शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
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जन्मदिन (11 अक्टूबर) पर विशेष |
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यह सर्वविदित है कि अमिताभ बच्चन की पीढ़ी के किसी कलाकार को भारतवासियों का उतना प्यार और सम्मान नहीं मिला जितना स्वयं अमिताभ बच्चन को मिला है. यह उनके चाहने वालों का प्यार ही था जिसने बीबीसी द्वारा प्रायोजित ऑन-लाइन चुनाव में उन्हें पिछली शताब्दी के थियेटर या सिनेमा की महानतम शख्सियत या पिछली शताब्दी का “महानायक” का खिताब दिलवाया. इस पोल में अमिताभ ने लॉरेन्स ओलिवियर, चार्ली चेपलिन और मार्लोन ब्रेनडो जैसे दिग्गज कलाकारों को भी पीछे छोड़ दिया. |
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बिग बी के नाम से जाने जाने वाले अमिताभ बॉलीवुड के शहेंशाह भी कहे जाते है| 40 साल से अधिक गुज़ारने के बाद भी आज बॉलीवुड में उनके कद के सामने कोई नहीं है और की उम्र में भी आज वे बॉलीवुड के सबसे व्यस्त अभिनेताओं में गिने जाते है| शुरू में जिस बाहरी आवाज़ के कारणनिर्देशकों ने अमिताभ को अपनी फिल्मों से लेने को मना कर दिया था, वही आवाज़ आगे चलकर उनकी विशिष्टता बनी| 40 साल से अधिक के करियर में उन्हें दर्शकों ने अनेको नाम दिए: बिग बी, शहेंशाह, एंग्री यंग मेन आदि| अमिताभ ने न सिर्फ बड़े परदे पर खुद को साबित किया पर छोटे परदे पर भी नए आयाम स्थापित किये| धारावाहिक 'कौन बनेगा करोडपति' से उन्होंने अपनी जिंदगी की नयी पारी की शुरुआत की थी और एक के बाद एक नया उच्चमान हासिल करते गए| एक अभिनेता के आलावा, अभिताभ एक गायक, निर्माता और सांसद की भूमिका भी निभा चुके है|
अमिताभ की फ़िल्में 1. 1975 में उन्होंने कई तरह की फिल्मों में काम किया जिनमे 'चुपके चुपके' बेहद लोकप्रिय रही| 1975 में उन्होंने यश चोपड़ा की फिल्म ’दीवार’ में काम किया और ये अब तक की उनकी सबसे सफल फिल्म रही| इस फिल्म के संवाद, जैसे "मेरा बाप चोर है", "मेरे पास माँ है", आज भी दर्शकों के ज़हन में बैठे है| उनकी अगली फिल्म आई ‘शोले’ जिसने बॉलीवुड के सारे उच्चमान तोड़ दिए और अमिताभ को बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं में ला खड़ा किया| बच्चन ने फिल्म जगत के कुछ शीर्ष के कलाकारों जैसे धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, जया बच्चन और अमजद खान के साथ जयदेव की भूमिका अदा की थी। 2. 1978 में उन्होंने उस साल की 4 सबसे बड़ी फिल्मों में काम किया - 'कसमे वादे', ‘डॉन’, ‘त्रिशूल’ और ' मुक़द्दर का सिकंदर' | ‘डॉन’ में उन्होंने एक कुख्यात सरगना का किरदार निभाया और उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार मिला| फिल्म ‘त्रिशूल’ और 'मुक़द्दर का सिकंदर' से उन्होंने माँ-बेटे के प्रेम पर बनने वाली थीम को आगे बढाया जो दर्शकों को बेहद पसंद आई और इन फिल्मों के संवादों ने इतिहास में अपनी जगह बना ली| उनकी अगली फिल्में, 'नटवरलाल', 'काला पत्थर', 'दोस्ताना', ‘सिलसिला’ उनकी सफल फिल्मों की सूची को बड़ा करती गयी| 3. 1999 में बीबीसी ने ‘शोले’को इस शताब्दी की सबसे बेहतरीन फिल्म बताया और दीवार की तरह इसे इंडियाटाइम्स मूवियों में बालीवुड की शीर्ष 25 फिल्मों में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फिल्मफेयर पुरूस्कार था। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फिल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बच्चन ने अब तक अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था और 1976 से 1984 तक उन्हें अनेक सर्वश्रेष्ठ कलाकार वाले फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और अन्य पुरस्कार एवं ख्याति मिली। उनका सुनहरा दौर आगे बढा और उन्होंने 'कभी कभी' और ‘अमर अकबर एंथनी’ जैसी सफल फिल्में दी| ‘अमर अकबर एंथनी’ के लिय उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी मिला| 4. उसके बाद तो ना जाने कितनी ही फिल्मों ने अमिताभ के शानदार अभिनय की बदौलत सफलता की बुलंदियों को छुआ. नब्बे के दशक में एक बार फिर बिग बी के कॅरियर में बुरा वक़्त आया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आगे बढ़ते रहे. वर्ष 2000 में आई फिल्म 'मोहब्बतें' ने बिग बी को एक बार फिर सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया. उसके बाद तो वो छोटे पर्दे पर भी 'कौन बनेगा करोड़पति' और 'बिग बॉस' जैसे शो लेकर आए जो बेहद सफल रहे. |
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अमिताभ बच्चन
(साभार: पुण्य प्रसून बाजपेयी द्वारा लिया गया एक इंटरव्यू) हरिवंशराय बच्चन के बेटे हैं, नेहरू परिवार के क़रीबी, उस दशक को देखा, उस दौर को देखा जिस दौर में इमरजेंसी, उस दौर को देखा जब राजनीति हाशिए पर, जनता के बीच एक कुलबुलाहट... तमाम चरित्रों को जीने के बाद अब लगता है कि समाज में एक जिन्न की जरूरत आन पड़ी है? काश कि ऐसा हो सकता, तो मैं अवश्य जिन्न बनता और बहुत सारे सुधार लाने का प्रयत्न करता। लेकिन हूँ नहीं ऐसा। इस फ़िल्म के जरिए लगता नहीं है कि वो तमाम मिथ टूटेंगे, जो नॉस्टालजिआ है आपको लेकर? नहीं, ऐसा तो नहीं है। मैं नहीं मानता हूँ कि... ये जीवन है, ये संसार है, इसमें मुलाक़ातें होती रहती हैं, लोग बिछड़ जाते हैं, नए मित्र मिलते हैं, सब जीवन है, इसके साथ हम... ये नॉस्टेलजिआ हमने देखा कि हाल में जब छोटे पर्दे पर आप दुबारा आए बिग बी के जरिए, तो शुरुआत में उन तमाम चरित्रों के उन बेहतरीन डायलॉग्स को दुबारा दिखाया गया, जिसके जरिए आपकी पहचान है और लोगों की कहें तो आप शिराओं में दौड़ते थे। उसको उभारने की जरूरत क्यों पड़ी? क्योंकि मेरे ख्याल से आपकी छवि उसी में दिखाई देती है। ये जो प्रोड्यूसर हैं टेलिविज़न चैनल के, उनकी ऐसी धारणा थी कि इस तरह का कुछ एक प्रज़ेंटेशन करना चाहिए.ये उनका क्रियेटिव डिसीज़न था। मेरी उसमें कोई भूमिका नहीं है। ये केवल किरदार हैं और यदि लोग उन किरदारों से मेरा संबंध बनाना चाहते हैं, तो मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। |
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अमिताभ बच्चन महज एक किरदार हैं?
सिनेमा के लिए... और व्यक्तिगत जीवन में एक अलग किरदार है। निजी जीवन का निर्णय था या सिनेमाई जीवन की तर्ज पर निर्णय था कि कभी राजनीति में आ गए थे आप? हाँ, उसमें व्यक्तिगत निर्णय था ये। हमारे मित्र थे राजीवजी और लगा कि उस समय जो दुर्घटना हुई देश में, उस समय एक नौजवान देश की बागडोर को सम्हालने के लिए खड़ा हो रहा है। तो ऐसा मन हुआ कि हमें उसके साथ रहना चाहिए, उसके पीछे रहना चाहिए, उसका हाथ बँटाना चाहिए, तो हमने अपने आप को समर्पित किया और उन्होंने हमसे कहा कि आप चुनाव लड़िए, तो हम इलाहाबाद से चुनाव लड़ गए और भाग्यवश उसे जीत गए बहुत ही दिग्गज हेमवती नन्दन बहुगणा जी के सामने। और फिर जब पार्लियामेंट में आए और धीरे-धीरे जब राजनीति को बहुत निकट से देखने का अवसर मिला, तो लगा कि हम इस लायक नहीं है कि हम राजनीति कर सकें, हमें राजनीति आती नहीं थी और हमने अपने आप को असमर्थ समझा राजनीति में रहने के क़ाबिल और इसलिए हमने वहाँ से त्यागपत्र दे दिया। आपकी हम एक किताब देख रहे थे, सुदीप बंधोपाध्याय ने लिखी है, उस पीरियड में आपने कहा है कि पिताजी कहते थे कि जिन्दगी में मन का हो तो अच्छा और न हो तो बहुत अच्छा... ज़्यादा अच्छा। ...तो ज्यादा अच्छा, तो आपको क्या लगता है कि ज्यादा अच्छा हुआ कि कम अच्छा हुआ? ज़्यादा अच्छा हुआ। |
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और व्यक्तिगत तौर पर आपके जीवन में सब कुछ ज्यादा ही अच्छा होता रहा है?
जब कभी ऐसा लगा कि मन का नहीं हो रहा है या मन के अन्दर ऐसी भावना पैदा हुई कि अरे! यदि ये ऐसा क्यों नहीं हुआ, ये तो ग़लत हो गया... लेकिन फिर थोड़ी-सी सांत्वना हम लेते हैं जो बाबूजी की सिखाई बातें हैं, कि अगर हमारे मन का नहीं हो रहा है तो फिर ईश्वर के मन का हो रहा है। और फिर वो तो हमारे लिए अच्छा ही चाहेगा। कुछ पीड़ा नहीं होती है कि एक दौर में अमिताभ बच्चन सिल्वर स्क्रीन के जरिए लोगों के अन्दर समाया हुआ था... वो कह सकते हैं कि वो टीम-वर्क था, सलीम-जावेद की अपनी जोड़ी थी, किशोर कुमार का गीत था, लेकिन धीरे-धीरे जो सारी चीजें खत्म होती गयीं, तो अमिताभ भी खत्म होता गया। कलाकार के जीवन में होगा ऐसा। एक बार शुरुआत में अगर आप चरम सीमा छू लेंगे तो वहाँ से फिर आपको नीचे ही उतरना है। ये जीवन है। नहीं-नहीं, चरम पर तो अब भी आप ही हैं... नहीं-नहीं, ऐसा कहना ग़लत है। न... कोई और लगता है? और क्या, बहुत सारे। जितनी नौजवान पीढ़ी है, वो सब है। नहीं, नौजवान पीढ़ी उम्र के लिहाज से है। हम एक्टिंग के लिहाज से कह रहे हैं। नहीं-नहीं, वो तो जनता बताएगी न। जनता तो बताती है। तभी तो आपको एक्सेप्ट करती है। तो ये मेरा भाग्य है कि कुछ फ़िल्में जो हैं देख लेती है, कुछ नहीं देखती है, कुछ उसकी आलोचना करती है। पर ये उम्र के साथ होगा... अब धीरे-धीरे हमारा जो है शान्ति हो जाएगी, हमारी जो लौ है वो धीमी पड़ जाएगी और एक दिन बुझ जाएगी। |
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अक्सर कहते थे... कि उस दौर में आपसे पूछा जाता था कि ये आक्रोश आपके भीतर कहाँ से आता है? आप कहते मैंने वो पीड़ा देखी है, पीड़ा भोगी है, पिता के संघर्ष को देखा है। नहीं, मैंने ये कहा था कि मैं मानता हूँ कि प्रत्येक इंसान के अन्दर कहीं-न-कहीं क्रोध होता है, और वो सबके अन्दर होता है और यदि उसके साथ अन्याय होगा तो वो क्रोध निकलता है। मेरे अन्दर से इस प्रकार से निकला जिस प्रकार लेखकों ने जो पटकथा थी, उसे लिखा और जिस प्रकार जनता ने जो देखा, उसे पसंद आया, तो वो एक व्यवसाय बन गया। लेकिन मैं ऐसा मानता हूँ कि आपके अन्दर भी उतना ही क्रोध है जितना मेरे अन्दर है और यदि आपके साथ भी वही अन्याय होगा जो आम आदमी के साथ होता है, तो आपके अन्दर से भी वही क्रोध निकलेगा। उसमें कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है। अब नहीं आता है किसी बात पर क्रोध? नहीं, अब आता है और उसे हम व्यक्त भी करते हैं। मसलन? कई ऐसी बातें होती हैं, निजी बातें होती हैं, व्यक्तिगत बातें होती हैं। |
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