Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (12 फ़रवरी)
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (13 फ़रवरी)
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (13 फ़रवरी)
फैज़ अहमद फैज़ /Faiz Ahmed Faiz भारतीय उपमहाद्वीप के मशहूर व उल्लेखनीय शायर फैज़ अहमद फैज़ बहुमुखी व्यक्तित्व के मालिक थे. उनको समझने के लिये यह बताना ज़रूरी है कि वे 1911 में सियालकोट में पैदा हुये. उनकी शिक्षा सियालकोट और लाहौर से हुयी. उन्होंने अंग्रेजी और अरबी दोनों विषयों में एम ए तक की शिक्षा प्राप्त की थी. अमृतसर तथा लाहौर के कॉलेजों में प्राध्यापक रहे. बाद में पांच वर्ष तक (1942 से 1947 तक) फ़ौज में रहे और कर्नल के रैंक तक पहुंचे. विभाजन के बाद उन्होंने लाहौर (पाकिस्तान) में रहना मुनासिब समझा. वे ‘पाकिस्तान टाइम्स’ तथा ‘इमरोज़’ के एडिटर भी रहे. उनके जीवन का सबसे तकलीफ़देह समय वह था जब उन्हें रावलपिंडी कांस्पीरेसी केस के सिलसिले में 4 वर्ष के लिये जेल में रहना पड़ा. वे तरक्की पसंद तहरीक से जुड़े शायर थे और उनकी शायरी एक प्रकार से इसी तहरीक का घोषणापत्र था. जेल मैं कागज़ और कलम रखने की मनाही थी. कुछ कवितायेँ वे उन कैदियों के हाथ चोरी छुपे जेल से बाहर भेजने में कामयाब हो जाते थे जो रिहाईके बाद बाहर जाते थे. ये कवितायें या छुटपुट शे’र मौखिक रूप से बाहर पहुँचते थे. ऐसा ही एक शे’र था: मताए लौहो क़लम छिन गई तो क्या ग़म है के खूने दिल में डुबो ली हैं उंगलियाँ मैंने (लौहो क़लम = स्याही और कलम) यह फैज़ साहब की प्रतिभा ही थी कि वे चार बार साहित्य में नोबेल के लिये विचाराधीन रहे. |
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सरोजिनी नायडू /Sarojini Naidu भारत कोकिला / Nightingale of India |
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सरोजिनी नायडू /Sarojini Naidu भारत कोकिला सरोजिनी नायडू (विवाहपूर्व सरोजिनी चट्टोपाध्याय) ने 12 वर्ष की आयु में मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा पूरे मद्रास रेजीडेंसी क्षेत्र में प्रथम स्थान पर रहीं. उनके पिता रसायन शास्त्री थे. उन्होंने ने निज़ाम कॉलेज की स्थापना की थी. माता बंगला में कविताएं लिखती थीं. छोटी उमर में ही उन्होंने 1300 पदों वाली लंबी कविता ‘क्वीन ऑफ़ लेक्स’ तथा अपने पिता की सहायता से फ़ारसी का एक नाटक लिखा जिसका नाम था ‘माहेर मुनीर’. उनके पिता ने इसकी एक प्रति निजाम हैदराबाद के पास भिजवाई. सरोजिनी की प्रतिभा को देखते हुये निज़ाम ने उन्हें वज़ीफ़ा देते हुये आगामी शिक्षा के लिये इंग्लैंड भेजा. तीन काव्य संग्रहों के बाद से ही सरोजिनी नायडू को भारतीय और अंग्रेज़ी साहित्य जगत की स्थापित कवयित्री माना जाने लगा था. सरोजिनी नायडू द्वारा प्रकाशित काव्य पुस्तकें इस प्रकार हैं: The Golden Threshold (1905) Bird of Time (1912) The Broken Wings (1919) The Sceptred Flute (1937) 1925 में उन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेस (कानपुर अधिवेशन) का अध्यक्ष चुना गया. वे कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष थीं. अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा था 'स्वाधीनता संग्राम में भय एक अक्षम्य विश्वासघात है और निराशा एक अक्षम्य पाप है।' उनका यह भी मानना था कि भारतीय नारी कभी भी कृपा की पात्र नहीं थी, वह सदैव से समानता की अधिकारी रही है। उन्होंने अपने इन विचारों के साथ महिलाओं में आत्मविश्वास जाग्रत करने का काम किया. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल नियुक्त की गयीं. |
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शहरयार /Shaharyar |
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शहरयार /Shaharyar कुँवर अख़लाक मोहम्मद खाँ उर्फ "शहरयार" का जन्म 6 जून 1936 को आंवला, जिला बरेली में हुआ। वैसे उनके पूर्वज चौढ़ेरा बन्नेशरीफ़, जिला बुलंदशहर के रहने वाले थे। वालिद पुलिस अफसर थे और जगह-जगह तबादलों पर रहते थे इसलिए आरम्भिक पढ़ाई हरदोई में पूरी करने के बाद इन्हें 1948 में अलीगढ़ भेज दिया गया. वे अपने कैरियर के अंतिम पड़ाव में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के चेयरमैन पद तक पहुंचे और वहीँ से रिटायर हुये। शहरयार ने अपनी शायरी के लिए एक नए निखरे और बिल्कुल अलग अन्दाज़ को चुना—और यह अन्दाज़ नतीजा था उनके गहरे समाजी तजुर्बे का, जिसके तहत उन्होंने यह तय कर लिया था कि बिना वस्तुपरक वैज्ञानिक सोच के दुनिया में कोई कारगर-रचनात्मक सपना नहीं देखा जा सकता। उसके बाद वे अपनी तनहाइयों और वीरानियों के साथ-साथ दुनिया की खुशहाली और अमन का सपना पूरा करने में लगे रहे ! इसमें सबसे बड़ा योगदान उस गंगा-जमुनी तहज़ीब का है जिसने उन्हें पाला-पोसा और वक्त-वक्त पर उन्हें सजाया, सँभाला और सिखाया है। उनके ज़ोमे वफ़ात (13 फ़रवरी) पर हम उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं. |
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (13 फ़रवरी)
शहरयार /Shaharyar फिल्म गमन (ग़ज़ल: शहरयार / संगीत जयदेव) सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की वो ज़ूद-ए-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है |
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और आज की हमारी शख्सियत हैं (15 फ़रवरी)
नरेश मेहता /Naresh Mehta |
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