थे या यूं कहें की डरते भी थे, इसलिए उनके काफी मान-मनौअल और दबाब के बाद वे मान गए, एक झूठा मुकदमा करने के लिए। मान मनौअल के इस दौर में बड़े भाई ने साथ नहीं देने पर गाली गलौज भी दी और मारने पीटने की बात भी कही, जो उनके लिए असाह्य था। सो बात बन गई। चौकीदार की भाभी की बिमारी से मौत हो गई थी, कम उर्म में ही और चौकीदार से दुश्मनी सधाने का यह एक अच्छा मौका था। सो सब ने मिलकर उसे हत्या के मुकदमें में फंसा दिया। बाद में गोतिया की बात होने की दुहाई देकर फूआ को भी मना लिया गया। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
फिर कई दिनों का दौर चला जिसमे फूफा को झूठ बोलना सिखाया गया। कैसे दुकान से आलू लाने गए और आवाज सुन कर खिड़की से झांका और नाजायज संबंध की बात सुनी बगैरह, बगैरह। मुझे यह सब अच्छा नहीं लगा। मैंने इसका विरोध भी किया पर बात जब गोतिया की हो तो कौन सुनता है। सो पुलिस आई और सभी गांव की भीड़ में फूफा के मुंह से एक मृत महिला को कलंकित कर दिया गया। कई लोग थे जिन्होंने इस बात की गवाही दी और नजायज संबंध की बात कही। मेरा मन व्यथित होता रहा पर यह सब बड़ों की बात थी।
पर, यह सब हो क्यों रहा था। बजह बिल्कुल साफ थी। चौकीदार का गांव में दबदबा था। किसी से उलझ जाना और तंरंत मुरेठा बांध कर पुलिस को बुलाने के लिए निकल पड़ना, फिर विरोधियों के द्वारा उसके पैर पर गिर कर गिड़गिड़ाना। यह सब अक्सर होता रहता जैसे चौकीदार न होकर, लाट साहब हो। गांव के कुछ लोग, जो गांव में अपना वर्चस्व जमाना चाहते, वे इसका तोड़ निकालने की जुगाड़ में रहते। और चुनाव के समय वह सत्ता पक्ष बालों के साथ खड़ा रहता, जिससे भी लोगों में नाराजगी थी। खैर बात चाहे जो हो, पर इस सब बातों से मन दुखी होता और लगता कि गांव में कुछ चालू लोगों के द्वारा कैसे सीधे साधे लोगों को फँस लिया जाता है। खैर, मुझे इन सब चीजों से कोई खास मतलब तो था नहीं, सो मैं अपने में मगन रहने लगा। आज देर शाम छत पर जाकर बैठ गया। चुपचाप। फिर थोड़ी देर के बाद छत पर टहलने लगा। इसलिए की शायद वह मेरी बेचैनी को समझेगी। इस वक्त रात्री के दस बज गए थे और मैं छत पर चुपचाप बैठा हुआ था। एक एहसास के सहारे, शायद आज रात वह मिलने आए.... >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
रात्री मिलन के बात कुछ दिनों तक उसका दर्शन नहीं हो सका। पता नहीं क्यूं। पर इन सारी बातों में से मुझे जो बात सबसे अधिक भाती थी वह था रीना का साहसी होना। मिलने-बिछुड़ने, रूठने मनाने के खेल में उसने कई बार अपने साहस का परिचय दिया। कितनी ही बार उसने जताया कि मैं जितना उसे चाहता हूं वह उससे कहीं अधिक मुझको चाहती है। हलांकि प्रेम को कम या ज्यादा नहीं नापा जा सकता पर इसके साथ साहस का होना उसे सुदृढ़ बनाता है।
शाम का समय होने लगा था और सूरज देवता ने आहिस्ते आहिस्ते पश्चिम को ओर अपने छुपने की तैयारी करते हुए आकाश को सिंदूरी रंग से आच्छादित कर दिया है। मैं भी अपनी तन्हाई का दामन छुड़ने के लिए खेत की मेड़ों से दोस्ती का निर्णय लिया और खंधे की ओर निकल गया। घान के खेत अपने शबाब पर थे और घान की फसल से बाली निकलनी अभी शुरू हुई थी। मैं यूं हीं उसी के साथ खेलता-छूमता जा रहा था। तन्हाई में भी मन में एक अजीब सा सुकून था, एक खुशी थी। यह दिवानगी ही थी जो कि आज धान की बालियों से बतिया रहा था। उसके साथ ही अपनी खुशी, अपना गम बांट रहा था। खंधे में दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था। मैं था और मेरी तन्हाई थी और साथ था धान के खेत, मेड़ पर उग आये हरे भरे घांस। आज सबसे अपनापा सा हो गया। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
कई दिनों से मैंने चांद का दीदार नहीं किया था। तीन चार दिनों से वह दिखाई नहीं दे रही थी। मैं जानता था इसका कारण नाराजगी नहीं, शर्म है। यही सब सोंचता विचारता मैं घर की ओर लौट रहा था। गांव के करीब पहूंचने पर मकई के खेतों के बीच से होकर गुजरना पड़ता था। पतली सी पगदंडी से चुपचाप सर झुकाए जा रहा था की तभी एक खनकती हुई आवाज सुनाई दी-
‘‘साला, मुड़िया गोंत के केकर याद में खोल जा रहलहीं हें।’’ यह रीना थी। शायद उसने मुझे जाते हुए देख लिया होगा और इस उम्मीद से की इसी रास्ते से लौटूंगा अपने भतीजे को गोद लिए वह उसी पर चहलकदमी कर रही थी। मैं उसे देखने लगा। आज वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। आज वह साधारणतः फ्रॉक में रहने की जगह सलवार समीज में थी। आज वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। मैं उसे प्यार भरी नजरों से देखने लगा। ‘‘देख, ऐसे मत देख।’’ वह शर्माने लगी। ‘‘काहे अब काहे डर लगो है।’’ ‘‘डर तो हमर जूत्ती के भी नै लगो है।’’ ‘‘और की हाल।’’ मैंने थोड़ी तंज लहजे में कहा। >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘मतलब?’’
‘‘तोरा नै पता?’’ ‘‘देख, जादे बौख नै।’’ तभी देखा की उसी रास्ते पर गांव का संजीव चला आ रहा है पर आज दोनों में से किसी ने वहां से हटने की या छुपने की कोशिश नहीं की। यह साहस था सच्चे प्रेम का। दो आपस में बतियाते रहे, हां बातचीत का विषय बदल गया। और सिनेमा की चर्चा होने लगी। फिर मैं जिधर से आया था उधर ही लौट गया और वह अपने घर की ओर चली गई। अब किशोर मन अपने भविष्य की भी परवाह नहीं करते हुए प्रेम में पागल था पर अर्न्तद्वंद साथ साथ चल रही थी। खास कर अपनी निर्धनता को लेकर परेशान था। कहीं किसी कोने से यह आवाज आती कि उज्ज्वल भविष्य को लेकर यह प्रेम का चक्कर सबसे बड़ी बाधा है पर कहीं कोई इसका विरोध करते हुए नियती को प्रबल मानने की बात कहते हुए तर्क दे रहा था- सच्चाई और प्रेम ही उज्ज्वल भविष्य की निशानी है और इस अनमोल मोती को खोकर कंकड़-पत्थर मिले भी तो किस काम का....! >>> |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
खैर इस सबके बीच गांव के चौक चौराहे पर अभी चुनावी माहौल था। गांव में अभी तक लोकतंत्र की धमक नहीं पड़ी थी और गांव में दबंगों का ही राज चलता था। गांव के नरेश सिंह, महेसर सिंह, काको सिंह सहित अन्य लोगों की एक जमात थी जिसकी राजनीति पर पकड़ थी और गांव में मंत्री से लेकर संत्री तक सबसे पहले उनके द्वार पर ही आकर मथ्था टेकते। गांव बड़ा था और यहां के बोट का महत्व भी सर्वाधिक था। अभी तक सभी जानते थे कि गांव मे वोट देने का अधिकार किसी को नहीं है। गांव में सवर्णो के वनिस्पत दलितों और पिछड़ो की आबादी अधिक थी पर किसी को अपने वोट का महत्व नहीं पता ?
मतदान के दिन गांव में सुबह से ही फरमान सुना दिया जाता कि कोई स्कूल में बोट देने के लिए नहीं जाएगा जो जाएगा उसे विरोधी माना जाएगा। आजादी के पांच दशक हो जाने के बाद भी गांव के सर्वाधिक लोग वोट देने नहीं जाते। वही जाते जो दबंगों के समर्थक होते। ऐसी बात नहीं थी कि सारा गांव उनके आगे नतमस्क था। विरोध की चिंगारी भी जल रही थी। गांव के ही सूटर सिंह समाजवादी पार्टी का झंडा लेकर समूचे गांव में अकेले घूमते और इसका विरोध करने के लिए लोगों को जगाते पर दिन के उजाले मे कोई उनका साथ नहीं देता। हां, रात गहराने पर सूटर सिंह लोगों के घर जाते और अपना अपना वोट सब दें इसके लिए सबको समझाते पर किसी में हौसला नहीं पनपता। पनपता भी कैसे। जब-जब किसी ने हौसला किया उसे मूंह की खानी पड़ी और बूथ पर या तो उसकी पिटाई की गई या फिर पुलिस ने उसे झूठे मुकदमें में फंसा कर अंदर कर दिया। गांव में इस असमानता के विरूद्ध जली चिंगारी आज रात मुझ तक पहूंच गई। रात करीब नौ बजे अपने दोस्त कमल, चिंटू सहित अन्य के साथ नहर पर बैठे बतिया रहे थे। >>> |
All times are GMT +5. The time now is 11:53 AM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.